आधुनिक चिंतन और साहित्य/मानववाद
मानववाद का दर्शन मानव-मूल्य तथा उनसे संबंधित मुद्दों पर ध्यान देता है। इसके अंतर्गत तर्क-शक्ति, न्यायिक सिद्धांत तथा नीतियों पर जोर दिया जाता है। इस विचारधारा में धार्मिक दृष्टिकोण तथा अलौकिक विचार-पद्धति को हेय समझा जाता है। प्राचीन काल में चार्वाक दर्शन में मानववाद की झलक देखी जा सकती है, जिसमें धार्मिक विचारों के बजाय मनुष्य के विवेक तथा तर्कशक्ति पर जोर दिया गया।
परिचय
सम्पादनपहली बार 'मानववाद' शब्द फ्रांसीसी विचारक मॉंतेन के लेखन में पाया जाता है। वहाँ उसने अपने चिंतन को धर्मशास्त्रियों के चिंतन के विपरीत प्रस्तुत किया था। यह विचारधारा यूरोप में पुनर्जागरण एवं ज्ञानोदय का परिणाम थी। इसकी पूर्ण अभिव्यक्ति अमरीकी तथा फ्रांसीसी क्रांति के दौरान हुई थी। 'मानववाद' का संबंध उस विचारधारा से है जिसकी दृष्टि 'व्यक्ति की स्वायत्तता' पर केंद्रित है। तजवेतन टोडोराव इसे ऐसा सिद्धांत मानते हैं 'जिसमें मानव मानवीय कर्म का अंतिम प्रस्थान बिन्दु और संदर्भ बिंदु है।' ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में इसे परिभाषित करते हुए लिखा गया है कि- "एक दृष्टिकोण अथवा वैचारिक व्यवस्था जिसका संबंध मानव से है, न कि दैवी अथवा अलौकिक पदार्थों से। मानववाद एक विश्वास अथवा दृष्टिकोण है जो सामान्य मानवीय आवश्यकताओं पर बल देता है और मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए केवल तर्कसंगत समाधान तलाशता है और मानव को उत्तरदायी एवं प्रगतिशील बुद्धिजीवी मानता है।" मुख्य रूप से मानववादी, मानव की क्षमता में विश्वास रखते हैं तथा वे मानव की अच्छी प्रकृति को महत्त्व प्रदान करते हैं। मानववाद के आलोक में मनुष्य को सत्य-असत्य, सही-गलत, न्याय-अन्याय तथा भले-बुरे में भेद करने का विवेकपूर्ण अधिकार मिला।
मानववादी चिंतन का समाज पर प्रभाव
सम्पादनइस चिंतन ने मनुष्य को अपने निजी जीवन में स्वतंत्र किया। ऐसा माना गया कि-वह न केवल अद्वितीय है, अपितु भिन्न भी है जो कभी दूसरा नहीं हो सकता। नैतिक जीवन के नियम निर्धारण के लिए मनुष्य ने अंतनिर्हित प्राकृतिक अधिकार भी प्राप्त किए। बाद में इसके साथ एक अन्य पक्ष और जुड़ा जब मानव ने सार्वजनिक क्षेत्र में भी स्वतंत्रता का दावा किया और राजनीतिक शासन चुनने के अपने अधिकार पर बल दिया। लोकतंत्र, सरकार का एकमात्र वैध रूप बन गया। यह आंदोलन १८वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में, अमरीकी और फ्रांसीसी क्रांतियों के दौरान, पूरे जोर पर था। दोनों क्रांतियां इस विचार से प्रेरित थीं कि कोई भी सत्ता या शक्ति, भले ही वह परंपरा, परिवार अथवा राज्य हो, मनुष्य की इच्छा से श्रेष्ठतर नहीं हो सकती।
विचारक
सम्पादनआधुनिक युग में कार्ल सेगन मानववाद विचारकों में गिने जाते हैं, उनके अतिरिक्त अंबेडकर, गांधी, रसल और टॉलस्टाय आदि बीसवीं सदी के मानववादियों में थे। अपने प्रारंभिक लेखन में मार्क्स (इकोनॉमिक एंड फिलासॉफिकल मैन्यूस्क्रिप्ट्स' (१८४२)) भी मानववादी माने जाते थे। एम.एन राय ने अपनी वैचारिक यात्रा मार्क्सवाद से प्रारंभ करके उग्र मानववाद पर समाप्त की।