आयुर्वेद प्रश्नावली-०२

चरकसंहिता सूत्रस्थान

(1) चरक संहिता के आद्य उपदेष्टा हैं-

(क) पुर्नवसु आत्रेय (ख) अग्निवेश (ग) चरक (घ) दृढ़बल

(2) चरकसंहिता के 'भाष्यकार' कौन हैं?

(क) पुर्नवसु आत्रेय (ख) अग्निवेश (ग)चरक (घ) चक्रपाणि

(3) चरकसंहिता के ‘सम्पूरक’ कौन हैं?

(क) आत्रेय (ख) चरक (ग) चक्रपाणि (घ) दृढबल

(4) चरकसंहिता के ‘प्रतिसंस्कर्ता’ कौन हैं?

(क) अग्निवेश (ख) चरक (ग) चक्रपाणि (घ) दृढबल

(5) ‘अग्निवेश तंत्र’ के प्रतिसंस्कर्ता कौन है?

(क) चरक (ख) दृढबल (ग) चक्रपणि (घ) भट्टार हरिश्चन्द्र

(6) आचार्य चरक का काल है-

(क) 1000 ई.पूर्व (ख) 1000 ई.पश्चात् (ग) 200 ई.पूर्व. (घ) 200 ई.पश्चात्

(7) चरक संहिता में क्रमशः कितने स्थान और कितने अध्याय हैं?

(क) 8, 120 (ख) 6,186 (ग) 8, 150 (घ) 6, 120

(8) चरक संहिता के चिकित्सा स्थान में कुल कितने अध्याय है?

(क) 30 (ख) 40 (ग) 46 (घ) 60

(9) निम्नलिखित में से कौन सा स्थान चरक संहिता में हैं?

(क) विमान (ख) खिल (ग) उत्तर तंत्र (घ) उर्पयुक्त सभी

(10) चरक संहिता के इन्द्रिय स्थान में कुल कितने अध्याय हैं।

(क) 08 (ख) 06 (ग) 12 (घ) 24

(11) चरकसंहिता में कुल कितने श्लोक हैं?

(क) 1950 (ख) 9295 (ग) 12000 (घ) 8300

(12) चरकसंहिता में कुल कितने औषध योगों का वर्णन है?

(क) 1950 (ख) 9295 (ग) 12000 (घ) 8300

(13) चरकसंहिता में कुल सूत्र कितने हैं?

(क) 1950 (ख) 9295 (ग) 12000 (घ) 8300

(14) चरक संहिता पर लिखित कुल संस्कृत टीकाएं हैं-

(क) 17 (ख) 19 (ग) 43 (घ) 44

(15) वृहत्रयी ग्रन्थों में सर्वाधिक टीकाएं किस ग्रन्थ पर लिखी गयी है?

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहिता (ग) अष्टांग हृदय (घ) अष्टांग संग्रह

(16) चरक संहिता पर रचित टीका 'निरंतर पदव्याख्या' के लेखक कौन हैं।

(क) जेज्जट (ख) चक्रपाणि (ग) हेमाद्री (घ) गयदास

(17) चरक संहिता पर रचित टीका ‘चरकोपस्कार’के टीकाकार कौन है।

(क) भट्टार हरिश्चन्द्र (ख) गंगाधर राय (ग) योगेन्द्रनाथसेन (घ) जेज्जट

(18) चरक संहिता की 'जल्पकल्पतरू' व्याख्या के टीकाकार कौन थे।

(क) गंगाधर रॉय (ख) योगेन्द्र सेन (ग) गणनाथ सेन (घ) शिवदास सेन

(19) चरक संहिता पर रचित ‘चरकन्यास’ टीकाके टीकाकार कौन है।

(क) जेज्जट (ख) योगेन्द्र सेन (ग) स्वामीकुमार (घ) भट्टार हरिश्चन्द्र

(20) कविराज गंगाधर रॉयका काल हैं ?

(क) 13वीशताब्दी (ख) 15वीं शताब्दी (ग) 17वीं शताब्दी (घ) 19वीं शताब्दी

(21) चरक संहिता पर रचित चक्रपाणि की टीकाहैं ?

(क) दीपिका (ख) गूढ़ार्थ दीपिका (ग) आयुर्वेद दीपिका (घ) गूढान्त दीपिका

(22) निम्न में से कौन एक चरक संहिता की टीकाकार है।

(क) योगेन्द्रनाथ सेन (ख) रूद्रभट्ट (ग) कौटिल्य (घ) डल्हण

(23) चक्रपाणि का काल क्या हैं ?

(क) 11वीं शताब्दी (ख) 12वीं शताब्दी (ग) 13वीं शताब्दी (घ) 16वीं शताब्दी

(24) चरकसंहिता की ‘चरक प्रकाश कौस्तुभ’ टीका के टीकाकार का काल है ?

(क) 11वीं शती (ख) 15वीं शती (ग) 17वीं शती (घ) 19वीं शती

(25) चरक संहिता पर रचित हिन्दी टीका 'वैद्य मनोरमा' के लेखक कौन हैं।

(क) जयदेव विद्यालंकार (ख) अत्रिदेव विद्यालंकार (ग) ब्रह्मानन्द त्रिपाठी (घ) रविदत्त त्रिपाठी

(26) चरक संहिता का अरबी अनुवाद कौनसी सदी में हुआ था।

(क) 8वीशताब्दी (ख) 9वीं शताब्दी (ग) 11वीं शताब्दी (घ) 13वीं शताब्दी

(27) ’अमितायु’ किसका पर्याय कहा गया है।

(क) इन्द्र (ख) भरद्वाज (ग) अग्निवेश (घ) आत्रेय

(28) ‘चन्द्रभागा’ किसका नाम था।

(क) पुर्नवसु आत्रेय (ख) आत्रेय पुत्र (ग) आत्रेय माता (घ) आत्रेय पिता

(29) आत्रेय के शिष्यों की संख्या कितनी हैं।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8

(30) क्षारपाणि किसका शिष्य था।

(क) पुर्नवसु आत्रेय (ख) अत्रि (ग) भिक्षु आत्रेय (घ) अग्निवेश

(31) निम्न में से सभी आत्रेय के शिष्य है एक को छोडकर -

(क) अग्निवेश (ख) जतूकर्ण, पाराशर (ग) हारीत, क्षारपाणि (घ) चक्रपाणि, चरक

(32) चरक किसके शिष्य थे।

(क) पुर्नवसु आत्रेय (ख) धन्वतरि (ग) वैशम्पायन (घ) अग्निवेश

(33) चरक किसके पुत्र थे।

(क) पुर्नवसु आत्रेय (ख) विश्वामित्र (ग) विशुद्ध (घ) वैशम्पायन

(34) आचार्य चरक वर्तमान भारत वर्ष के किस राज्य के निवासीथे।

(क) पंजाब (ख) काश्मीर (ग) राजस्थान (घ) केरल

(35) दृढ़बल के पिता कौन थे।

(क) चरक (ख) कपिलबली (ग) विश्वामित्र (घ) इन्दु

(36) दृढ़बल ने चरक संहिता के चिकित्सा स्थान में कितने अध्यायों को पूरित कर सम्पूर्ण किया हैं।

(क) 17 (ख) 15 (ग) 14 (घ) 13

(37) चरक संहिता चिकित्सा स्थान का निम्न में से कौनसा अध्याय दृढबल द्वारा पूरित नहीं है।

(क) पाण्डु चिकित्सा (ख) ग्रहणी चिकित्सा (ग) छर्दि चिकित्सा (घ) अतिसार चिकित्सा

(38) चरक संहिता को 'अखिलशास्त्रविद्याकल्पद्रुम' किसने कहा है।

(क) गंगाधर रॉय (ख) भट्टार हरिश्चन्द्र (ग) चक्रपाणि (घ) शिवदास सेन

(39) चरक संहिता में 'उत्तर तंत्र' शामिल था - ऐसा किसने कहा है।

(क) गंगाधर रॉय (ख) भट्टार हरिश्चन्द्र (ग) चक्रपाणि (घ) शिवदास सेन

(40) वृहत्रयी ग्रन्थों में ‘मूर्धन्य’ संहिता कौनसी है ?

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहिता (ग) अष्टांग हृदय (घ) अष्टांग संग्रह

(41) चक्रपाणि का सम्बन्ध कौनसे वंश से था ?

(क) लोध्रवंश (ख) लोध्रबली वंश (ग) मौर्य वंश (घ) शुंगवंश

(42) गुरूसूत्र, शिष्यसूत्र, एकीयसूत्र एवं प्रतिसंस्कर्ता सूत्र के रूप में वर्णन किसका ग्रन्थ का है ?

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुतसंहिता (ग) दोनों (घ) काश्यपसंहिता

(43) ‘तुरीय अवस्था’ किससे संबंधित है।

(क) निद्रा (ख) स्वप्न (ग) ब्रह्म (घ) मोक्ष

(44) ‘उभयाभिप्लुता’चिकित्सा किसका योगदान हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) उर्पयुक्त सभी

(45) चरकसंहिता के सूत्रस्थान के स्वस्थ्य चतुष्क में कौन-कौन से अध्याय आते हैं।

(क) 1,2,3,4 (ख) 5,6,7,8 (ग) 9,10,11,12 (घ) 13,14,15,16

(46) चरक संहिता मे त्रिशोथीयाध्याय कौनसे चतुष्क से सम्बधित है।

(क) रोग चतुष्क (ख) योजना चतुष्क (ग) निर्देश चतुष्क (घ) क्रिया चतुष्क

(47) चरक संहिता मे कुल कितने स्थानों पर संभाषा परिषद का उल्लेख मिलता है।

(क) 7 (ख) 4 (ग) 2 (घ) 1

(48) चरक संहिता के सूत्रस्थान कुल कितने स्थानों पर संभाषा परिषद का उल्लेख मिलता है।

(क) 7 (ख) 4 (ग) 2 (घ) 1

(49) अथातो दीर्घ×जीवितीयमध्यायं व्याख्यास्यामः। - इस सूत्र में कितने पद है।

(क) 6 (ख) 7 (ग) 8 (घ) 9

(50) ’उग्रतपा’ किसका पर्याय कहा गया है।

(क) इन्द्र (ख) भरद्वाज (ग) अग्निवेश (घ) आत्रेय

(51) चरक संहिता के ‘दीर्घ×जीवितीयमध्याय’ में आयुर्वेदावतरण संबंधी सम्भाषा परिषद में कितने ऋर्षियों ने भाग लिया था।

(क) 56 (ख) 57 (ग) 53 (घ) 60

(52) 'धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्।'- उपर्युक्त सूत्र किस संहिता में वर्णित हैं।

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहिता (ग) अष्टांग हृदय (घ) अष्टांग संग्रह

(53) चरक संहितामें ‘बलहन्तार’किसका पर्याय कहा गया है।

(क) इन्द्र (ख) भरद्वाज (ग) राजयक्ष्मा (घ) प्रमेह

(54) चरक संहिता के अनुसार इन्द्र के पास आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त करने कौन गया था।

(क) आत्रेय (ख) भरद्वाज (ग) अश्विनी द्वय (घ) अग्निवेश

(55) आचार्य चरक ने 'हेतु, लिंग, औषध’ को क्या संज्ञा दी है।

(क) त्रिसूत्र (ख) त्रिस्कन्ध (ग) त्रिस्तंभ (घ) अ, ब दोनों

(56) 'स्कन्धत्रय'है ?

(क) हेतु, लिंग, औषध (ख) हेतु, दोष, द्रव्य (ग) वात, पित्त, कफ (घ) सत्व, रज, तम

(57) चरक संहिता के अनुसार षटपदार्थ का क्रम है ?

(क) द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय (ख) सामान्य,विशेष, गुण, द्रव्य, कर्म, समवाय (ग) सामान्य, विशेष, द्रव्य, गुण, कर्म, समवाय (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

(58) वैशेषिक दर्शनके अनुसार षटपदार्थ का क्रम है ?

(क) द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय (ख) सामान्य, विशेष, गुण, द्रव्य, कर्म, समवाय (ग) सामान्य, विशेष, द्रव्य, गुण, कर्म, समवाय (घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

(59) ‘हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्। मानं चतच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते।’- यह आयुर्वेद की ..... है।

(क) निरूक्ति (ख) व्युत्पत्ति (ग) परिभाषा (घ) फलश्रुति

(60) निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही हैं ?

(क) ‘नित्यग’ आयुका पर्याय है एंव काल का भेद है। (ख) ‘अनुबन्ध’ आयु का पर्याय है एंव दोष का भेद है। (ग) ‘अनुबन्ध’दशविध परीक्ष्य भाव में से एक भाव है। (घ) उर्पयुक्त सभी

(61) ‘तस्य आयुषः पुण्यतमो वेदो वेदविदां मतः’ - उक्त सूत्र का उल्लेख किस ग्रन्थ में है ?

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहिता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) अष्टांग ह्रदय।

(62) सामान्यके 3 भेद 'द्रव सामान्य, गुण सामान्य और कर्म सामान्य'- किसने बतलाये है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) आत्रेय (घ) चक्रपाणि

(63) ‘सत्व, आत्मा, शरीर’-ये तीनों कहलाते है।

(क) त्रिसूत्र (ख) त्रिस्कन्ध (ग) त्रिदण्ड (घ) त्रिस्तंभ

(64) परादि गुणोंकी संख्या हैं ?

(क) 6 (ख) 5 (ग) 20 (घ) 10

(65) चिकित्सीय गुण हैं।

(क) इन्द्रिय गुण (ख) गुर्वादि गुण (ग) परादि गुण (घ) आत्म गुण

(66) ‘चिकित्सा की सिद्धि केउपाय’गुण हैं।

(क) इन्द्रिय गुण (ख) गुर्वादि गुण (ग) परादि गुण (घ) आत्म गुण

(67) गुर्वादि गुण को शारीरिक गुण की संज्ञा किसने दी हैं।

(क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) योगीनाथ सेन (घ) गंगाधर राय

(68) आत्म गुणों की संख्या 7 किसने मानी हैं।

(क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) योगीनाथ सेन (घ) गंगाधर राय

(69) सात्विक गुणो में शामिल नही हैं।

(क) सुख (ख) दुःख (ग) प्रयत्न (घ) उत्साह

(70) निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही हैं ?

(क) ‘गुर्वादि गुण’ का विस्तृत वर्णन सुश्रुत और हेमाद्रि ने किया है। (ख) ‘परादि गुण’ का विस्तृत वर्णन केवल चरक संहिता में है। (ग) ‘इन्द्रिय और आत्म गुण’ का विस्तृत वर्णन तर्क संग्रह में है। (घ) उपर्युक्त सभी

(71) गुण के बारे में कौन सा कथन सही नहीं हैं।

(क) समवायी (ख) निश्चेष्ट (ग) चेष्ट (घ) द्रव्याश्रयी

(72) कारण द्रव्यों की संख्या है-

(क) 5 (ख) 8 (ग) 9 (घ) 10

(73) द्रव्य के प्रकार होते हैं-

(क) 2 (ख) 3 (ग) 9 (घ) असंख्य

(74) द्रव्य के भेद होते है।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 9 (घ) असंख्य

(75) 'सेन्द्रिय' का क्या अर्थ होता है ?

(क) इन्द्रिय युक्त (ख) चेतन युक्त (ग) सत्व युक्त (घ) उर्पयुक्त कोई नहीं

(76) ‘क्रियागुणवत समवायिकारणमिति द्रव्यलक्षणम्’- किसका कथन है।

(क) चरक (ख)सुश्रुत (ग) वैशेषिक दर्शन (घ) नागार्जुन

(77) कर्म के 5 भेद - उत्क्षेपण, अवक्षेपण, आकुन्चन, प्रसारण तथा गमन।- किसने बतलाये है।

(क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) वैशेषिक दर्शन (घ) न्याय दर्शन

(78) ‘घटादीनां कपालादौ द्रव्येषु गुणकर्मणौः। तेषु जातेÜच सम्बन्धः समवायः प्रकीर्तितः।।’ - किसका कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) तर्क संग्रह (घ) कारिकावली

(79) आचार्य चरक ने ‘षटपदार्थ’ क्या कहा हैं।

(क) कारण (ख) कार्य (ग) पदार्थ (घ) प्रमाण

(80) आचार्य चरक कौनसे वाद को मानते हैं।

(क) कार्यकारण वाद (ख) विवर्तवाद (ग) क्षणभंगुरवाद (घ) असद्कार्यवाद

(81) व्याधिका अधिष्ठान है।

(क) शरीर . (ख) मन (ग) मन और शरीर (घ) मन, शरीर,इन्द्रियॉ

(82) वेदना का अधिष्ठान है ? (च.शा.1/136)

(क) शरीर . (ख) मन (ग) इन्द्रियॉ (घ) उर्पयुक्त सभी

(83) निर्विकारः परस्त्वात्मा सर्वभूतानां निर्विशेषः। सत्वशरीरयोश्च विशेषाद् विशेषोपलब्धिः।- है।

(क) (च.सू.1/36) (ख) (च. सू.1/52) (ग) (च. शा.4/33) (घ) (च.शा.1/36)

(84) वात पित्त श्लेष्माण एव देह सम्भव हेतवः। - किसआचार्य का कथन हैं।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(85) मानसिक दोषों की संख्या है।

(क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) उर्पयुक्तकोई नहीं

(86) मानसिक दोषों में प्रधान होता है।

(क) सत्व (ख) रज (ग) तम (घ) उर्पयुक्त कोई नहीं

(87) मानसिक गुण नहीं है।

(क) सत्व (ख) रज (ग) तम (घ) उर्पयुक्त कोई नहीं

(88)चरकानुसार शारीरिक दोषों की चिकित्सा है।

(क) दैवव्यपाश्रय, (ख) युक्तिव्यापश्रय (ग) दोनों (घ) उर्पयुक्त कोई नहीं

(89) चरकानुसार मानसिक दोष का चिकित्सा सूत्र है।

(क) ज्ञान, विज्ञान, धी, धैर्य, समाधि (ग) ज्ञान, विज्ञान, धी, धैर्य, स्मृति (ख) ज्ञान, विज्ञान, योग, स्मृति, समाधि (घ) ज्ञान, विज्ञान, धैर्य, स्मृति, समाधि

(90) आचार्य चरक ने कफ के कितने गुण बतलाए हैं।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8

(91) ‘सर’ कौनसे दोष का गुण हैं।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) रक्त

(92) चरकोक्त वात के 7 गुणों एवं कफ के 7 गुणों में कितने समान है।

(क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) उर्पयुक्तकोई नहीं

(93) ‘साधनं न त्वसाध्यानां व्याधीनां उपदिश्यते।’ - असाध्य रोगों की चिकित्सा न करने का उपदेश किसने दिया है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(94) रसनार्थो रसः द्रव्यमापः .....। निर्वृतौ च, विशेषें च प्रत्ययाः खादयस्त्रयः।

(क) पृथ्वीस्तथा (ख) अनलस्तथा (ग) क्षितिस्तथा (घ) अनिलस्तथा

(95) रस के विशेष ज्ञान में कारणहै।

(क) जल, वायु, पृथ्वी (ख) पृथ्वी, जल अग्नि (ग) आकाश, जल, पृथ्वी (घ) आकाश, वायु, अग्नि

(96) पित्त शामक रसहै।

(क) मधुर, अम्ल, लवण (ख) कटु, अम्ल, लवण (ग) कटु, तिक्त, कषाय (घ) मधुर, तिक्त, कषाय

(97) कफ प्रकोपक रसहै।

(क) मधुर, अम्ल, लवण (ख) कटु, अम्ल, लवण (ग) कटु, तिक्त, कषाय (घ) मधुर, तिक्त, कषाय

(98) निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही हैं ?

(क) चरक ने मधुर रस के लिए ‘स्वादु’ एवं कटु रस के लिए ‘कटुक’ शब्द का प्रयोग किया है। (च.सू.1/64) (ख) अष्टांग संग्रहकार ने कटु रस के लिए ‘ऊषण’ शब्द का प्रयोग किया है। (अ. सं. सू. 1/35) (ग) अष्टांग हृदयकार ने लवण रस के लिए ‘पटु’ शब्द का प्रयोग किया है। (अ. हृ. नि.1/16) (घ) उर्पयुक्त सभी।

(99) चरकानुसार जांगमद्रव्यों के प्रयोज्यांग होते है।

(क) 18 (ख) 19 (ग) 8 (घ) 6

(100) चरकानुसार औद्भिदद्रव्यों के प्रयोज्यांग होते है।

(क) 18 (ख) 19 (ग) 8 (घ) 6

(101) ‘औद्भिद’ किसका प्रकार है।

(क) द्रव्य (ख) लवण (ग) जल (घ) उपर्युक्त सभी

(102) ‘उदुग्बर’ है।

(क) वनस्पति (ख) वानस्पत्य (ग) वीरूध (घ) औषधि

(103)फल पकने पर जिसका अन्त हो जाए वह है ?

(क) वनस्पति (ख) वानस्पत्य (ग) वीरूध (घ) औषधि

(104) जिनमें सीधे ही फल दृष्टिगोचर हो - वह है ?

(क) वनस्पति (ख) वानस्पत्य (ग) वीरूध (घ) औषधि

(105) सुश्रुतानुसार ‘जिसमें पुष्प और फलदोनों आते है’ - वह स्थावर कहलाता है।

(क) वनस्पत्य (ख) वानस्पत्य (ग) वृक्षा (घ) उपर्युक्त सभी

(106) 16 मूलिनी द्रव्यों में शामिल नहीं है।

(क)बिम्बी (ख) हस्तिपर्णी (ग) गवाक्षी (घ) प्रत्यकश्रेणी

(107) चरकोक्त 16 मूलिनी द्रव्यों में ‘छर्दन’ किसका कार्य है।

(क)शणपुष्पी (ख) बिम्बी (ग) हैमवती (घ) उपर्युक्त सभी

(108) चरकोक्त 16 मूलिनी द्रव्यों में ‘विरेचन’ हेतु कितने द्रव्य है।

(क) दश (ख) एकादश (ग) षोडश (घ) चतुर्विध

(109) चरकोक्त 19 फलिनी द्रव्यों में शामिल नहीं है।

(क) क्लीतक (ख) आरग्वध (ग) प्रत्यक्पुष्पा (घ) सदापुष्पी

(110) चरकोक्त 19 फलिनी द्रव्यों में शामिल नहीं है ?

(क) आमलकी (ख) हरीतकी (ग) कम्पिल्लक (घ) अन्तकोटरपुष्पी

(111) चरकानुसार क्लीतक (मुलेठी) के कितने भेद होते है।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 5 (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(112) चरकोक्त 19 फलिनी द्रव्यों में नस्य हेतु कितने द्रव्य है।

(क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) 8

(113) चरकोक्त 19 फलिनी द्रव्यों में ‘विरेचन’ हेतु कितने द्रव्य है।

(क) दश (ख) एकादश (ग) अष्ट (घ) एकोनविशंति

(114) स्नेहना जीवना बल्या वर्णापचयवर्धनाः। - किसका गुण है।

(क) मांस (ख) मद्य (ग) पयः (घ) महास्नेह

(115) महास्नेह की संख्याहै।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 4 (घ) 8

(116) चरकानुसार ‘प्रथम लवण’ है।

(क) सैंन्धव (ख) सौवर्चल (ग) सामुद्र (घ) विड

(117) रस तरंगिणी के अनुसार ‘प्रथम लवण’ है।

(क) सैंन्धव (ख) सौवर्चल (ग) सामुद्र (घ) विड

(118) चरकानुसार ‘पंच लवण’ में शामिल नहीं है ?

(क) सौवर्चल (ख) सामुद्र (ग) औद्भिद (घ) रोमक

(119) रस तरंगिणी के अनुसार‘पंच लवण’ में शामिल नहीं है ?

(क) सौवर्चल (ख) सामुद्र (ग) औद्भिद (घ) रोमक

(120) अष्टमूत्र के संदर्भ में ‘लाघवं जातिसामान्ये स्त्रीणां, पुंसां च गौरवम्’ - किस आचार्य का कथन है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) हारीत (घ) भाव प्रकाश

(121) चरकानुसार मूत्र में ‘प्रधान रस’होता है।

(क) तिक्त (ख) कटु (ग) लवण (घ) कषाय

(122) चरकानुसार मूत्र का ‘अनुरस’होता है।

(क) तिक्त (ख) कटु (ग) लवण (घ) कषाय

(123) पाण्डुरोग उपसृष्टानामुत्तमं .....चोत्यते। श्लेष्माणं शमयेत्पीतं मारूतं चानुलोमयेत्।

(क) मूत्र (ख) गोमूत्र (ग) शर्म (घ) पित्तविरेचन

(124) चरकानुसार मूत्र का गुण है।

(क) वातानुलोमन (ख) पित्तविरेचक (ग) कफशामक (घ) उपर्युक्त सभी

(125) वाग्भट्टानुसार मूत्र होता है।

(क) पित्तविरेचक (ख) पित्तवर्धक (ग) विषापह (घ) रसायन

(126) ‘मूत्रं मानुषं च विषापहम्।’ - किस आचार्य का कथन है -

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) अष्टांग संग्रह (घ) भाव प्रकाश

(127) हस्ति मूत्र का रस होता है।

(क) तिक्त (ख) कटु,तिक्त (ग) लवण (घ) क्षार

(128) माहिषमूत्र का रस होता है।

(क) तिक्त (ख) कटु,तिक्त (ग) लवण (घ) क्षार

(129) किसकामूत्र ‘सर’ गुण वाला होता है।

(क) हस्ति (ख) उष्ट्र (ग) माहिषी (घ) वाजि

(130) किसकामूत्र ‘पथ्य’ होता है।

(क) गोमूत्र (ख) अजामूत्र (ग) उष्ट्रमूत्र (घ) खरमूत्र

(131) कुष्ठ व्रण विषापहम् - मूत्र है।

(क) हस्ति (ख) आवि (ग) माहिषी (घ) वाजि

(132) चरकानुसार ‘अर्श नाशक’ मूत्र है।

(क) हस्ति (ख) उष्ट्र (ग) माहिषी (घ) उपर्युक्त सभी

(133) उन्माद, अपस्मार, ग्रहबाधा नाशकमूत्र है ?

(क) हस्ति (ख) उष्ट्र (ग) खर (घ) वाजि

(134) चरक ने ‘श्रेष्ठं क्षीणक्षतेषु च’किसके लिए कहा है।

(क) महास्नेह (ख)मांस (ग) पयः (घ) नागबला

(135) पाण्डुरोगेऽम्लपित्ते च शोषे गुल्मे तथोदरे। अतिसारे ज्वरे दाहे च श्वयथौ च विशेषतः। - किसके लिए कहा है।

(क) महास्नेह (ख) अष्टमूत्र (ग) पयः (घ) घृत

(136) चरक संहिता में मूलनी, फलिनी, लवण और मूत्र की संख्या क्रमशःहै।

(क) 19, 16, 5, 8 (ख) 16, 19, 5, 8 (ग) 16, 19, 8, 5 (घ) 19, 16, 4, 8

(137) शोधनार्थ वृक्षों की संख्याकी संख्या है।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 4 (घ) 6

(138) चरकानुसार क्षीरत्रय होता है।

(क) अर्क, स्नुही, वट (ख) अर्क, स्नुही, अश्मन्तक (ग) अर्क, वट, अश्मन्तक (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(139) ‘अर्कक्षीर’का प्रयोग किसमें निर्दिष्टहै।

(क) वमन में (ख) विरेचन में (ग) वमन, विरेचन दोनो में (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(140) चरकानुसार अश्मन्तक का प्रयोग किसमें निर्दिष्टहै।

(क) वमन में (ख) विरेचन में (ग) वमन, विरेचन दोनो में (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(141)चरक ने तिल्वक का प्रयोग बतलाया है।

(क) वमन में (ख) विरेचन में (ग) वमन, विरेचन दोनो में (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(142) चरकानुसार 'परिसर्प, शोथ, अर्श, दद्रु, विद्रधि, गण्ड, कुष्ठ और अलजी'में शोधन के लिए प्रयुक्त होता है।

(क) पूतीक (ख) कृष्णगंधा (ग) तिल्वक (घ) उपर्युक्त सभी

(143) ‘योगविन्नारूपज्ञस्तासां ..... उच्यते।

(क) श्रेष्ठतम भिषक (ख) तत्वविद (ग) छदम्चर वैद्य (घ) भिषक

(144) पुरूषं पुरूषं वीक्ष्य स ज्ञेयो भिषगुत्तमः। - किसका कथन हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) हारीत

(145) यथा विषं यथा शस्त्रं यथाग्निरशर्नियथा। - किसका कथन हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) भाव प्रकाश

(146) चरकानुसार ‘भिषगुत्तम’ है।

(क) तस्मात् शास्त्रऽर्थ विज्ञाने प्रवृतौ कर्मदर्शने। (ख) हेतो लिंगे प्रशमने रोगाणाम् अपुनर्भवे। (ग) विद्या वितर्की विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया। (घ) योगमासां तु यो विद्यात् देशकालोपपादितम्।

(147) ताम्र का प्रथम उल्लेख किसने किया हैं।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) सोढल (घ) नागार्जुन

(148) 'पुत्रवेदवैनं पालयेत आतुरं भिषक्।' - किसका कथन हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(149) चरक संहिता मे अन्तः परिमार्जन द्रव्यों से सम्बधित अध्याय है।

(क) दीर्घ×जीवतीय (ख) अपामार्गतण्डुलीय (ग) आरग्वधीय (घ) षडविरेचनशताश्रितीय

(150) शिरोविरेचनार्थ ‘अपामार्ग’ का प्रयोज्यांग है ?

(क) तण्डुल (ख) बीज (ग) फल (घ) फल रज चूर्ण

(151) ‘वचा एवंज्योतिष्मति’दानों द्रव्यों को शिरोविरेचनद्रव्यों के गण में कौनसे आचार्य ने शामिल किया है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) अ, ब दोनों

(152) शिरोविरेचन द्रव्यों में कौनसा रस शामिल नहीं होता है।

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) अ, ब दोनों

(153) चरक ने अपामार्गतण्डुलीय अध्याय में ‘वचा’ को कौनसे वर्ग में शामिल किया है।

(क) शिरोविरेचन (ख) वमन (ग) विरेचन (घ) आस्थापन/अनुवासन

(154) चरक ने अपामार्गतण्डुलीय अध्याय में ‘एरण्ड’को कौनसे वर्ग में शामिल किया है।

(क) शिरोविरेचन (ख) वमन (ग) विरेचन (घ) आस्थापन/अनुवासन

(155) चरक संहिता में सर्वप्रथम ’पंचकर्म’ शब्द कौनसे अध्याय मेंआया है।

(क) दीर्घन्जीवतीय (ख) अपामार्गतण्डुलीय (ग) आरग्वधीय (घ) षडविरेचनशताश्रितीय

(156) चरकानुसार औषध की सम्यक् योजनाकिस पर निर्भर करती है ?

(क) औषध की मात्रा और काल पर (ख) रोगी के बल और कालपर (ग) रोगी के कोष्ठऔर अग्निबल पर (घ) रोगी के वय और कालपर

(157) .....यवाग्वः परिकीर्तिताः।

(क) अष्टादश (ख) षड् (ग) चर्तुविंशति (घ) अष्टाविंशति

(158) चरकोक्त 28 यवागू में कुल कितनी पेया हैं।

(क) 4 (ख) 6 (ग) 32 (घ) 28

(159) किसके क्वाथ से सिद्ध यवागू विषनाशक होतीहैं।

(क) शिरीष (ख) सिन्धुवार (ग) सोमराजी (घ) विडंग

(160) यवानां यमके पिप्पल्यामलकैः श्रृता। - यवागू का कर्महै।

(क) कण्ठरोगनाशक (ख) वातानुलोमक (ग) पक्वाशयशूल रूजापहा (घ)रूक्षणार्थ

(161) यमके मदिरा सिद्धा .....यवागू।

(क) कण्ठरोगनाशक (ख) वातानुलोमक (ग) पक्वाशयशूल रूजापहा (घ) रूक्षणार्थ

(162) दधित्थबिल्वचांगेरीतक्रदाडिमा साधिता।- यवागू है।

(क) दीपनीय, शूलघ्नयवागू (ख) आमातिसारघ्नी पेया (ग) रक्तातिसारनाशक पेया (घ) पाचनी, ग्राहिणी पेया

(163) तक्रसिद्धा यवागूः।

(क) घृतव्यापद नाशक (ख) तैलव्यापद नाशक (ग) मद्यव्यापद नाशक (घ) क्षुधानाशक

(164) तक्रपिण्याक साधिता यवागू।

(क) घृतव्यापद नाशक (ख) तैलव्यापद नाशक (ग) मद्यव्यापद नाशक (घ) क्षुधानाशक

(165) ताम्रचूडरसे सिद्धा .....।

(क) शिश्नपीडाशामकः (ख) शुक्रमार्गरूजापहा (ग) रेतोमार्गरूजापहा (घ) उपर्युक्त सभी

(166) दशमूल क्वाथ से सिद्ध यवागू होतीहैं ?

(क) श्वासनाशक (ख) कासनाशक (ग) हिक्कानाशक (घ) उपर्युक्तसभी

(167) चरकानुसार मुर्गे का पर्याय है।

(क) ताम्रचूड (ख) चरणायुधा (ग) कुक्कुट (घ) उपर्युक्तसभी

(168) उपोदिकादधिभ्यां तु सिद्धा.....यवागू।

(क) विषमज्वरनाशक (ख) मदविनाशिनी (ग) भेदनी (घ) रोचक

(169) चरकानुसार चिकित्सक की अर्हताएॅमें शामिल नहीं है।

(क) हेतुज्ञ (ख) व्यवसायी (ग) युक्तिज्ञ (घ) जितेन्द्रय

(170) चरक संहिता मे बर्हिपरिमार्जन द्रव्यों से सम्बधित अध्याय है।

(क) दीर्घ×जीवतीय (ख) अपामार्गतण्डुलीय (ग) आरग्वधीय (घ) षडविरेचनशताश्रितीय

(171) चरकोक्त आरग्वधीय अघ्याय में कुष्ठहर कुल कितने ’लेप’ बताए गए है।

(क) 32 (ख) 15 (ग) 6 (घ) 16

(172) चरकोक्त आरग्वधीय अघ्याय में वातविकारनाशककुल कितने ’लेप’ बताए गए है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 4

(173) चरकोक्त आरग्वधीय अघ्याय में कितने ’प्रघर्ष’ बताए गए है।

(क) 32 (ख) 4 (ग) 1 (घ) शून्य

(174) नतोत्पलं चन्दनकुष्ठयुक्तं शिरोरूजायां सघृतं प्रदेहः।

(क) विषघ्न (ख) शिरोरूजायां (ग) स्वेदहर (घ) कुष्ठहर

(175) शिरीष और सिन्धुवार के लेप होता हैं ?

(क) विषघ्न (ख) शरीरदौर्गन्ध्यहर (ग) स्वेदहर (घ) कुष्ठहर

(176) तेजपत्र, सुगन्धबाला, लोध्र, अभय और चन्दन के लेप का प्रयोग किस संदर्भ में हैं ?

(क) विषघ्न (ख) शरीरदौर्गन्ध्यहर (ग) स्वेदहर (घ) कुष्ठहर

(177) चक्रपाणि के अनुसार ‘अभय’ किस औषध का पर्याय हैं ?

(क) हरीतकी (ख) उशीर (ग) तगर (घ) देवदारू

(178) चरकसंहिता में प्रलेप की मोटाई और उसे लगाने के निर्देशों का वर्णन कौनसे अध्याय में है।

(क) अपामार्गतण्डुलीय (ख) आरग्वधीय (ग)विसर्पचिकित्सा (घ) वातरक्तचिकित्सा

(179) चरकोक्त आरग्वधीय अघ्याय में कुल कितने सूत्र है।

(क) 30 (ख) 32 (ग) 34 (घ) 36

(180) चरक ने विरेचन द्रव्यों के कितने आश्रय बतलाए है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8

(181) चरक ने शिरो विरेचन द्रव्यों के कितने आश्रय बतलाए है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8

(182) सप्तला-शंखिनी के विरेचन योगों की संख्या हैं।

(क) 45 (ख) 48 (ग) 39 (घ) 60

(183) धामार्गव के वामकयोगों की संख्या हैं।

(क) 45 (ख) 48 (ग) 39 (घ) 60

(184) दन्ती-द्रवन्ती के विरेचन योगों की संख्या हैं।

(क) 45 (ख) 48 (ग) 39 (घ) 60

(185) स्वरसः, कल्कः, श्रृतः, शीतः फाण्टः कषायश्चेति। .....।

(क) पूर्व पूर्व बलाधिका (ख) यथोक्तरं ते लघवः प्रदिष्टा (ग) तेषां यथापूर्व बलाधिक्यम् (घ) कोई नहीं

(186) ‘पंचविध कषाय कल्पनाओं’ के संदर्भ में ‘पंचधैवं कषायाणां पूर्व पूर्व बलाधिका’ किस आचार्य ने कहा है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर

(187) 'द्रव्यादापोत्थितात्तोये तत्पुनर्निशि संस्थितात्'- किस कषाय कल्पना के लिये कहा गया है।

(क) क्वाथ (ख) कल्क (ग) शीत (घ) फाण्ट

(188) ‘यः पिण्डो रसपिष्टानां स कल्कः परिकार्तितः’ किस आचार्य का कथन है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) चक्रपाणि (घ) शारंर्ग्धर

(189) चरकमत से कषाय कल्पनाओं का प्रयोग किस परनिर्भर करता है ?

(क) व्याधि के बल पर (ख) आतुर के बल पर (ग) व्याधि एवं आतुर के बल पर (घ) कोई नहीं

(190) चरकके पंचाशन्महाकषाय में स्थापन महाकषायों की संख्या है।

(क) 3 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7

(191) चरकके पंचाशन्महाकषाय में निग्रहण महाकषायों की संख्या है।

(क) 3 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7

(192) चरकोक्त पचास महाकषायों में सबसें अधिक 11 बार सम्मिलित द्रव्य है।

(क) मुलेठी (ख) आरग्वध (ग) मोचरस (घ) पिप्पली

(193) चरकोक्त पचास महाकषायों में सम्मिलित कुल द्रव्यों की संख्या है।

(क) 50 (ख) 500 (ग) 276 (घ) 352

(194) चरक संहिता में महाकषाय का वर्ण किस स्वरूप में हैं।

(क) लक्षण व उदाहरण (ख) कर्म और उदाहरण (ग) कर्म और लक्षण (घ) उपर्युक्तकोई नहीं

(195) चरकोक्त जीवनीय महाकषाय में अष्टवर्ग के कितने द्रव्य शामिल है।

(क) 8 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7

(196) ‘भारद्वाजी’ किसका पर्यायहै।

(क) सारिवा (ख) वनकपास (ग) मंजिष्ठा (घ) धातकी

(197) चरकने निम्न किस महाकषाय का वर्णन नहीं किया है।

(क) दीपनीय (ख) पाचनीय (ग) कण्ठय (घ) संज्ञास्थापक

(198) चक्रपाणि के अनुसार ‘सदापुष्पी’ किसका पर्यायहै।

(क) कमल (ख) कुमुद (ग) आरग्वध (घ) अर्क

(199) चरक ने अर्जुन का प्रयोग किस महाकषाय में वर्णित किया है।

(क) हृद्य (ख) शूल प्रशमन (ग) मूत्र संग्रहणीय (घ) उदर्द प्रशमन

(200) चरकोक्त ज्वरहर दशेमानि के मध्य में किसको ग्रहण नहीं किया है।

(क) सारिवा (ख) मंजिष्ठा (ग)मुस्ता (घ) पाठा

(201) ‘आम्रास्थि’का वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है।

(क) पुरीषसंग्रहणीय (ख) हृद्य (ग) पुरीषविरंजनीय (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(202) कमल के भेदों का वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है।

(क) मूत्रसंग्रहणीय (ख) मूत्रविरेचनीय (ग) मूत्रविरंजनीय (घ) उपर्युक्त कोई नही

(203) मूत्रविरेचनीय महाकषाय में किसका उल्लेख नहीं है।

(क) दर्भ का (ख) कुश का (ग) काशका (घ) शर का

(204) ‘भृष्टमृत्तिका’का वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है।

(क) मूत्रसंग्रहणीय (ख) मूत्रविरेचनीय (ग) पुरीषविरंजनीय (घ) पुरीषसंग्रहणीय

(205) ’स्तन्यशोधन महाकषाय’ में सम्मिलित नहीं है।

(क) कटुकी (ख) नागरमोथा (ग) हरिद्रा (घ) मूर्वा

(206) ’प्रजास्थापन महाकषाय’ में सम्मिलित नहीं है।

(क) अमोघा (ख) अव्यथा (ग) अरिष्टा (घ) अश्वगंधा

(207) निम्नलिखित में से किस चरकोक्त दशेमानि में ‘मोचरस’ शामिल नहीं हैं।

(क) पुरीष संग्रहणीय (ख) वेदनास्थापन (ग) शोणितस्थापन (घ) पुरीषविरंजनीय

(208) निम्नलिखित में से किस चरकोक्त दशेमानि में ‘शर्करा’ शामिल हैं।

(क) दाहप्रशमन (ख) वेदनास्थापन (ग) शोणितस्थापन (घ) ज्वरघ्न

(209) दशमूल के द्रव्यों का वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है।

(क) वातहर (ख) बल्य (ग) शोथहर (घ) उर्पयुक्त कोई नहीं

(210) अशोकका वर्णन चरकोक्त किस दशेमानि वर्ग में है।

(क) वेदनास्थापन (ख) शोणितस्थापन (ग) वयःस्थापन (घ) शूलप्रशमन

(211) तृष्णानिग्रहण एंव वयः स्थापन महाकषायों में समाविष्टहै।

(क) अभया (ख) अमृता (ग) नागर (घ) पुनर्नवा

(212) चरकोक्त कुष्ठघ्न व कण्डूघ्न दोनों महाकषाय में समाविष्टहै।

(क) हरिद्रा (ख) खदिर (ग) आरग्वध (घ) विडंग

(213) चरकोक्त कुष्ठघ्न व कृमिघ्न दोनों महाकषाय में समाविष्टहै।

(क) हरिद्रा (ख) खदिर (ग) आरग्वध (घ) विडंग

(214) बेर के भेदों का वर्णन किस महाकषाय में है।

(क) वमनोपग (ख) विरेचनोपग (ग) स्नेहोपग (घ) स्वेदनोपग

(215) चरक संहिता में वर्णित 'पुरीष संग्रहणीय' महाकषाय के द्रव्य है।

(क) आम संग्राहक (ग्राही) (ख) पक्व संग्राहक (स्तम्भन) (ग) दोनों (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(216) चरक संहिता में वर्णित कौनसे महाकषाय को योगीनाथसेन ने 'अरोचकहर' कहा हैं।

(क) दीपनीय (ख) पाचनीय (ग) कण्ठय (घ) तृप्तिघ्न

(217) कालमेह, नीलमेह एवं हारिद्रमेह कीचिकित्सा मेंचरकोक्त किस दशेमानि वर्ग के द्रव्यों करना चाहिए।

(क) मूत्रसंग्रहणीय (ख) मूत्रविरेचनीय (ग) मूत्रविरंजनीय (घ) उपयुर्क्त कोई नहीं

(218) ‘विदारीगंधा’ किसका पर्याय हैं ?

(क) क्षीरविदारी (ख) विदारी (ग) शालपर्णी (घ) पृश्निपर्णी

(219) रसा लवणवर्ज्याश्च कषाया इति संज्ञिताः’ - किस आचार्य का कथन है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) चक्रपाणि (घ) शारंर्ग्धर

(220) ’भिषग्वर’का वर्णन चरक संहिता के किस अध्याय में है।

(क) दीर्घन्जीवितीय (ख) खुड्डाक चतुष्पाद (ग) षड्विरचेनशताश्रितीय (घ) महारोगाध्याय

(221) चरक के मत से लघु द्रव्यों में किसकी की बहुलता रहती है।

(क) वाय्वग्निगुण बहुल (ख) आकाशवाय्वग्निगुण बहुल (ग) पृथ्वीसोमगुण बहुल (घ) उपरोक्त सभी

(222) चरक के मत से गुरू द्रव्यों में किसकी की बहुलता रहती है।

(क) वाय्वग्निगुण बहुल (ख) आकाशवाय्वग्निगुण बहुल (ग) पृथ्वीसोमगुण बहुल (घ) कोई नहीं

(223) ‘बलवर्णसुखायुषा’ किससे प्राप्त होता है।

(क) शुद्ध रूधिर (ख) ओज (ग) मात्रापूर्वक आहार (घ) अ, स दोनों

(224) निरन्तर वर्जनीय आहार द्रव्य है।

(क) मत्स्य (ख) दही (ग) माष (घ) उपरोक्त सभी

(225) ’वल्लूर’ शब्द का चक्रपाणिकृत अर्थ हैं ?

(क) शुष्क फलम् (ख) शुष्क मांसम् (ग) शुष्क शाकम् (घ) शुष्क कन्दम्

(226) न शीलयेत्आहार द्रव्य है।

(क) सैंधव लवण (ख) यव (ग) यवक (घ) जांगल मांस

(227) निरन्तर अभ्यसेत्द्रव्य नहीं है।

(क) दूध (ख) दही (ग) घृत (घ) मधु

(228) ‘नित्य तर्पणीय है।

(क) शालि (ख) मुद्ग (ग) सर्पि (घ) उपरोक्त सभी

(229) चरक संहिता के किस अघ्याय में ‘स्वस्थवृत्त’का वर्णन किया गया है।

(क) मात्राशितीय (ख) तस्याशितीय (ग) इन्द्रियोपक्रमणीय (घ) न वेगान्धारणीय

(230) चरक संहिता के किस अघ्याय में ’सद्वृत्त’ का वर्णन किया गया है।

(क) चू.सू.अ.5 (ख) चू.सू.अ.6 (ग) चू.सू.अ.7 (घ) चू.सू.अ.8

(231) चरकानुसार नित्य प्रयोज्य अंजन कौनसा है ?

(क) सौवीराजंन (ख) स्रोत्रोजंन (ग) रसाजंन (घ) पुष्पाजंन

(232) नेत्र से स्राव निकालने के लिए कौनसे अंजन का प्रयोग करना चाहिए।

(क) सौवीराजंन (ख) स्रोत्रोजंन (ग) रसाजंन (घ) पुष्पाजंन

(233) चरक ने नेत्र विस्राणार्थ रसांजन का प्रयोग बतलाया है।

(क) 5 वें या 8 वें दिन (ख) 3वें दिन (ग) 7वें दिन (घ) 5वेंया 8वें रात्रि में

(233) चरक ने नेत्र विस्राणार्थ रसांजन का प्रयोग कब बतलाया है।

(क) पन्चरात्रे अष्टरात्रे (ख) त्रिरात्रे (ग) सप्तरात्रे (घ) एकान्तरेरात्रे

(234) चक्षुस्तेजोमयं तस्य विशेषाच्छ्लेष्मतो भयम्। ततः ..... कर्म हितं दृष्टेः प्रसादनम्।। (च.सू.5/16)

(क) वातहरं (ख) पित्तहरं (ग) श्लेष्महरं (घ) त्रिदोषहरं

(235) चरक ने प्रायोगिक धूमवर्ती की लम्बाई बतलायी है।

(क) 8 अंगुल (ख) 6अंगुल (ग) 10 अंगुल (घ) 12 अंगुल

(236) आचार्य चरक ने प्रायोगिक धूम्रपान के कितने काल बताए हैं।

(क) 8 (ख) 6 (ग) 10 (घ) 5

(237) चरकमतेन स्नैहिक धूम्रपान दिन में कितनी बार करना चाहिए हैं ?

(क) 8 (ख) 2 (ग) 1 (घ) 3-4

(238) चरकमतेन धू्रम्रनेत्र का अग्र छिद्र किसके सम होना चाहिए।

(क) कोलास्थ्यग्रप्रमाणितम् (ख) कोलमात्रछिद्रे (ग) हरेणुका प्रमाणितम् (घ) सर्पषमात्रछिद्रे

(239) 'हृत्कण्ठेन्द्रियसंशुद्धिः लघुत्वं शिरसः शमः'- किसका लक्षण है।

(क) सम्यक् वमन (ख) सम्यक् नस्य (ग) सम्यक् धूम्रपान (घ) सम्यक्निरूह

(240) 12 वर्ष से पूर्व और 80 वर्ष के बाद धूम्रपान निषेध किसने बतलाया है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) चक्रपाणि (घ) शारंर्ग्धर

(241) चरक के मत से नस्य का प्रयोग किस ऋतु में करना चाहिए।

(क) प्रावृट, शरद और बंसत (ख) शिशिर, बसंत, ग्रीष्म (ग) बर्षा, शरद, हेमन्त (घ) उपरोक्त सभी

(242) नस्य औषधि का प्रभाव कौनसी मर्म पर होता हैं।

(क) शंख (ख) श्रृंगाटक (ग) मूर्धा (घ) फण

(243) नासा हि शिरसो द्वारं तेन तद्धयाप्य हन्ति तान्। - किस आचार्य का कथन हैं।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) शारर्ग्धर

(244) चरकमतेन ‘अणुतैल’ की मात्रा कितनी होती है।

(क) 1 पल (ख) 1 कोल (ग) 1 कर्ष (घ) अर्द्ध पल

(245) चरकानुसार ‘अणुतैल’ की निर्माण प्रक्रिया मे तैल का कितनी बार पाक किया जाता हैं ?

(क) एक बार (ख) दश बार (ग) सौ बार (घ) हजार बार

(246) शारंर्ग्धरके अनुसार कितने वर्ष से पूर्व नस्य का निषेध है।

(क) 10बर्ष (ख) 12 बर्ष (ग) 7 बर्ष (घ) 8 बर्ष

(247) वाग्भट्ट ने दातुन की लम्बाई बतलायी है।

(क) 8 अंगुल (ख) 6अंगुल (ग) 10 अंगुल (घ) 12 अंगुल

(248) निहन्ति गन्धं वैरस्यं जिहृवादन्तास्यजं मलम्।- किसका गुणधर्म है।

(क) दन्तपवन (ख) जिहृवा निर्लेखन (ग) मुख संगन्धि द्रव्य (घ) गण्डूषकवलधारण

(249) ‘निम्ब’ वृक्ष की दन्तपवन (दातौन) का प्रयोग करने का उल्लेख किस आचार्य ने कियाहैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) उपरोक्त सभी

(250) ‘दन्तशोधन चूर्ण’ का वर्णन किस आचार्य ने कियाहैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारर्ग्धर

(251) वृद्ध वाग्भट्टानुसार दंत धावन के लिए कौन से द्रव्यों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

(क) पीलु, पीपल, पारिभद्र (ख) श्लेष्मातक, शिग्रु, शमी, शाल्मली, शण (ग) तिल्वक, तिन्दुक, बिल्ब, विभीतक, र्निगुण्डी (घ) उर्पयुक्त सभी

(252) अष्टांग संग्रह के अनुसार निषिद्ध दन्तवन है।

(क) धव (ख) अर्क (ग) वट (घ) अपामार्ग

(253) ‘दन्तदाढर्यकर’ है।

(क) बकुल (ख) तेजोवती (ग) पीलू (घ) उपरोक्त सभी

(254) सुश्रुतने जिहृवार्निलेखन की लम्बाई बतलायी है।

(क) 6अंगुल (ख) 8अंगुल (ग) 10 अंगुल (घ) 12 अंगुल

(255) चक्रपाणि के अनुसार ‘कटुक’ किसका पर्याय हैं ?

(क) कटुकी (ख) मरिच (ग) कटुरोहिणी (घ) लताकस्तूरी

(256) मुखशोष में संग्रहकार के अनुसार हितकर है।

(क) ताम्बूल (ख) जातीपत्री (ग) लताकस्तूरी (घ) कर्पूर

(257) दंतदार्ढयकर, दन्तहर्षनाशक, रूच्यकर एंव मुखवैरस्यनाशकहैं।

(क) दन्तधावन (ख) जिहृवा निर्लेखन (ग) मुखसंगन्धि द्रव्य (घ) गण्डूष कवल धारण

(258) मुख संचार्यते या तु मात्रा स .....स्मृतः।

(क) कवलः (ख) गण्डूषः (ग) कवलगण्डूषः (घ) मुखवैशद्यकरः

(259) शारंर्ग्धर के अनुसार जन्म से कितने वर्ष बाद गण्डूष कवल धारणकरना चाहिए।

(क) 5 बर्ष (ख) 6 बर्ष (ग) 7 बर्ष (घ) 8 बर्ष

(260) चरक के अनुसार ‘दृष्टिः प्रसादं’ है।

(क) पादाभ्यंग (ख) पादत्रधारण (ग) पादप्रक्षालन (घ) छत्रधारणम्

(261) ’चक्षुष्यम् स्पर्शनहितम्’ कहा गया है।

(क) अंजन को (ख) गण्डूष धारण (ग) पादाभ्यंग (घ) पादत्रधारण

(262) ’वृष्यं सौगन्धमायुष्यं काम्यं पुष्टिबलप्रदम्’ - किसके लिए कहा गया है।

(क) क्षौरकर्म (ख) स्वच्छ वस्त्र धारण (ग) गन्धमाल्य धारण (घ) स्नान

(263) श्रीमत्पारिषदं शस्तं निर्मलाम्बरधारणम्।- किसके लिएकहा गया है।

(क) क्षौरकर्म (ख) स्वच्छ वस्त्र धारण (ग) गन्धमाल्य धारण (घ) स्नान

(264) बल, वर्ण वर्धन करता है।

(क) रक्त (ख) ओज (ग) सत्व (घ) आहार

(265) चरक के मत से ‘आदान काल’में कौनसी ऋतुए शामिल होती है।

(क) प्रावृट, शरद और बंसत (ख) शिशिर, बसंत, ग्रीष्म (ग) बर्षा, शरद, हेमन्त (घ) हेमन्त, शरद, बसंत

(266) ‘विसर्ग काल’ कहलाताहै।

(क) आग्नेय काल (ख) उत्तरायण काल (ग) दक्षिणायन काल (घ) उपरोक्त कोई नहीं

(267) आदान काल में कौनसे गुण की वृद्धि होती है।

(क) उष्ण (ख) शीत (ग) रूक्ष (घ) स्निग्ध

(268) विसर्ग काल में कौनसे गुण की वृद्धि होती है।

(क) उष्ण (ख) शीत (ग) रूक्ष (घ) स्निग्ध

(269) ‘बसंत ऋतु’ में कौन से रस की उत्पत्ति होती हैं ?

(क) तिक्त (ख) कषाय (ग) कटु (घ) उपरोक्त सभी

(270) ‘हेमन्त ऋतु’ में कौन से रस की उत्पत्ति होती हैं ?

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) उपरोक्त सभी

(271) 'मध्ये मध्यबलं त्वन्ते श्रेष्ठमग्रे विर्निर्दिशेत्' यहॉ चक्रपाणि अनुसार ‘अग्रे’ पद का उचित अर्थ है ? (च.सू.6/8)

(क) शिशिरे (ख) प्रधाने (ग) चैत्रे (घ) वर्षायाम्

(272) आचार्य चरक ने ऋतुचर्या का वर्णन कौनसी ऋतु से प्रारम्भ किया है।

(क) शिशिर (ख) प्रावृट् (ग) हेमन्त (घ) शरद

(273) किस आचार्य ने ‘हंसोदक’का वर्णन नहीं किया हैं।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) भावप्रकाश

(274) ‘यमंदष्ट्रा काल’का वर्णन किस आचार्य ने किया हैं।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) शांरर्ग्धर

(275) जेन्ताक स्वेदका प्रयोग किस ऋतु मे करना चाहिए।

(क) शिशिर (ख) बंसत (ग) हेमन्त (घ) शरद

(276)‘वर्जयेदन्नपानानि वातलानि लघूनि च’ - सूत्र किस ऋतु के लिये कहा गया है।

(क) शिशिर (ख) बंसत (ग) हेमन्त (घ) शरद

(277)‘वातलानि लघूनि च वर्जयेदन्नपानानि’ - सूत्र किस ऋतु के लिये कहा गया है।

(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) शिशिर ऋतु (घ) बंसत ऋतु

(278)‘उष्ण गर्भगृह में निवास’ - किस ऋतु के लिये कहा गया है।

(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) शिशिर ऋतु (घ) बंसत ऋतु

(279)‘निवात व उष्ण गृह में निवास’ - किस ऋतु के लिये कहा गया है।

(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) शिशिर ऋतु (घ) बंसत ऋतु

(280)‘प्रवात (तीव्र वायु)’ का निषेध किस ऋतु के लिये कहा गया है।

(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) शिशिर ऋतु (घ) बंसत ऋतु

(281)‘प्राग्वात (पूर्वीवायु)’ का निषेध किस ऋतु के लिये कहा गया है।

(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) शिशिर ऋतु (घ) बंसत ऋतु

(282)‘औदक, आनूप, विलेशय एवं प्रसह मांस जाति के पशु-पक्षियों का मांस का सेवन किस ऋतु में करना चाहिए।

(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) बर्षा ऋतु (घ) बंसत ऋतु

(283)चरक के मत से ‘शारभं, शाशक, ऐणमांस, लावक और कपिजंलम् के मांस का सेवन किस ऋतु में करना चाहिए।

(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) बर्षा ऋतु (घ) बंसत ऋतु

(284)चरकानुसार ‘लाव, कपिन्जल, ऐण, उरभ्र, शरभ और शशक मांस के मांस का सेवन किस ऋतुमें करना चाहिए।

(क) शरद ऋतु (ख) हेमन्त ऋतु (ग) बर्षा ऋतु (घ) बंसत ऋतु

(285) ’जांगलैः मांसैर्भोज्या’ का निर्देश किस ऋतु में है।

(क) हेमंत ऋतु (ख) बंसत ऋतु (ग) वर्षा ऋतु (घ) ग्रीष्म ऋतु

(286) ’जांगलान्मृगपक्षिणः मांस’ कानिर्देश किस ऋतु में है।

(क) हेमंत ऋतु (ख) बंसत ऋतु (ग) वर्षा ऋतु (घ) ग्रीष्म ऋतु

(287) चरकानुसार शिशिर ऋतु में किस ऋतुतुल्य चर्या करनी चाहिए है -

(क) शरद (ख) हेमन्त (ग) ग्रीष्म (घ) बंसत

(288) शिशिर ऋतु मेंकौनसे रस वर्ज्य हैं ?

(क) कटु,तिक्त,कषाय (ख) मधुर, तिक्त,कषाय (ग) मधुर, अम्ल, लवण (घ) कटु, अम्ल, लवण

(289)‘गुर्वम्लस्निग्धमधुरं दिवास्वप्न च वर्जयेत्’ - सूत्र किस ऋतु के लिये कहा गया है।

(क) बर्षा (ख) बंसत (ग) हेमन्त (घ) शरद

(290)‘व्यायाममातपं चैव व्ययावं चात्र वर्जयेत्’ - सूत्र किस ऋतु के लिये कहा गया है।

(क) बर्षा (ख) बंसत (ग) हेमन्त (घ) शरद

(291) चरक के मत से ‘कवलग्रह तथा अंजन’का प्रयोग किस ऋतु मे करना चाहिए।

(क) बर्षा (ख) बंसत (ग) हेमन्त (घ) शरद

(292) मद्यमल्पं न वा पेयमथवा सुबहु उदकम्।- किस ऋतु के लिये कहा गया है।

(क) शरद (ख) हेमन्त (ग) ग्रीष्म (घ) बंसत

(293) सर्वदोष प्रकोपक ऋतु है।

(क) शिशिर (ख) बंसत (ग) वर्षा (घ) शरद

(294) ’प्रघर्षोद्वर्तन स्नानगन्धमाल्यपरो भवेत’ का निर्देश किस ऋतु में है।

(क) हेमंत ऋतु (ख) बंसत ऋतु (ग) वर्षा ऋतु (घ) ग्रीष्म ऋतु

(295) आदान दुर्बले देहे ..... भवति दुर्बलः। उपयुक्त विकल्प में रिक्त स्थान की पूर्ति करें। (च.सू.6/33)

(क)कफो (ख) वायु (ग) पक्ता (घ) पुरूषो

(296) वर्षा ऋतु में मधु का प्रयोग किस तरह करना चाहिए।

(क) पान में (ख) भोजन में (ग) संस्कार में (घ) उपरोक्त सभी

(297) चरकानुसार ‘दिवास्वप्न’ किस-किस ऋतु मे वर्जनीयहै।

(क) बसंत, बर्षा, शरद (ख) प्रावृट, शरद और बंसत (ग) बर्षा, शरद, हेमन्त (घ) हेमन्त, शरद, बसंत

(298) हंसोदक जल का किस ऋतु में तैयार होता हैं ?

(क) हेमंत ऋतु (ख) बर्षाऋतु (ग) शरदऋतु (घ) उपर्युक्त सभी में

(299)‘उपशेते यदौचित्यात् ..... तदुच्यते।’ - रिक्त स्थान की पूर्ति उपयुक्त विकल्प से करें। (च. सू.6/49)

(क) ओकः सात्म्यं (ख) सदा पथ्यम् (ग)नैवसात्म्यम् (घ) असात्म्यम्

(300) ओकः सात्म्यको ‘अभ्यास सात्म्य’ किस आचार्य ने कहा है।

(क) चक्रपाणि (ख) योगीन्द्रनाथ सेन (ग) गंगाधर रॉय (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(301) चरक के मत से अधारणीय वेगों की संख्या है ?

(क) 6 (ख) 11 (ग) 13 (घ) 14

(302) ’कास’ को अधारणीय वेग किसने माना है।

(क) सुश्रुत (ख) चरक (ग) वाग्भट्ट (घ) शांर्रग्धर

(303) वाग्भट्ट निम्न में से कौनसा अधारणीय वेग नहींमाना है।

(क) उद्गार (ख) क्षवथु (ग) कास (घ) श्रमः निश्वास

(304) ‘शिरोरूजा’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) मूत्र (ख) पुरीष (ग) शुक्र (घ) उपर्युक्त सभी

(305) ‘पिण्डिकोद्वेष्टन’ किसके वेगावरोधका लक्षण है ?

(क) मूत्र (ख) पुरीष (ग) शुक्र (घ) श्रमःनिश्वास

(306) ‘हृद् व्यथा’ लक्षण किसमें मिलता है।

(क) शुक्र वेग निग्रह (ख) शुक्र व पुरीष वेग निग्रह (ग) शुक्र व पिपासा वेग निग्रह (घ) क्षुधा व पिपासा वेग निग्रह

(307) स्वेदन, अवगाहन, अभ्यंग का निर्देश किसकी चिकित्सा में है।

(क) मूत्रवेग निग्रह (ख) पुरीषवेग निग्रह (ग) शुक्रवेग निग्रह (घ) अधोवात वेग निग्रह

(308) चरकानुसार पुरीषवेगनिग्रह किसकी चिकित्सा का क्रमहै।

(क) स्वेदन, अवगाहन, अभ्यंग (ख) स्वेदन, अभ्यंग, अवगाहन (ग) अभ्यंग, अवगाहन, स्वेद (घ) अभ्यंग, अवगाहन

(309) अभ्यंग, अवगाहन का निर्देश किसकी चिकित्सा में है।

(क) मूत्रवेग निग्रह (ख) पुरीषवेग निग्रह (ग) शुक्रवेग निग्रह (घ) उपर्युक्त सभी

(310) आचार्य चरकानुसार मूत्रवेगनिग्रह की चिकित्सा में देय बस्तिहै।

(क) अनुवासन बस्ति (ख) निरूह बस्ति (ग) उत्तर बस्ति (घ) त्रिविध बस्ति

(311) चरक के मत से शुक्रवेगनिग्रह की चिकित्सा में देय बस्तिहै।

(क) अनुवासन बस्ति (ख) निरूह बस्ति (ग) उत्तर बस्ति (घ) त्रिविध बस्ति

(312) ‘प्रमाथि अन्नपान’का निर्देश किसकी चिकित्सा में है।

(क) मूत्रवेग निग्रह (ख) पुरीषवेग निग्रह (ग) छर्दि वेग निग्रह (घ) क्षवथु वेग निग्रह

(313) ‘रूक्षान्नपान’का निर्देश किसकी चिकित्सा में है।

(क) मूत्रवेग निग्रह (ख) पुरीषवेग निग्रह (ग) छर्दि वेग निग्रह (घ) क्षवथु वेग निग्रह

(314) ‘अवपीडक सर्पिपान’ का निर्देश किसकी चिकित्सा में है।

(क) मूत्रवेग निग्रह (ख) पुरीषवेग निग्रह (ग) छर्दि वेग निग्रह (घ) क्षवथु वेग निग्रह

(315) चरकानुसार किस वेगरोधजन्य व्याधि में ‘भोजनोत्तर घृतपान’ करतेहै।

(क) क्षवथु (ख) उदगार (ग) पिपासा (घ) क्षुधा

(316) ‘विण्मूत्रवातसंग’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) मूत्र (ख) पुरीष (ग) शुक्र (घ) अधोवात

(317) ‘विनाम’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) मूत्र (ख) पुरीष (ग) क्षवथु (घ) मूत्र एवंजृम्भा

(318) ’शिरोरोग’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) मूत्र (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ) पुरीष, क्षवथु

(319) ’हृद्रोग’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) वाष्प (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ) जृम्भा

(320) ’अर्दित’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) छर्दि (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ) उदगार

(321) ’कुष्ठ, विसर्प’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) छर्दि (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ) उदगार

(322) ’बाधिर्य’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) क्षुधा (ख) पिपासा (ग) निद्रा (घ) श्रमः निश्वास

(323) ’भ्रम’ किसके वेगनिग्रह का लक्षण है।

(क) क्षुधा (ख) बाष्प (ग) निद्रा (घ) अ, ब दोनों

(324) ’मद्य/मदिरा पान’ किसकी चिकित्सा में है।

(क) वाष्पवेगधारण (ख) निद्रावेग धारण (ग) शुक्रवेग धारण (घ) अ, स दोनो में

(325) ‘भुक्त्वा प्रच्छर्दनं’ का निर्देश किसके वेगनिग्रह की चिकित्सा में है।

(क) छर्दि (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ)उदगार

(326) ‘रक्तमोक्षण’ का निर्देश किसके वेगनिग्रह की चिकित्सा में है।

(क) छर्दि (ख) निद्रा (ग) क्षवथु (घ)उदगार

(327) ’चरणायुधा’ किसका पर्यायहै।

(क) कुक्कुट (ख) मयूर (ग) काक (घ) कबूतर

(328) जृम्भा वेगधारण मे कौनसी चिकित्सा की जाती है।

(क) वातघ्न (ख) वातपित्तघ्न (ग) कफपित्तघ्न (घ) त्रिदोषघ्न

(329) ‘वातघ्न’किसके वेगनिग्रह की चिकित्सा में है।

(क) क्षवथु (ख) जृम्भा (ग) श्रमः निश्वास (घ) उपर्युक्त सभी

(330) ’वाणी’ के धारणीय वेगों की संख्या है।

(क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 9

(331) ’मन’ के धारणीय वेगों की संख्या है।

(क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 9

(332) ‘अभिध्या’ किसका धारणीय वेग है।

(क) मन (ख) वाणी (ग) शरीर (घ) उपर्युक्त को ई नहीं

(333) ‘स्तेय’ किसका धारणीय वेग है।

(क) मन (ख) वाणी (ग) शरीर (घ) उपर्युक्त को ई नहीं

(334) शरीरायासजननं कर्म व्यायाम उच्यते - किसका कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि

(335) दिनचर्या के अन्तर्गत ‘व्यायाम’ का वर्णन किस ग्रन्थ में नही है।

(क) चरकसंहिता (ख) सुश्रुतसंहिता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) अष्टांग हृदय

(336) चरक के अनुसार व्यायाम कब तक करना चाहिए।

(क) बलार्द्ध (ख) मात्रानुसार (ग) अर्द्धशक्ति (घ) मन्दशक्ति

(337) सुश्रुत के अनुसार व्यायाम कब तक करना चाहिए।

(क) बलार्द्ध (ख) मात्रानुसार (ग) अर्द्धशक्ति (घ) मन्दशक्ति

(338) व्यायाम करने से मेद का क्षय होता है - यह किस आचार्य ने कहा है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि

(339) चरकानुसार अतिव्यायाम से हो सकता है -

(क) प्रतमक श्वास (ख) वमन (ग) रक्तपिक्त (घ) उपर्युक्त सभी

(340) निम्न में से कौनसा एक लक्षण बलार्द्ध व्यायाम का नहीं है।

(क) मुखशोष (ख) ललाट प्रदेश में स्वेद (ग) कक्षा प्रदेश में स्वेद (घ) हृद्स्पन्दन में वृद्धि

(341) बुद्धिमान व्यक्ति को कौनसा कार्य अति मात्रा में नहीं करना चाहिए।

(क) व्यायाम (ख) ग्राम्यधर्म (ग) हास्य (घ) उपर्युक्त सभी

(342) 'वातलाद्याः सदातुराः' -किसका कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(343) 'वातिकाद्याः सदाऽऽतुराः'- किसका कथनहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(344) आचार्य चरक ने बर्हिमुख स्रोत्रस को कहा है।

(क) मलायन (ख) मलायतन (ग) दोनों (घ) कोई नहीं

(345) चरकानुसार कफ का निर्हरण किस मास में करना चाहिए।

(क) चैत्र (ख) श्रावण (ग) अगहन (घ) पौष

(346) चरक मतानुसार पित्त का निर्हरण विरेचन द्वारा किस मास में करना चाहिए ?

(क) श्रावण मास (ख) चैत्र मास (ग) आषाढ मास (घ) मार्ग शीर्ष मास

(347) चरक संहिता में ‘देह प्रकृति’ का वर्णन किस अध्याय में हैं।

(क) न वेगान्धारणीयाध्याय (ख) रोगभिषग्जितीय विमानाध्याय (ग) महती गर्भावक्रान्ति (घ) उपरोक्त कोई नहीं

(348) चरक संहिता में ‘दोष प्रकृति’ का वर्णन किस अध्याय में हैं।

(क) न वेगान्धारणीयाध्याय (ख) रोगभिषग्जितीय विमानाध्याय (ग) महती गर्भावक्रान्ति (घ) उपरोक्त कोई नहीं

(349) चरक संहिता में ‘सत्व प्रकृति (मानस प्रकृति)’ का वर्णन किस स्थान में हैं।

(क) सूत्र स्थान (ख) विमान स्थान (ग) शारीर स्थान (घ) इन्द्रिय स्थान

(350) दधि किसके साथ खाना चाहिए।

(क) घृत (ख) शर्करा (ग) मधु (घ) उपरोक्त सभी

(351) मन को ‘अतीन्द्रिय’ की संज्ञा किस आचार्य ने दीहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) तर्क संग्रह

(352) चेष्टाप्रत्ययभूतं इन्द्रियाणाम्। - किसका कर्म है।

(क) वायु का (ख) मन का (ग) आत्मा का (घ) मस्तिष्क का

(353) ‘चक्षु’है।

(क) इन्द्रिय (ख) इन्द्रियार्थ (ग) इन्द्रियाधिष्ठान (घ) इन्द्रिय द्रव्य

(354) ‘अक्षि’है।

(क) इन्द्रिय (ख) इन्द्रियार्थ (ग) इन्द्रियाधिष्ठान (घ) इन्द्रिय द्रव्य

(355) क्षणिका और निश्चयात्मिका - किसके भेद है।

(क) पंचेन्द्रिय बुद्धि (ख) पंचेन्द्रियार्थ (ग) पंचेन्द्रिय द्रव्य (घ) पंचेन्द्रिय

(356) ‘इन्द्रिय पंचपंचक’ का वर्णन किस आचार्य ने कियाहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) उपरोक्तसभी

(357) चरक के मत से ‘अध्यात्म द्रव्यगुणसंग्रह’ है।

(क) मन, मर्नोऽर्थ,बुद्धिआत्मा (ख) मन, मर्नोऽर्थ, बुद्धि (ग) मन, मर्नोऽर्थ, (घ)मन

(358) मन का अर्थ है।

(क) चिन्त्य (ख) विचार्य (ग) ऊह्य (घ) उपरोक्त सभी

(359) मन का अर्थ है।

(क) चिन्त्य (ख) विचार्य (ग) ऊह्य (घ) संकल्प

(360) चरक संहिता के किस अघ्याय में ‘सदवृत्त’का वर्णन मिलता है।

(क) मात्राशितीय (ख) तस्याशितीय (ग) इन्द्रियोपक्रमणीय (घ) न वेगान्धारणीय

(361) चरकानुसार मनुष्य को 1 पक्ष में कितने बार केश, श्मश्रु, लोम व नखकाटना चाहिए।

(क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) 4

(362) चरकानुसार किस दिशा में मुख करके भोजन करना चाहिए।

(क) पूर्व (ख) उत्तर (ग) पश्चिम (घ) दक्षिण

(363) इन्द्रियों को अंहकारिककिसने माना है।

(क) वैशेषिक (ख) न्याय (ग) सांख्य (घ) चरक

(364) चरक के मत से ‘अर्थद्वय’ का अर्थ है

(क) धर्म, अर्थ (ख) आरोग्य एवं इन्द्रियविजय (ग)काम, मोक्ष (घ) कोई नहीं

(365) ‘विकारोधातुवैषम्यं साम्यं प्रकृतिरूच्यते’ - किस आचार्य का कथनहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) भावप्रकाश

(366) ‘रोगस्तु दोषवैषम्यं दोषसाम्यमरोगता’ - किस आचार्य का कथनहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) भावप्रकाश

(367) ’निर्देशकारित्वम्‘ किसका गुण है।

(क) वैद्य (ख) औषध (ग) परिचारक (घ) आतुर

(368) ’श्रृते पर्यवदातत्वं‘ किसका गुण है।

(क) वैद्य (ख) औषध (ग) परिचारक (घ) आतुर

(369) ’दाक्ष्य्‘ किसका गुण है।

(क) वैद्य (ख) परिचारक (ग) आतुर (घ) वैद्य,परिचारक दोनों

(370) ’उपचारज्ञता‘ किसका गुण है।

(क) वैद्य (ख) औषध (ग) परिचारक (घ) आतुर

(371) चरकानुसार चिकित्सा के चतुष्पाद में वैद्य के प्रधान होने का कारण है।

(क) दाक्ष्य, शौच (ख) मेधावी, युक्तिज (ग) हेतुज्ञ, युक्तिज (घ) विज्ञाता, शासिता

(372) प्राणाभिसर वैद्य के गुण है ?

(क) 4 (ख) 6 (ग) 10 (घ) 12

(373) राजार्ह वैद्य के ज्ञान है ?

(क) 4 (ख) 6 (ग) 10 (घ) 12

(374) चरकानुसार वैद्य के गुण है ?

(क) 4 (ख) 6 (ग) 10 (घ) 12

(375) राजार्ह वैद्य के ज्ञान है ?

(क) तस्मात् शास्त्रऽर्थ विज्ञाने प्रवृतौ कर्मदर्शने। (ख) योगमासां तु यो विद्यात् देशकालोपपादितम्। (ग) विद्या वितर्की विज्ञानं स्मृतिः तत्परता क्रिया। (घ) हेतो लिंगे प्रशमने रोगाणाम् अपुनर्भवे।

(376) वैद्य की 4 वृत्तियों मे शामिल नहींहै।

(क) मैत्री (ख) कारूण्य (ग) मुदिता (घ) उपेक्षा

(377) प्रकृति स्थेषु भूतेषु वैद्यवृत्तिः चतुर्विधा। - यहॉ पर प्रकृति स्थेषु का क्या अर्थ है।

(क) स्वास्थ्य (ख) मृत्यु (ग)चिकित्सा (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(378) निम्नलिखित में कौनसा वर्ग गुण या दोष उत्पन्न करने के लिए पात्र की अपेक्षा करता हैं।

(क) शस्त्र, शास्त्र, वैद्य (ख) शस्त्र, शास्त्र, सलिल (ग) शस्त्र, शास्त्र, द्रव्य (घ) शस्त्र, शास्त्र, रोगी

(379) चरकानुसार ‘साध्य’ के भेद है ?

(क) द्विविध (ख) त्रिविध (ग) चतुर्विध (घ) अ, ब दोनो

(380) न च तुल्य गुणों दूष्यो न दोषः प्रकृति भवेत्- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) अनुपक्रम रोग

(381) कालप्रकृति दूष्याणां सामान्येऽन्यतमस्य च- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग

(382) मर्मसन्धिसमाश्रितम- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग

(383) नातिपूर्ण चतुष्पदम् - किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग

(384) गम्भीरं बहु धातुस्थं- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग

(385) क्रियापथम् अतिक्रान्तं- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ)प्रत्याख्येय रोग

(386)रोगं दीर्घकालम् अवस्थितम्- किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग

(387) विद्यात् द्विदोषजम् - किसका लक्षण है।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग

(388) .....द्विदोषजम्।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय रोग

(389) ज्वरे तुल्यतुदोषत्वं प्रमेहे तुल्यदूष्यता। रक्तगुल्मे पुराणत्वं .....स्य लक्षणं।

(क) सुखसाध्य (ख) कृच्छ्रसाध्य (ग) याप्य (घ) अनुनक्रम

(390) ज्वरे तुल्यतुदोषत्वं प्रमेहे तुल्यदोषता। रक्तगुल्मे पुराणत्वं सुखसाध्यस्य लक्षणम्।- किसका कथन है ?

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग)वाग्भट्ट (घ) भावप्रकाश

(390) रिक्तस्थानकी पूर्ति कीजिए - प्रमेहे .....सुखसाध्यस्य लक्षणम्।

(क) तुल्यतुदोषत्वं (ख) तुल्यदोषता (ग) तुल्यऋतुः (घ) पुराणत्वम्

(391) चरकानुसार ‘तिस्त्र एषणा’ है।

(क) धर्म, अर्थ, मोक्ष (ख) धर्म, काम, मोक्ष (ग) प्राण, धन, परलोक (घ) प्राण, धन, धर्म

(392) चरकानुसार ‘प्रथम एषणा’ है।

(क) प्राणैषणा (ख) धनैषणा (ग)परलोकैषणा (घ) धर्मेषणा

(393) प्रत्यक्ष प्रमाण में बाधक कारण है।

(क) 4 (ख) 8 (ग) 6 (घ) 10

(394) प्रमाण के लिए 'परीक्षा'शब्द किसने प्रयोग किया है।

(क) वैशेषिक (ख) सुश्रुत (ग) जैन (घ) चरक

(395) चरकानुसार ‘अनुमान’ के भेद है ?

(क) द्विविध (ख) त्रिविध (ग) चतुर्विध (घ) पंचविध

(396) 'षड्धातु पंचमहाभूत तथा आत्मा के संयोग से गर्भ की उत्पत्ति होती है'- ये किस प्रमाण का उदाहरण हैं।

(क) प्रत्यक्ष (ख) अनुमान (ग) आप्तोपदेश (घ) युक्ति

(397) ’‘बुद्धि पश्यति या भावान् बहुकारणयोगजान।'- किसके लिए कहा गया है।

(क) प्रत्यक्ष प्रमाण हेतु (ख) अनुमान हेतु (ग) युक्ति हेतु (घ) उपमान हेतु

(398) त्रिवर्ग में शामिल नहीं है।

(क) धर्म (ख) अर्थ (ग) काम (घ) मोक्ष

(399) चरकानुसार निम्न में कौन सा प्रमाण पुनर्जन्म सिद्ध करता हैं -

(क) प्रत्यक्ष (ख) अनुमान (ग) आप्तोपदेश (घ) उपरोक्त सभी

(400) आचार्य चरक ने प्रत्यक्ष प्रमाणं से पुनर्जन्म सिद्धि में कितने उदाहरण दिये हैं।

(क) 11 (ख) 12 (ग) 13 (घ) 8

(401) त्रिउपस्तम्भ है।

(क) वात, पित्त, कफ (ख) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (ग) सत्व, आत्मा, शरीर (घ) हेतु,दोष, द्रव्य

(402) ‘आहार, स्वप्न तथा ब्रह्मचर्य’ - किस आचार्य के अनुसार त्रय उपस्तम्भ हैं।

(क) चरकानुसार (ख) अष्टांग संग्रहानुसार (ग) सुश्रुतानुसार (घ) अष्टांग हृदयानुसार

(403) वाग्भट्टानुसार त्रिउपस्तम्भ है।

(क) वात, पित्त, कफ (ख) आहार, निद्रा, अब्रह्मचर्य (ग) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (घ) सत्व, आत्मा, शरीर

(404) त्रिस्तम्भ है।

(क) वात, पित्त, कफ (ख) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (ग) सत्व, आत्मा, इन्द्रिय (घ) हेतु, दोष, द्रव्य

(405) त्रिस्थूणहै।

(क) हेतु, लिंग, औषध (ख) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (ग) वात, पित्त, कफ (घ) सत्व,रज, तम

(406) त्रिविध विकल्पहै।

(क) अतियोग, अयोग, सम्यक्योग (ख) अतियोग, हीनयोग, मिथ्यायोग (ग) अतियोग, अयोग, मिथ्यायोग (घ) सम्यक्योग, हीनयोग, मिथ्यायोग

(407) चरकानुसार त्रिविध रोग है।

(क) वातज, पित्तज, कफज रोग (ख) कायिक, मानसिक, स्वाभाविकरोग (ग) शारीरिक, मानसिक,आगन्तुक रोग (घ) निज, आगन्तुज, मानसरोग

(408) किस इन्द्रिय की व्याप्ति सभी इन्द्रियों में है ?

(क) चक्षु (ख) घ्राण (ग) त्वक् (घ) रासना

(409) देहबल के भेद होतेहै।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 5 (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(410) शाखा में होने वाली व्याधियॉ की संख्या कही गयी है।

(क) 14 (ख) 11 (ग)16 (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(411) त्रिविधं विकल्प वत्रिविधमेव कर्म है।

(क) कर्म (ख) काल (ग) प्रज्ञापराध (घ) प्रवृत्ति

(412) 'शोष, राजयक्ष्मा' कौनसे मार्गज व्याधियॉ हैं।

(क) बाहृय रोगमार्ग (ख) मध्यम रोगमार्ग (ग) आभ्यन्तर रोगमार्ग (घ) सर्वरोगमार्ग

(413) विद्रधि, अर्श, विसर्प ,शोथ, गुल्म व्याधियॉ है।

(क) शाखाआश्रित (ख) कोष्ठआश्रित (ग) अस्थिसंधि मर्माश्रित (घ) अ, ब दोनों

(414) पुनः अहितेभ्योऽर्थेभ्यो मनोनिग्रहः - कौनसी औषध है।

(क) दैव व्यापाश्रय (ख) युक्ति व्यपाश्रय (ग) सत्वावजय (घ) शोधन

(415) पुनः आहार औषधद्रव्याणां योजना - कौनसी औषध है।

(क) दैवव्यापाश्रय (ख) युक्तिव्यापाश्रय (ग) सत्वावजय (घ) संशोधन

(416) 'पल्लवग्राही' वैद्य कौन होता है।

(क) प्राणभिसर (ख) रोगाभिसर (ग) शास्त्रविद (घ) छद्मर वैद्य

(417) प्रयोग ज्ञान विज्ञान सिद्धि सिद्धाः सुखप्रदाः। - किस वैद्य के गुण है।

(क) जीविताभिसर (ख) रोगाभिसर (ग) सिद्धसाधित (घ) छद्मर वैद्य

(418) तिस्त्रैषणीय अध्याय में कुल त्रित्व है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8

(419) अष्ट त्रित्व का वर्णन किस आचार्य ने किया है।

(क) पुनर्वसु आत्रेय (ख) मैत्रेय (ग) भिक्षु आत्रेय (घ) कृष्णात्रेय

(420) आचार्य कुश ने वात के कितने गुण बतायेगए है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8

(421) वात का गुण ‘दारूण’ किसने माना है।

(क) कुश (ख) वडिश (ग) वार्योविद (घ) भारद्वाज

(422) प्राकृत शरारस्थ वायु का कर्म नहीं है।

(क) तन्त्रयंत्रधर (ख) सर्वेन्द्रियाणामुद्योजक (ग) समीरणोडग्नेः (घ) सर्वशरीरव्यूहकर

(423) मन का नियंत्रण कौन करता है।

(क) मस्तिष्क (ख) मन (ग) वायु (घ) आत्मा

(424) वायुस्तन्त्रयन्त्रधर - में ‘तंत्र’ का क्या अर्थ है।

(क) मस्तिष्क (ख) शरीर (ग)शरीरवयव (घ) आत्मा

(425) आयुषोऽनुवृत्ति प्रत्ययभूतो- किसका कर्म है।

(क) वायु का (ख) मन का (ग) आत्मा का (घ) मस्तिष्क का

(426) वातकलाकलीय अध्याय में ‘पित्त संबंधी वर्णन’ किसने कियाहै।

(क) काप्य (ख) वडिश (ग) वार्योविद (घ) मरिच

(427) चरकानुसार ज्ञान-अज्ञान में कौनसा दोष उत्तरदायी होता है।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) आम

(428) वायु एंव आत्मा दोनों का पर्याय है।

(क) विभु (ख) विश्वकर्मा (ग) विश्वरूपा (घ) उपर्युक्त सभी

(429) आचार्य चरक के मत से ‘प्रजापति’ किसका पर्याय है।

(क) वायु (ख) आत्मा (ग) शुक्र (घ) अन्न

(430) आचार्य काश्यप ने ‘प्रजापति’ की संज्ञा किसे दीहै।

(क) वायु (ख) आत्मा (ग) शुक्र (घ) अन्न

(431) आचार्य चरकने ’भगवान्’ की संज्ञा किसे दीहै।

(क) वायु (ख) काल (ग) आत्रेय (घ) अ, स दोनो

(432) आचार्य सुश्रुत ने ’भगवान्’ संज्ञा किसे दी है।

(क) वायु (ख) काल (ग) जठराग्नि (घ) उपर्युक्त सभी

(433) स्नेह की योनियॉ है।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 4 (घ) 8

(434) स्नेह कितनेहोते है।

(क) 2 (ख) 3 (ग) 4 (घ) 8

(435) विरेचन हेतु उत्तम तैलहै।

(क) तिल तैल (ख) सर्षप तैल (ग) एरण्ड तैल (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(436) सभी स्नेहों में उत्तम है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(437) ’तैल का सेवन’ का निर्देश किस ऋतु में है।

(क) शरद (ख) प्रावृट (ग) माधव (घ) वर्षा

(438) ’मज्जा सेवन’ का निर्देश किस ऋतु में है।

(क) शरद (ख) प्रावृट (ग) माधव (घ) वर्षा

(439) ’कर्ण शूल’ में लाभप्रद है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(440) चरकानुसार ’शिरःरूजा’ में लाभप्रद है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(441) चरकानुसार ’निर्वापण’ किसका कार्य है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(442) चरकानुसार ’योनिविशोधन’ किसका कार्य है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(443) ’मज्जा’ का अनुपान है।

(क) यूष (ख) मण्ड (ग) पेया (घ) उष्णजल

(444) ’यूष’ किसका अनुपान है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(445) उष्ण काल में दिन में स्नेहपान करने कौन सा रोग हो सकता है।

(क) मूर्च्छा (ख) पिपासा (ग) उन्माद (घ) उपरोक्त सभी

(446) श्लेष्माधिकता में रात्रि में स्नेहपान करने कौन सा रोग नहीं हो सकता है।

(क) अरूचि (ख) आनाह (ग) पाण्डु (घ) कामला

(447) चरकानुसार स्नेह की प्रविचारणायेहोती है।

(क) 57 (ख) 20 (ग) 24 (घ) 64

(448) काश्यपानुसार स्नेह की प्रविचारणायेहोती है।

(क) 57 (ख) 20 (ग) 24 (घ) 64

(449) ‘अच्छपेय स्नेह’ निम्नलिखित में कौन सी कल्पनाहै।

(क) प्रथम कल्पना (ख) प्रथम कल्पना एवंप्रविचारणा (ग) प्रविचारणा (घ) अल्प स्नेहन

(450) ’स्नेह’ की प्रधान मात्रा का निर्देश किसमें नहीं है।

(क) गुल्म (ख) विसर्प (ग)कुष्ठ (घ)सर्पदंष्ट्र

(451) वातरक्त मेंस्नेह की कौनसी मात्रा प्रयुक्त होती है।

(क) हृस्व (ख) मध्यम (ग)उत्तम (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(452) अतिसार मेंस्नेह की कौनसी मात्रा प्रयुक्त होती है।

(क) हृस्व (ख) मध्यम (ग)उत्तम (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(453) ’मृदुकोष्ठ’ हेतु स्नेह की कौनसी मात्रा का निर्देशित है।

(क) हृस्व (ख) मध्यम (ग)उत्तम (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(454) ‘मंदबिभ्रंशा’ नाम है।

(क) स्नेह की हृस्वमात्रा (ख) स्नेह की मध्यम मात्रा (ग) स्नेह की उत्तममात्रा (घ) स्नेह कीअति मात्रा

(455) स्नेह की कौनसी मात्रा का पाचनकाल अहोरात्रहै।

(क) हृस्व (ख) मध्यम (ग) उत्तम (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(456) स्नेह की हृस्वयसी मात्रा किसने बतलायी है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(457) संशोधन हेतु स्नेह की कौनसी मात्रा प्रयुक्त होती है।

(क) हृस्व (ख) मध्यम (ग) उत्तम (घ) उर्पयुक्त सभी

(458) ’कृमिकोष्ठ’ में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(459) ’क्षतक्षीण’ में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(460) नाडीव्रण में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(461) क्रूरकोष्ठ में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) मज्जा (घ) तैल, मज्जा

(462) अस्थि-सन्धि-सिरा-स्नायु-मर्मकोष्ठ महारूजः - में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(463) जिनको वसा सात्म्य है उनको किस स्नेह का सेवन करना चाहिए।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(464) ‘घस्मरा’ व्यक्ति में किसका प्रयोग करना चाहिए है।

(क) घृत (ख) तैल (ग) वसा (घ) मज्जा

(465) केवल अच्छस्नेहसेवन से मृदुकोष्ठ व्यक्ति कितनी रात्रि में स्निग्ध हो जाता है।

(क) 5 (ख)2 (ग) 3 (घ) 7

(466) केवल अच्छस्नेहसेवन से क्रूरकोष्ठ व्यक्ति कितनी रात्रि में स्निग्ध हो जाता है।

(क) 5 (ख) 2 (ग) 3 (घ) 7

(467) ‘अल्पकफा मन्दमारूताग्रहणी’ - किस कोष्ठ के व्यक्ति में होती हैं ? (च.सू.13/69)

(क) मृदुकोष्ठ (ख) मध्य कोष्ठ (ग) क्रूरकोष्ठ (घ) बद्धकोष्ठ

(468) चरकानुसार स्नेह व्यापदों की संख्या है ?

(क) 6 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 19

(469) चरकसंहिता में ‘तक्रारिष्ट’का सर्वप्रथम उल्लेख किसके संदर्भ में आया है।

(क) स्नेहव्यापत्ति भेषज (ख) अर्श चिकित्सा (ग) उदररोग चिकित्सा (घ) ग्रहणी चिकित्सा

(470) चरकानुसार स्नेहपान के कितने दिन बाद वमन कराते है।

(क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) 7

(471) चरकानुसार स्नेहपान के कितने दिन बाद विरेचन कराते है।

(क) 1 (ख) 2 (ग) 3 (घ) 7

(472) ‘पांच प्रसृतिकी पेया’ के घटको में शामिल है।

(क) घृत, तैल (ख) वसा, मज्जा (ग) तण्डुल (घ) उपर्युक्त सभी

(473) ’प्रस्कन्दन’ किसका पर्याय है।

(क) वमन (ख) विरेचन (ग) वस्ति (घ) नस्य

(474) ‘उल्लेखन‘ किसका पर्याय है।

(क) वमन (ख) विरेचन (ग) लेखन (घ) शोधन

(475) विचारणा के योग्य रोगी है।

(क) क्लेशसहा (ख) नित्यमद्यसेवी (ग) मृदुकोष्ठी (घ) उपर्युक्त सभी

(476) चरकानुसारवंक्षण में कौनसा स्वेद कराते हैं।

(क) मृदु स्वेद (ख) मध्यम स्वेद (ग) स्वल्प स्वेद (घ) अल्प स्वेद

(477) वाग्भट्टानुसारवंक्षण में कौनसा स्वेद कराते हैं।

(क) मृदु स्वेद (ख) मध्यम स्वेद (ग) स्वल्प स्वेद (घ) अल्प स्वेद

(478) स्वेदन के अतियोग में ग्रीष्म ऋतु में वर्णित मधुर, स्निग्ध एंव शीतल आहार विहार चिकित्सा किसने बतलायी है

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(479) स्वेदन के अतियोग शीघ्र शीतोपचार चिकित्सा किसने बतलायी है

(क) चरक (ख) सुश्रुत, शारंर्ग्धर (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(480) स्वेदन के अतियोग में विसर्प रोग की चिकित्साकिसने बतलायी है

(क) चरक (ख) सुश्रुत, शारंर्ग्धर (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(481) स्वेदन के अतियोग स्तम्भन चिकित्सा किसने बतलायी है

(क) चरक (ख) सुश्रुत, शारंर्ग्धर (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(482) स्वेदन के अयोग्य रोगी है।

(क) संधिवात (ख) वातरक्त (ग) गृधसी (घ) कोई नहीं

(483) चरकानुसार किसमें स्वेदन का निषेध है।

(क) नित्य कषाय द्रव्य सेवी (ख) नित्य मधुर द्रव्य सेवी (ग)नित्य कटु द्रव्य सेवी (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(484)चरकानुसार साग्नि स्वेद की संख्या हैं ?

(क) 4 (ख) 8 (ग) 10 (घ) 13

(485) चरकानुसार निराग्नि स्वेद की संख्या हैं ?

(क) 4 (ख) 8 (ग) 10 (घ) 13

(486) चरक ने ’पिण्डस्वेद’ का अंतर्भाव किया गया है।

(क) संकर स्वेद (ख) प्रस्तर स्वेद (ग) नाडी स्वेद (घ) जेन्ताक स्वेद

(487) भावप्रकाश के अनुसार 4 मुर्हूत काल तक किया जाने वाला स्वेद है।

(क) अवगाहन (ख) प्रस्तर स्वेद (ग) नाडी स्वेद (घ) जेन्ताक स्वेद

(488) नाडी स्वेद मे नाडी की आकृति होती है।

(क) घुमावदार (ख) हाथी की सूड समान (ग) ऽ आकार की (घ) सीधी

(489) जेन्ताक स्वेद में कूटागार का विस्तार होता है।

(क) 8 अरत्नि (ख) 16 अरत्नि (ग) 26 अरत्नि (घ) पुरूषसम प्रमाण

(490) हन्सतिका की अग्नि का प्रयोग कौनसे स्वेद में किया जाता है।

(क) कूर्ष (ख)कूप (ग) कुटी (घ) होलाक

(491) चरकानुसार निराग्नि स्वेदहै।

(क) अवगाहन (ख) परिषेक (ग) बहुपान (घ) अध्व

(492) सुश्रुत ने कौनसा निराग्नि स्वेद नहीं माना है।

(क) उपनाह (ख)क्षुधा, भय (ग) मद्यपान (घ) उपर्युक्त सभी

(493) चरकसंहिता के स्वेदाध्याय में कितने स्वेद संग्रह बताए गए है।

(क) त्रयोदश (ख) दश (ग) अष्ट (घ) षट्

(494) अष्टांग संग्रहकार ने उष्म स्वेद के अतंगर्त कितने स्वेदों का वर्णन किया है ?(अ.सू.26/7)

(क) 8 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 13

(495) चरकानुसार वमन विरेचन व्यापदों की संख्या है।

(क) 8 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 15

(496) सुश्रुतानुसार वमन विरेचन व्यापदों की संख्या है।

(क) 8 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 15

(497) ‘मलापह रोगहरं बलवर्णप्रसादनम्’ - किसका कर्म है।

(क) आहार (ख) ओज (ग) रक्त (घ) संसोधन से लाभ

(498) वमन के पश्चात् प्रयुक्त धूम्रपान है।

(क) स्नैहिक (ख) प्रायोगिक (ग) वैरेचनिक (घ) उपर्युक्त सभी

(499) चरकसंहिता के उपकल्पनीय अध्याय में वर्णित संसर्जन क्रम में वमनविरेचन की प्रधानशुद्धि में सर्वप्रथम देय है।

(क) मण्ड (ख) पेया (ग) विलेपी (घ) यवागू

(500) चरक ने विरेचन हेतु त्रिवृत्त कल्क की मात्रा बतलायी है।

(क) 1 पल (ख) 1 अक्ष (ग) 1 प्रसृत (घ) 1 शुक्ति

(501) चरकानुसार ‘आध्मानमरूचिश्छर्दिरदौर्बल्यं लाघवम्’ - किसका लक्षण हैं।

(क) सम्यग्विरिक्त (ख) अविरिक्त (ग) दुर्विरिक्त (घ) वमनेऽति

(502) चरकानुसार ‘दौर्बल्यं लाघवं ग्लार्निव्याधिनामणुता रूचिः’ - किसकालक्षण हैं।

(क) सम्यग्विरिक्त (ख) अविरिक्त (ग) दुर्विरिक्त (घ) वमनेऽति

(503) 'दोषाः कदाचित् कुप्यन्ति जिता लंघनपाचनैः। जिताः संशोधनैर्ये तु न तेषां पुनरूद्भवः'- किस आचार्य का कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि

(504) संशोधन के अतियोग की चिकित्सा हैं।

(क) सर्पिपान (ख) मधुरौषधसिद्ध तैल का पान (ग) अनुवासन वस्ति (घ) उपरोक्त सभी

(505) ‘उर्ध्वगत वातरोग एवं वाक्ग्रह’- किसके अतियोग के लक्षण हैं।

(क) वमन (ख) विरेचन (ग) दोनों (घ) उपर्युक्त कोई नहीं

(506) चरक संहिता में ’स्वभावोपरमवाद’ का वर्णन कहॉ मिलता है।

(क) चू.सू.अ.15 (ख) चू.सू.अ.16 (ग) चू.सू.अ.17 (घ) चू.सू.अ.18

(507) 'स्वभावात् विनाशकारणनिरपेक्षात् उपरमो विनाशः स्वभावोपरमः।' - किसका कथन है।

(क) चरक (ख) चक्रपाणि (ग) आत्रेय (घ) वाग्भट्ट

(508) ‘स्वभावोपरमवाद’ का मुख्य अभिप्राय है।

(क) स्वभावेन निरोध (ख) स्वभावेन प्रकृतिः (ग) स्वभावेन वृद्धि (घ) स्वभावेनोत्पत्तिः

(509) जायन्ते हेतु वैषम्याद् विषमा देहधातवः। हेतु साम्यात् समास्तेषां .....सदा।।

(क) वृद्धि (ख) हानि (ग) स्वभावोपरमः (घ) सम

(510) याभिः क्रियाभिः जायन्ते शरीरे धातवः समाः। सा ..... विकारणां कर्म तत् भिषजां मतम्।।

(क) भेषज (ख) चिकित्सा (ग) औषध (घ) दोषाणां

(511) चरक के मत से शिरोरोग का सामान्य कारण नहींहै।

(क) दिवास्वप्न (ख) रात्रि जागरण (ग) प्रजागरण (घ) प्राग्वात

(512) शिर को उत्तमांग की संज्ञा किसने दी है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(513) माधव निदान के अनुसार शिरो रोगोंकी संख्या है ?

(क) 5 (ख) 10 (ग) 11 (घ) 13

(514) ‘शीतमारूतसंस्पर्शात्’ कौनसे रोग का निदान है ?

(क) वातिक शिरोरोग (ख) शीतपित्त (ग) दोनों (घ) कोई नहीं

(515) ‘मद्य सेवन्’ से कौनसा शिरोरोग होताहै ?

(क) वातज (ख)पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(516) ‘आस्यासुखैः स्वप्नसुखैर्गुरूस्निग्धातिभौजनै’ - कौनसे रोग का निदानहै ?

(क) कफजशिरोरोग (ख) प्रमेह (ग) मधुमेह (घ) उपर्युक्त सभी

(517) ‘आस्यासुखं स्वप्नसुखं दधीनि ग्राम्यौदकानूपरसाः पयांसि’ - कौनसे रोग कानिदानहै ?

(क) कफज शिरोरोग (ख) वातरक्त (ग) प्रमेह (घ) उपर्युक्त सभी

(518) ‘व्यधच्छेदरूजा’ कौनसे शिरोरोग का कारणहै।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कृमिज (घ) सन्निपातज

(519) आचार्य सुश्रुत ने कौनसा हृदय रोगनहीं माना है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कृमिज (घ) सन्निपातज

(520) 'दर' (हदय में मरमर ध्वनि की प्रतीति होना) - कौनसे हृदय रोग का लक्षण हैं।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) कृमिज

(521) कफज हृद्रोग का निदान है।

(क) चिन्तन (ख) अतिचिन्तन (ग) अचिन्तन (घ) उपर्युक्त सभी

(522) हृदयं स्तब्धं भारिकं साश्मगर्भवत्- किसका लक्षण है ?

(क) कफज हृदय रोग (ख) कफज अर्बुद (ग) वातिक ग्रहणी (घ) कफज ग्रहणी

(523) चरकानुसार ‘सान्निपातिक हृद्रोग’ होता है।

(क) साध्य (ख) कष्टसाध्य (ग) याप्य (घ) प्रत्याख्येय

(524) चरक के मत से दोष के विकल्प भेद होते है।

(क) 57 (ख) 62 (ग) 63 (घ) 3

(525) चरकानुसार क्षय के भेद होते है।

(क) 5 (ख) 10 (ग) 2 (घ) 18

(526) सुश्रुतानुसार क्षय के भेद होते है।

(क) 5 (ख) 10 (ग) 2 (घ) 18

(527) चरकानुसार निम्नलिखित मे कौनसा रस क्षय का लक्षण नहीं है।

(क) शूल्यते (ख) घट्टते (ग) हृदयं ताम्यति (घ) हृदयोक्लेद

(528) परूषा स्फिटिता म्लाना त्वग् रूक्षा’ किस क्षय के लक्षण है।

(क) रसक्षय (ख) कफक्षय (ग) रक्तक्षय (घ) मज्जाक्षय

(529) चरकानुसार ’संधिस्फुटन’ कौनसी धातु केक्षय का लक्षण है।

(क) मांस (ख) मेद (ग) अस्थि (घ) मज्जा

(530) चरकानुसार ’संधिशैथिल्य’ कौनसी धातु केक्षय का लक्षण है।

(क) मांस (ख) मेद (ग) अस्थि (घ) मज्जा

(531) चरकानुसार ’शीर्यन्त इव चास्थानि दुर्बलानि लघूनि च। प्रततं वातरोगीणि’ - लक्षण है।

(क) मांस (ख) मेद (ग) अस्थि (घ) मज्जा

(532) ’दौर्बल्यं मुखशोषश्च पाण्डुत्वं सदनं श्रमः’ - चरकानुसार कौनसी धातु केक्षय का लक्षण है।

(क) रस (ख) शुक्र (ग) मूत्र (घ) रक्त

(533) चरकानुसार ’पिपासा’ किसके क्षय का लक्षण है।

(क) रस (ख) शुक्र (ग) मूत्र (घ) रक्त

(534) विभेति दुर्बलोऽभीक्ष्णं व्यायति व्यधितेन्द्रियः। दुश्छायो दुर्मना रूक्षः क्षामश्चैव - चरकानुसारकिसका लक्षण है।

(क) ओजनाश (ख) ओजक्षय (ग) ओजविस्रंस (घ) ओजच्युति

(535) चरकानुसार गर्भस्थ ओज का वर्ण होता है।

(क) सर्पिवर्ण (ख) मधुवर्ण (ग) रक्तमीषत्सपीतकम् (घ) श्वेत वर्ण

(536) चरकानुसार हदयस्थ ओज का वर्ण होता है।

(क) सर्पिवर्ण (ख) मधुवर्ण (ग) रक्तमीषत्सपीतकम् (घ) श्वेत वर्ण

(537) ‘तन्नाशान्ना विनश्यति’ - चरक ने किसके संदर्भ में कहा गया है।

(क) रक्त (ख) ओज (ग) शुक्र (घ) प्राणायतन

(538) प्रथमं जायते ह्योजः शरीरेऽस्मन् शरीरिणाम्।- किस आचार्य का कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(539) मधुमेह के निदान एंव सम्प्राप्ति का वर्णन चरक संहिता के किस स्थान में मिलता है।

(क) सूत्र स्थान (ख) निदान स्थान (ग) चिकित्सा स्थान (घ) विमान स्थान

(540) तैरावृत्तगतिर्वायुरोज आदाय गच्छैति। यदा बस्तिं ..... मधुमेहः प्रवर्तते ?(च.सू.17/80)

(क) तदासाध्यो (ख) तदा कृच्छ्रो (ग) तदा याप्यो (घ) तदासाध्यो

(541) मधुमेह की उपेक्षा करने से शरीर के किस स्थान पर दारूण प्रमेहपिडिकाए उत्पन्न हो जाती है।

(क) मांसल प्रदेश में (ख) मर्म स्थानमें (ग) संधियों में (घ) उपर्युक्त सभी

(542) प्रमेहपिडका की संख्या 9 किसने बतलायी है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) भोज

(543)'कुलत्थिका' नामक प्रमेह पिडिका का वर्णन किस आचार्य ने किया हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) भोज

(544)'अरूंषिका' नामक प्रमेह पिडिका का वर्णन किस आचार्य ने किया हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) भोज

(545) पिडका नातिमहतीक्षिप्रपाका महारूजा।- प्रमेह पिडिका है।

(क) जालिनी (ख) सर्षपिका (ग) अजली (घ) विनता

(546) पृष्ठ और उदर में होने वाली प्रमेह पिडिका है।

(क) जालिनी (ख) सर्षपिका (ग) अजली (घ) विनता

(547) ‘रूजानिस्तोदबहुला’कौनसीप्रमेहपिडका का लक्षण है।

(क) जालिनी (ख) सर्षपिका (ग) अजली (घ) विनता

(548) ’विसर्पणी’ प्रमेहपिडका है।

(क) जालिनी (ख) सर्षपिका (ग) अजली (घ) विनता

(549) ’महती नीला’ प्रमेहपिडका है।

(क) जालिनी (ख) सर्षपिका (ग) अजली (घ) विनता

(550) ’कृच्छ्रसाध्य’ प्रमेहपिडका नहीं है।

(क) शराविका (ख) कच्छपिका (ग) जालिनी (घ) विनता

(551) चरकानुसार विद्रधि के कितने भेद होते है।

(क) 2 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 8

(552) सुश्रुतानुसार विद्रधि के कितने भेद होते है।

(क) द्विविध (ख) पंचविध (ग) षड्विध (घ) सप्तविध

(553) ‘जृम्भा’ कौनसी विद्रधि का लक्षण है ?

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) त्रिदोषज

(554) ‘वृश्चिक दंश सम वेदना’ किसकालक्षण है।

(क) पच्यमान विद्रधि (ख) पच्यमान शोफ (ग) आमवात (घ) उपरोक्त सभी

(555) 'तिल, माष, एवं कुलत्थके क्वाथ के समान स्राव निकलना'- कौनसी दोषज विद्रधि का लक्षण है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(556) अभ्यांतर विद्रधि का कौनसा स्थान चरक ने नहीं माना है।

(क) कुक्षि (ख)गुदा (ग) वंक्षण (घ) वृक्क

(557) ’हिक्का’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है।

(क) हृदय (ख)यकृत (ग) प्लीहा (घ) नाभि

(558) ’उच्छ्वासापरोध’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है।

(क) हृदय (ख) यकृत (ग) प्लीहा (घ) नाभि

(559) ’पृष्ठकटिग्रह’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है।

(क) कुक्षि (ख)वस्ति (ग) वंक्षण (घ) वृक्क

(560) ’सक्थिसाद’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है।

(क) कुक्षि (ख)वस्ति (ग) वंक्षण (घ) वृक्क

(561) ’वातनिरोध’ कौनसी अभ्यांतर विद्रधि का लक्षण है।

(क) कुक्षि (ख) वस्ति (ग) वंक्षण (घ) गुदा

(562) क्रियाशरीरे दोषाणां कतिधा गतयः ?

(क) दशः (ख) नवः (ग) षट् (घ) पंचदशः

(563) आशयापकर्ष दोषों की कितनी गतियॉ होतीहै।

(क) 05 (ख) 07 (ग) 10 (घ) 09

(564) चरकानुसार प्राकृत श्लेष्मा कहलाता हैं।

(क) बल (ख) ओज (ग) स्वास्थ्य (घ) अ, ब दोनों

(565) चरकानुसार दोषों की त्रिविध गतियों में सम्मिलित नहीं हैं।

(क) ऊर्ध्व गति (ख) अधः गति (ग) तिर्यक् गति (घ) विषम गति

(566) चरकानुसार दोषों की त्रिविध गतियों में सम्मिलित नहीं हैं।

(क) क्षय (ख) वृद्धि (ग) स्थान (घ) प्रसर

(567) सर्वा हि चेष्टा वातेन स प्राणः प्राणिनां स्मृतः। - सूत्र किस अध्याय में वर्णित है।

(क) वातकलाकलीय (ख) वातव्याधिचिकित्सा (ग) दीर्घजीवतीय (घ) कियन्तःशिरसीय

(568) चरक ने शोथ के भेद कितने माने है।

(क) 3 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7

(569) शोथ के पृथु, उन्नत और ग्रंथित भेद किसने माने है।

(क) चरक (ख) माधव (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(570) शोथ के उर्ध्वगत, मध्यगत और अधोगत भेद किसने माने है।

(क) चरक (ख) माधव (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(571) कौनसा शोथ दिवाबली होता है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(572) कौनसा शोथ ‘सर्षपकल्कावलिप्त’ होता है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(573) ‘पूर्व मध्यात् प्रशूयते’- कौनसा शोथ का लक्षणहै।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(574) ‘शोथो नक्तं प्रणश्यति’- कौनसा शोथ का लक्षणहै।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(575) ‘निपीडतो नोन्नमति श्वयथु’- कौनसा शोथ का लक्षणहै।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(576) चरक ने शोथ के उपद्रव कितने माने है।

(क) 9 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7

(577) चरकानुसार निम्नलिखित में कौन सा शोथ का उपद्रव नहीं है।

(क) छर्दि (ख) ज्वर (ग) श्वास (घ) दाह

(578) जो शोथ पुरूष अथवा स्त्री के गुह्य स्थान से उत्पन्न होकर सम्पूर्ण शरीर फैल जाये वह शोथ .....होता है।

(क) साध्य (ख) कष्टसाध्य (ग) याप्य (घ) असाध्य

(579) प्रकुपित कफ गले अन्तःप्रदेश में जाकर स्थिर हो जाये, शीघ्र ही शोथ उत्पन्न कर दे तो वह है ?

(क)गुल्म (ख) गलगण्ड (ग) गलग्रह (घ) गलशुण्डिका

(580) गलशुण्डिका में शोथ का स्थान होता है ?

(क) जिहृवा मूल (ख) जिहृवा अग्र (ग) काकल प्रदेश (घ) गल प्रदेश

(581) यस्य पित्तं प्रकुपितं त्वचि रक्तेऽवतिष्ठते - किसके लिए कहा गया है।

(क) विसर्प (ख) पिडका (ग) पिल्लु (घ) नीलिका

(582) यस्य श्लेष्मा प्रकुपितो गलबाह्योऽवतिष्ठते शनैः संजनयेच्छोफं - है।

(क) गलगण्ड (ख) गलग्रह (ग) रोहिणी (घ) गण्डमाला।

(583) तीनों दोष एक ही समय में एक स्थान प्रकुपित होकर जिहृवामूल में कौनसा भंयकर शोथ उत्पन्न करते है।

(क) गलगण्ड (ख) गलग्रह (ग) रोहिणी (घ) कर्णमूलशोथ

(584) उदररोगशोथ में दोष अधिष्ठान का स्थान होता है।

(क) आमाशय (ख) पक्वाशय (ग) त्वङ्मांसान्तर आश्रित (घ) महास्रोत्रस

(585) चरकानुसार ‘आनाह’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होता है

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)त्रिदोष

(586) चरकानुसार ‘कर्णमूलशोथ’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होताहै

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)त्रिदोष

(587) चरकानुसार ‘उपजिह्न्का शोथ’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होता है

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)त्रिदोष

(588) चरकानुसार ‘रोहिणी’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होता है

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)त्रिदोष

(589) चरकानुसार ‘शंखक शोथ’ किस दोष के प्रकुपित हाने से होता है

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)त्रिदोष

(590) चरक संहिता में शंखक शोथ का वर्णन कहॉ मिलता है।

(क) त्रिशोधीय अध्याय (ख) त्रिमर्मीय चिकित्साअध्याय (ग) त्रिमर्मीयसिद्धिअध्याय (घ) कोई नहीं

(591) चरक संहिता में शंखक रोग का वर्णन कहॉ मिलता है।

(क) त्रिशोधीय अध्याय (ख) त्रिमर्मीय चिकित्साअध्याय (ग) त्रिमर्मीयसिद्धिअध्याय (घ) कोई नहीं

(592) त्रिरात्रं परमं तस्य जन्तोः भवति जीवितम्। कुशलेन त्वनुक्रान्तः क्षिप्रं संपद्यते सुखी - किसके लिए कहा गया है।

(क) शंखक रोग (ख) रोहिणी (ग) रक्तज अधिमन्थ (घ) उर्पयुक्त सभी

(593) मेधा किस दोष का कर्म है।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ) कोई नहीं

(594) ’न हि सर्वविकाराणां नामतोऽस्ति धुर्वा स्थितिः’ का वर्णन कहॉ है।

(क) च.सू.अ.16 (ख) च.सू.अ.17 (ग) च.सू.अ.18 (घ) च.सू.अ.19

(595) त एवापरिसंख्येया ..... भवनि हि।

(क) भिद्यमाना (ख) छिद्यमाना (ग) विद्यमाना (घ) रूद्ररूपा

(595) चरकानुसार सामान्यज रोगों की संख्याहै।

(क) 40 (ख) 80 (ग) 48 (घ) 56

(596) चरकानुसार ‘ग्रहणीद्रोष’के भेद होते है।

(क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7

(597) चरकानुसार ‘प्लीह दोष’के भेद होते है।

(क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7

(598) ‘तृष्णा’के भेद होते है।

(क) 4 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7

(599) चरक ने ‘प्रतिश्याय’के भेद बतलाए है।

(क) 6 (ख) 5 (ग)4 (घ) 3

(600) चरक ने ‘अरोचक’के भेद बतलाए है।

(क) 5 (ख) 4 (ग) 6 (घ) 3

(600) चरक ने ‘उदावर्त’के भेद बतलाए है।

(क) 3 (ख) 4 (ग) 6 (घ) 8

(601) चरक ने अष्टौदरीय अध्याय में 5 भेद बाले कुल कितने रोग बताए है।

(क) 9 (ख) 10 (ग) 11 (घ) 12

(602) चरक ने अष्टौदरीय अध्याय में 6भेद बाले कुल कितने रोग बताए है।

(क) 2 (ख) 5 (ग) 6 (घ) 7

(603) चरकानुसार ज्वर के भेद है।

(क) 2 (ख) 5 (ग) 8 (घ) 7।

(604) चरक ने‘महागद’ की संज्ञा किसे दी है।

(क) उरूस्तंभ (ख) सन्यास (ग) अतत्वाभिनिवेश (घ) हलीमक

(605) चरक के मत से वह त्रिदोषज रोग जो मन व शरीर को अधिष्ठान बनाकर उत्पन्न होता है ?

(क) उरूस्तंभ (ख) सन्यास (ग) अतत्वाभिनिवेश (घ) अपस्मार

(606) चरक के मत से ‘आम और त्रिदोष समुत्थ’ रोग है ?

(क) उरूस्तंभ (ख) सन्यास (ग) महागद (घ) अजीर्ण

(607) दोषा एव हि सर्वेषां रोगाणामेककारणम्- किस आचार्य का कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(608) असात्मेन्द्रियार्थ संयोग, प्रज्ञापराध और परिणाम-चरकानुसार किन रोगों के कारण है।

(क) निज (ख) आगन्तुज (ग) दोनों (घ) कोई नहीं

(609) चरकानुसार पित्त का विशेष स्थान है।

(क) आमाशय (ख) पक्वाशय (ग) नाभि (घ) पक्वामाशयमध्य

(610) चरकानुसार कफ का विशेष स्थान है।

(क) आमाशय (ख) उरः प्रदेश (ग) ऊर्ध्व प्रदेश (घ) हृदय प्रदेश

(611) सुश्रुतानुसार कफ का विशेष स्थान है।

(क) आमाशय (ख) पक्वाशय (ग) उरः प्रदेश (घ) हृदय प्रदेश।

(612) चरक मतेन ‘रस’ किसका स्थान है

(क) वातस्थान (ख) पित्तस्थान (ग) कफस्थान (घ) ब, स दोनो

(613) चरक मतेन ‘आमाशय’ किसका स्थान है

(क) वातस्थान (ख) पित्तस्थान (ग) कफस्थान (घ) ब, स दोनो

(614) ’निम्नलिखित कौन सी व्याधि सामान्यज, नानात्मज दोनों में उल्लेखित है।

(क) उदावर्त (ख) उरूस्तंभ (ग) रक्तपित्त (घ) उर्पयुक्त सभी

(615) ’निम्नलिखित कौन सी व्याधि सामान्यज, नानात्मज दोनों में उल्लेखित नहीं है।

(क) हिक्का (ख) उदावर्त (ग) पाण्डु (घ) कामला

(616) ’तिमिर’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त

(617) ’त्वगवदरण’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त

(618) ’उरूस्तम्भ’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त

(619) ’मन्यास्तम्भ’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त

(620) ’हिक्का’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त

(621) ’विषाद’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) रक्त (घ)कोई नहीं

(622) हृदद्रव, तमःप्रवेश,शीताग्निता क्रमशः किसके नानात्मज विकारहै।

(क) वात, पित्त, कफ (ख) कफ, रक्त, पित्त (ग) कफ, वात, पित्त (घ) वात, पित्त, रक्त

(623) ’उदर्द’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त

(624) ’धमनीप्रतिचय’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) वात (ख) पित्त (ग) कफ (घ)रक्त

(625) 10 रक्तज नानात्मज विकार किसने मानेहै।

(क) शारर्ग्धर (ख) माधव (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(626) ’रक्तपित्त’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) रक्त (ख) पित्त (ग) दोनों (घ) कोई नहीं

(627) ’रक्तमण्डल’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) रक्त (ख) पित्त (ग) दोनों (घ) कोई नहीं

(628) ’रक्तकोठकिसका नानात्मज विकारहै।

(क) रक्त (ख) पित्त (ग) दोनों (घ)उपरोक्त कोई नहीं

(629) ’रक्तनेत्रत्वं’ किसका नानात्मज विकारहै।

(क) रक्त (ख) पित्त (ग) दोनों (घ)कोई नहीं

(630) चरक नेवात को कौनसी संज्ञा दीहै।

(क) अचिर्न्त्यवीर्य (ख) आशुकारी (ग) अव्यक्त (घ) अमूर्त

(631) ’अष्टौनिन्दतीय’ अध्याय चरकोक्त कौनसेचतुष्क में आता है।

(क) निर्देश (ख) कल्पना (ग) रोग (घ) योजना

(632) चरकानुसार अतिस्थूलता जन्य दोष होते है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8

(633) निम्न में से कौनसा रोग अतिकृशता के कारण होता है।

(क) गुल्म (ख) अर्श (ग) ग्रहणी (घ) उर्पयुक्त सभी

(634) अतिस्थूलव अतिकृश की चिकित्सा क्रमशःहै।

(क) कर्षण व वृंहण (ख) वृंहण व कर्षण (ग) लंघन व वृंहण (घ) वृंहण व लंघन

(635) अतिस्थूलता की चिकित्सा सिद्वांन्त है।

(क) गुरू आहार व संतर्पण (ख) लघु आहार व संतर्पण (ग) गुरू व अपतर्पण (घ) लघु व अवतर्पण

(636) अतिकृशता की चिकित्सा सिद्वांन्त है।

(क) गुरू आहार व संतर्पण (ख) लघु आहार व संतर्पण (ग) गुरू व अपतर्पण (घ) लघु व अवतर्पण

(637) स्थौल्यकार्श्ये कार्श्य समोपकरणौ हि तो। यद्युभौ व्याधिरागच्छेत् स्थूलमेवाति पीडयेत। -किसका कथन हैं।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) माधव

(638) ’काश्यमेव वरं स्थौल्याद् न हि स्थूलस्य भेषजम्’। - किसका कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) माधव

(639) वाग्भट्ट मतेन कस्यरोगस्य नौषधम् ?

(क) मधुमेह (ख) संयास (ग) स्थौल्य (घ) कार्श्य

(640) ‘स्फिक्, ग्रीवा व उदर शुष्कता’चरकानुसार किसका लक्षण है।

(क) मांस धातु क्षय (ख) मेद धातु क्षय (ग) अतिकार्श्य (घ) अ, स दोनों

(641) अष्टौनिन्दितीय अध्याय में वर्णित रोग है।

(क) दुष्ट रसज (ख) दुष्ट रक्तज (ग) दुष्ट मेदज (घ) दुष्ट मांसज

(642) चरक ने निम्न किसकी चिकित्सा में वृहत पंचमूल का प्रयोग शहद के साथ निर्देशित किया है।

(क) प्रतिश्याय (ख) अतिस्थौल्य (ग) अतिकार्श्य (घ) पित्ताश्मरी

(643) अतिस्थूलता की चिकित्सा में प्रयुक्त औषध नहीं है।

(क) तक्रारिष्ट (ख) यवामलक चूर्ण (ग) शिलाजीत (घ) रसायन, बाजीकरण

(644) यदा तु मनसि क्लन्ति कर्मात्मानः क्लमान्विताः। विषयेभ्यो निवर्तन्ते तदा ..... मानवः।।

(क) निद्रां (ख) स्वपिति (ग) जागरति (घ) स्वप्नः

(645) चरकानुसार ‘ज्ञान अज्ञान’ किस पर निर्भर है।

(क) निद्रा (ख) कफ (ग) पित्त (घ) अ, ब दोनो

(646) दिवास्वप्न के योग्य रोगी नहीं है।

(क) तृष्णा (ख) अतिसार (ग) शूल (घ) शोथ

(647) दिवास्वप्न के योग्य ऋतु है।

(क) ग्रीष्म (ख) वर्षा (ग) शिशिर (घ) प्रावृट्

(648) दिवास्वप्न निषेध नहीं है।

(क) मेदस्वी (ख) कण्ठरोगी (ग) दूषीविर्षात (घ) अतिसारी

(649) चरकानुसार ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर अन्य ऋतु में दिवास्वप्न से किसका प्रकोप होता है।

(क) कफ (ख) कफपित्त (ग) त्रिदोष (घ) वात

(650) सुश्रुतानुसार ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर अन्य ऋतु में दिवास्वप्न से किसका प्रकोप होता है।

(क) कफ (ख) कफपित्त (ग) त्रिदोष (घ) वात

(651) दिवास्वप्न जन्य विकार है।

(क) हलीमक (ख) गुरूगात्रता (ग) इन्द्रिय विकार (घ) उपर्युक्तसभी

(652) रात्रौ जागरण रूक्षं स्निग्धं प्रस्वपनं दिवा। अरूक्षं अनभिष्यन्दि .....।

(क) प्रजारण (ख) त्वासीनं प्रचलायितम् (ग) भुक्त्वा च दिवास्वप्नं (घ) सम निद्रा

(653) .....समुत्थे च स्थौल्यकार्श्ये विशेषतः।

(क) स्वप्नाहार (ख) रस निमित्तमेव (घ) आहार निद्रा ब्रह्मचर्य (ग) निद्रा

(654) चरक ने अतिनिद्रा की चिकित्सा में निम्न में किसका निर्देश किया है।

(क) शिरोविरेचन (ख) कायविरेचन (ग) रक्तमोक्षण (घ) उपर्युक्तसभी

(655) चरक निद्रानाश के कारण बताएॅ है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8

(656) चरक निद्रा के भेद माने है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 3

(657) सुश्रुत निद्रा का भेद नहीं माना है।

(क) वैष्णवी (ख) व्याध्यनुवर्तनी (ग) वैकारिकी (घ) तामसी

(658) भूधात्री निद्रा हैं -

(क) तमोभवा (ख) रात्रिस्वभावप्रभवा (ग) वैकारिकी (घ) आगन्तुकी

(659) कौनसी निद्रा व्याधि को निर्दिष्ट नहीं करती है।

(क) श्लेष्मसमुद्भवा (ख) मनःशरीरश्रमसम्भवा (ग) आगन्तुकी (घ) तमोभवा

(660) समसंहनन पुरूष का वर्णन किस आचार्य ने कियाहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(661) स्वस्थ पुरूष का वर्णन किस आचार्य ने कियाहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(662) दशविध निन्दित बालकों का वर्णन किस आचार्य ने कियाहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(663) 'स्थूल पर्वा' - किसका लक्षण है।

(क) अतिस्थूल (ख) अतिकृश (ग) दोनों (घ) कोई नहीं

(664) स्थूलता से मुक्त होने के उपाय है।

(क) प्रजागरण (ख) व्यायाम (ग) व्यवाय (घ) उपर्युक्त सभी

(665) रस निमित्तमेव स्थौल्यं कार्श्य च। - किस आचार्य का कथनहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(666) निद्रानाश की चिकित्सा है ?

(क) स्नान (ख) शाल्यन्न (ग) मद्य (घ) उपर्युक्तसभी

(667) निद्रानाश का हेतुनहीं है ?

(क) कार्य (ख) काल (ग) वय (घ) विकार

(668) सुश्रुत निद्रा के भेद माने है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 3

(669) वाग्भट्ट निद्रा के भेद माने है।

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 3

(670) स्वाभावात् निद्रा- का वर्णन किस आचार्य ने किया है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(671) चरक सूत्रस्थान अध्याय - 22 का नाम है।

(क) महारोगाध्याय (ख) अष्टौनिन्दतीय (ग) संतर्पणीय (घ) लंघन वृंहणीय

(672) लंघन, बृंहण, रूक्षण, स्तम्भन, स्वेदन, स्नेहन - कहलाते है।

(क) षट्कर्म (ख) षट्क्रिया (ग) षट्क्रियाकाल (घ) षड्विध उपक्रम

(673) ‘सर एवंस्थिर’ दोनों गुण कौनसे द्रव्यों में मिलतेहै।

(क) स्नेहन (ख) लंघन (ग) स्वेदन (घ) रूक्षण

(674) ‘स्निग्ध एवं रूक्ष’ दोनों गुण कौनसे द्रव्यों में मिलतेहै।

(क) स्नेहन (ख) लंघन (ग) स्वेदन (घ) रूक्षण

(675) ‘स्थूलपिच्छिलम्’गुण कौनसे द्रव्यों में मिलतेहै।

(क) बृंहण (ख) स्नेहन (ग) स्तम्भन (घ) रूक्षण

(676) ‘प्रायो मन्दं स्थिरं श्लक्षणं द्रव्यं .....उच्यते।

(क) बृंहणम् (ख) स्नेहनम् (ग) स्तम्भनं (घ) रूक्षणम्

(677) प्रायो मन्दं मृ दु च यद् द्रव्यं तत् ..... मतम्।

(क) बृंहणम् (ख) स्नेहनम् (ग) स्तम्भनं (घ) रूक्षणम्

(678) शीतं मन्दं मृदु श्लक्षणं रूक्षं सूक्ष्मं द्रवं स्थिरम्। - कौनसे द्रव्योंके गुण है।

(क) बृंहण (ख) स्नेहन (ग) स्तम्भन (घ) रूक्षण

(679) द्रवं सूक्ष्मं सरं स्निग्धं पिच्छिलम् गुरू शीतलम्। - कौनसे द्रव्योंके गुण है।

(क) बृंहण (ख) स्नेहन (ग) स्तम्भन (घ) रूक्षण

(680)चरक ने लंघन के भेद माने है।

(क) 2 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 3

(681) चरकोक्त लंघन के प्रकारों में द्रव्यरूप लंघन है -

(क) 7 (ख) 10 (ग) 5 (घ) 6

(682) वाग्भट्ट लंघन के भेद माने है।

(क) 2 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 3

(683) शमन किसका भेद है।

(क) चिकित्सा (ख) द्रव्य (ग) लंघन (घ) उपर्युक्तसभी

(684) शमन किसका पर्याय है।

(क) चिकित्सा (ख) द्रव्य (ग) लंघन (घ) उपर्युक्तसभी

(685) येषां मध्यबला रोगाः कफपित्त समुत्थिताः। - में लंघन का कौनसा प्रकार उपयुक्त है।

(क) संशोधन (ख) दीपन (ग) पाचन (घ) आतप सेवन

(686) चरक ने निम्न किस व्याधि में पाचन द्वारा लंघन का निर्देश किया है।

(क) हृदयरोग (ख) अतिसार (ग) विबंध (घ) उपर्युक्तसभी

(687) वातविकार रोगी में लंघन हेतु उपयुक्त ऋतु है।

(क) शिशिर (ख) ग्रीष्म (ग) हेमन्त (घ) बंसत

(688) नित्य स्त्रीमद्यसेवी में बृंहण हेतु उपयुक्त ऋतु है।

(क) शिशिर (ख) ग्रीष्म (ग) हेमन्त (घ) बंसत

(689) किस व्याधि से ग्रसित कार्श्य रोगी को क्रव्यादमांस का प्रयोग करना चाहिए।

(क) शोष (ख) अर्श (ग) ग्रहणी (घ) उपर्युक्तसभी

(690) ‘अभिष्यन्दी रोगी’में कौनसे उपक्रम का प्रयोग करना चाहिए।

(क) स्नेहन (ख) लंघन (ग) स्वेदन (घ) रूक्षण

(691) ‘क्षाराग्निदग्ध रोगी’में कौनसे उपक्रम का प्रयोग करना चाहिए।

(क) स्नेहन (ख) स्तंभन (ग) स्वेदन (घ) रूक्षण

(692) हनुसंग्रहःहृद्वर्चोनिग्रहश्च - किसके अतियोग का लक्षण हैं।

(क) लंघन (ख) स्तंभन (ग) बृंहण (घ) रूक्षण

(693) निम्न में से कौनसा द्रव्य रूक्षता कारक है।

(क) तक्र (ख) खली (ग) पिण्याक (घ) उपर्युक्तसभी

(694) संतर्पणजन्य रोग नहीं है।

(क) पाण्डु (ख) शोफ (ग)क्लैव्य (घ) प्रलाप

(695) अपतर्पणजन्य रोग नहीं है।

(क) ज्वर (ख) विण्मूत्रसंग्रह (ग) उन्माद (घ) हृदयव्यथा

(696) संतर्पण एंव अपतर्पण दोनों जन्य रोग है।

(क) ज्वर (ख) मूत्रकृच्छ्र (ग) अरोचक (घ) कुष्ठ

(697) संतर्पणजन्य की रोगों की चिकित्सा है।

(क) वमन (ख) विरेचन (ग) रक्तमोक्षण (घ) उपयुर्क्त सभी

(698) संतर्पणजन्य की रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त रत्न है।

(क) माणिक्य (ख) प्रवाल (ग) गोमेद (घ) पुखराज

(699) मधु + हरीतिकी किन रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त होती है।

(क) संतर्पणजन्य (ख) अपतर्पणजन्य (ग) दोनों (घ) सभी असत्य

(700) मद्यविकार नाशक खर्जूरादि मन्थ किन रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त होती है।

(क) संतर्पणजन्य (ख) अपतर्पणजन्य (ग) दोनों (घ) सभी असत्य

(701) त्र्यूषणादिमन्थ किन रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त होती है।

(क) संतर्पणजन्य (ख) अपतर्पणजन्य (ग) दोनों (घ) सभी असत्य

(702) व्योषद्य सत्तु किन रोगों की चिकित्सा में प्रयुक्त होती है।

(क) संतर्पणजन्य (ख) अपतर्पणजन्य (ग) दोनों (घ) सभी असत्य

(703) चरकानुसार 'सक्षौद्रश्चाभयाप्राशः' किसकी चिकित्सा है।

(क) संतर्पणजन्य रोग (ख) अपंतर्पणजन्य रोग (ग) अतिस्थौल्य (घ) अतिकार्श्य

(704) चरक ने संतर्पण के भेद माने है।

(क) 2 (ख) 10 (ग) 12 (घ) 3

(705) चिरक्षीणं रोगी का पोषण चरकमतेनहोता है .....।

(क) सद्य संतर्पण (ख) संतर्पणाभ्यास (ग) सद्यः बृंहण (घ) सत्वावजय

(706) चरकानुसार शर्करा, पिप्पलीचूर्ण, तैल, घृत, क्षौद्र और दुगुना सत्तु जल में घोलकर बनाया गया मन्थ होता है।

(क) वृष्य (क) बल्य (क) कार्श्यहर (क) स्थौल्यहर

(707) बलवर्णसुखायुषा किसका कार्य है।

(क) रूधिर (ख) ओज (ग) आहार (घ) अ, स दोनो

(708) प्राणियों के प्राण किसका अनुवर्तन करते है।

(क) रूधिर (ख) ओज (ग) आहार (घ) वायु

(709) निम्न में से रक्तज रोग है।

(क) तन्द्रा (ख) प्रमीलक (ग) उपकुश (घ) उर्पयुक्तसभी

(710) रक्तज रोगों का निदान किससे होता है।

(क) उपशय (ख) अनुपशय (ग) रूप (घ) पूर्वरूप

(711) शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष आदि उपक्रमों भी जो शान्त नहीं हो वेरोग कौनसे होते है।

(क) असाध्य (ख) दारूण (ग) धातुगत (घ) रक्तज

(712) रक्तज रोगों की चिकित्सा है।

(क) विरेचन (ख) उपवास (ग) दोनों (घ) बस्ति

(713) रक्तमोक्षण के पश्चात् किसकी रक्षा करनी चाहिए।

(क) रस की (ख) धातु की (ग) अग्निकी (घ) वायुकी

(714) 'रक्तपित्तहरी क्रिया' - किन रोगों में करनी चाहिए ? (च.सू.24/18)

(क) पित्तज रोग (ख) रक्तजरोग (ग) संतर्पणजरोग (घ) रक्तपित्त

(715) चरक ने मद के प्रकार माने है।

(क) 2 (ख) 4 (ग) 7 (घ) 3

(716) निम्न में से कौनसा एक मनोवह स्रोतस का रोग नहींहै।

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) संन्यास (घ) उपर्युक्त सभी

(717) मूर्च्छा कौनसे स्रोतस का रोग है।

(क) रसवह (ख) रक्तवह (ग) संज्ञावह (घ) मनोवह

(718) 'सम्प्रहार कलिप्रियम्' -कौनसे मद का लक्षण है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(719) जायते शाम्यति त्वाशु मदो मद्यमदाकृति। - कौनसे मद का लक्षण है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(720) ‘भिन्नवर्च’कौनसी मूर्च्छा का लक्षण है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(721) कौनसी मूर्च्छा में अपस्मार के लक्षण देखने को मिलते है।

(क) वातज (ख) पित्तज (ग) कफज (घ) सन्निपातज

(722) ’काष्ठीभूतो मृतोपमः’ किसका लक्षण है।

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) संन्यास (घ) अपस्मार हेतु

(723) दोषों का वेग शान्त हो जाने पर शान्त हो जाने वाली व्याधियॉ है।

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) दोनों (घ) संन्यास

(724) ’विधि शोणितीय’ अध्याय चरकोक्त किस सप्त चतुष्क में आता है।

(क) निर्देश (ख) कल्पना (ग) रोग (घ) योजना

(725) ’सद्यः फलाक्रिया निर्दिष्टः’ किसमें है।

(क) अत्वाभिनिवेश (ख) मूर्च्छा (ग) संन्यास (घ) अपस्मार

(726) ’कौम्भघृत’ निर्दिष्ट है।

(क) अत्वाभिनिवेश (ख) मूर्च्छा (ग) संन्यास (घ) अपस्मार

(727) ’शिलाजतु’ निर्दिष्ट है।

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) दोनों (घ) संन्यास

(728) कौनसा रोग बिना औषधि के ठीक नहीं हो सकता है।

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) दोनों (घ)संन्यास

(729) कौन सी अवस्था के लिए चिकित्सा परम आवश्यक है ?

(क) मद (ख) मूर्च्छा (ग) संन्यास (घ) अपस्मार

(730) चरक संहिता के किस अध्याय मे सम्भाषा परिषद नहीं हुई है।

(क) यज्जः पुरूषीयं (ख) आत्रेय भद्रकाप्यीय (ग) वातकलाकलीय (घ) अन्नपानविधि

(731) चरक संहिता के यज्जःपुरूषीय अध्याय निर्दिष्टसम्भाषा परिषद में प्रश्नकर्ता कौन थे।

(क) विदेह निमि (ख) आत्रेय (ग) अग्निवेश (घ) काशिपति वामक

(732) ’कालवाद’ के प्रवर्तक है।

(क) भारद्वाज (ख) भद्रकाप्य (ग) कांकायन (घ) भिक्षु आत्रेय

(733) मौदगल्य पारीक्ष किस मत के समर्थक थे।

(क) सत्ववाद (ख) आत्मवाद (ग) रसवाद (घ) षड्धातुवाद

(734) पुरूष छः धातुओं के समूह से उत्पन्न हुआ है यह दृष्टिकोण किसका है -

(क) भद्रकाप्य (ख) हिरण्याक्ष (ग) कांकायन (घ) भिक्षु आत्रेय

(735) मातृ-पितृवाद किससे सम्बन्धित है।

(क) शरलोमा (ख) कौशिक (ग) भरद्वाज (घ) भद्रकाप्य

(736) निम्न में से आहार का कौनसा प्रकार चरक ने नहीं माना है।

(क) पान (ख) अशन (ग)भोज्य (घ) भक्ष्य

(737) आहार में अन्न की मात्रा 1 कुडव किसने बतलायी है।

(क) चरक (ख) आत्रेय (ग) अग्निवेश (घ) चक्रपाणि

(738) मृत्स्य वसा में हिततम है।

(क) चुलुकी वसा (ख) चटक वसा (ग) पाकहंस वसा (घ) कुम्भीर वसा

(739) चरकानुसार मृग मांस वर्ग में अहिततम है ?

(क) ऐण मांस (ख) गोमांस (ग) आवि मांस (घ) अजा मांस

(740) शूक धान्यों में अपथ्यतम है।

(क) कोद्रव (ख) यवक (ग) यव (घ) प्रियंगु

(741) चरकानुसार फल वर्गमें अहिततम है।

(क) आम्र (ख) मृद्वीका (ग) ऑवला (घ) लकुच

(742) चरकानुसार फल वर्ग हिततम है।

(क) आम्र (ख) मृद्वीका (ग) ऑवला (घ) लकुच

(743) चरकानुसार कन्दो में प्रधानतम है।

(क) आलु (ख) आर्द्रक (ग) सूरण (घ) वाराही

(744) सुश्रुतानुसार कन्द वर्गमें प्रधानतम है।

(क) आलु (ख) आर्द्रक (ग) सूरण (घ) वाराही

(745) पत्रशाक में श्रेष्ठतम है।

(क) सर्षप (ख)पालक (ग) मूली (घ) जीवन्ती

(746) जलचर पक्षी वसा में हिततम है।

(क) चुलुकी वसा (ख) चटक वसा (ग) पाकहंस वसा (घ) कुम्भीर वसा

(747) चरकानुसार अग्रय भावों की संख्या है।

(क) 125 (ख) 152 (ग) 155 (घ) 160

(748) वाग्भट्टानुसार श्रेष्ठ भावों की संख्या है।

(क) 125 (ख) 152 (ग) 155 (घ) 160

(749) .....पथ्यानाम्।

(क) गोघृत (ख) क्षीर (ग) हरीतकी (घ) आमलकी

(750) .....सांग्राहिक रक्तपित्तप्रशमनानां।

(क) अनन्ता (ख) उत्पल (ग) कुमुद (घ) उपर्युक्त सभी

(751) एरण्डमूलं .....।

(क) वातहराणां (ख) वृष्य त्रिदोषहराणां (ग) वृष्य वातहराणां (घ) वृष्य सर्वदोषहराणां

(752) अनारोग्यकराणां .....।

(क) विषमासन (ख) विरूद्धवीर्यासन (ग) वेगसंधारण (घ) गुरू भोजन

(753) .....हृद्यानाम्।

(क) गोघृत (ख) क्षीर (ग) मधुर (घ) अम्ल

(754) राजयक्ष्मा .....।

(क) रोगाणाम् (ख) दीर्घरोगाणाम् (ग) रोगसमूहानाम् (घ) अनुषंगिणाम्

(755) जीवन देने में श्रेष्ठ है ?

(क) क्षीर (ख) आयुर्वेद (ग) जल (घ) वैद्यसमूह

(756) जलम् .....।

(क) आश्वासकराणां (ख) श्रमहराणां (ग) स्तम्भनीयानां (घ) बल्यानां

(757) .....पुष्टिकराणां।

(क) निर्वृतिः (ख) सर्वरसाभ्यासो (ग) कुक्कुटो (घ) व्यायाम

(758) वस्ति .....।

(क) वातहारणां (ख) व्याधिकराणां (ग) तंत्राणां (घ) अ एवं स दोनों

(759) .....सर्वापथ्यानाम् ।

(क) आविदुग्ध (ख) आयास (ग) विरू़़़़़़द्धाहार (घ) विषमासन

(760) छेदनीय, दीपनीय, अनुलोमन और वातकफ प्रशमन करने वाले द्रव्यों में श्रेष्ठ है।

(क) हींगुनिर्यास (ख) निःसंशयकराणां (ग) वैद्यसमूहानां (घ) साधनानां

(761) उदक् .....।

(क) आश्वासकराणां (ख) श्रमहराणां (ग) स्तम्भनीयानां (घ) बल्यानां

(762) 'वृष्य वातहराणाम्' है।

(क) एरण्ड पत्र (ख) एरण्ड मूल (ग) एरण्ड पंचांग (घ) उपर्युक्त सभी

(763) अन्नद्रव्य अरूचिकर भावों में श्रेष्ठ है।

(क) पराघातनम् (ख) तिन्दुक (ग) प्रमिताशन (घ) रजस्वलाभिगमन

(764) कुष्ठ .....।

(क) रोगाणाम् (ख) दीर्घरोगाणाम् (ग) रोगसमूहानाम् (घ) अनुषंगिणाम्

(765) चरक ने अग्रय प्रकरण में आमलकी को .....बताया है।

(क) वातहर (ख) दाहप्रशमन (ग) वयःस्थापन (घ) रसायन

(766) ‘निम्नलिखित में से कौन सी एक औषधि संग्रहणीय, दीपनीय और पाचनीय के रूप में नित्य सर्वाधिक उपयोगी है।

(क) मुस्ता (ख) कट्वंग (ग) शतुपुष्पा (घ) विल्ब

(767) कास, श्वास और हिक्का रोग में श्रेष्ठ औषधि कौन-सी है ?

(क) अनंतमूल (ख) पुष्करमूल (ग) दशमूल (घ) शटी

(768) चरक ने श्रेष्ठ बल्य बताया हैं।

(क) क्षीर (ख) बला (ग) घृत (घ) कुक्कुट

(769) एककाल भोजन .....।

(क) सुखपरिणाम कराणां (ख) कर्शनीयानाम् (ग) दौबर्ल्यकरणां (घ) अग्निसन्धुक्षणानां

(770) .....उद्धार्याणां।

(क) ग्रहणी (ख) आमदोष (ग) अजीर्ण (घ) आमविष

(771) .....विषघ्ननां।

(क) गोघृत (ख) शिरीष (ग) विडंग (घ) आमलकी

(772) श्रमघ्न द्रव्यों में श्रेष्ठ है

(क) सुरा (ख) क्षीर (ग) वस्ति (घ) सर्वरसाभ्यास

(773) आसव का सर्वप्रथम वर्णन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) आत्रेय (घ) वाग्भट्ट

(774) आसव का सर्वप्रथम परिभाषा दी है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) आत्रेय (घ) वाग्भट्ट

(775) आसव की योनियॉ है।

(क) 8 (ख) 9 (ग) 11 (घ) 6

(776) चरकानुसार आसव की संख्या है।

(क) 84 (ख) 90 (ग) 80 (घ) 9

(777) पुष्पासव की संख्या .....।

(क) 11 (ख) 10 (ग) 6 (घ) 4

(778) मूल आसव की संख्या .....।

(क) 11 (ख) 10 (ग) 84 (घ) 9

(779) चरकानुसार कितने प्रकार के त्वगासव है -

(क) 4 (ख) 11 (ग) 10 (घ) 26

(780) निम्न में से किसका त्वक् आसव नहीं होता है।

(क) तिल्वक (ख) लोध्र (ग) अर्जुन (घ) एलुआ

(781) निम्न में से किस द्रव्य का प्रयोग फल व सार दोनों आसवों मे होता है।

(क) खर्जूर (ख) धन्वन (ग) अर्जुन (घ) श्रृंगाटक

(782) 'पथ्यं पथोऽनपेतं यद्यच्चोक्तं मनसः प्रियम्' - किसने कहा है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि

(783) किसआचार्य ने पथ्य के साथ अपथ्य की भी परिभाषा दी है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) चक्रपाणि

(784) आसव नाम आसुत्वाद् आसवसंज्ञा। - किसने कहा है।

(क) चरक (ख) आत्रेय (ग) अग्निवेश (घ) चक्रपाणि

(785) आसुत्वात् सन्धानरूपत्वात् आसव। - किसने कहा है।

(क) चरक (ख) आत्रेय (ग) अग्निवेश (घ) चक्रपाणि

(786) यद पक्वकौषधाम्बुभ्यां सिद्धं मद्यं स आसवः। - किसने कहा है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) शारंर्ग्धर (घ) चक्रपाणि

(787) आसव और अरिष्ट में अन्तर सर्वप्रथम किसने बतलाया है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) शारंर्ग्धर (घ) चक्रपाणि

(788) चरक संहिता के किस अध्याय मे रस संख्या विनिश्चय संबंधी सम्भाषा परिषदहुई है।

(क) यज्जः पुरूषीयं (ख) आत्रेय भद्रकाप्यीय (ग) वातकलाकलीय (घ) अन्नपानविधि

(789) क्षारकी गणना रसों में किसने की है।

(क) वैदेह (ख) धामार्गव (ग) अ एवं ब दोनों (घ) उपर्युक्त कोई नही

(790) रस की संख्या 6 किसने मानी है।

(क) वार्योविद (ख) वाग्भट्ट (ग) पुर्नवसु आत्रेय (घ) उपर्युक्त सभी

(791) रस संख्या विषयक सम्भाषा परिषद में विदेह राज निमि ने कहा था रस होते है ?

(क) 5 (ख) 6 (ग) 7 (घ) 8

(792) ‘एक एव रस इत्युवाच’ - किसका कथन है।

(क) भद्रकाप्य (ख) शाकुन्तेय (ग) कुमारशिरा भरद्वाज (घ) हिरण्याक्ष

(793) छेदनीय, उपशमनीय और साधारण किसके भेद है ?

(क) रस (ख) दोष (ग) भेषज् (घ) आसव

(794) रस की संख्या 8 किसने मानी है ?

(क) वार्योविद (ख) निमि (ग) धामार्गव (घ) कांकांयन

(795) छेदनीय और उपशमनीय रसों को किसने माना है।

(क) कुमारशिराभारद्वाज (ख) हिरण्याक्ष मौद्गल्य पूर्णाक्ष (ग) शाकुन्तेय (घ) ब, स दानों

(796) किस आचार्य ने पंच महाभूतों के आधार पर रस 5 माने है।

(क) कुमारशिरा भारद्वाज (ख) हिरण्याक्ष (ग) शाकुन्तेय (घ) मौद्गल्य पूर्णाक्ष

(797) स पुनरूदकादनन्य। - रस को किसने माना है।

(क) भद्रकाप्य (ख) हिरण्याक्ष (ग) शाकुन्तेय (घ) मौद्गल्य पूर्णाक्ष

(798) रस की संख्या अपरिसंख्येयकिसने मानी है ?

(क) भद्रकाप्य (ख) वार्योविद (ग) कुमारशिरा भरद्वाज (घ) कांकायन

(799) रस की योनि हैं।

(क)जल (ख) रसेन्द्रिय (ग) द्रव्य (घ) कोई नहीं

(800) 'सर्व द्रव्यं पा×चभौतिकम अस्मिनर्न्थेः।'- किसने कहा है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(801) 'इह हि द्रव्यं प×चमहाभूतात्मकम्।'- किसनेकहा है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) काश्यप

(802) कर्म पन्चविंधमुक्तं वमनादि-किसने कहाहै।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(803) आचार्य चरकानुसार ‘खर’ गुण कौनसे महाभूत में होता है।

(क) पृथ्वी (ख) वायु (ग) आकाश (घ) अ, ब दोनों

(804) आचार्य चरकानुसार ‘गुरू’ गुण कौनसे महाभूत में होता है।

(क) पृथ्वी (ख) जल (ग) पृथ्वी एवं जल (घ) कोई नहीं

(805) ‘आग्नेय द्रव्यों’ में ‘खर’ गुण किस आचार्य ने माना है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर

(806) ‘वायव्यद्रव्यों’ ‘व्यवायी, विकाशि’ गुण अतिरिक्तकिस आचार्य ने बतलाए है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) शारंर्ग्धर

(807) सुश्रुत एवं वाग्भट्ट के अनुसार ‘आकाशीयद्रव्यों’ का गुण नहींहै।

(क) लघु (ख) सूक्ष्म (ग) मृदु (घ) श्लक्षण

(808) 'नानौषधिभूतं जगति किन्चिद् द्रव्यमुपलभ्यते' - संदर्भ मूलरूप से उद्धत है ?

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) भाव प्रकाश

(809) 'इत्थं च नानौषधभूतं जगति किं×चद द्रव्यमस्ति विविधार्थप्रयोगवशात्।' - संदर्भ मूलरूप से उद्धत है ?

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) भाव प्रकाश

(810) यदा कुर्वन्ति स .....।

(क) कर्म (ख) वीर्य (ग) कालः (घ) उपायः

(811) यथा कुर्वन्ति स .....।

(क) कर्म (ख) वीर्य (ग) कालः (घ) उपायः

(812) येनकुर्वन्ति तत् .....।

(क) कर्म (ख) वीर्य (ग) कालः (घ) उपायः

(813) यत्कुर्वन्ति तत् .....।

(क) कर्म (ख) वीर्य (ग) कालः (घ) उपायः

(814) रसों के संयोग भेद बतलाए गए है।

(क) 57 (ख) 67 (ग) 62 (घ) 63

(815) रसों के विकल्पभेद बतलाए गए है।

(क) 57 (ख) 67 (ग) 62 (घ) 63

(816) दो-दो, तीन-तीन, चार-चार, पॉच-पॉच एंव छः रस आपस में मिलकर क्रमशः द्रव्य बनाते है ?

(क) 15, 20, 15, 20, 25 (ख) 12, 18, 24, 30, 36 (ग) 30, 24, 18, 12, 6 (घ) 15, 20, 15, 6, 1

(817) रसों के संयोग व कल्पना भेदहै क्रमशः।

(क) 63, 57 (ख) 57, 63 (ग) 55, 62 (घ) 62, 57

(818) 3 रसों के संयोग से रस भेद।

(क) 15 (ख) 20 (ग) 6 (घ) 5

(819) शुष्क द्रव्य का जिहृवा से संयोग होने पर सर्वप्रथम अनुभूत होता है।

(क)रस (ख) अनुरस (ग) निपात (घ) विपाक

(820) रस का विपयर्य है।

(क) ऊषण (ख) अनुरस (ग) क्षार (घ) पटु

(821) ‘रसो नास्तीह सप्तमः’ - किस आचार्य का कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) विदैह निमि (घ)शारंर्ग्धर

(822) चरक संहिता के किस अध्याय मेंपरादि गुणों एवंउनके लक्षणों का निर्देश है।

(क) यज्जः पुरूषीय (ख) आत्रेय भद्रकाप्यीय (ग) इन्द्रियोपक्रमणीय (घ) अन्नपानविधि

(823) ‘चिकित्सीय सिद्धि के उपाय’ हैं।

(क) इन्द्रिय गुण (ख) गुर्वादि गुण (ग) परादि गुण (घ) आत्म गुण

(824) ‘चिकित्सीय गुण’ हैं।

(क) इन्द्रिय गुण (ख) गुर्वादि गुण (ग) परादि गुण (घ) आत्म गुण

(825) चरकानुसार संयोग, विभागएंव पृथकत्व के क्रमशः भेद है -

(क) 3, 3, 2 (ख) 3, 3, 4 (ग) 3, 3, 3 (घ) 3, 2, 3

(826) ‘वियोग’किसका भेद है।

(क) संयोग (ख) विभाग (ग) पृथकत्व (घ) परिमाण

(827) ‘वैलक्षण्य’किसका भेद है।

(क) संयोग (ख) विभाग (ग) पृथकत्व (घ) परिमाण

(828) शीलन किसका पर्याय है।

(क) संयोग (ख) विभाग (ग) संस्कार (घ) अभ्यास

(829) परादि गुणों की संख्या 7 किसने मानी है।

(क) न्याय दर्शन (ख) वैशेषिकदर्शन (ग) सांख्यदर्शन (घ) योगदर्शन

(830) कणाद ने परादि गुणों में किसकी गणना नहीं कीहै।

(क) युक्ति (ख) अभ्यास (ग) संस्कार (घ) उपर्युक्त सभी

(831) 'पवनपृथ्वी व्यतिरेकात्’ से किस रस का निर्माण होताहैं ? (च.सू.26/40)

(क) अम्ल (ख) लवण (ग) मधुर (घ) कषाय

(832) लवण रस का भौतिक संगठन है।

(क) पृथ्वी + जल (ख) जल + अग्नि (ग) पृथ्वी + अग्नि (घ) वायु + पृथ्वी

(833) गुरू, स्निग्ध व उष्ण गुण किस रस में उपस्थित होते है ?

(क) कटु (ख)तिक्त (ग) लवण (घ) अम्ल

(834) ’मनो बोधयति’ कौनसा रस है।

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) कषाय

(835) ’क्रिमीन् हिनस्ति’ किस रस का कर्म है।

(क) अम्ल (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(836) ’आहार योगी’ रस है।

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) कटु।

(837) ’हदयं तर्पयति’ रस है।

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) कटु

(838) ’हदयं पीडयति’ किस रस के अतिसेवन के कारणहोताहै।

(क) अम्ल (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(839) ’शोणितसंघात भिनत्ति’ रस है।

(क) अम्ल (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(840) ’विषघ्न’ रस है।

(क) लवण (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(841) ’विषं वर्धयति’ किस रस के अतिसेवन के कारणहोता है।

(क) लवण (ख) कटु (ग) तिक्त (घ)कषाय

(842) ’पुंस्त्वमुपहन्ति’ किस रस के अतिसेवन के कारण होता है।

(क) कटु (ख) लवण (ग)कषाय (घ) उपर्युक्त सभी

(843) ’रक्त दूषयति’ किस रस के अतिसेवन के कारण होताहै।

(क) अम्ल (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(844) ’गलगण्ड और गण्डमाला रोग’ किस रस के अतिसेवन के कारण होता है।

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) कषाय

(845) ’स्तन्यशोधन’ किस रस का कार्यहै।

(क) अम्ल (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(846) ’ज्वरघ्न’ किस रस का कार्यहै।

(क) अम्ल (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(847) ’संशमन’ किस रस का कार्यहै।

(क) अम्ल (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(848) तिक्तरस का कार्य है।

(क) विषघ्न (ख) कृमिघ्न (ग) ज्वरघ्न (घ) उपर्युक्त सभी

(849) कषायरस का कार्य है।

(क) शोषण (ख) रोपण (ग) पीडन (घ) उपर्युक्त सभी

(850) मधुररस का कार्य है।

(क) प्रीणन (ख) जीवन (ग) तर्पण (घ) उपर्युक्त सभी

(851) ’लेखन’ किस रस का कार्यहै।

(क) लवण (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(852) ’सर्वरसप्रत्यनीक भूतः’ रस है।

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) कटु

(853) ’भक्तं रोचयति’ रस है।

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) कटु

(854) ’रोचयत्याहारम्’ रस है।

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) लवण (घ) कटु

(855) दीपन, पाचन कर्म किस रस का कर्म है।

(क) मधुर, अम्ल (ख) अम्ल, लवण (ग) कटु, लवण (घ)तिक्त, लवण

(856) ‘ऊर्जयति’ किस रस का कर्म है।

(क) अम्ल (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(857) ‘रूक्षः शीतोऽलघुश्च’ गुण किस रस में उपस्थित होते है ?

(क) अम्ल (ख) मधुर (ग) लवण (घ) कषाय

(858) ‘लघु, उष्ण, स्निग्ध’ गुण किस रस में उपस्थित होते है ?

(क) अम्ल (ख) मधुर (ग) लवण (घ) कषाय

(859) चरक ने मध्यमगुरू किस रस को माना है।

(क) अम्ल (ख) लवण (ग) कषाय (घ) मधुर

(860) चरक ने उत्तम लघु किस रस को माना है।

(क) अम्ल (ख)लवण (ग) कटु (घ) तिक्त

(861) चरक ने उत्तम उष्ण किस रस को माना है।

(क) अम्ल (ख)लवण (ग) कटु (घ) तिक्त

(862) चरक ने अवर रूक्ष किस रस को माना है।

(क) अम्ल (ख) लवण (ग) कटु (घ) तिक्त

(863) चरक ने अवर स्निग्ध किस रस को माना है।

(क) अम्ल (ख)लवण (ग) कटु (घ) तिक्त

(864) चरक ने लवणरस का विपाक माना है।

(क) मधुर विपाक (ख) अम्लविपाक (ग) कटु विपाक (घ) कोई नहीं

(865) पित्तवर्धक, शुक्रनाश, सृष्टविडमूत्रल - कौनसे विपाक के गुणधर्म है।

(क) मधुरविपाक (ख) अम्लविपाक (ग) कटु विपाक (घ) उपर्युक्त सभी

(866) कौनसा विपाक ‘सृष्टविडमूत्रल’ होताहै।

(क) मधुर विपाक (ख) अम्लविपाक (ग) कटु विपाक (घ) अ, ब दोनों

(867) चरक मतानुसार कौनसा विपाक ‘शु्क्रलः’ होताहै।

(क) मधुर विपाक (ख) अम्लविपाक (ग) कटु विपाक (घ) अ, ब दोनों

(868) 'विपाकः कर्मनिष्ठया' - किसका कथन है।

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(869) चरकने वीर्य के भेद माने है।

(क) 2 (ख) 15 (ग) 8 (घ) अ, स दोनों

(870) सुश्रुत ने वीर्य का कौनसा भेद नहीं माना है ?

(क) गुरू, लघु (ख) विशद, पिच्छिल (ग) स्निग्ध, रूक्ष, (घ) मदु, तीक्ष्ण

(871) वीर्य का ज्ञान होता है।

(क) निपात (ख) अधिवास (ग) दोनोंसे (घ) कर्मनिष्ठासे

(872) ’विदाहच्चास्य कण्ठस्य’ किस रस का लक्षण है।

(क) अम्ल (ख)लवण (ग) कटु (घ) तिक्त

(873) ’स विदाहान्मुखस्य च’ किस रस का लक्षण है।

(क) अम्ल (ख)लवण (ग) कटु (घ) तिक्त

(874) ’विदहन्मुखनासाक्षिसंस्रावी’ किस रस का लक्षण है।

(क)अम्ल (ख)लवण (ग) कटु (घ) तिक्त

(875) ’वैशद्यस्तम्भजाडयैर्यो रसनं’ किस रस का लक्षण है।

(क) लवण (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(876) मरिच की तीक्ष्णता का ज्ञान होता है।

(क) निपात (ख) अधिवास (ग) दोनोंसे (घ) कर्मनिष्ठासे

(877) रसवीर्य विपाकानां सामान्यं यत्र लक्ष्यते। विशेषः कर्मणां चैव .....तस्य स स्मृतः।।

(क) पाचनः (ख) दीपनः (ग) प्रभावः (घ) वीर्यसंक्रान्ति

(878) ‘रसादि साम्ये यत् कर्म विशिष्टं तत् प्रभावजम्।‘- किसका कथन है ?

(क) चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) वाग्भट्ट

(879) चरकानुसार निम्न में से किसका नैसर्गिक बल सर्वाधिक है।

(क) रस (ख) विपाक (ग) वीर्य (घ) प्रभाव

(880) चरक ने वैरोधिक आहार केकितने घटक बताए हैं।

(क) 15 (ख) 18 (ग) 12 (घ) 5

(881) अम्ल पदार्थों के साथ दूध पीना हैं।

(क) संयोग विरूद्ध (ख) वीर्य विरूद्ध (ग) विधि विरूद्ध (घ) संस्कार विरूद्ध

(882) एरण्ड की लकड़ी की सींक पर भुना हुआ मोर का मांस हैं।

(क) संयोग विरूद्ध (ख) परिहार विरूद्ध (ग) उपचार विरूद्ध (घ) संस्कार विरूद्ध

(883) वाराह आदि का मांस सेवन कर फिर उष्ण वस्तुओं का सेवन करना हैं।

(क) संयोग विरूद्ध (ख) परिहार विरूद्ध (ग) उपचार विरूद्ध (घ) संस्कार विरूद्ध

(884) घृत आदि स्नेहों को पीकर शीतल आहार-औषध या जल पीना हैं।

(क) संयोग विरूद्ध (ख) परिहार विरूद्ध (ग) उपचार विरूद्ध (घ) संस्कार विरूद्ध

(885) गुड के साथ मकोय खाना हैं।

(क) संयोग विरूद्ध (ख) परिहार विरूद्ध (ग) उपचार विरूद्ध (घ) संस्कार विरूद्ध

(886) श्रम, व्यवाय, व्यायाम आदि में आसक्त व्यक्ति द्वारा वातवर्धक आहार का सेवन हैं।

(क) कर्म विरूद्ध (ख) प्रकृति विरूद्ध (ग) विधि विरूद्ध (घ) अवस्था विरूद्ध

(887) चरक ने दूध के साथ किसका निषेध नहीं बतलाया है।

(क) मूली (ख) मत्स्य (ग) सहिजन (घ) सूकर मांस

(888) सभी मछलियों को दूध के साथ खाना चाहिए किन्तु चिलिचिम मछली को छोडकर - किसका मत है।

(क) आत्रेय (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) भद्रकाप्य

(889) मछलियों को दूध के साथ खाना हैं।

(क) संयोग विरूद्ध (ख) वीर्य विरूद्ध (ग) विधि विरूद्ध (घ) संस्कार विरूद्ध

(890) चरकोक्त 'अर्जक, सुमुख और सुरसा' किसके भेद है ?

(क) तुलसी (ख) त्रिवृत्त (ग) शतावरी (घ) दूर्वा

(891) 'तुलसी' शब्द सर्वप्रथममूलरूप से किस ग्रन्थ में उद्धत है ?

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत सिंहता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) भाव प्रकाश

(892) सीधु .....।

(क) जर्जरीकरोति (ख) वधमति (ग) ग्लयपति (घ)माचिनोति

(893) मधु.....।

(क) सन्दधीति (ख) पाचयति (ग) ग्लयपति (घ) स्नेहयति

(894) प्रायः सभी तिक्तद्रव्य वातल और वृष्य होते है .....को छोडकर।

(क) निम्ब (ख) पटोलपत्र (ग) पिप्पली (घ) बृहती

(895) शोफं जनयति ?

(क) पयः (ख) घृत (ग) दधि (घ) तक्र

(896) प्रायः सभी कटु द्रव्य वातल और अवृष्य होते है .....को छोडकर।

(क) चित्रक, मरिच (ख) वेताग्र, पटोलपत्र (ग) पिप्पली, शुण्ठी (घ) दाडिम

(897) द्राक्षासव ..... ।

(क) दीपयति (ख) पाचयति (ग) बृंहयति (घ) कर्षयति

(898) क्षार का स्वभाविक कर्म है।

(क) पाचन (ख) दहन (ग) क्षारण (घ) ग्लपयन

(899) निम्न में से कौन मधुर रस वाला होने पर भी कफवर्धक नहींहै।

(क) द्राक्षा (ख) मधु (ग) एरण्ड (घ) परूषक

(900) चरकने आहार द्रव्यों के कितने वर्ग बताये है।

(क) 12 (ख) 7 (ग) 6 (घ) 10

(901) सुश्रुतने आहार द्रव्यों के कितने महावर्ग बताये है।

(क) 2 (ख) 7 (ग) 5 (घ) 3

(902) ’चरक संहिता’ में मधु का वर्णन कौनसे वर्ग में मिलता है।

(क) मधु वर्ग (ख) इक्षु वर्ग (ग) कृतान्न वर्ग (घ) आहारयोगीवर्ग

(903) 'वैदल वर्ग' का वर्णन कौनसे ग्रन्थ में है।

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) भाव प्रकाश

(904) 'सर्वानुपान वर्ग' का वर्णन कौनसे ग्रन्थ में है।

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) अष्टांग हृदय

(905) 'हरित वर्ग' का वर्णन कौनसे ग्रन्थ में है।

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) अष्टांग हृदय

(906) 'औषध वर्ग' का वर्णन कौनसे ग्रन्थ में है।

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) अष्टांग हृदय

(907) 'मूत्र वर्ग' का वर्णन कौनसे ग्रन्थ में ंनही है।

(क) चरक संहिता (ख) सुश्रुत संहता (ग) अष्टांग संग्रह (घ) अष्टांग हृदय

(908)'बहुवातशकृत कारक' धान्यहै।

(क) गोधूम (ख) यव (ग) गवेधूक (घ) षष्टिक धान्य

(909) ‘वातहर’ शिम्बी धान्य है ?

(क) कलाय (ख) माष (ग) राजमाष (घ) अरहर

(910) ‘ज्वर और रक्तपित्त’ में प्रशस्तधान्य है ?

(क) मूद्ग (ख) माष (ग) मोठ (घ) मसूर

(911) चरकमतानुसार कास, हिक्का, श्वास और अर्श के लिए हितकर द्रव्यहै।

(क) कुलत्थ (ख) काकाण्डोल (ग) श्यामाक (घ) उडद

(912) आचार्य चरक ने मांसवर्ग में कितने प्रकार की योनियॉ बतलाई है।

(क) 2 (ख) 6 (ग) 5 (घ) 8

(913) आचार्य चरक ने ‘चरणायुधा या कुक्कुट’ को कौनसे योनि वाले मांसवर्ग में रखाहै।

(क) प्रसह (ख) प्रदुत (ग) जांगल (घ) विष्किर

(913) आचार्य चरक ने ‘गवय या नीलगाय’ को कौनसे योनि वाले मांसवर्ग में रखाहै।

(क) प्रसह (ख) आनूप (ग) जांगल (घ) भूशय

(914) चरक ने शुक्ति और श्ांखक का वर्णन किस वर्ग में कियाहै।

(क) सुधा वर्ग (ख) सिकता वर्ग (ग) कृतान्न वर्ग (घ) मांसवर्ग

(915) आचार्य चरक ने ‘कपोत और पारावत’ को कौनसे योनि वाले मांसवर्ग में रखाहै।

(क) प्रसह (ख) प्रदुत (ग) जांगल (घ) विष्किर

(916) निम्न में से किस मांसवर्ग का मांस ’लघु’ नहीं होता है।

(क) प्रसह (ख) प्रदुत (ग) जांगल (घ) विष्किर

(917) निम्न में से किसका मासं ‘बृंहण’ होता है।

(क) अजमांस (ख) चरणायुधा (ग) मत्स्य (घ) उपर्युक्त सभी

(918) निम्न में से किसका मासं ‘मेधास्मृतिकरः पथ्यः शोषघ्न’ होता है।

(क) ऐण मांस (ख) मयूर मांस (ग) कपोत मांस (घ) कूर्म मांस

(919) शरीरबंहणे नान्यत् खाद्यं मांसाद्विशिष्यते - किस आचार्य का कथन है।

(क)चरक (ख) सुश्रुत (ग) वाग्भट्ट (घ) भाव प्रकाश

(920) सक्षारं पक्वकूष्माण्डं मधुराम्लं तथा लघु। सृष्टमूत्रपुरीष च.....। (च.सू.27/113)

(क) सर्वदोषनिवर्हणम् (ख) वातकफहरं (ग) त्रिदोषघ्नः (घ) वातपहा

(921) चरक ने फलवर्ग का आरम्भ किससे किया है।

(क) खर्जूर (ख) मृद्विका (ग) द्राक्षा (घ) दाडिम

(922) सुश्रुत ने फलवर्ग का आरम्भ किससे किया है।

(क) खर्जूर (ख) मृद्विका (ग) द्राक्षा (घ) दाडिम

(923) चरकमतानुसार ‘टंक’ किसका पर्याय है।

(क) नाशपाती (ख) सेव (ग) फल्गु (घ) केला

(924) चरकमतानुसार ‘मोचा’ किसका पर्याय है।

(क) नाशपाती (ख) सेव (ग) फल्गु (घ) केला

(925) कच्चा बिल्व होता है।

(क) उष्णवीर्य (ख) कफवातजितम् (ग) दीपन (घ) उपर्युक्त सभी

(926) रसासृङमांसमेदोविकार नाशकहै।

(क) गुड (ख) हरीतकी (ग)विभीतक (घ) आमलकी

(927) चरकमतानुसार ‘लवलीफल’ होता है।

(क) वातलं (ख) कफवातघ्नः (ग) कफपित्तहर (घ) त्रिदोषघ्नं

(928) ‘सर्वान् रसान्लवणवर्जितान्’ किसके लिए कहा गयाहै।

(क) आमलक (ख) हरीतकी (ग) रसोन (घ) उपर्युक्त सभी

(929) चरकमतानुसार ‘विश्वभेषज’ किसका पर्याय है।

(क) आर्द्रक (ख) हरीतकी (ग) रसोन (घ) गुडूची

(930) क्रिमिकुष्ठकिलासघ्नो वातघ्नो गुल्मनाशनः - किसके संदर्भ में कहा गया है।

(क) आरग्वध (ख) यवक्षार (ग) लशुन (घ) पलाण्डु

(931) तीक्ष्ण मद्यहै।

(क) सुरा (ख) सीधु (ग) सौवीरक (घ) सुरासव

(932) सात्विक विधि से मद्यपान का वर्णन किस आचार्य ने किया है।

(क)चरक (ख) सुश्रुत (ग) काश्यप (घ) भाव प्रकाश

(933) ‘मधूलिका’ होती है।

(क) कफशामक (ख) कफवर्धक (ग) कफघ्न (घ) उपर्युक्तसभी।

(934) चरकोक्त अंतरिक्ष जल के गुण है।

(क) 15 (ख) 9 (ग) 6 (घ) 5

(935) अंतरिक्ष जल के ’पाण्डुर भूमि’ पर गिरने पर किस रस की उत्पत्ति होगी।

(क) मधुर (ख) लवण (ग) तिक्त (घ) कषाय

(936) अंतरिक्ष जल के ’कपिल भूमि’ पर गिरने परकिस रस की उत्पत्ति होगी।

(क) अम्ल (ख) लवण (ग) तिक्त (घ) क्षार

(937) कौनसी ऋतु में बरसने वाला जल ‘कषाय मधुररस और रूक्ष गुण’वाला होता है।

(क) हेमन्त (ख) बसन्त (ग) ग्रीष्म (घ) बर्षा

(938) ’पथ्यास्ता निर्मलोदकाः।’ - यह गुण कौनसी नदियों के जल में मिलता है।

(क) हिमवत्प्रभवाः (ख) मलयप्रभवाः (ग) पूर्वसमुद्रगा (घ) पश्चिमाभिमुखाः

(939) चरकानुसार शिरोरोग, हृदयरोग, कुष्ठ, श्लीपदजनक। - यह गुण कौनसी नदियों के जल में मिलता है।

(क) पारियात्रप्रभवाः (ख) सह्यप्रभवाः (ग) विन्ध्यप्रभवा (घ) उपर्युक्त सभी

(940) निम्नलिखित त्रिदोषक प्रकोपक नहीं है।

(क) कुसुम्भ तैल (ख) सामुद्र जल (ग) प्रज्ञापराध (घ) मिथ्या आहार विहार

(941) चरकोक्त गोदुग्ध के गुण है।

(क) 15 (ख) 9 (ग) 6 (घ) 10

(942) प्रवरं जीवनीयानाम् .....उक्तंरसायनम्।(च.सू.27/218)

(क) क्षीर (ख) सर्पि (ग) मधु (घ) शिवा

(943) चरकानुसार किसका दुग्ध ‘शाखा वातहरं’ होता है।

(क) हस्ति (ख) उष्ट्र (ग) माहिषी (घ) एकशफ

(944) जीवनं वृहणं सात्म्यं स्नेहनं मानुषं पयः। नावनं .....च तर्पणं चाक्षिशूलिनाम्।।

(क) पीनसे (ख) रक्तपित्ते (ग) शिरशूले (घ) अर्दिते

(945) चरकानुसार अत्यग्नि नाशक है।

(क) गोमांस (ख) माहिषीदुग्ध (ग) आविमांस (घ) अ, ब दोनों

(946) त्रिदोषक प्रकोपक होता है।

(क) मन्दक (ख) पीयूष (ग) मोरट (घ) किलाट

(947) चरकमतानुसार ‘योनिकर्णशिरःशूल नाशक’ घृत है।

(क) पुराण घृत (ख) प्रपुराण (ग) जीर्णघृत (घ) कौम्भघृत

(948) प्रभूतक्रिमिमज्जासृड्मेदोमांसकरो है।

(क) गुड (ख) हरीतकी (ग) विभीतक (घ) आमलकी

(949) ’घृत वर्ण’ का मधु किससे प्राप्त होता है।

(क) माक्षिक (ख) क्षौद्र (ग) भ्रामर (घ) पौत्तिक

(950) ’कपिल वर्ण’ मधु होता है।

(क) माक्षिक (ख) क्षौद्र (ग) भ्रामर (घ) पौत्तिक

(951) मधु का रस होता है।

(क) मधुर (ख) कषाय (ग) मधुर, कषाय (घ) मधुर, लवण

(952) चरक ने किसे योगवाहि नहीं कहा है।

(क) पिप्पली (ख) मधु (ग) घृत (घ) वायु

(953) नातः कष्टतमं किंचित .....त्तद्धि मानवम्। उपक्रम विरोधित्वात् सद्योहन्याद्यथाविषम्। - किसके संदर्भ में कहा है।

(क) दूषी विष (ख) मूढगर्भ (ग) अजीर्ण (घ) मध्वाम

(954) कौनसी जाति कामधु ‘गुरू’होता है।

(क) माक्षिक (ख) क्षौद्र (ग) भ्रामर (घ) पौत्तिक

(955) निम्नलिखित कौनसी अन्न कल्पना ’ग्राहि’ है।

(क) पेया (ख)विलेपी (ग) मण्ड (घ) वेशवार

(956) वाग्भट्टानुसार निम्नलिखित कौनसी अन्न कल्पना ’सबसे लघुतम’ है।

(क) पेया (ख)विलेपी (ग) मण्ड (घ) यवागू

(957) निम्नलिखित कौनसी अन्न कल्पना ‘प्राणधारण’ है।

(क)पेया (ख)विलेपी (ग) मण्ड (घ) वेशवार

(958) निम्नलिखित कौनसी अन्न कल्पना ‘दाहमूर्च्छानिवारण’ है।

(क) लाजपेया (ख)वेशवार (ग) मण्ड (घ) लाजमण्ड

(959) चरक ने ‘रागषाडव’ का वर्णन किस वर्ग में किया है।

(क) हरित वर्ग (ख) कृतान्न वर्ग (ग) आहारयोनि वर्ग (घ) कोई नहीं

(960) ..... संयोगसंस्करात् सर्वरोगापहं मतम्।- चरक ने किसके संदर्भ में कहा है।

(क) तैलं (ख) घृत (ग) पयः (घ) लवणं

(961) निम्नलिखित में से कौनसा तैल ‘सर्वदोषप्रकोपण’है।

(क) कुसुम्भ तैल (ख) सर्षप तैल (ग) एरण्ड तैल (घ) तिल तैल

(962) सभी तैलों का अनुरस होता है।

(क) मधुर (ख) लवण (ग) तिक्त (घ) कषाय

(963) चरक के मत से शुण्ठीका विपाक होता है।

(क) मधुर (ख) अम्ल (ग) कटु (घ) उपरोक्त कोई नहीं

(964) आर्द्र पिप्पली का रस होता है।

(क) मधुर (ख) कटु (ग) तिक्त (घ) कषाय

(965) कौनसी पिप्पली ‘बृष्य’ होती है।

(क) आर्द्र (ख) शुष्क (ग) दोनों (घ) उपरोक्त कोई नहीं

(966) कौनसा लवण शीत वीर्य होता है।

(क) सैन्धव (ख) सामुद्र (ग) सौर्वचल (घ) विड

(967) रोचनं दीपनं वृष्यं चक्षुष्यं अविदाहि। त्रिदोषघ्न, समधुर। - कौंनसा लवण होता है।

(क) सैन्घव (ख) सामुद्र (ग) सौर्वचल (घ) विड

(968) उर्ध्व चाधश्च वातानामानुलोम्यकरं लवण है।

(क) विड (ख) सामुद्र (ग) सौर्वचल (घ) औद्भिद्

(969) कौनसा क्षार अर्शनाशक होता है।

(क) यवक्षार (ख) सज्जीक्षार (ग) टंकण (घ) उपर्युक्त सभी

(970) चरक ने अन्नपान परीक्षणीय विषय बताएॅ है।

(क) 8 (ख) 9 (ग) 6 (घ) 10

(971) कौनसे शरीरायव का मांस सर्वाधिक गुरू होताहै।

(क) सक्थि (ख) स्कन्ध (ग) क्रोड (घ) शिर

(972) कौनसे शरीरायव का मांस सर्वाधिक गुरू होताहै।

(क) वृषण (ख) वृक्क (ग) यकृत (घ) मध्य देह

(973) भोज्य, भक्ष्य, चर्व्य, लेह्य, चोष्ट और पेय - आहार के 6 भेद किसने माने है।

(क) चरक, सुश्रुत (ख) भाव प्रकाश, शार्रग्धर (ग) चरक, वाग्भट्ट (घ) काश्यप, शार्रग्धर

(974) ’गुल्म’ कौनसा धातु प्रदोषज विकार है।

(क) रस प्रदोषज (ख) रक्त प्रदोषज (ग) मांस प्रदोषज (घ) मज्जा प्रदोषज

(975) ’ग्रन्थि’ कौनसा धातु प्रदोषज विकार है।

(क) रस प्रदोषज (ख) रक्त प्रदोषज (ग) मांस प्रदोषज (घ) उपधातुप्रदोषज

(976) ’मूर्च्छा’ कौनसा धातु प्रदोषज विकार है।

(क) रस प्रदोषज (ख) रक्त प्रदोषज (ग) मांस प्रदोषज (घ) मज्जा प्रदोषज

(977) ’अलजी’ कौनसा धातु प्रदोषज विकार है।

(क) मेद प्रदोषज (ख) रक्त प्रदोषज (ग) मांस प्रदोषज (घ) मज्जा प्रदोषज

(978) ’क्लैव्य’ कौनसा धातु प्रदोषज विकार है।

(क) रस प्रदोषज (ख) रक्त प्रदोषज (ग) शु्क्र प्रदोषज (घ) रस, शु्क्र प्रदोषज

(979) ’पाण्डुत्व’ कौनसा धातु प्रदोषज विकार है।

(क) रस प्रदोषज (ख) रक्त प्रदोषज (ग) मांस प्रदोषज (घ) मज्जा प्रदोषज

(980) ’गर्भपात व गर्भस्राव’ कौनसा धातु प्रदोषज विकार है।

(क) आर्तव प्रदोषज (ख) रक्त प्रदोषज (ग) शु्क्र प्रदोषज (घ) शु्क्रार्तव प्रदोषज

(981) रस धातुप्रदोषज विकारों की चिकित्सा है।

(क) लंघन (ख) लंघन पाचन (ग) दोषावसेचन (घ) उर्पयुक्त सभी

(982) ’पंचकर्माणि भेषजम्’ किस धातुप्रदोषज विकार की चिकित्सा में निर्देशित है।

(क) मांस (ख) मेद (ग) अस्थि (घ) मज्जा

(983) व्यवाय, व्यायाम, यथाकाल संशोधन। - किस धातुप्रदोषज विकार की चिकित्सा में निर्देशित है।

(क) अस्थि (ख) मज्जा (ग) शु्क्र प्रदोषज (घ) मज्जा, शु्क्र प्रदोषज

(984) ’संशोधन, शस्त्र, अग्नि, क्षारकर्म।’ - किस धातुप्रदोषज विकार की चिकित्सा में निर्देशित हैं।

(क) मांस प्रदोषज (ख) मेद प्रदोषज (ग) अस्थि प्रदोषज (घ) उपधातु प्रदोषज

(985) चरक ने दोषों के कोष्ठ से शाखा में गमन के कितने कारण बताए है।

(क) 3 (ख) 4 (ग) 5 (घ) इनमें से कोई नहीं

(986) चरक ने दोषों के शाखा से कोष्ठ में गमन का कौनसा कारण नहीं बताया है।

(क) वृद्धि (ख) विष्यन्दन (ग) व्यायाम (घ) वायुनिग्रह

(987) श्रुत बुद्धिः स्मृतिः दाक्ष्यं धृतिः हितनिषेवणम्। - किसके गुण है ?

(क) आचार्य के (ख) शिष्य के (ग) परीक्षक के (घ) प्राणाभिसर के

(988) चरकोक्त दश प्राणायतन में शामिल नहीं है।

(क) हृदय (ख) वस्ति (ग) कण्ठ (घ) फुफ्फुस

(989) चरकमतानुसार ‘कुलीन’ किसकागुण है ?

(क) प्राणाभिसर वैद्य का (ख) धात्री का (ग) परीक्षक का (घ) रोगाभिसर वैद्य का

(990) ‘अर्थ’किसका पर्यायहै।

(क) हृदय (ख) मन (ग) आत्मा (घ) धन

(991) 'आगारकर्णिका'की तुलना किससे की गयी है।

(क) हृदय (ख) मन (ग) आत्मा (घ) प्राणायतन

(992) ..... हर्षणानां।

(क) तत्वावबोधो (ख) इन्द्रियजयो (ग) विद्या (घ) अंहिसा

(993) ‘चेतनानुवृत्ति’किसका पर्यायहै।

(क) हृदय (ख) मन (ग) आत्मा (घ) आयु

(994) हित आयु एवं अहित आयु के लक्षण, सुखायु एवं दुःखायु के लक्षणों का विस्तृत वर्णन कहॉ मिलता है ?

(क) चरक सूत्रस्थान1 (ख) चरक सूत्रस्थान30 (ग) चरक इन्द्रियस्थान (घ) चरक शारीरस्थान

(995) निरोध किसका पर्याय है।

(क) मोक्ष (ख) मृत्यु (ग) आत्मा (घ) मन

(996) आयुर्वेद के नित्य या शाश्वत होने का कारण है।

(क) अनादित्वात् (ख) स्वभावसंसिद्ध लक्षणत्वात् (ग) भावस्वभाव नित्यात्व (घ) उर्पयुक्त सभी

(997) चरक ने एक वैद्य को दूसरे वैद्य की परीक्षा करने के लिए कितने प्रश्न पूछने का निर्देश दिया है।

(क) 8 (ख) 9 (ग) 15 (घ) 18

(998) वैद्य परीक्षा विषयक प्रश्न नहीं है।

(क) तंत्र (ख) स्थान (ग) सूत्र (घ) ज्ञान

(999) ’आश्रय स्थान’ कहा जाता है।

(क) सूत्र स्थान (ख) शारीर स्थान (ग) कल्प स्थान (घ) चिकित्सा स्थान

(1000) आयुर्वेद तंत्र का 'शुभ शिर' है।

(क) सूत्र स्थान (ख) शारीर स्थान (ग) कल्प स्थान (घ) चिकित्सा स्थान
उत्तरमाला
1. क 21. ग 41. ख 61. क 81. ग
2. ग 22. क 42. क 62. घ 82. घ
3. घ 23. क 43. ग 63. ग 83. ग
4. घ 24. ग 44. क 64. घ 84. क
5. क 25. घ 45. ख 65. ख 85. ख
6. ग 26. क 46. घ 66. ग 86. ख
7. क 27. ख 47. क 67. घ 87. क
8. क 28. ग 48. ख 68. ग 88. ग
9. क 29. ख 49. ग 69. घ 89. घ
10. ग 30. क 50. ख 70. घ 90. ग
11. ग 31. घ 51. ग 71. ग 91. ख
12. क 32. ग 52. क 72. ग 92. क
13. ख 33. ग 53. क 73. क 93. ख
14. क 34. क 54. ख 74. ख 94. ग
15. ग 35. क 55. घ 75. ख 95. घ
16. क 36. क 56. ख 76. ग 96. घ
17. ग 37. घ 57. ख 77. ग 97. क
18. क 38. क 58. क 78. घ 98. घ
19. घ 39. घ 59. ग 79. क 99. ख
20. घ 40. क 60. घ 80. क 100. क
101. घ 121. ख 141. ख 161. ग 181. ग
102. क 122. ग 142. ख 162. घ 182. ग
103. घ 123. ग 143. ख 163. क 183. घ
104. क 124. घ 144. क 164. ख 184. ख
105. ग 125. ख 145. क 165. ग 185. ग
106. ख 126. क 146. घ 166. घ 186. ग
107. घ 127. ग 147. ख 167. घ 187. ग
108. ख 128. घ 148. ख 168. ख 188. ग
109. घ 129. ग 149. ख 169. ख 189. ग
110. क 130. ख 150. ख 170. ग 190. ख
111. क 131. घ 151. घ 171. ख 191. क
112. क 132. घ 152. घ 172. घ 192. क
113. क 133. ग 153. ग 173. ग 193. ग
114. घ 134. ग 154. घ 174. ख 194. क
115. ग 135. ग 155. ख 175. क 195. ग
116. ख 136. ख 156. क 176. ख 196. ख
117. क 137. घ 157. घ 177. ख 197. ख
118. घ 138. ख 158. ख 178. ग 198. घ
119. ग 139. ग 159. ग 179. क 199. घ
120. घ 140. क 160. क 180. ख 200. ग
201. क 221. क 241. क 261. घ 281. क
202. ग 222. ग 242. ख 262. ग 282. ख
203. घ 223. घ 243. ग 263. ख 283. घ
204. ग 224. घ 244. घ 264. घ 284. क
205. ग 225. ख 245. ख 265. ख 285. ग
206. घ 226. ग 246. ग 266. ग 286. घ
207. घ 227. ख 247. घ 267. ग 287. ख
208. ख 228. घ 248. क 268. घ 288. क
209. ग 229. क 249. ख 269. ख 289. ख
210. क 230. घ 250. ख 270. क 290. क
211. ख 231. क 251. घ 271. क 291. ख
212. ग 232. ग 252. क 272. ग 292. ग
213. घ 233. घ 253. क 273. क 293. ग
214. ख 234. ग 254. ग 274. घ 294. ग
215. ख 235. क 255. घ 275. ग 295. ग
216. घ 236. क 256. ग 276. ग 296. घ
217. ग 237. ग 257. घ 277. ग 297. क
218. ग 238. क 258. क 278. ख 298. ग
219. ख 239. ग 259. क 279. ग 299. क
220. ग 240. घ 260. क 280. ख 300. ग
301. ग 321. क 341. ग 361. ग 381. ख
302. ग 322. ख 342. क 362. ख 382. ग
303. क 323. घ 343. घ 363. ग 383. ख
304. क 324. घ 344. क 364. ख 384. ग
305. ख 325. क 345. क 365. क 385. घ
306. ग 326. क 346. घ 366. ग 386. ग
307. क 327. क 347. क 367. घ 387. ग
308. ख 328. क 348. ख 368. क 388. ख
309. ग 329. ख 349. ग 369. घ 389. क
310. घ 330. ख 350. घ 370. ग 390. ग
311. ख 331. क 351. क 371. घ 391. ग
312. ख 332. क 352. ख 372. क 392. क
313. ग 333. ग 353. क 373. क 393. ख
314. क 334. ख 354. ग 374. ख 394. घ
315. क 335. क 355. क 375. घ 395. ख
316. घ 336. ख 356. क 376. ग 396. घ
317. घ 337. क 357. क 377. ख 397. ग
318. ख 338. ग 358. घ 378. ख 398. घ
319. क 339. घ 359. क 379. क 399. घ
320. ग 340. घ 360. ग 380. क 400. ग
401. ख 421. क 441. क 461. घ 481. घ
402. क 422. ग 442. ख 462. ग 482. ख
403. ख 423. ग 443. ख 463. ग 483. क
404. क 424. ख 444. ख 464. घ 484. घ
405. ग 425. क 445. घ 465. ग 485. ख
406. ग 426. घ 446. घ 466. घ 486. क
407. घ 427. ग 447. ग 467. क 487. क
408. ग 428. घ 448. ख 468. घ 488. ख
409. ख 429. क 449. क 469. क 489. ख
410. क 430. घ 450. ग 470. क 490. ग
411. ग 431. घ 451. ख 471. ग 491. ग
412. ख 432. घ 452. क 472. घ 492. घ
413. घ 433. क 453. ख 473. ख 493. घ
414. ग 434. ग 454. ख 474. क 494. क
415. ख 435. ग 455. ग 475. घ 495. ख
416. घ 436. क 456. ग 476. ख 496. घ
417. क 437. ख 457. ख 477. घ 497. घ
418. घ 438. ग 458. ख 478. क 498. घ
419. घ 439. ग 459. क 479. ख 499. घ
420. ख 440. ग 460. ख 480. ग 500. ख
501. ख 521. ग 541. घ 561. घ 581. ख
502. क 522. क 542. घ 562. ख 582. क
503. क 523. ख 543. घ 563. ग 583. ग
504. घ 524. ख 544. ग 564. क 584. ग
505. क 525. घ 545. ग 565. घ 585. क
506. ख 526. ग 546. घ 566. घ 586. ख
507. ख 527. घ 547. क 567. घ 587. ग
508. क 528. ग 548. ग 568. क 588. घ
509. ग 529. ख 549. घ 569. घ 589. ख
510. ख 530. ग 550. घ 570. ख 590. क
511. ग 531. घ 551. क 571. क 591. ग
512. क 532. ख 552. ग 572. क 592. ख
513. ग 533. ग 553. ग 573. ख 593. ख
514. ग 534. ख 554. घ 574. क 594. ग
515. ख 535. क 555. ख 575. ग 595. ग
516. क 536. ग 556. ख 576. घ 596. क
517. ग 537. ख 557. घ 577. घ 597. ख
518. ग 538. क 558. ग 578. ख 598. ख
519. घ 539. क 559. घ 579. ग 599. ग
520. क 540. ख 560. ग 580. ग 600. क
601. घ 621. क 641. ग 661. ख 681. ग
602. क 622. क 642. ख 662. घ 682. क
603. क 623. ग 643. घ 663. ख 683. घ
604. ग 624. ग 644. ख 664. घ 684. क
605. ख 625. क 645. घ 665. ख 685. ख
606. क 626. ख 646. घ 666. घ 686. घ
607. घ 627. ख 647. क 667. ग 687. क
608. ग 628. ख 648. घ 668. घ 688. ख
609. क 629. क 649. ख 669. ग 689. घ
610. ख 630. क 650. ग 670. ख 690. घ
611. क 631. घ 651. घ 671. घ 691. ख
612. ख 632. घ 652. ख 672. घ 692. ख
613. घ 633. घ 653. क 673. ग 693. घ
614. घ 634. क 654. घ 674. ग 694. घ
615. ग 635. ग 655. क 675. घ 695. क
616. क 636. ख 656. ख 676. क 696. ग
617. ख 637. क 657. ख 677. ख 697. घ
618. क 638. ग 658. ख 678. ग 698. ग
619. क 639. ग 659. घ 679. ख 699. क
620. क 640. घ 660. क 680. क 700. ख
701. क 721. घ 741. घ 761. क 781. ख
702. क 722. ग 742. ख 762. ख 782. क
703. क 723. ग 743. ख 763. क 783. क
704. क 724. घ 744. ग 764. ख 784. क
705. ख 725. ग 745. घ 765. ग 785. घ
706. क 726. ख 746. ग 766. क 786. ग
707. घ 727. ग 747. ख 767. ख 787. ग
708. क 728. घ 748. ग 768. घ 788. ख
709. घ 729. ग 749. ग 769. क 789. ग
710. ख 730. घ 750. घ 770. ग 790. घ
711. घ 731. घ 751. ग 771. ख 791. ग
712. ख 732. घ 752. ग 772. क 792. क
713. ग 733. ख 753. घ 773. क 793. क
714. ख 734. ख 754. ग 774. क 794. ग
715. ख 735. ख 755. ख 775. ख 795. घ
716. घ 736. ग 756. ग 776. क 796. क
717. ख 737. घ 757. क 777. ख 797. क
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