कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/छीतस्वामी की माधुर्य भक्ति
छीतस्वामी के आराध्य कृष्ण कृपालु तथा दयालु हैं। वे राधारमण और गोपीवल्लभ हैं। वे नाना प्रकार की लोलाओं का विधान करके भक्तों को सुखी करते हैं। इस प्रकार के उनमें अनेक गुण हाँ जिनका वर्णन करना सम्भव नहीं है :
- मेरी अखियन के भूषन गिरधारी।
- बलि बलि जाऊँ छबीली छवि पर अति आनन्द सुखकारी।।
- परम उदार चतुर चिन्तामणि दरस परस दुख हारी।
- अतुल प्रताप तनक तुलसी दल मानत सेवा भारी।।
- छीत स्वामी गिरिधरन विशद यश गावत गोकुल नारी।
- कहा बरनौं गुनगाथ नाथ के श्री विट्ठल ह्रदय विचारी।।
कृष्ण-रूप माधुरी तथा गुण माधुरी से मुग्ध होकर गोपियों ने श्रीकृष्ण के सौन्दर्य का परिचय निम्न शब्दों में :
- अरी हौं स्याम रूप लुभानी।
- मारग जात मिले ननदनन्दन तन की दशा भुलानी।।
- मोर मुकुट सीस पर बाको बांकी चितवन सोहे।
- अंग अंग भूषन बने सजनी देखे सो मोहे।।
- मोतन मुरि के जब मुसकाने तब हौं छाकि रही।
- छीतस्वामी गिरधर की चितवन जाति न कछु कही।।
छीतस्वामी ने कृष्ण की मधुर लीलाओं में संयोग की लीलाओं का विशेष रूप से वर्णन किया है। इनमें सुरत और सुरतान्त छवि के पद अधिक हैं और इनका वर्णन सुन्दर तथा सरस है :
- सुभग स्याम के अंग राधा विराजे।
- नैन आलस भरी सकल निसि सुखकरी कंठहारि भुज धरी स्याम लाजे।।
- मनक कंचन तनी पीक दृग सो सनी अति ही रस में बनी रूप भ्राजे।
- छीतस्वामी गिरिधरन के मन बसी मन ही मन हँसी सुख दियौ आजे।।