गुल सनोबर/११ गुल की दुर्दशा का रहस्य
बादशाह का चेहरा दुःखसे काला हो गया था। कोई भयानक दुःख उन्हें तनहा कर रहा था!… उसे इससे आगे और सवाल पूछना हिम्मत का ही काम था। लेकिन शहजादाने इस चमत्कारिक रहस्य का राज जानने की ठान ली थी। उसने हिम्मत करके पूछा, ‘जहापन्हा, ये रूपसुन्दरी गुल अगर आपकी इतनी प्रिय पत्नी थी तो अब उसके इतने बुरे हाल क्यों हो रहे हैं? उसने ऐसा कोनसा पाप किया है?
‘हे युवा, वही तो सबसे बड़ी दुर्दैव की बात है। उस समय ने मेरे सारे सुखोपर आग लगा दी!’ सनोबर बादशाह ने एक ठंढी साँस लेते हुए कहा,’कुछ दिन हमारे मजे में गये। हम दोनों को एक दूसरे के सिवा बिलकुल नहीं रहा जाता था। हम ज्यादा से ज्यादा एक दूसरे के साथ रहने की कोशिश करते थे। ‘लेकिन एक रात को मैंने नींद से जाग कर देखा तो गुल का बदन बहोतही ठंडा था। ऐसा लग रहा था जैसे वह कहीं ठंड में जाकर आयी हो। मैंने उससे इस बारे में पूछा। ‘मैं पैर धोने के लिये बाहर गयी थी ऐसा उसने जबाब दिया। उसवक्त मुझे वो सच लगा,लेकिन आगे बहुत बार ऐसा हुवा।’
फिर मैंने सुबह घोड़ेके तबेले में जाकर वहाँ के नौकर से पूछा तब उसने घबराते घबराते कहा की,’गुलरानी साहेब रोज रात को घोड़े पर बैठ कर कहीं बाहर जाती हैं और सुबह होने से पहले वापस आती हैं। उसका जवाब सुनकर मुझे लगा जैसे मेरे उपर वज्राघात हुआ हो! मैं एकदम मायूस हो गया। एक दिन रातको मैं नींद का नाटक करने लगा। आधीरात होते ही गुल मेरे किनारे से उठी। उसने अच्छे कपडे,अलंकार और सुगंधित गंध लगा के श्रुंगार किया और वो महल से बाहर गयी। मैं भी पीछे पीछे बाहर आया।
तबेले में से एक घोडा लेके वो कहीं निकली। मैं उसका पीछा तो कर ही रहा था। लेकीन पिछा करते वक्त मैंने घोड़े का इस्तेमाल नहीं किया क्यूकी घोडे की टापो के आवाज से उसे पता चल जाता की कोई मेरा पीछा कर रहा है।इसलिये मैंने पैदल ही उसका पीछा किया।
आखिर वह नगरके बाहर शिद्दोकी बस्ती थी वहाँ गई। मैं वही पेड़ो के पीछे छुप के बैठा था। घोड़े से उतरते ही गुल एक शिद्दे के घर में गई। मैं भरे आशय से सब देख रहा था। थोडीही देर में उसे एक काला शिद्दा गुल को बाहर खिंच के लाया।
चाबूक से मारने लगा और देर क्यू हो गयी यह पूछने लगा। गुल उसके पैर पड़ते हुये कहने लगी आज मेरे पति को सोने में देर हो गई इसीलिए मैं जल्दी नहीं आ सकी। लेकिन में कल से पक्का जल्दी आऊंगी! उसे बहोत मारने के बाद उस क्रूर काले शिद्दे ने चाबुक फेंक दिया और फिर अपने हातो से उसका नाजुक शरीर चाहे वैसा मसलने लगा।
मुझे ये दृश्य देखके बहोत गुस्सा आया, जिस नाजुक गुल को मैं भूलसे भी कभी दुखाता नहीं और जिसपे मैंने खुदसे ज्यादा प्यार किया था वही गुल इस हवस के पुजारी के चाबुक के फटके चुपचाप सहन कर रही थी। उसने मेरे प्रेम की प्रतारणा की थी और वो व्यभिचारी स्त्री अपने यारके संग रममाण हो गयी थी। स्त्रिचरित्र बहोत ही अगाध रहता है यही सही है।
लेकिन मुझसे वो व्यभिचार देखा नहीं जा रहा था। मुझे बहोत गुस्सा आया और फिर मैंने गुस्से से उस काले शिद्दे के उपर छलांग मारी और उसे मुख पर प्रहार करना शुरू कर दिया।
लेकिन मेरी कल्पना से भी ज्यादा वो शिद्दी ताकतवर और सावधान था। उसने अगले ही क्षन मुझे नीचे गिरा दिया और वो मेरे साइन पर बैठ गया उसवक्त गुलने अपने यार के हाथमे मुझे मारने के लिये एक खंजर दिया! उस खंजर से वो मुझे मार ही देता की…
एक जबरदस्त घटना घटी, मेरा प्यारा और इमानि कुत्ता मेरे नजानते हुये मेरे पीछे आया था।!…उसने जल्दी से उस शिद्दे पे छलांग लगायी और उसके हात का खंजर दुर उड़ा दिया! अपने तीक्ष्ण दातोंसे उसने उसे बेशुमार मूर्छित किया!…फिर में सही समय देख कर उठ के खड़ा हुवा और जल्दीसे उसका धड़ सीर से अलग कर दिया।
उस बस्तीके सभी शिद्दो को फिर मैंने गिरप्तार कर लिया और उन्हें शहर में ले गया।
उनके हाथों में और पैरों में घोड़ो को बांध दिया और चारो दिशावो में उनको घुमाया। इस वजह से उन शिद्दो के शरीर फट गये, वह मांस मैंने गिधडो को खिलाया। लेकिन उनमें से एक शिद्दी कहा भाग गया ये पता नहीं चला।
इस इमानि कुत्तेने मेरी जान बचाई इसिलिये मैंने उसे ऐसे सन्मान के साथ सिंहासनपर बिठाया है! उस इमानि जानवर को मै रोज पंचपक्वनो का खाना देता हूं।
‘लेकिन ये गुल मेरी पत्नी होते हुई भी विश्वासघातकी निकली औऱ व्यभिचारी निकली। उसने मेरे प्राण लेने के लिये अपने यार की मदत की!!…
उसके इस कृत्य का प्रायश्चित होने के लिये उसे ऐसे जंझिरोसे जखड़ रखा है और उस कुत्तेका झूठा अन्न उसे देते है।उस थाली में जो काला सर है वो इसीके उस यार का है। बादशहा ने अपनी दुर्दैवी कथा समाप्त करते हुऐ कहा, ‘हे युवान, पता चला अब की गुल ने सनोबर के साथ क्या किया!…विश्वासघात किया।
बादशहा की आवाज अब अब और भी भारी हो चुकी थी।उसके आँखों से अश्रुधारा बह रही थी।
और फिर थोड़ी ही देर में उसने अपने आँसू पोंछे और कहने लगा, ‘अब तुम्हारे मन का समाधान हुवा ना? अब तुम मरने के लिये तैयार हो जावो!
‘जहापन्हा, अपने वचन के अनुसार मैं मरने के लिये तैयार हूं! शहजादा केहने लगा, ‘लेकिन आपके पास से जो शिद्दी भागा है वो तैमूस राजाके मेहेरंगेज नामके राजकन्याके तख़्त के नीचे छुप के बैठा है। उसके कहने पर गुलने सनोबर के साथ क्या किया इस सवाल के जवाब देने वाले से शादी करने का उसने प्रण लिया है।
इस सवाल का जवाब जो दे नही सकता उसका ओ शिरच्छेद कर देती है। आजतक उसने सैंकड़ो नौजवानों को मार दिया है। यह कहके शहजादे ने गुल की असली हकीकत बादशहा को सुनायी और उसने कहा, ‘ इसिलिये जहापन्हा वहा जाकर उस मेहेरंगेज को इस सवाल का जवाब नहीं देते तबतक ये मृत्युचक्र रुकेगा नहीं…इसलिये आप मुझे जिन्दा जाने देंगे तभी ये संभव है।
उसके इस बात का सनोबर बादशहापर सही परिणाम हुवा, वह थोडासा सोचकर कहने लगा, ‘सुलैमानाबादके जवान और चतुर शहजादे, तु कहता है वो सही है ।मैंने तुझे मारने का इरादा अब रद्द कर दिया है।अब तु कहि भी जाने के लिये स्वतंत्र है।
बादशहा के इस आश्वासन से शहजादेको मनस्वी आनंद हुवा उसके सारे श्रम सार्थक जो हो गए थे!