आर्थिक भूगोल/विश्व में परिवहन
परिवहन मानव द्वारा संचालित एक महत्वपूर्ण आर्थिक क्रिया है। आर्थिक क्रियाओं के त्रिस्तरीय वर्गीकरण में परिवहन को तृतीयक आर्थिक क्रिया के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। [१]
किसी भौतिक माध्यम द्वारा वस्तुओं या व्यक्तियों को एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए स्थानान्तरण या आवागमन को परिवहन या यातायात कहते हैं। सामान्यतः परिवहन व्यक्तियों और वस्तुओं को
एक स्थान से दूसरे स्थान तक वहन करने की सेवा या सुविधा को कहते हैं जिसमें मनुष्यों (मानवीय), पशुओं तथा विभिन्न प्रकार के वाहनों का प्रयोग किया जाता है। ऐसा गमनागमन स्थल, जल एवं वायु मार्गों द्वारा होता है। विश्व के विभन्न भागों में परिवहन के विविध साधनों का प्रयोग किया जाता है जिनकी अपनी पृथक तकनीकी विशेषताएँ तथा क्षेत्रीय विस्तार प्रतिरूप होते हैं।[२]
परिवहन के प्रकार
सम्पादनपरिवहन के आधुनिक साधनों को 3 वृहत् वर्गों के अन्तर्गत रखा जाता है।[३]
- स्थल मार्ग (सड़कें एवं रेलमार्ग)
- जल मार्ग
- वायु मार्ग
- पाइपलाइन
किसी प्रदेश की परिवहन व्यवस्था के क्षेत्रीय प्रतिरूप को परिवहन जाल कहते है। इस प्रकार किसी प्रदेश की सम्पूर्ण परिवहन व्यवस्था त्रिविधि प्रकार के परिवहन साधनों के सम्मिलित स्वरूप को प्रकट करती है। परिवहन के लिए मार्ग प्रायः निर्धारित होते हैं जो जल, स्थल एवं वायु से होकर गुजरते हैं जिन्हें क्रमशः जलमार्ग, स्थल मार्ग और वायु मार्ग कहते हैं। जल मार्ग किसी झील, नदी अथवा सागर (या महासागर) से होकर गुजरते हैं। जल मार्ग द्वारा परिवहन नाव, स्टीमर, जलपोत आदि वाहनों के द्वारा होता है।
स्थलीय परिवहन
सम्पादनस्थलीय परिवहन को दो भागों में बांटा गया है ।
- सड़क परिवहन
- रेल परिवहन
यद्यपि यात्रियों के परिवहन में सड़क और रेल दोनों का बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है किन्तु व्यापारिक दृष्टिकोण से रेलमार्ग अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण साधन है।
सड़क परिवहन
सम्पादनअधिकांश वस्तुओं एवं सेवाओं का संचलन स्थल पर होता है। आरम्भिक दिनों में मानव स्वयं वाहक था। बाद के वर्षों में पशुओं का उपयोग बोझा ढोने के लिए किया जाने लगा। पहिए के आविष्कार के बाद गाड़ियों और माल डिब्बों का प्रयोग महत्वपूर्ण हो गया। परिवहन में क्रान्ति अठारहवीं शताब्दी में भाप इंजन के आविष्कार के बाद आई। स्थल परिवहन के अन्तर्गत
नवीनतम विकास के रूप में पाइपलाइनों, राजमार्गों एवं तारमार्गों को रखा जाता है।
सड़क मार्ग के अन्तर्गत साधारण पगडंडी से लेकर मोटर गाड़ियों के चलने योग्य पक्की सड़कों को समाहित किया जाता है। छोटी दूरी के परिवहन के लिए सड़क यातायात से वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थल तक पहुँचाया जा सकता है। दुर्गम पहाड़ी स्थानों पर भी सड़कें बनाई गई है। परिवहन के अन्तर्गत साधारण साधन बैलगाड़ी, ताँगा, साइकिल, रिक्शा आदि से लेकर मोटर साइकिल, स्कूटर, मोटर कार, बस, ट्रक, ट्राली आदि स्वचालित वाहन तक सभी सड़कों पर चलते हैं और यात्रियों तथा सामानों के आवागमन में सहायक होते हैं।
सामान्यतः मानव कुली, बोझा ढोने वाले पशु, गाड़ियाँ अथवा माल गाड़ीयों जैसे पुराने और प्रारम्भिक रूप परिवहन के सर्वाधिक खर्चीले साधन थे, जबकि बड़े मालवाहक सस्ते पड़ते थें। विशाल देशों के आन्तरिक भागों में पाए जाने वाले आधुनिक जलमार्गों और वाहकों की संपूरकता प्रदान करने में इनका बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। भारत और चीन के सघन बसे जिलों में आज भी मानव कुलियों और मनुष्य द्वारा खींची जाने वाली गाड़ियों से चीजों का आवागमन करने का प्रचलन है।
सड़कें दो प्रकार की हाती है- कच्ची एवं पक्की।
कच्ची सड़कें :- यह विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। कच्ची सड़कें, यद्यपि निर्माण की दृष्टि से सरल होती है, सभी ऋतुओं में प्रभावी व प्रयोग योग्य नहीं होती है। वर्षा ऋतु में इन पर मोटर वाहन नहीं चलाए जा सकते हैं।
पक्की सड़कें:- इसे कंकड़, पत्थर या कंकरीट आदि से मजबूत करके ऊपर से डामर (कोलतार) या अन्य आधुनिक पदार्थों से चिकना कर दिया जाता है।
पक्की सड़के भी अत्यधिक भारी वर्षा एवं बाढ़ के समय गंभीर रूप से प्रभावित हो जाती हैं।
विकसित एवं विकासशील देशों में सड़कों की गुणवत्ता में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है क्योंकि सड़कों का निर्माण व उनके रख-रखाव पर भारी खर्च आता है। विकसित देशों में अच्छी गुणवता वाली सडकें सर्वत्र पायी जाती है और तीव्र संचलन के लिए मोटर मार्गों, ऑटो वाहन (जर्मनी) और अन्तर राज्यीय राजमार्गों के द्वारा लम्बी दूरियों को जोड़ती है।
सीमावर्ती सड़कें:-अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं के सहारे बनाई गई सड़कों को सीमावर्ती सड़के कहा जाता है। ये सड़कें सुदुर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को प्रमुख नगरों से जोड़ने और प्रतिरक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रायः सभी देशों में गाँवों एवं सैन्य शिविरों तक वस्तुओं को पहुँचाने के लिए ऐसी सड़कें बनाई जाती हैं।
महामार्ग
सम्पादनमहामार्ग दूरस्थ स्थानों को जोड़ने वाली पक्की सड़कें होती है इनका निर्माण इस प्रकार से किया जाता है कि अबाधित रूप से यातायात का आवागमन हो सके। यातायात के अबाधित प्रवाह की
सुविधा के लिए अलग-अलग यातायात लेन, पुलों, फ्लाई ओवर और दोहरे वाहन मार्गों से युक्त ये 80 मीटर चौड़ी सड़कें होती है। विश्व के देशों में प्रत्येक नगर एवं बन्दरगाह महामार्गों द्वारा जुड़े
हुए होते हैं।
विश्व के प्रमुख सड़क मार्ग :-
- पैन-अमेरिकन महामार्ग :- यह विश्व की सबसे लम्बी सड़क है जो दक्षिण अमेरिका के देशों को मध्य अमेरिका, मैक्सिको एवं संयुक्त राज्य अमेरिका से मिलाती है। यह महामार्ग अलास्का के उत्तर-पश्चिम से शुरू होकर सैंटियागों (चिली), ब्यूनस आयर्स (अर्जेन्टाइना) होते हुए ब्रासीलिया (ब्राजील) में समाप्त होती है।
- ट्रांस कनाडियन-महामार्ग :- विश्व के प्रमुख महामार्गों में इसका सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। यह महामार्ग कनाडा के पूर्वी तट पर स्थित न्यू फाउण्डलैण्ड प्रान्त के सेंट जॉन नगर को पश्चिमी तट पर ब्रिटिश कोलम्बिया में स्थित बैंकूवर नगर से जोड़ता है। यह लगभग 9600 किलोमीटर लम्बा है एवं प्रशांत महासागर एवं अटलांटिक महासागर के तटों को जोड़ने का कार्य करता है।
- अलास्का महामार्ग :- यह महामार्ग कनाडा के एडमान्टन नगर को अलास्का के ऐंकोरेज नगर से जोड़ता है।
- स्टुअर्ट महामार्ग :- यह आस्ट्रेेलिया महाद्वीप का सबसे लम्बा महामार्ग हैं।जो उत्तरी आस्ट्रेेलिया से स्थित बिरटुम को एलिस स्प्रिंग तथा टेनेन्ट क्रीक होते हुए दक्षिण आस्ट्रेलिया में स्थित ऊनादत्ता से जोड़ता है।
- एक महामार्ग भूमध्यसागर के तट पर स्थित अल्जीयर्स नगर से गिनी के कोनाक्री नगर तक जाता है।
- मिस्र की राजधानी काहिरा से दक्षिण अफ्रीका की वैधानिक राजधानी केपटाउन को मिलवाने वाला एक अंतर्महाद्वीपीय मार्ग प्रस्तावित है जिसका अधिकांश पर निर्मित हो चुका है।
अमेरिका में महामार्गों का घनत्व उच्च है जो लगभग 0.65 किमी प्रतिवर्ग किमी है। प्रत्येक स्थान महामार्ग से 20 किमी की दूरी पर स्थित है। अमेरिका में लगभग 63 लाख किमी लम्बी सड़कें हैं जो
विश्व में सबसे अधिक लम्बी है। अधिकांश सड़कें संयुक्त राज्य के पूर्वी भाग में स्थित है। विश्व की लगभग एक-तिहाई सड़कें (लम्बाई) और लगभग आधी मोटर गाड़ियाँ यू.एस.ए. में पायी जाती है। पूर्वी भाग में अत्यधिक औद्योगीकरण और नगरीकरण के परिणाम स्वरूप सड़कों का जाल अधिक बिछा हुआ है।
अफ्रीका महाद्वीप में स्थलाकृति की विविधता के कारण सड़कें ही परिवहन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है। यूरोप में वाहनों की बहुत विशाल संख्या तथा महामार्गों का सुविकसित जाल
पाया जाता है। परन्तु महामार्गों को रेलमार्गों एवं जलमार्गों के साथ कड़ी प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ता है।
रूस में यूराल के पश्चिम में स्थित औद्योगिक प्रदेश में महामार्गों के अत्यधिक सघन जाल का विकास हुआ है, जिसकी धुरी मास्को है। महत्वपूर्ण मास्को- ब्लाडीवोस्टक महामार्ग पूर्व में
स्थित प्रदेश की सेवा करता है। अत्यधिक विस्तृत भौगोलिक क्षेत्रफल के कारण रूस में महामार्ग इतने नहीं है, जितने रेलमार्ग।
चीन में सड़कें यातायात की प्रमुख साधन हैं जिसका पूर्वी
भाग के मैदानी भागों में जाल बिछा हुआ है। चीन में लगभग 15 लाख किमी लम्बी सड़कें हैं। यहाँ महामार्ग प्रमुख नगरों को जोड़ते हुए देश में क्रिस-क्रॉस करते है। ये शासों (वियतनाम सीमा के
समीप), शंघाई (मध्य चीन), ग्वागंजाओं (दक्षिण) एवं बीजिंग उत्तर को परस्पर जोड़ते हैं। नवीन महामार्ग तिब्बती क्षेत्र में चेगडू को ल्हासा से जोड़ता है।
भारत में भी अनेक महामार्ग है। पक्की सड़कों की लम्बाई की दृष्टि से भारत का विश्व में तीसरा स्थान है। यहाँ लगभग 14.6 लाख किमी लम्बी सड़कें है। कच्ची व पक्की सभी प्रकार की सड़कों की लम्बाई 33 लाख किमी.है।
भारत में सड़कों (राजमार्गों) को राष्ट्रीय, राज्यीय मार्ग और जनपदीय श्रेणियों में विभक्त किया जाता है।देश में कुल 230 प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग (एन.एच.) है। देश का सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 7 है जो वाराणसी को कन्याकुमारी से जोड़ता है।स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में चार बड़े महानगरों को मिलाया गया। कॉरिडॉर योजना में उत्तर दक्षिण व पूर्व-पश्चिम को मिलाया, जिसमें पूर्व में असम के सिलचर से पश्चिम में गुजरात के पोरबन्दर को जोड़ा गया। उत्तर-कॉरिडोर में कश्मीर से कन्याकुमारी को जोड़ा गया तथा निर्माणाधीन दु्रतगामी सिक्सलेन, आठलेन, महामार्ग व ग्रीन कॉरिडॉर हाइवे का निर्माण किया जा रहा है। इनके निर्माण व रख-रखाव का कार्य ’’राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण’’ करता है।
रेल परिवहन
सम्पादनस्थल परिवहन में रेल परिवहन का महत्व सर्वाधिक है। रेलमार्ग का विकास सड़कों के विकास की तुलना में काफी देर से हुआ। इग्लैण्ड में जेम्सवाट ने 1769 में इंजन का आविष्कार किया और जार्ज स्टीफेन्स ने सर्वप्रथम 1814 में वाष्प चलित प्रथम रेल इंजन बनाया।
27 सितम्बर 1825 में उत्तरी इग्लैण्ड के ऑर्कटन और डार्लिगटन के मध्य संसार की पहली रेलगाड़ी इंग्लैण्ड में चलना प्रारम्भ हुई। रेल लाइनों की चौड़ाई (गेज) प्रत्येक देश में भिन्न-भिन्न पाई जाती हैं। सामान्यतया बड़ी (1.5 मीटर से अधिक), मीटर लाइन (1 मीटर) और छोटी लाइनों में वर्गीकृत किया गया है।भारत में रेल परिवहन की शुरूआत 1853 में मुम्बई से ठाणे (34 किमी.) के बीच हुई। भारतीय रेल 4 आयामों में संचालित होती है
(अ) ब्रॉडगेज या बडी लाईन (चौड़ाई 1.676 मीटर)
(ब) मीटर गेज या छोटी लाईन (चौड़ाई 1 मीटर)
(स) नैरोगज या संकरी लाईन (0.762 मीटर)
(द) लिफ्टगेज (0.610 मीटर)
विश्व में मानक लाइन (1.44 मीटर) का उपयोग ब्रिटेन में किया
जाता है।दैनिक आवागमन की रेलें ब्रिटेन, सं.रा. अमेरिका, जापान, रूस और भारत में अत्यधिक लोकप्रिय है। ये दैनिक गाड़ियाँ नगरों में प्रतिदिन लाखों यात्रियों को लाती ले जाती है। विश्व में लगभग 13 लाख किमी लम्बे रेल यातायात मार्ग है।
यूरोप में विश्व का सघनतम रेल तंत्र पाया जाता है। यहाँ रेल मार्ग लगभग 121 हजार किमी लम्बी हैं, जिनमें से अधिकांश दोहरे अथवा बहुमार्गी है। बेल्जियम में रेल घनत्व सर्वाधिक अर्थात् 6.5
वर्ग किमी. क्षेत्र पर लगभग 1 किमी पाया जाता है। औद्योगिक प्रदेश विश्व के कुछ सर्वाधिक घनत्वों का प्रदर्शन करते हैं। लन्दन, पेरिस, बु्रसेल्स, मिलान, बर्लिन और वारसा महत्वपूर्ण रेल केन्द्र है। इग्लैण्ड में यूरो टनल गुर्प द्वारा प्रचालित सुरंग मार्ग लन्दन को पेरिस से जोड़ता है।
रूस, यूराल पर्वत के पश्चिम में अत्यनत सघन जाल से युक्त रूस में रेलमार्गों के द्वारा कुल परिवहन का 90 प्रतिशत भाग प्रभावित होता है। रेलमार्ग की लम्बाई (87 हजार किमी.) के अनुसार विश्व में रूस का तीसरा स्थान है।
उत्तरी अमेरिका में सर्वाधिक विस्तृत रेलमार्ग तंत्र है, जो विश्व के कुल रेलमार्गो का लगभग 40 प्रतिशत है। इसके विपरित यूरोप के अनेक देशों में रेलमार्गों का प्रयोग यात्री परिवहन की
अपेक्षा अधिकतर लम्बी दूरी के स्थल पदार्थों जैसे अयस्क, अनाज, इमारती लकड़ी तथा मशीनरी आदि के परिवहन हेतु अधिक होता है। सर्वाधिक सघन रेलतंत्र पूर्वी मध्य संयुक्त राज्य अमेरिका तथा उससे संलग्न कनाडा के उच्च औद्योगिक एवं नगरीय प्रदेश में पाया जाता है।
कनाडा में रेलमार्ग सार्वजनिक सेक्टर में है। कनाडा में दो ट्राँस महाद्वीपीय रेलमार्ग है।
1. कैनेडियन पैसिफिक रेलवे :-यह रेलमार्ग पूर्व में
हेलीफ्रॉक्स से आरम्भ होकर मांट्रियल, विनिपेग होता हुआ बैंकुवर तक जाता है।[४]
2. कैनेडियन नेशनल रेलवे :-रेलमार्ग भी अंटलाटिक तट (क्यूबेक) से लेकर प्रशांत तट (प्रिंस रूपर्ट) तक जाता है।
जिसके मध्यवर्ती स्टेशनों में विनीपेग, एडगांटन, प्रिंस जार्ज आदि प्रमुख है।
महाद्वीपीय पार रेलमार्गों के द्वारा गेहूँ एवं कोयले के भार के अधिकांश भाग का परिवहन किया जाता है।
आस्ट्रेलिया:- यहाँ रेलमार्ग मुख्यतः दक्षिणी-पूर्वी भाग में पाये जाते हैं। आस्ट्रेलिया में रेलमार्गों की कुल लम्बाई 49 हजार किमी है, जिसका 25 प्रतिशत अकेले न्यू साउथ वेल्स में पाया जाता है।
पश्चिमी-पूर्वी आस्ट्रेलिया राष्ट्रीय रेलमार्ग पर्थ से सिडनी तक एक छोर से दूसरे छोर तक जाती है। आस्ट्रेलिया के सभी प्रमुख सम्रुद्री पत्न पर्थ, मेलबोर्न, सिडनी आदि रेलमार्गों द्वारा अपने पृष्ठ प्रदेशों से जुड़े हुए हैं।
दक्षिण अमेरिका में रेलमार्ग दो क्षेत्रों अर्जेंटीना के पम्पास तथा ब्राजील के कॉफी उत्पादक प्रदेश में सघन है। इन दोनों प्रदेशों में दक्षिणी अमेरिका के कुल रेलमार्गों का 40 प्रतिशत भाग पाया जाता है। दक्षिण अमेरिका के शेष देशों में केवल चीली एक मात्र ऐसा देश है जहाँ बड़ी लम्बाई के रेल मार्ग है जो तटीय केन्द्रों को आन्तरिक क्षेत्रों में स्थित खनन स्थलों से जोड़ते हैं। पेरू, बोलीविया, इक्वेडोर, कोलम्बिया और वेनेजुएला में छोटे एकल मार्ग वाली रेल लाईने पाई जाती है।यहाँ केवल एक महाद्वीप पार रेलमार्ग है जो एंडीज पर्वतों के पार 3900 मीटर की ऊँचाई पर अवस्थित उसप्लाटा दर्रें से गुजरता हुआ ब्यूनस आयर्स (अर्जेटीना) को वालपैराइजों से मिलाता है।
एशिया में चीन, जापान और भारत के सघन बसे हुए क्षेत्रों में रेलमार्गों का सघनतम घनत्व पाया जाता है। अन्य देशों में अपेक्षाकृत कम रेलमार्ग बने है। विस्तृत मरूस्थलों और विरल जनसंख्या के प्रदेशों के कारण रेल सुविधाओं का न्यूनतम विकास हुआ है। भारत का विश्व में चौथा व एशिया में तीसरा स्थान है। यहाँ रेलमार्गों की लम्बाई 67,312 हजार किमी है। भारत में रेलमार्गों की सघनता उत्तरी मैदानी भाग में है। दक्षिण के पठारी भाग में रेलमार्ग अपेक्षाकृत कम है।
अफ्रिका :- दूसरा विशालतम महाद्वीप होने के बावजूद अफ्रिका में केवल 40,000 किमी लम्बे रेलमार्ग है जिनमें से सोने, हीरे के सान्द्रण और ताम्बा-खनन क्रिया-कलापों के कारण अकेले
दक्षिण अफ्रिका में 31000 किमी लम्बे रेलमार्ग है।
- बेंगुएला रेलमार्ग अंगोला से कंटगा- जांबिया ताम्बे की पेटी से होकर जाता है।
- तंजानिया रेलमार्ग जांबिया ताम्र पेटी से तट पर स्थित दार-ए-सलाम तक।
- बोत्सवाना और जिम्बाब्वे से होते हुए रेलमार्ग से स्थलबद्ध राज्यों को दक्षिण अफ्रीकी रेलतंत्र से जोड़ता है।
- दक्षिण अफ्रिका गणतंत्र में केपटाउन से प्रिटोरिया तक ब्लू ट्रेन।
विश्व में रेलमार्ग
सम्पादनपारमहाद्वीपीय रेलमार्ग :- पारमहाद्वीपीय रेलमार्ग पूरे महाद्वीप से गुजरते हुए इसके दोनों छोरों को जोड़ती है। इनका निर्माण आर्थिक और राजनीतिक कारणों से विभिन्न दिशाओं में लम्बी यात्राओं की सुविधा प्रदान करने के लिए किया गया है।
(1) ट्राँस-साइबेरियन रेलमार्ग :- यह विश्व का सबसे अधिक लम्बा रेलमार्ग है।
यह रूस के पश्चिम भाग में बाल्टिक सागर के तट पर स्थित लेनिनग्राद (सेंट पीटर्सबर्ग) नगर से लेकर रूस के सुदूर पूर्व में प्रशान्त महासागर के तट पर स्थित ब्लाडीबोस्टक नगर तक 9560 किमी लम्बा है। इसका निर्माण कार्य 1891 में प्रारम्भ हुआ था। यह रेलमार्ग 1905 में बन कर तैयार हो गया और 1945 में इसे दोहरे पथ से युक्त विद्युतीकृत पारमहाद्वीपय रेलमार्ग में रेलें दोनों और से बिना अवरोध से चल सकती है। यह रेलमार्ग साइबेरिया के आर-पार जाता है। इसे ट्राँस-साइबेरियन रेलमार्ग के नाम जाना जाता है।
यह रेलमार्ग रूस की राजधानी मास्को तक जाता है जो एक मुख्य औद्योगिक नगर भी है। मास्को से आगे टूला नगर होते हुए वोल्गानदी के किनारे कुइविशेव नगर से यूराल क्षेत्र में उफा नगर पार करके विलियाबिन्स्तु तक पहुँचता है। यहाँ से स्टेपी का समतल मैदान आरम्भ होता है जहाँ ओमस्क महत्वपूर्ण केन्द्र है। यह एशियाई प्रदेशों को पश्चिमी यूरोपीय बाज़ारों से जोड़ता है। यह रेलमार्ग यूराल पर्वतों और यूराल की नदियों से गुजरता है। चीता एक महत्वपूर्ण कृषि केन्द्र है। इस रेल मार्ग से आर्थिक रूप से पिछड़े साइबेरिया का विकास सम्भव हुआ है।
(2) कैनेडियन-पैसिफिक रेलमार्ग :-यह कनाडा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण रेलमार्ग है। जो संयुक्त राज्य की सीमा के समानान्तर तथा निकट से होता हुआ अंटलांटिक तट से प्रशान्त महासागर के तट तक 7050 किमी लम्बा है। इस रेल मार्ग का निर्माण 1886 में मूल रूप से एक सन्धि के अन्तर्गत पश्चिमी तट पर स्थित ब्रिटिश कोलम्बिया को राज्यों के संघ में सम्मिलित करने
के उद्देश्य से किया गया था। क्यूबेक-माण्ट्रियल औद्योगिक-व्यापारिक केन्द्र है।
(3) संयुक्त राज्य अमेरिका के अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्गः- संयुक्त राज्य अमेरिका में तीन प्रमुख अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग है जो अटलांटिक तट पर स्थित न्यूर्याक बन्दरगाह एवं प्रधान नगर को प्रशान्त तटीय बन्दरगाहों सिएटल, सैनफ्रान्सिकों और लाँस एंजिल्स से मिलाते हैं। स्थिति के अनुसार इन्हें क्रमशः उत्तरी मध्य और दक्षिणी अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग के नाम से जाना जाता है।
(#) उत्तरी-अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग :-यह रेल मार्ग संयुक्त राज्य के उत्तरी भाग में अटलांटिक महासागर के तट पर स्थित न्यूयार्क नगर से आरम्भ होता है और शिकागो होते हुए
प्रशान्त महासागर के तटीय पतन सिएटल पहुँचता है। इस रेलमार्ग की लम्बाई लगभग 6100 किमी है। यह संयुक्त राज्य का सबसे अधिक लम्बा और महत्वपूर्ण रेलमार्ग है। यह मार्ग पिट्सबर्ग नगर जो लौह- इस्पात उद्योग का विश्व प्रसिद्ध केन्द्र है। यहाँ से पश्चिम की ओर अग्रसर यह रेलमार्ग मिशिगन झील के दक्षिण तट पर स्थित विशाल शिकागो-गैरी औद्योगिक नगर तथा उत्तर-पश्चिम और यह रेलमार्ग सेन्टपाल नगर में प्रेयरी प्रदेश में स्थित विस्मार्क
नगर पहुँचता है। यहाँ से आगे बढ़ने पर रॉकी पर्वतमाला की पहाड़ियों की दर्रों तथा सुरंगों से पार करता हुआ यह रेलमार्ग प्रशान्त तटीय पत्न सिएटल पहुँच जाता है। यह मार्ग संयुक्त राज्य के उत्तरी-पश्चिमी भाग को उत्तरी-पूर्वी औद्योगिक क्षेत्र से जोड़ता है। इस रेलमार्ग पर अनाज (मक्का, गेहूँ) लोह इस्पात, मशीनों, माँस, फल, लकड़ी आदि का परिवहन होता है।
(#) मध्य अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग :- यह रेलमार्ग न्यूयार्क नगर को प्रशान्त तटीय प्रसिद्ध बन्दरगाह सैन्फ्रांसिस्कों से जोड़ता है। यह रेलमार्ग शिकागो तक उत्तरी अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग के समान है किन्तु शिकागो से इसका पथ अलग हो जाता है। शिकागो से पश्चिम की ओर जाता हुआ यह रेल रेलमार्ग मिसौरी नदी के तट पर स्थित ओमाहा नगर पहुँचता है जहाँ से आगे प्लाट नदी की घाटी में होते हुए पश्चिम के पठारी प्रदेश में प्रवेश करता है जहाँ चेनी नगर से मिलता है। इसके पश्चिम में रॉकी पर्वत के इनान्स दर्रें से होते हुआ यह रेलमार्ग साल्ट लेकसिटी पहुँचता है। जहाँ से कैलीफोर्निया की हरी भरी घाटी आरम्भ होती है। पश्चिम में सैन्फ्रामेन्टो नगर होते हुए यह रेलमार्ग प्रशान्त महासागर के तट पर स्थित सैन्फ्रांसिस्कों नगर तक जाकर समाप्त हो जाता है।
(#) दक्षिण अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग :- यह रेलमार्ग न्यूयार्क से न्यूआर्लियन्स होते हुए प्रशान्त महासागर के तट पर स्थित लासएंजिल्स नगर तक जाता है। यह मार्ग संयुक्त राज्य की प्रमुख औद्योगिक पेटी के मध्य से होकर जाता है जिससे इसका विशिष्ट महत्व है। लॉस एंजिल्स नगर फिल्म उद्योग के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
(#) आस्ट्रेलियन अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग :- यह रेलमार्ग आस्ट्रेलिया महाद्वीप की दक्षिणी सीमा के निकट से होता हुआ पूर्व में सिडनी से दक्षिण-पश्चिम में पर्थ समुद्रपत्न तक जाता है।
इस सम्पूर्ण रेलमार्ग में कई भागों में रेलमार्ग की चौड़ाई (गेज) में भिन्नता पाई जाती है।आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर स्थित प्रमुख बन्दरगाह सिडनी से प्रारम्भ होकर यह रेलमार्ग ग्रेट डिवाइडिंग रेज को पार करके डार्लिंग नदी के पश्चिम में स्थित ब्रोकन हिल नगर पहुँचता है। यहाँ से दक्षिण-पश्चिम में पीटरबरो और पोर्टपिरी होते हुए पोर्ट आगस्टा पहुँचता है। पश्चिम की ओर अग्रसर यह मार्ग पश्चिमी आस्ट्रेलिया की विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण खदानों वाले नगर कालगूर्ली और कूलगार्डी नगरों से होते हुए हिन्द महासागर के तटपर स्थित प्रसिद्ध समुद्रपत्न पर्थ पहुँच जाता है।
(#) ओरिएंट एक्सप्रेेस रेलमार्ग :-यह लाइन पेरिस से स्ट्रेस्बर्ग, म्यूनिख, विएना, बुडापेस्ट और बेलग्रेड होती हुई इस्ताम्बूल तक जाती है। इस रेलमार्ग द्वारा होने वाले प्रमुख निर्यात पनीर, सूअर का माँस, जई, शराब, फल और मशीनरी है। इस्ताम्बूल को बैंकाक तक वाया ईरान, पाकिस्तान, भारत, बाँग्लादेश और म्याँनमार से जोड़ने वाली एशियाई रेलवे के भी निर्माण का प्रस्ताव है।
(#) केप-काहिरा रेलमार्ग :- यह एक प्रस्तावित अन्तर्महाद्वीपीय रेलमार्ग है।
इसके अन्तर्गत अफ्रीका के उत्तर-पूर्व के मिश्र में नील नदी के उत्तरी छोर पर स्थित नगर एवं बन्दरगाह
काहिरा को दक्षिण अफ्रिका के दक्षिण छोर पर स्थित केपटाउन नगर को रेलमार्ग द्वारा मिलाने की योजना बनाई गई है। इस मार्ग की लम्बाई लगभग 14000 किमी होगी। इसके दक्षिण में जिम्बाबे के नगर बुलवाथों से होते हुए यह रेलमार्ग दक्षिण अफ्रिका की राजधानी प्रिटोरिया एवं प्रसिद्ध खनन नगर जोहान्सवर्ग और किम्बरले (स्वर्ण खदान) होते हुए केपटाउन तक जायेगी।प्रस्तावित केप-काहिरा रेलमार्ग का उत्तरी (मिस्त्र और सूडान) और दक्षिणी (जिम्बाब्बे और दक्षिण अफ्रिका) भाग ही निर्मित है जबकि मध्यवर्ती भाग रेलमार्ग रहित है। घने वन तथा ऊँचे-नीचे पहाड़ी क्षेत्र होने और अत्यन्त पिछड़े क्षेत्र होने के कारण इस भाग में यातायात के स्थलीय साधन पूर्णतया अविकसित है। प्रस्तावित केपकाहिरा के पूर्ण रूप से तैयार होने पर उत्तर से दक्षिण के अफ्रिकी भू-भाग परस्पर सम्बद्ध हो जायेंगे और उनके आर्थिक विकास में सहायता मिलेगी।
जल परिवहन
सम्पादनपरिवहन के सभी साधनों में जल परिवहन सामान्यतः सबसे सस्ता एवं सुलभ साधन होता है। जलमार्ग नदियों, झीलों, नहरों तथा समुद्रों से होकर जाते हैं।
जलमार्ग के निर्माण के लिए विशेष धन नहीं व्यय करना पड़ता है, यद्यपि पोताश्रेयों के निर्माण, जल मार्गों को गहरा एवं सुरक्षित रखने आदि पर्याप्त कुछ धन व्यय होता है। नौकाएँ, स्टीमर, जलपोल (जलयान) आदि जल परिवहन के प्रमुख साधन है। सामान्यतः सस्ते और भारी पदार्थ, कोयला, लौह अयस्क, लौहा इस्पात, सीमेन्ट, अनाज आदि को ढोने के लिए जलयानों का प्रयोग किया जाता है। नदियों तथा झीलों में जल की गहराई और मात्रा के अनुसार नौकाएँ तथा छोटे-बड़े जलपोत भी चलते हैं।
जल परिवहन को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है:-
- आन्तरिक जलमार्ग
- समुद्री या महासागरीय जलमार्ग।
आन्तरिक जलमार्ग
सम्पादनयह महाद्वीपीय या स्थलीय भागों में स्थित नदियों तथा झीलों से होकर जाता है। इसके लिए वे नदियाँ और झीलें उपयुक्त होती है जिनमें पर्याप्त जल और गहराई के साथ ही ढाल कम पाया जाता है। नदियों में रेत आदि के निक्षेप भी जल परिवहन में बाधा उत्पन्न करते हैं जो नदियाँ या झीलें शुष्क ऋतु में सूख जाती है अथवा शीत ऋतु में जम जाती है, उनमें केवल मौसमी परिवहन ही सम्भव हो पाता है। विश्व में जिन भागों में पर्याप्त जल प्रवाह वाली बड़ी-बड़ी नदियाँ पायी जाती है, उनका उपयोग जल परिवहन के लिए किया जाता है। विश्व के प्रमुख आन्तरिक जलमार्गों का विवरण इस प्रकार है।
(i) यूरोप के आंतरिक जलमार्ग :- आन्तरिक जल मार्गों की दृष्टि से यूरोप की सबसे उत्तम स्थिति है। उत्तर-पश्चिम में अटलांटिक महासागर और दक्षिण में भूमध्य सागर में गिरने वाली नदियाँ यूरोपीय देशों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की सुविधा प्रदान करती है। उत्तर की ओर प्रवाहित होने वाली राइन, सीन और पो नदियां, दक्षिण की ओर बहने वालीे डेन्यूब, डोन, नीपर तथा नीस्टर नदियों और कैस्पियन सागर में गिरने वाली वोल्गा नदी के निचले भागों का प्रयोग जल परिवहन के लिए किया जाता है। पश्चिमी यूरोपीय कुछ देशों (जर्मनी, फ्रांस आदि) में जल परिवहन के लिए नहरों का भी निर्माण किया गया है। राईन नदी जर्मनी और नीदरलैण्ड से होकर प्रवाहित होती है। रूर नदी पूर्व में राईन में मिलती है जो सम्पन्न कोयला क्षेत्र से प्रवाहित होती है। यह जलमार्ग विश्व का अत्यधिक प्रयोग में लाया जाने वाला जलमार्ग है।
(ii) उत्तरी अमेरिका के आन्तरिक जलमार्ग :-संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के मध्य स्थित महान झीलों में जल परिवहन की पूर्ण सुविधा है।
सुपीरियर, मिशिगन, हारून और इरी झील से होकर सेन्टलोरेंस नदी के मुहाने तक जलपोतों के आने-जाने की सुविधा से यह एक प्रमुख व्यापारिक मार्ग बन गया है। मिसीसिपी, मिसैारी और ओहियो नदियाँ भी नौगम्य की स्थिति अच्छी है जो कई औद्योगिक नगरों को जोड़ती हैं। कनाडा में महान झील मार्ग के अतिरिक्त सस्केचान, मैकेन्जी और ओटावा नदियों में भी जल परिवहन होता है किन्तु शीत ऋतु में हिमाच्छादन से इसमें अवरोध पैदा हो जाता है।
(iii) एशिया के आन्तरिक जल मार्ग :- चीन में हवांगहो नदी अपने मुहाने से लगभग 200 किमी ऊपर तक नौगम्य है। याँगटिसीक्याँग नदी भी मुहाने पर स्थित शंघाई नगर से लेकर क्यूकियाँग तक नौका जाने योग्य है। दक्षिणी भाग में प्रवाहित होने वाली सीक्याँग नदी अपेक्षाकृत अधिक नौगम्य है। दक्षिण-पूर्वी एशिया में ईरावदी, मीनाम, सीक्याँग आदि नदियाँ मुहाने से थोड़ी दूरी तक ही नौगम्य है जिनका व्यापारिक महत्व बहुत कम है।
(iv) दक्षिणी अमेरिका के आन्तरिक जलमार्ग :- उत्तरी भारत में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होने वाली विशाल नदी आमेजन अपनी सहायक नदियों सहित लगभग 30,000 किमी लम्बा जलमार्ग प्रदान करती है। दक्षिणी ब्राजील, अर्जेन्टाइना और यूरूग्वे को पराना, पराग्वे तथा प्लाटा नदियों के जलमार्ग की सुविधा है जहाँ मुहाने से लगभग 1500 किमी अन्दर तक जल पोत सुगमता से पहुँच जाते हैं।
(v) अफ्रीका के आन्तरिक जलमार्ग :- अफ्रीका में नील, काँगो, नाइजर आदि कई बड़ी नदियाँ है। यद्यपि नील नदी केवल मुहाना प्रदेश में ही नौगम्य की सुविधा प्रदान करती है किन्तु नाइजर और काँगो नदियों के मुहाने से लेकर लगभग 1100 किमी भीतरी भाग तक जल परिवहन की सुविधा है।
(vi) आस्ट्रेलिया में केवल मर्रे तथा डार्लिग नदियों के मुहाने से लगभग 1500 किमी अन्दर तक जलपोत पहुँच सकते हैं। अन्य नदियाँ नौगम्य नहीं है।
महासागरीय जलमार्ग
सम्पादनमहासागर सभी दिशाओं में मुड़ सकने वाले ऐसे महामार्ग प्रस्तुत करते हैं जिसमें रख-रखाव की लागत नहीं होती। एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक स्थूल पदार्थों का लम्बी दूरियों तक
समुद्री परिवहन स्थल और वायु परिवहन की अपेक्षा सस्ता पड़ता है। विश्व के प्रमुख महासागरीय जल मार्गों का संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है:-
(i) उत्तरी अटलांटिक समुद्री मार्ग :- यह विश्व का सबसे व्यस्ततम समुद्री जलमार्ग है। सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला यह जलमार्ग पश्चिम यूरोपीय देशों और उत्तरी अमेरिका (संयुक्त राज्य अमेरिका व कनाडा) को जोड़ता है। विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का लगभग एक चौथाई भाग इस मार्ग द्वारा परिवहित होता है। इस समुद्री मार्ग पर विश्व के 25 प्रतिशत समुद्री जहाज चलते हैं। विश्व के 50 वृहत् समुद्री पत्नों में से 30 इसी मार्ग है।
(ii) भू-मध्य सागर एवं हिन्द महासागर जलमार्ग :-
यह संसार का सबसे लम्बा व्यापारिक जलमार्ग है। यह संसार के मध्य भाग से होकर गुजरता है। यह रेलमार्ग विश्व की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या की सेवा करता है। यह समुद्री मार्ग प्राचीन विश्व के ’हृदय स्थल’ कहे जाने क्षेत्र से गुजरता है। पश्चिमी यूरोप के औद्योगिक देशों को भूमध्य सागर, लालसागर एवं हिन्दमहासागर से होकर पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण एशिया एवं आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड की वाणिज्यिक कृषि तथा पशुपालन आधारित अर्थव्यवस्थाओं से जोड़ता है। स्वेज नहर के निर्माण से पहले यह मार्ग लिवरपुल और कोलम्बो को जोड़ता था, जो स्वेज नहर मार्ग से 6400 किमी लम्बा था। सोना, हीरा, ताम्बा, टीन,मूँगफली, चाय, कपास, कहवा, रबड़, शक्कर, फलों जैसे समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के कारण पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीका के बीच व्यापार की मात्रा और यातायात में वृद्धि हो रही है। पोर्ट सईद अदन, मुम्बई, कोचीन, कोलम्बो, एडिलेड आदि पत्न इस जलमार्ग पर स्थित है।
(iii) उत्तमाशा अन्तरीप मार्ग :- अटलांटिक महासागर के पार यह एक महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग है। यह पश्चिमी यूरोपीय और पश्चिमी अफ्रीकी देशों व दक्षिण अमेरिका में ब्राजील, अर्जेन्टाइना और उरूग्वे से मिलाता है। इस मार्ग पर यातायात उत्तरी अटलांटिक मार्ग की तुलना में दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के सीमित विकास और कम जनसंख्या के कारण बहुत कम है। पश्चिमी यूरोप के जहाज केप वर्डे द्वीपों के समीप होते हुए अफ्रीका के दक्षिण में केप ऑफ गुडहोप पहुँचते हैं। यहाँ केपटाउन बन्दरगाह है। यहाँ से इण्डोनेशिया जाने वाले जहाज वृहत-वृत मार्ग में आते हैं। केपटाउन से आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड का मार्ग वृहत्-वृत् से कुछ उत्तर में है, ताकि जहाजों के मार्ग में तूफान ओर हिमखण्ड न आए। मार्ग में जहाजों के ईंधन लेने के बन्दरगाह केपटाउन, पोर्ट एलिजाबेथ, एडिलेड, मेलबोर्न, सिडनी आदि है।
(iv) दक्षिणी अटलांटिक मार्ग :- रियो-डी-जेनेरो से जलयान केपटाउन होते हुए पूर्वी अफ्रीका, एशिया और आस्ट्रेलिया जाते हैं। दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी तट पर रियो-डी-जेनेरो, सैन्टोस, मान्टीविडियो, ब्यूनस-आयर्स, वाहिया ब्लाँका, आदि प्रमुख बन्दरगाहों से गेहूं, मक्का, ऊन, चमड़ा, माँस, कहवा, कपास, तम्बाकू, चीनी, मशीनें, लौह इस्पात खनिजों आदि
का निर्यात इसी जलमार्गों के द्वारा होता है।
(v) खाड़ी कैरीबियन सागरीय मार्ग :- कैरेबियन सागर के तटवर्ती देशों कोलम्बिया, वेनेजुएला, ट्रिनिडाड, गायना, सूरीनाम, पश्चिमी द्वीप समूह, मैक्सिको की खाड़ी तटीय देशों, मैक्सिको एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य इस मार्ग से वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है। यह लघु दूरी का समुद्री मार्ग है जो मैक्सिकों की खाड़ी तथा कैरीबियन सागर तटीय बन्दरगाहों को संयुक्त करता है। यह मार्ग पनामा नहर द्वारा उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी के बन्दरगाहों से मुख्यतः चीनी, कोको, नारियल, कहवा, केला, सब्जियाँ, कठोर लकड़ियाँ, पेट्रोलियम, गंधक, लौह अयस्क,बॉक्साइड आदि निर्यात किया जाता है।
(vi) प्रशान्त महासागरीय मार्ग :-प्रशान्त महासागर सबसे बड़ा महासागर है। यह पृथ्वी तल के लगभग 12 प्रतिशत क्षेत्र पर फैला हुआ है फिर भी इसमें व्यापारिक परिवहन की मात्रा बहुत कम है। इसके दो कारण है-
- संसार के मुख्य औद्योगिक प्रदेश, यूरोप तथा अमेरिकी अटलांटिक तटों पर है।
- प्रशान्त महासागर में कोई ऐसा द्वीप नहीं है जिसका व्यापारिक महत्व है। इसके साथ ही पश्चिम भाग में जापान को छोड़कर कोई उद्योग प्रधान विकसित देश नहीं है और पूर्वी भाग में भी संयुक्त राज्य तथा कनाडा के अतिरिक्त अन्य सभी विकासशील देश है।
मुख्य जलमार्ग उत्तरी प्रशान्त महासागर के मध्य स्थित हवाई द्वीप के होनूलुलू (हवाईद्वीप) पत्न से होकर जाता है। पश्चिमी और उत्तरी अमेरिका के जलयान पनामा को पार करके सीधे होनूलूलू पहुँचते हैं। यहाँ से यह जल मार्ग मुख्यतः दो जल मार्गों में बट जाता है (i) उत्तरी मार्ग जो जापान चीन, फिलिपिन्स और हिन्देशिया को जाता है । (ii) दक्षिणी मार्ग जिस पर चलकर जलयान आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड को जाते है। उत्तरी अमेरिका के बन्दरगाह लॉस एजिल्स, सेन फ्रांसिस्को, सिएटल, पोर्टलैण्ड, बैंकूवर और प्रिंस रूपर्ट है।
(vii) स्वेज नहर मार्ग :- स्वेज नहर मिस्र में भूमध्य सागर एवं लाल सागर को मिलाने के लिए बनाया गया एक कृत्रिम जलमार्ग है।
यह योजना 1859 में अलेग्जेण्ड्रिया में स्थित फ्रांसिसी दूतावास के इंजीनियर फर्डिनेण्ड- डी-लेस्प्स के निर्देशन में आरम्भ हुई थी। नहर का उद्घाटन 1869 में हुआ। इस नहर की लम्बाई 162 किमी है। औसत चौड़ाई 60 मीटर और गहराई 10 मीटर है। 1956 में इसका मिस्र सरकार ने राष्ट्रीयकरण कर लिया था। 1967 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस राष्ट्रीयकरण को सहमति प्रदान कर दी थी। इस नहर में प्रतिदिन लगभग 100 जलयान आवागमन करते हैं। यह यूरोप को हिन्द महासागर में एक नवीन प्रवेश मार्ग प्रदान करता है। लिवरपूल एवं कोलम्बो के बीच प्रत्यक्ष समुद्री मार्ग की दूरी को उत्माशा अन्तरीप मार्ग की तुलना में लगभग 1600 किमी दूरी की बचत होती है। इस नहर के सहारे एक रेलमार्ग स्वेज तक जाता है और फिर इस्माइलिया से एक शाखा काहिरा जाती है। नील नदी से नौगम्य ताजा पानी की नहर भी स्वेज नहर से इस्माइलिया में मिलती है। इसके निर्माण से पूर्वी देशों और यूरोप तथा पश्चिमी देशों के मध्य व्यापारिक महत्व बढ़ने से वस्तुएँ सस्ती हुई और व्यापार में वृद्धि हुई। इस नहर से विश्व का सबसे लम्बा समुद्री मार्ग जो अटलांटिक महासागर से लेकर भूमध्यसागर और स्वेज नहर से होता हुआ हिन्द महासागर के उत्तरी पूर्वी भाग तक जाता है। इसे पश्चिमी यूरोप-भूमध्य सागर-हिन्द महासागर मार्ग के नाम से भी जाना जाता है। उत्तरी अमेरिकी तथा यूरोप से एशियाई देशों (सउदी अरब, ईराक, ईरान, पाक, भारत, श्रीलंका, म्याँनमार, थाईलेण्ड, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, चीन, जापान आदि) तक जलयान इसी मार्ग से गुजरते हैं।
(viii) पनामा नहर :- यह नहर पूर्व में अटलांटिक महासागर को पश्चिम में प्रशान्त महासागर से जोड़ती है।
उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के मध्य निर्मित पनामा नहर का उद्घाटन 15 अगस्त 1914 को हुआ था। यद्यपि नहर का विचार तो 16वीं शताब्दी में आरम्भ हुआ था, पर नहर को बनाने की योजना के क्रियान्वयन में बहुत से वर्ष लग गए। इसका मुख्य कारण यह था कि पनामा थल संयोजक की भूमि पर्वतीय थी और उसकी बाधाओं को दूर करने के लिए नहर में कई स्थानों पर लॉक्स बनाने पड़े थे। इसका निर्माण पनामा जलडमरूमध्य के आर-पार पनामा नहर एवं कोलोन के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा किया गया, जिसमें दोनों ही ओर से 8 किमी क्षेत्र को खरीद कर इसे नहर मण्डल का नाम दिया है।
इस नहर पर 85 वर्षों तक संयुक्त राज्य अमेरिका का अधिकार रहा। 1 जनवरी 2000 से इस पर पनामा नगर का नियन्त्रण स्थापित हो गया है। पनामा नहर 82 किमी लम्बी एवं कगहरी कटान से युक्त है। इसकी न्यूनतम गहराई 12 मीटर व चौड़ाई 90 मीटर है। नहर का सबसे बड़ा समुद्री भाग समुद्र तल से 26 मीटर ऊँचा है। इस नहर में कुछ छः जलबंधक तंत्र से प्रवेश करते हुए तीन लॉक प्रणाली है-
- गातून लॉक्स एटलांटिक सिरे पर
- पैडरोमिकट लॉक्स मध्य में
- मीरा फ्लार्स लॉक्स प्रशांत सिरे पर है।
इन लॉक्स के द्वारा जहाज पर्वतीय भूमि को पार कर लेते हैं। इस नहर से होकर जाने पर न्यूयार्क और सैनफ्रान्सिसको के मध्य की दूरी हार्न अन्तरीय की तुलना में लगभग 13000 किमी कम हो गयी है। न्यूआर्लियन्स से सैन्फ्रासिस्को की दूरी में लगभग 9000 किमी, न्यूयार्क से सिडनी में लगभग 6500 किमी. इसी प्रकार न्यूयार्क से बालपराइजों (चीली) जाने में लगभग 6000 किमी की बचत होती है। इस नहर का आर्थिक महत्व स्वेज नहर की अपेक्षा कम है। फिर भी दक्षिण अमेरिका की अर्थव्यवस्था में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
वायु परिवहन
सम्पादनसंसार में वायु परिवहन का विकास प्रथम विश्व युद्ध के बाद से शुरू हुआ है। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से वायु या हवाई परिवहन का प्रचलन बहुत बढ़ गया है।
वर्तमान युग को हवाई युग भी कहा जाता है। आजकल अत्यन्त तीव्र गति से चलने वाले वायुयान आकाशी यातायात के लिए प्रयुक्त होने लगे हैं। परिवहन की दृष्टि से यह सबसे तीव्र किन्तु सबसे महँगा साधन है। यही कारण है कि वायुयानों द्वारा सामान्यतः हल्की, कीमती तथा शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं को ही आवागमन किया जाता है। वायु यातायात सस्ती तथा भारी वस्तुओं के परिवहन के लिए उपयुक्त नहीं है। इससे पहाड़ी क्षेत्रों या अन्य दुर्गम क्षेत्रों में जहाँ जल परिवहन अथवा थल परिवहन संभव नहीं होता है, वहाँ भी छोटे वायुयानों या हैलीकॉप्टरों द्वारा यात्रियों तथा सामानों को पहुँचाया जा सकता है। प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकम्प, युद्ध आदि में राहत कार्य के लिए वायु परिवहन सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध होता है। पर्वतों, हिमक्षेत्रों अथवा विषम मरूस्थलीय भू-भागों हिमालय में भू-स्खलन अथवा भारी हिमपात के कारण प्रायः मार्ग अवरूद्ध हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में वायुयान ही एक मात्र विकल्प होता है। वायुयानों के निर्माण तथा उनकी कार्य प्रणाली के लिए अत्यन्त विकसित अवस्थापनात्मक सुविधाओं जैसे- विमान शाला, हवाई अड्डे, हवाई पट्टी, भूमि पर उतरने, ईंधन तथा रख-रखाव की सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
हवाई अड्डों का निर्माण अत्यधिक खर्चीला है। विश्व के अनेक भागों में नित्यवायु सेवाएँ उपलब्ध है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने मुख्य रूप से युद्धोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन का विकास किया है। आज 250 से अधिक वाणिज्यिक एयरलाइनों द्वारा विश्व के विभिन्न भागों में नियमित सेवाएँ प्रदान की जा रही है। सुपरसोनिक वायुयान लन्दन और न्यूयार्क के बीच की दूरी का साढ़े तीन घंटों में तय कर लेता है।
अन्तर महाद्वीपीय वायुमार्ग
सम्पादनउत्तरी गोलार्द्ध में अन्तर महाद्वीपीय वायुमार्गों की एक सुस्पष्ट पूर्व-पश्चिम पट्टी है। पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका पश्चिमी यूरोप और दक्षिण-पूर्वी एशिया में वायुमार्गों का सघन जाल पाया जाता है। विश्व में कुल वायुमार्गों के 60 प्रतिशत भाग का प्रयोग अकेला संयुक्त राज्य अमेरिका करता है। न्यूयार्क, लन्दन, पेरिस, एमस्टर्डम और शिकागो केन्द्रीय बिन्दु है जहाँ से वायुमार्ग अभिसरित होते हैं अथवा सभी महाद्वीपों की ओर विकिरित होते हैं।अफ्रीका, रूस के एशियाई भाग और दक्षिण अमेरिका में वायुमार्ग की सेवाओं का अभाव है। दक्षिण गोलार्द्ध में 10 से 35° अक्षाशों के मध्य अपेक्षाकृत विरल जनसंख्या, सीमित स्थलबद्ध और कम आर्थिक विकास के कारण सीमित वायु सेवाएँ उपलब्ध होती है।
वायुमार्गों के प्रकार
सम्पादनसंसार में वायुमार्ग छः प्रकार के हैं:-
(1) अन्तर्महाद्वीपीय ग्लोबीय वायुमार्ग :- यह सबसे लम्बी यात्राओं के मार्ग है जैसे :-
(i) न्यूयार्क-लंदन-पेरिस-रोम-काहिरा-दिल्ली-मुम्बई-कोलकात्ता-हाँगकाँग-टोकियो वायुमार्ग। यह सबसे लम्बा वायुमार्ग है।
(ii) न्यूयार्क-सेन फ्रांसिस्कों-होनोलुलू-हाँगकाँग-एडिलेड-पर्थ मार्ग जो प्रशान्त महासागर को पार करता है।
(2) महाद्वीपीय वायुमार्ग :- एक ही महाद्वीप के भिन्न-भिन्न देशों के बीच वायुमार्ग हैं जैसे
(i) न्यूयार्क-शिकागो-माँट्रियल मार्ग,
(ii) लंदन-पेरिस-फ्रेंकफर्ट-प्राग-वारसा मार्ग,
(iii)लंदन-फ्रेंकफर्ट-वारसा-मास्को-वायुमार्ग,
(iv) दिल्ली- कोलकाता-हाँगकाँग-टोकिया मार्ग।
(3) राष्ट्रीय वायुमार्ग :- किसी भी देश के अन्दर दूरी की यात्राओं को तय करने के लिए जैसे
(i) न्यूयार्क- शिकागो-सेनफ्रांसिस्को मार्ग,
(ii) लेनिनग्राद-मास्को
(iii) दिल्ली- कानपुर-पटना-कोलकाता मार्ग।
(4) प्रादेशिक वायुमार्ग :- किसी प्रदेश के अन्दर छोटी-छोटी यात्राओं को भी समय की बचत के लिए वायुयान द्वारा किया जाता है। धनी देशों में जैसे सयुक्त राज्य अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ, जर्मनी,ब्रिटेन, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, आदि ने ऐसे प्रादेशिक वायुमार्गों का विकास हुआ है जो अधिकाधिक वृद्धि पर है।
(5) स्थानीय वायुयान :- स्थानीय वायु यात्राएँ प्रायः हेलीकॉप्टरों के द्वारा की जाती है।
(6) सैनिक, युद्ध, कूटनीतिक तथा राजनीतिक महत्व की वायु यात्राओं के लिए सभी राष्ट्राध्यक्षों, प्रशासनिक वर्गों की विभिन्न यात्राएँ विभिन्न प्रकार के वायुयानों, हेलीकॉप्टरों आदि के द्वारा वायु यात्राएँ की जाती है।
विश्व में महाद्वीपों के अनुसार प्रमुख हवाई अड्डे इस प्रकार है- उत्तरी अमेरिका में न्यूयार्क, न्यूआर्लियन्स शिकागो, सैनफ्रांसिस्को, लॉस एंजिल्स (स.रा.अ.) माँट्रियल, ओटावा (कनाडा) और मैक्सिको सिटी आदि, दक्षिण अमेरिका में-रियो-डी-जेनेरो, व्यूनस आयर्स, सेन्टियागो आदि, यूरोप में- लन्दन, पेरिस, बर्लिन, रोम, मास्को आदि एशिया में टोक्यो, शंघाई, बीजिंग, बैंकॉक, सिंगापुर, जकार्ता, रंगून, कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई, कराँची, कोलम्बो आदि, अफ्रीका में केपटाउन,अदिस-अबाबा, नैरोबी, काहिरा आदि और आस्ट्रेलिया में सिडनी, मेलबोर्न, पर्थ, कैनबरा आदि।
पाईप लाईन्स परिवहन
सम्पादनपाइप लाइनें परिवहन का आधुनिकतम साधन है। इनके द्वारा अशुद्ध तेल (कच्चा) को परिष्करण शालाओं तक एंव शोधित पेट्रोलियम उत्पादों को उपभोक्ता केन्द्रों तक पहुँचाया जाता है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक गैस का भी परिवहन पाइन लाइनों द्वारा किया जाता है। विश्व में पाइप लाइनों का अधिक घनत्व यूरोप एवं मध्य पूर्व के देशों में पाया जाता है। जल, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैसे जैसे तरल एवं गैसीय पदार्थों के अबाधित प्रवाह और परिवहन के लिए पाइपलाइनों की आपूर्ति से सभी परिचित है। विश्व के अनेक भागों में रसोई गैस अथवा एल.पी.जी. की आपूर्ति पाइपलाइनों द्वारा की जाती है। न्यूजीलैण्ड में फर्मों से फैक्ट्रियों तक दूध को पाइपलाइनों द्वारा भेजा जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पादक क्षेत्रों और उपभोग क्षेत्रों के बीच तेल पाइपलाइनों का सघन जाल पाया जाता है।यूरोप, रूस, पश्चिम एशिया और भारत में पाइप लाइनों का प्रयोग तेल के कुओं को तेल परिष्करण शालाओं और पत्तनों अथवा घरेलू बाजारों से जोड़ने के लिए किया जाता है। मध्य एशिया में स्थित तुर्कमेनिस्तान से पाइपलाइन को ईरान और चीन के कुछ भागों तक बढ़ा दिया गया है। प्रस्तावित गैस पाइपलाईन ईरान-भारत वाया पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय तेल और प्राकृतिक गैस पाइपलाईन विश्व में सर्वाधिक लम्बी होगी।
विश्व की प्रमुख पाइपलाइन
सम्पादन(1) बिंग-इंच पाइपलाइन :- इस पाइपलाइन द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका में मैक्सिको की खाड़ी के तटीय कुँओं से उत्तर-पूर्वी राज्यों तक पहुँचाया जाता है।
(2) टैप लाइन :- यह पाइप लाइन फारस की खाड़ी के पास के कुँओं को सिडान नामक नगर से जोड़ती है। इसकी लम्बाई 1600 किमी. से भी अधिक है।
(3) कॉमेकॉन पाइप लाइन :- यह भूतपूर्व सोवियत संघ में स्थित है।
इससे वोल्गा तथा यूराल के कुँओं से पूर्वी यूरोप के राष्ट्रों तक तेल पहुँचाया जाता है।
(4) ओ.आई.एल. पाईप लाईन :- एशिया की पहली 1157 किमी लम्बी देश पारीय पाइपलाईन (असम के नाहरकटिया तेल क्षेत्र से बरौनी के तेल शोधन कारखाने तक) का निर्माण आई.ओ.एल. ने किया था। इसे 1966 में कानपुर तक विस्तारित किया गया।
(5) एच.वी.जे. पाइपलाइन :- पश्चिमी भारत में एक दूसरे विस्तीर्ण पाइपलाइन का महत्वपूर्ण नेटवर्क-अंकलेश्वर-कोयली, मुम्बई हाई-कोयली तथा हजीरा-विजयपुरा- जगदीशपुर निर्माण किया गया है। हाल ही में 1256 किमी लम्बी एक पाइप लाइन सलाया (गुजरात) से मथुरा (उ.प्र.) तक बनाई गई हैं।
(6) तापी परियोजना (TAPI) :- बहुप्रतीक्षित तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान,
पाकिस्तान, भारत (तापी), गैस पाइप लाइन परियोजना का शुभारम्भ 3 दिसम्बर 2015 को ऐतिहासिक सिल्क रूट से जुड़े ’मेरी’ शहर (तुर्कमेनिस्तान) में किया गया था। यह गलकीनाइश (तुर्केमेस्तिान) क्षेत्र से कंधार (अफगानिस्तान-774 किमी.) व मुल्तान (पाकिस्तान-826 किमी.) होते हुए फाजिल्का (भारत) पहुँचेगी।
भतौली गांव के लोगों के द्वारा नदी पार करने के लिए परिवहन के किस साधन का उपयोग किया जाता है उसका आंसर दे
उत्तर
सन्दर्भ
सम्पादन- ↑ Husain. Bharat Ka Bhugol, 2E. McGraw-Hill Education (India) Pvt Limited. पृप. 3–. आइएसबीएन 978-0-07-070285-1.
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- ↑ H. M. Saxena (2013). Economic Geography. Rawat Publications. आइएसबीएन 978-81-316-0556-1.