फिल्म रिव्यू - 3 इडियट्‌स

कहानी

रैंचो, राजू और फरहान संभ्रांत इंजीनियरिंग् कॉलेज मैं प्रवेश करते हैं, केवल जीवन के पाठों को सीखने के लिए जिन्हें किताबों और कक्षाओं के माध्यम सिखाया जा से नही सकता है। प्रिंसिपल बीरू सहस्त्रबुद्धे बिल्कुल भी मदद नहीं कर रहे है।

मूवी समीक्षा

सिस्टम खास कर एजुकेशन सिस्टम पर सवाल उठाती और उसके अंतर्विरोधों का मखौल उड़ाती राजकुमार हिरानी की 3 इडियट्स शिक्षा और जीवन के प्रति एक नजरिया देती है। राजकुमार हिरानी की दूर फिल्म किसी न किसी सामाजिक विसंगति पर केंद्रित होती है। यह फिल्म किसी न अचे से ऊंचा मार्क्स पाने की होड़ के दबाव में अपनी जिंदगियों को तबाह करते छात्रों को बताती है कि कामयाबी के पीछे भागने की जरूरत ही नहीं है। अगर हम काबिल हो जाएं तो कामयाबी झख मार कर हमारे पीछे आएगी। उ इडियट्स अनोखी फिल्म है, जो हिंदी फिल्मों के प्रचलित कोचं का विस्तार करती' है। राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी इस फिल्म में नार कुथाशिल्प का प्रयोग करते हैं। राजू रस्तोगी. फरहान कुरैशी और रणछोड दास श्यामल दास

चांचड उर्फ रैचों इंजीनियरिंग कालेज में आए नान छाज हैं। संयोग से तीनों रूममेट हैं। रेचो सामान्य स्टूडेंट नहीं है। सवाल पूछना और सिस्टम को चुनौती देना उसकी आदत है। वह अपनी विशेषताओं की वजह से अपने दोस्तों का आदर्श बन जाता है, प्रिंसिपल वीरू सहस्त्रबुद्धे उसे फूटी आंखों पसंद नहीं करते|यहाँ तक कि वे फरहान और करते है कि अगर के फरहान को घरवालों करते उन्हें अपने बेटों के भविष्य की चिंता है. तो ईन्छ उन्हें हैचो से अलग हम फरहान के लिए कहें। माई अलग कुनै परिवारों से परिचित होते है, लेकिन हमें रैचो के परिवार की कोई जानकारी नहीं मिलती। सिर्फ प्रिंसिपल वीरू एक बार बताते हैं कि वह है ऐसे परिवार का लड़का है आमदनी 25 करोड रूपार लड़का बाद में हमें रैंचो की वास्तविकता पता चलती है, तो 2 उसके प्रति सम्मान बढ़ता है। फिर भी के रणछोड़ बनने की मजबूरी पल्ले नहीं पड़ती। ३, इडियट्स, का यह कमजोर प्रसंग है। हालांकि रैचों सुपरहीरो नहीं है लेकन वह विशेष तो है ही। इसी वजह से उसे बढने में लेखक निर्देशक ने थोड़ी छूट ले ली है। राजकुमार हिरानो को फिल्मों में नारी चरित्र वे नायक लिए महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन त्यक की महत्ता बढ़ाने आई बताने के लिए ही होते हैं| में कुरीना कूपर का ऐसा ही उपयोग किया गया है।

• स्वाद

मजाकिया और जगती, यह फिल्म अपने उग्र 'बलातकार' भाषण के साथ वर्ष के सर्वश्रेष्ठ हास्य दृश्य के साथ आगे बढ़ती है।

संगीत

शांतनु मोत्रा ने आपको फिल्म का संगीत एल्बम चुनने के लिए मजबूर नहीं किया होगा, लेकिन गाने स्क्रीन पर जीवंत हो उठते हैं, खासकर जुबी- डूबी और आल इज वेल ।

कोरियोग्राफी

एविट डियाज़ ने त्रिगुट - आमिर, माधवन, शरमन- को आलु इज वेल में कुछ बेतहाशा मज़ा दिया है, जबकि बासको सीज़र को रेट्रो होना जूबी - इबी के उचित साथ

सिनेमैटोग्राफी

दिल्ली की सड़कें और लद्दाख की तस्वीर पोस्टकार्ड सुंदरता की मुरलीधरन द्वारा दिलचस्प दरवियों में केंद किया गया है।

प्रेरणाः

चेतन भगत की फाइव प्वाइंट समवन सचमुच स्कीन पर जीवंत हो उठती है, हालांकि फिल्म किताब को मात नहीं देती।

. इस फिल्म को क्यो देखे ?

वैसे तो ये पूरी फ़िल्म हो आपको बहुत कुछ सिखातो है इस फिल्म का हर सीन आपका कोई शिक्षा देता है

पर सबसे महत्वपूर्ण जो शिक्षा इस मूवी से हमें और सभी को मिलती है ये हमारे एजुकेशन सिस्टम पर एक तगड़ा तमाचा है, क्यूँ की हमारा सिस्टम भी जो है वो ध्यान रद्ध तोते दिया जा रहा सिलबेस खत्म करना बना रहा है सिर्फ क्या पढ़ना है कैसे हैं और कैसे बच्चों को रहे लगवाकर ज्यादा से ज्यादा अच्छा रिज़ल्ट निकलवाना है और बच्चे भी लगे विध्या में कोई नहीं सौंचता को इसे सिखा जाए बस याद करतो कैसे भी।