गुल सनोबर/५ वाफाक नगरी की तलाश

बहुत दिन के सफ़र के बाद वाफाक शहर की तरफ निकला शहजादा एक बहुत बड़े मैदान में आ पहुचा। अब शाम भी हो रही थी और शीतल ठंडी हवा भी बहने लगी थी। उस मैदान के किनारे पर एक भव्य और बहुत बड़ी मस्जिद भी दिखाई दे रही थी।

नमाज पढने का भी समय हो चुका था। शहजाडा घोड़े से नीचे उतरा। पास ही में छोटा सा पानी का तालाब था। उसने उसमे हात-पांव धो लिया। घोड़े को वही एक पेड़ से बांधकर वह नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद की ओर चल पड़ा।

शहजादे ने नमाज पड़ने का पवित्र कपड़ा जमीन पर बिछाया और घुटने टेककर उसने एकमन से नमाज की प्रक्रिया पूरी की। नमाज पढ़ते ही वह मस्जिद के एक कोने में बैठकर चिंताग्रस्त होकर सोचने लगा की यह वाफाक शहर आखिर होगा किधर।

वह वैसेही सोचते हुए बैठा था की उसके कानो पर कुछ आवाज सुनाई दी। ‘बेटे’ तुम इतनी चिंता में क्यों बैठे हो? क्या कोई परेशानी सता रही है तुम्हे? शहजादे ने आश्चर्य से पीठ पीछे देखा तो एक तेज पुंज फ़क़ीर वहा पर खड़ा था। फकीर ने रेशमी कपडे पहने हुए थे। उसकी सफ़ेद दाढ़ी छाती तक आ रही थी। उसको देखते ही शहजादा झट से खड़ा हो गया।

मेरा नाम अल्माशरूह्बक्ष है। मैं सुलैमाबाद नगर का शहजादा हूँ। इतना कहकर उसने अपनी पूरी हकीकत फकीर के सामने बयान की। और वह आगे आकर बोला ‘ये वाफाक शहर किधर है क्या आपको कुछ पता है? अगर आपको मालूम हो तो कृपा करके मुझे बताये मै आपका बेहद शुक्रगुजार रहूँगा। ‘बेटा’ वह वाफाक शहर यहाँ से पश्चिम दिशा की ओर बहुत दूर है! रास्ते में सात समंदर फैले हुए हैं। उस शहर में जाना मौत को बुलावा देने के समान है। लेकिन तुमने वहाँ जानेका पक्का कर लिया हो तो मैं तुम्हे मार्ग बताता हूँ।

यहाँ से पश्चिम की ओर चलते जाना। रास्ते में दो और रास्ते मिलेंगे। उसमे बीच में तुम्हे एक मिनार दिखाई देगा। उसपर कुछ लिखा होगा। उसके हिसाब से तुम आगे चलते रहना।। मैं तुम्हे आशीर्वाद देता हूँ की अपने कार्य में तुम जरूर सफल होंगे।

फ़क़ीर के मार्गदर्शन के लिए शहजादे ने उनका शुक्रिया अदा किया। रात को वही रुकने के बाद सुबह अल्लाह का नाम लेकर वह पश्चिम दिशा की ओर वाफाक शहर के लिए निकल पड़ा। बहुत दूर चलने के बाद रास्ता दो भागों में बँटा मिला। दोनों रास्ते के बीच में एक लाल रंग का पत्थर का मीनार था। उसपर बहुत बड़ा शिलालेख लिखा हुआ था। उसमे लिखा था की ये दोनों रास्ते Waafaaq नगर की तरफ जाते हैं। इसमें से बायीं तरफ का रास्ता बहुत दूर का है। इस रास्ते से जाने पर वाफाक शहर पहुचने में कई साल लगेंगे किंतु इस रास्ते में कोई संकट नही आएगा। दायीं तरफ का रास्ता बहुत ही पास है। इस रास्ते से जाने पर वाफाक शहर बहुत जल्दी जा सकते हैं लेकिन इस रस्ते से जाने वाले को हर पल मायावी शक्तियों से और संकटों का सामना करना होगा। इनसे जो सुरक्षित निकल जायेगा वह अवश्य ही वाफाक पहुच जायेगा। वह शिलालेख पढ़कर शहजादा सोचने लगा। वह अल्लाह का नाम लेकर दाएं रास्ते से निकल पड़ा। बहुत दूर चलने पर उसे एक बहुत सुन्दर और बड़ा प्रदेश दिखाई दिया। उसमें एक उपवन भी था। उसमें अनेकों प्रकार के फल-फूल और मेवों के पेड़ थे। बहुत से पंछी और सुन्दर प्राणी वहाँ पर घूम रहे थे। उसी उपवन मे सुन्दर, सोनेरी महल था जो सूरज की किरणों में और भी अधिक आकर्षक लग रहा था। पूरा महल जैसे आनंद का घर लग रहा था। शहजादे ने सोचा कि इस महल में थोड़ी देर के लिए विश्राम कर लूं। फिर आगे के रास्ते पर निकलूँ। इस तरह सोचते हुए वह महल की तरफ बढ़ा। लेकिन बेचारे शहजादे को कहाँ पता था की वह सोनेरी महल उसके लिए कितना बड़ा संकट बनने वाला है।