गुल सनोबर/४ राजकन्या मेहेरंगेज के बाग में


तैमुस बादशाह के राजधानी में पहुंचते ही शहजादेने बाजार से सबसे पहले नए कपडे ख़रीदे और उसने एक आम आदमी का रूप धारण किया। शहर के एक बुजुर्ग किसान को उसने सोने-चांदी के कुछ सिक्के दिए और उसी के घरमे रुकने के लिए अपना सामान लगाया।

दोपहर के वक़्त शहर में घूमने के मकसद से वह पैदल ही बहार निकला। घुमते-घूमते वह राजकन्या मेहेरंगेज के महल के पास स्थित बगीचे तक पहुंच गया। वह बाग़ बहुतही सुन्दर था।


उसमे हर तरह के फूल और कलिया महक रही थी। अनेको सुन्दर-सुन्दर फलो के पेड़ खड़े थे। हर रंग के पक्षी वहा पर विचर रहे थे। उस बगीचे के आसपास बड़े निश्चिंत मन से घूमते हुए शहजादे को वह दृश्य दिखाई दिया जिसे वह देखता रह गया।


बगीचे के पास एक बहुत ही सुन्दर कन्या सुन्दर आसन पर बैठी हुयी थी। उसका वह अप्रतिम सौन्दर्य किसी को बी जड़ बना देने वाला था। उस कन्या की बहुत सी सखियाँ थी और वह हर तरीके से सुन्दर कन्या के निखार को और ज्यादा सुन्दर बना रही थी। उसका वह तेजपूर्ण सौन्दर्य देखकर शहजादा मंत्रमुग्ध हो गया। वह सुन्दर कन्या और कोई नही राजकन्या मेहेरंगेज ही होगी यह समझने में उसने देर नही लगाई।


उस बगीचे में घुसने के लिए कोई रास्ता है क्या यह देखने के लिए शहजादे ने इधर-उधर देखा, एक बहुत बढ़ा पानी का झरने का रास्ता बगीचे में जा रहा था। उसका पानी जोर-जोर से बगीचे में घुस रहा था। उस झरने को देखकर उसकी आखों में चमक आ गई।

अगले ही क्षण उसने बहते पानी में छलांग लगा दी और तैरते हुए वह बगीचे के अन्दर दाखिल हो गया। अंदर आते ही उसने अपने कपडे सूखने के लिए निकाल दया और एक पेड़ के निचे छुपकर मेहेरंगेज़ को देखने लगा।


थोड़ी देर के बाद उसने अपने कपडे फिर से पहन लिए। बहुत देर के बाद मेहेरंगेज़ की एक सुन्दर दासी दिलआराम फल तोड़ने के लिए उसी पेड़ के पास आयी जहा शहजादा छुपा हुआ था।

उसे देखते ही वह ठिठक गई और देखती रह गयी। कुछ क्षण बाद वह शर्माकर वहाँ से भाग गई। दासी दिलआराम राजकन्या के पास आकर खड़ी हुई और धीरे से बोली, ‘शहजादिसाहिबा, हमारे बाग़ में कोई जवान घुस आया है।

‘क्या! जवान?… और इस बाग़ मे?… मेहेरंगेज़ ने हैरानी से कहा, जाओ अभी उसे मेरे सामने हाजिर करो। कुछ ही समय में दासी ने शहज़ादे को मेहेरंगेज़ के सामने हाजिर कर दिया।

गुल ने सनोवर के साथ क्या किया? इस सवाल के जवाब का पता लगाने के लिए शहजादे ने पागल का रूप बना लिया।

शहजादे के सुन्दर रूप को मेहेरंगेज़ भी देखती रह गयी। इतना सुन्दर आदमी उसने आज तक नही देखा था। मन ही मन वह शहजादे के रूप को निहारने लगी। उसने कुछ समय बाद शहजादे से पूछा ‘हे जवान, तुम कौन हो? क्या तुम्हे नही मालूम इस बाग़ में आदमियो को आने की अनुमति नही है।

लेकिन इस सवाल पर शहजादे ने कोई जवाब नही दिया। उल्टा उसने पास में पड़े घास की पत्ती को उठाया और मुह डालकर खाते हुए वही खड़ा रहा।

बीच-बीचमें शहजादा पागलो की तरह हस भी रहा था और कुछ भी बड़बड़ा रहा था। उसके ऐसे हावभाव को देखकर मेहेरंगेज़ को लगा की वह पागल है उसके बारे में सोचकर मेहेरंगेज़ को दया आने लगी।

वह बहुत सोच कर बोली ‘क्या भगवान का खेल है, इतना अच्छा और सुन्दर इंसान बनाया है लेकिन उसे दिमाग कम दिया, पागल बना दिया। मेहेरंगेज़ की बातो का शहजादे पर कोई असर नही हुआ।

और फिर मेहेरंगेज़ दासी दिलआराम की तरफ देखकर बोली ‘दिलआराम ‘ इस दुर्दैवी इंसान के लिए अपने बाग़ में कही रहने की व्यवस्था करो क्योकि यह यहापर रहा भी तो कुछ भी गलत नही कर पायेगा लेकिन ध्यान रहे इसकी रक्षा और देखभाल करना आज से तुम्हारी जिम्मेदारी होगी।

राजकन्या मेहेरंगेज़ का आदेश सुनकर दिलआराम को बेहद ख़ुशी हुयी। उसे तो यही चाहिए था। वह शहजादे को मन ही मन चाहने लगी थी तथा उसका साथ सदा साथ रहे ऐसा दासी को लग रहा था।

दासी दिलआराम ने शहजादे के लिए अच्छे-अच्छे कपडे, सुन्दर-स्वादिष्ट खाने आदि का प्रबंध किया। उसने उसे किसी तरह कोई कष्ट नही होने दिया। दासी ने कुछ ही दिन में शहजादे के नकली पागल रूप को पहचान लिया वह समजगई की यह पागल नही बल्कि किसी अन्य बात के लिए पागलो का रूप धारण किये हुए है।


शहजादा कुछ भी बात नही करता यह देखकर वह बोली, हे जवान तुम सच के पागल नहीं हो। कुछ तो बात है जिसके लिए तुमने यह रूप लिया है। हमने तुम्हें पहचान लिया है। ऐसा कौनसा पहाड़ तुमपर टूट पड़ा जिसके लिए पागल बनकर घूम रहे हो।


उसकी बातें सुनकर तथा उसकी आखों में करुणा देखकर शहजादा समझ गया की दासी के मन में उसके लिए चाहत पैदा हो गई है।

अपने लिए इतनी चाहत देखकर दूसरे ही क्षण शहजादे ने भी पागल का रूप छोड़ दिया और पूरी हकीकत बयाँ कर दी। उसने पूछा कि ‘हे चतुर सुंदरी क्या आपको गुल ने सनोबर के साथ क्या किया? यह पता है। उसका यह सवाल सुनकर दासी सन्न रह गयी। लेकिन दूसरे ही क्षण थोडेसे सोचने के बाद उसने कहा अगर आप मुझसे शादी करने का वचन देंगे तो मुझे जितनी जानकारी है आपको बता सकती हूं।

शहजादे ने भी ख़ुशी से वचन दे दिया। यह सुनकर दासी बहुत खुश हुयी और धीरे से बोली ‘यहाँ से बहुत दूर ‘वाफाक’ नाम का बहुत बड़ा नगर है उस नगरी के बादशाह का नाम ‘सनोबर है।

उस नगर से एक काला इंसान भाग आया है जिसे मेहेरंगेज़ ने अपने तख़्त के निचे छुपा दिया है उसीने राजकन्या मेहेरंगेज़ को पूरी हकीकत बताई थी और उसीके कहने पर उसने यह बड़ा विचित्र खेल शुरू किया है। इसे देखकर तो लगता है कि गुल ने सनोबर के साथ क्या किया? इस सवाल का जवाब भी ‘वाफाक़’ नगरी में ही मिल सकता है।

यह सुनकर शहजादे को बहुत ख़ुशी हुयी। उसने पूछा क्या आप जानते है ‘वाफाक ‘ शहर जाने का रास्ता कहाँ है। दासी ने कहा कि वह तो मुझे नही पता आपको ही रास्ता ढूँढना होगा।


लेकिन दासी के इस जवाब से शहजादा दुखी नही हुआ। वह और भी आत्मविश्वास के साथ बोला हे सुंदरी कोई बात नही आप निराश मत होइए ‘वाफाक’ नगरी दुनिया की किसी भी जगह क्यों न हो मै उसे ढूंढ ही लूंगा।

मैं तब तक शांत नही भैठूँगा जब तक मेहेरंगेज़ के गुल ने सनोवर के साथ क्या किया? इस सवाल का जवाब नही खोज लेता।

मैं इस सवाल का जवाब लेकर जल्द ही वाफाक शहर से वापिस लौटूँगा। उसने दिलाराम को आते ही शादी करने का वचन दिया। उसने दी हुयी जानकारी के लिए दासी को धन्यवाद दिया। और वाफाक नगरी की तलाश में निकल पड़ा।