आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20/बाजार की अनदेखी और अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप
बाजार की अनदेखी जब अत्यधिक सरकारी हस्तक्षेप से लाभ की बजाय नुकसान होता है।(Undermining Markets: When Government Intervention Hurts More Than It Helps) आर्थिक सर्वेक्षण के इस अध्याय में यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि एनाक्रोनिस्टिक सरकार (Anachronistic Government) का हस्तक्षेप अंतत: लाभ के बजाए नुकसान अधिक पहुंचाता है,भले हीं वे अच्छे इरादे से किए गए हों।इस तथ्य की पुष्टी चार मुख्य उदाहरणों- आवश्यक वस्तु अधिनियम (Essential Commodities Act- ECA), ड्रग्स (मूल्य नियंत्रण) आदेश 2013 (Drugs (Prices Control) Order 2013), खाद्य सहायिकी, केंद्र/राज्य सरकारों द्वारा की गई कर्ज माफी) के विश्लेषण के माध्यम से किया गया है।
यद्यपि भारत ने फर्मों और नागरिकों के लिए आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ाने की दिशा में काफी महत्वपूर्ण प्रगति की है, फिर भी इसे जर्जर (जकड़ी हुई) अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। निम्नलिखित सूचकांकों से इसी तरह के साक्ष्य प्राप्त होते हैं:-
- वर्ष 2019 में हेरिटेज फाउंडेशन द्वारा जारी आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 186 देशों में 129वें स्थान पर है। इसे ज़्यादातर गैर-स्वतंत्रता (Mostly Unfree) की श्रेणी में रखा गया है।
- वर्ष 2019 में फ्रेज़र इंस्टीट्यूट (Fraser Institute) द्वारा जारी वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 162 देशों में 79वें स्थान पर है।
आर्थिक स्वतंत्रता के संकेतक वस्तुतः प्रति व्यक्ति जीडीपी,नए व्यवसायों के पंजीकरण, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, किसी देश में पेटेंट के लिए आवेदन तथा अनुदत्त पेटेंट्स की संख्या और नवाचार के संकेतकों के साथ सकारात्मक रूप से सह-संबंधित हैं।इससे स्पष्ट होता है कि आर्थिक स्वतंत्रता धन सृजन के कई पहलुओं को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है।
सर्वेक्षण में बताया गया है कि बाज़ार में सरकार के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से मांग-आपूर्ति संतुलन प्रभावित हो सकता है जिससे अत्यधिक नुकसान (Deadweight Loss) की स्थिति बन जाती है जिसमें निवेश के नुकसान होने की संभावना अधिक होती है।
सर्वेक्षण में एनाक्रोनिस्टिक सरकार (Anachronistic Government) के हस्तक्षेप के प्रभाव को चार उदाहरणों- आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 (Essential Commodities Act 1955), ड्रग्स (मूल्य नियंत्रण) आदेश 2013 (Drugs (Prices Control) Order 2013), खाद्यान्न बाज़ारों के लिये सरकारी नीतियाँ, कर्ज माफी के माध्यम से समझाया गया है।
आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955{Essential Commodities Act(ECA) 1955}
सम्पादन- यह उन वस्तुओं को जिन्हें आवश्यक वस्तुओं के रूप में माना जाता है जैसे सब्ज़ियाँ, दाल, खाद्य तेल, चीनी आदि के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण, व्यापार एवं वाणिज्य को नियंत्रित करता है।
- इस अधिनियम का उद्देश्य जमाखोरी पर अंकुश लगाकर गरीबों के लिए आवश्यक वस्तुएँ सस्ती दरों पर उपलब्ध कराना है।
- हालाँकि यह अधिनियम बाजार विकृतियों का निर्माण करके कृषि बाजारों के विकास को अवरुद्ध करता है।
- इस अधिनियम के तहत ऐसी फर्म जिन्हें अपने प्रचलनों की प्रकृति के अनुरूप भंडारण रखना होता है और ऐसी फर्में जो कि अनुमान के आधार पर भंडारण करती है के मध्य अंतर नहीं रखा गया है।
- मूल्य अस्थिरता को नियंत्रित करने में यह अधिनियम अप्रभावी है।उदाहरण के तौर पर वर्ष 2006 की तीसरी तिमाही एवं वर्ष 2009 की पहली तिमाही में दालों और सितंबर 2019 में प्याज की कीमतें ECA लागू होने के बावजूद बढ़ गई थी।
- आवश्यक वस्तुओं के थोक और खुदरा मूल्यों के मध्य बढ़ता ग्राफ इस बात को सुदृढ़ करता है कि यह उपभोक्ताओं के कल्याण को कम करता है दीर्घावधि में यह अधिनियम भंडारण संरचना के विकास को हतोत्साहित करता है जिसके परिणाम स्वरूप उत्पादन के झटकों के बाद मूल्यों में आई स्थिरता बढ़ती है।
- केंद्र एवं राज्य सरकारों से प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार इस अधिनियम के अंतर्गत दोष सिद्धि की दर केवल 2-4% है। इससे पता चलता है कि ECA के अंतर्गत मारे गए छापों के कारण सिर्फ व्यापारियों का उत्पीड़न हुआ है जो कि किसी दी गई मद के विपणन में व्यापार की भूमिका को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है।
- प्याज,आलू एवं दलों जैसी महत्त्वपूर्ण कृषि मदों की मूल्य अस्थिरता को विनियमित करने में सहायता के लिये वर्ष 2014-15 में मूल्य स्थिरीकरण कोष (Price Stabilization Fund) की स्थापना की गई थी।
- यह समीक्षा कीमतों के स्थिरीकरण हेतु इसके विकल्प के रूप में निम्नलिखित सुझाव देती है:-
- वर्ष 2014-15 में स्थापित मूल्य स्थिरीकरण निधि(price stabilization fund:PSF) का सुदृढ़ीकरण।
- प्रभावी पूर्वानुमान तंत्र,स्थिर व्यापार नीतियों एवं कृषि बाजारों के एकीकरण कार्य को और आगे बढ़ाना।
आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के अंतर्गत औषधि मूल्य नियंत्रण(Drug price controls under ECA)
सम्पादन- आवश्यक जीवनरक्षक दवाओं की पहुंच सुनिश्चित करने और निर्धन परिवारों को गरीब होने से बचाने के महत्वपूर्ण उद्देश्य को देखते हुए प्राय: सरकार द्वारा औषधियों के मूल्य का नियंत्रण किया जाता है। इस हेतु भारत सरकार राष्ट्रीय औषधि मूल्य प्राधिकरण(National pharmaceutical Pricing Authority:NPPA) एवं DPCO के माध्यम से औषधियों के मूल्यों का नियमन करती है।
- अनिवार्य औषधियों की राष्ट्रीय सूची(National Listt of Essential Medicines:NLEM): यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा तैयार की गई वह सूची है जिसको भारत की स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए अनिवार्य एवं उच्च प्राथमिकता वाला माना जाता है।
- आवश्यक औषधियों के संबंध में DPCO के प्रभाव की जांच करने के लिए,इस समीक्षा में ग्लाइकोमेट (मेटफोर्मिन) और ग्लिमिप्रेक्स-एमएफ (Glimiprex-MF) (ग्लिमपिराइड+मेटफॉर्मिन) दवाइयों के उदाहरण लिए गए हैं,जिनका उपयोग हाई ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के लिये किया जाता है। इनमें से एक दवाई DPCO,2013 के अंतर्गत आती है और दूसरी नहीं।
- इस अध्ययन से निम्नलिखित निष्कर्ष प्राप्त हुए हैं:-
- पूर्व स्थापित मान्यताओं के विपरीत अनियमित औषधि की तुलना में नियमित औषधि के मूल्य में वृद्धि अधिक हुई। लेकिन दोनों दवाओं के सेवन की मात्रा पर डीपीसीयू का कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पाया गया।डिफरेंस इन डिफरेंस पद्धति के उपयोग से।
- DPCO 2013 के बाद सस्ती दवाओं के मूल्य में 21% की वृद्धि हुई।हालांकि महंगी दवाओं की कीमतें 2.4 गुना बढ़ गई जो कि(नियत के विपरीत था) इस समीक्षा में इसी को निरस्त करने और बाजार अनुकूल जैसे डीबीटी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण नवाचार के लिए प्रोत्साहन बाजार एकीकरण में वृद्धि आदि की वकालत की गई है।
- डिफरेंस इन डिफरेंस पद्धति एक सांख्यिकीय तकनीक है,जिसका उपयोग किसी विशिष्ट पहल या उपचार के प्रभाव का आकलन करने के लिए किया जाता है।यह दो अवधियों के मध्य की जनसंख्या की तुलना करती है,जिसमें एक विशिष्ट हस्तक्षेप युक्त जनसंख्या(उपचार सममूह) और दूसरी विशिष्ट हस्तक्षेप से अप्रभावित जनसंख्या(नियंत्रण समूह) को शामिल किया जाता है।
खाद्यान्न बाज़ारों में सरकारी हस्तक्षेप(GOVERNMENT INTERVENTION IN GRAIN MARKETS)
सम्पादनभारत सरकार इसके द्वारा उत्पादकों के लिये पारिश्रमिक सुनिश्चित कर वहनीय कीमतों पर वस्तुओं की आपूर्ति उपलब्ध कराके उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करते हुए खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने की कोशिश करती है। भारत में खाद्यान्न खरीद प्रणाली की वर्तमान स्थिति: भारतीय खाद्य निगम(FCI) के पास खाद्यान्नों की खरीद,भंडारण,परिवहन एवं वितरित करने एवं बेचने का कार्य करता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA), 2013 के अंतर्गत पिछली और वर्तमान लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System- TPDS) के तहत प्रदत्त दायित्वों के मद्देनज़र जिसमें सब्सिडी पर खाद्यान्न प्राप्त करने के लिये 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी आती है, सरकार चावल एवं गेँहू की सबसे बड़ी एकल संचयकर्त्ता के रूप में उभरी है।