गुल सनोबर/२ राजकन्या मेहेरअंगेज का चमत्कारिक सवाल

शाम के समय में राजपुत्र को शिकार से वापस आया देख बादशाह शमशाद लालपोश को आश्चर्य हुआ। उसे राजपुत्र का उतरा हुवा चेहरा देख कर ऐसा लगा जैसे ह्रदय में छर्रे घुस गए हों। बादशाह ने सोचा ऐसा क्या हो गया जो राजपुत्र चार दिन कहके शिकार के लिए ख़ुशी-ख़ुशी गए और सिर्फ एक ही दिन में उदासी लेकर घर लौट आये। बादशाह ने चिंता करते हुए पूछा बेटा तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना?

राजपुत्र ने कहा जी हा पिताजी, मेरी तबियत बिलकुल ठीक है। इतना ही कहकर वह अपने रूम में चला गया। राजकन्या मेहेरअंगेज की सोच में वह काफी विचलित हो चूका था। उस रात राजपुत्र ने किसी से भी बात नहीं की और ना ही खाना खाया।

एक दो दिन तक राजपुत्र को उतरा हुवा चेहरा, उसका वह विचलित होना, अकेले में खुद को अंधेरे में बंद कर लेना, समय पर खाना नहीं खाना इस प्रकार की हरकतों को देखकर बादशाह ने राजपुत्र से पूछा बेटा तुम ऐसे गुमसुम क्यों हो? क्या हुवा है तुम्हे?

अगर तुम कुछ बताओगे नही तो हमे कैसे पता चलेगा क्या हुवा है, अगर पता चला तो कमसे-कम कोई रास्ता तो निकाल सकते है।

बादशाह के पूछने पर राजपुत्र ने शिकार के समय रास्ते में मिले चमत्कारी बुजुर्ग और उसने सुनाई हुयी राजकन्या मेहेरअंगेज की पूरी हकीकत बताई और धीरे से कहा, पिताजी उस राजकन्या राजकन्या मेहेरअंगेज से मिलने की और उससे शादी करने की चाह है मेरी।



उसकी वह इच्छा सुनकर बादशाह को बहुत बढ़ा झटका लगा। उसने राजपुत्र को समझाने की कोशिश की और कहा की बेटा राजकन्या मेहेरअंगेज मेहेरअंगेज के बारे में सोचना और उसके पीछे भागना मतलब अपनी मृत्यु को निमंत्रण देना है क्या आपने उस बुजुर्ग ने कही बात पर भी गौर नही किया है किस तरह उसकी चाह में अपनी मृत्यु को बुला लिया। देखो बेटा उसके पीछे मत भागो मै तुम्हारे लिए उससे भी सुन्दर राजकन्या लाऊंगा।

लेकिन बादशाह के लाख समझाने पर भी राजपुत्र कहाँ समझने वाला था उलटे घड़े पर पानी डालने के समान ही था अब उसे समझाना। राजपुत्र मानो कुछ सुनने सुनाने के हालत में ही नहीं था। उसने मेहेरंगेज़ से शादी करने का पक्का निश्चय कर लिया था। इसके लिए उसने बादशाह के सामने शर्त रख दी अगर शादी करूंगा तो सिर्फ राजकन्या मेहेरअंगेज से।

उसने खाना-पानी सब त्याग दिया इसी के साथ-साथ वह महल की खोली में खुद को अकेला बंद करने लगा किसी से भी कोई बात नहीं करता था।

आखिर में 15 दिन बाद बादशाह ने दिल पे पत्थर रख कर राजपुत्र को मेहेरंगेज़ से भेट करने की इजाजत दे दी। उसी दिन राजपुत्र ख़ुशी के साथ घर के सभी बड़ो से मिलकर उनका आशीर्वाद लेकर निकर पढ़ा राजकन्या मेहेरअंगेज की तरफ।

उसने साथ में खाने का सामान भी ले लिया और निकल पढ़ा अपने तेज घोड़े पर बैठकर राजकन्या मेहेरंगेज़ के क्षेत्र की तरफ।