गुल सनोबर/७ जमीलाबानू से मुलाकात
इस बाग़ में एक सुन्दर स्त्रीबैठी हुयी थी। सामने के झरने की मछलियों को वह थाली में से दाने डाल रही थी। वह मधुर आवाज में गाना भी गा रही थी। उसकी आवाज उसके रूप के समान ही मधुर थी।
हिरन बना हुआ शहजादा भूख से सूख गया था।
उस सुन्दर स्त्री का नाम था जमिलाबानु। उसे हिरन की दशा पर दया आ गयी। उसने प्यार से उस हिरन को पास बुलाया और उसकी पीठ पर हाथ फेरकर अपनी थालि से पकवान खिलाया। हिरन खाना खा रहा था तब जमिलाबानु ने हिरन की तरफ देखा। उसने कुछ सोचा और अपनी दासी को आवाज लगाई।
दासी के वहाँ आते ही जमिलाबानु ने कहा, ‘दासी, यह कोई हिरन बीरन नही है, यह तो कोई इन्सान है और उस दुष्ट लतिफाबानु ने ही इसे हिरन बनाया होगा। तुम इसे तुरंत अपने महल में लेके आओ।
महल में जाते ही उस सुन्दर स्त्री ने सबसे पहले स्नान किया। बाद में मंत्र मारे हुए पानी से हिरन का भी स्नान करवाया। और सांप जैसी लाठी से उसने जोर से हिरन के सर पर वार किया। जोर से चिल्लाते हुए वह हिरन नीचे गिर गया और उसी क्षण हिरन इन्सान के रूप में वापस आ गया।
अपने आपको फिर से इन्सान के रूप में देखकर शहजादे को बेहद ख़ुशी हुयी। जमिलाबानु से शहजादे ने खुश होकर कहा हे सुन्दर स्त्री आपका एहसान मै जीवन भर नही भूलूंगा आपका बेहद-बेहद शुक्रिया जो आपने मुझे फिर से इन्सान का देह दिलवाया। मैंने तो आस ही छोड़ दी थी कि फिर से इंसानी देह मुझे मिलेगा। जमीलाबानु ने कहा- इश्श इसमें शुक्रिया की क्या बात है आपके नसीब में जमीलाबानु से मुलाकात लिखी हुई थी तो वह होनी ही थी। मुझे प्राप्त मन्त्र शक्तियों का इस्तेमाल मै अच्छे कामो के लिए ही करती हूँ। किसी भी इन्सान या जानवर को संकट से बचाना मैं अपना परम दायित्व समझती हूँ। अगर आपको शुक्रिया करना ही है तो आप अल्लाह का कीजिये जिसने आपकी जमीलाबानु से मुलाकात करवाई।
जमिलाबानु ने शहजादे से उसका परिचय पूछा। शहजादे ने कहा मेरा नाम अल्माशरुहबक्श है और मुझे लतिफबानु ने अपनी मायावी शक्ति से हिरन बना दिया था। इस दौरान दासी ने खाने में मीठे-मीठे पकवान बनाये और अच्छी मदिरा भी साथ में मेजपर रख दिया। शहजादे के सामने थाली बढ़ाते हुए कुछ सोचते हुए जमिलाबानु बोली ऐ शहजादे! आप बुरा ना माने तो एक बात कहू?
उसके इस सवाल को सुनते ही शहजादे ने कहा, जी अवश्य पूछिए आपको क्या पूछना है। जमीला थोड़ी रुकी उसका चेहरा लाज से भर गया और सर नीचे झुक गया।
वह शरमाते हुए बोली- हे शहजादे ‘सच कहू तो किसी भी लड़की के द्वारा ऐसे बिना किसी पहचान के इन्सान को यह पूछना अच्छा नही लगेगा, लेकिन कहते है ना प्यार में और जंग में सब जायज है। आजतक मैंने शादी नही की, लेकिन अब मुझे इस अकेलेपन से डर लगने लगा है। मैं इस अकेलेपन से ऊब चुकी हूं। किसी कर्मवान व्यक्ति से शादी करके उसके साथ जीवन व्यतीत करूँ ऐसी मेरी इच्छा है। कल से आपको देखकर मेरी यह इच्छा मेरे जुबान तक पहुच चुकी है। इतना कहकर अचानक शरमाते हुए जमीला रुक गयी।
थोड़ी देर रुकने के बाद फिर से उसने शहजादे से कहा, ‘मेरे मन में यह भावना जागने के बाद आप पहले इन्सान हैं जो मुझे अच्छे लगे। मैं अपनी लाज दूर रखकर आपसे कहती हूँ कि मै आपसे प्यार करने लगी हूँ। पता नही क्यों मै आपपर मोहित हो चुकी हूँ। अगर आपकी मंजूरी हो तभी आपसे शादी करुँगी।
शहजादे ने सोचा की जमीलाबानु से मुलाकात होने से पहले किस तरह धोके से मायावी जादूगरनी ने उसे हिरन बनाया और किस तरह जमीलाबानु ने उसे फिर से इन्सान बनाया। इस सुन्दर स्त्री की यह भावना तोडना मतलबी होने जैसा होगा।
शहजादे ने कहा हे सुन्दरी आपकी यह इच्छा तोडना मेरी सबसे बड़ी मुर्खता होगी, आपकी जैसी इतनी सुन्दर पत्नी प्राप्त करना कौन नहीं चाहेगा। आपकी जैसी सुन्दर और गुणों से भरी पत्नी पाकर मै भी बेहद खुश रहूँगा और मै अपना सौभाग्य समझता हूँ की आपने मुझे इस लायक समझा।
उसके इस जवाब से जमिलाबानु बेहद खुश हुयी। लेकिन उसने देखा की कुछ सोचते हुए अचानक शहजादे का सर झुक गया था। तभी जमीला ने कहा कि क्या हुआ? क्या आपको मै पसंद नही हूँ।
शहजादे ने कहा नही-नहीं यह बात नहीं है लेकिन जब तक मै अपने मकसद में सफल नही होता तब तक मैं आपके साथ विवाह नही कर सकता हूँ। लेकिन मैं वाफाक नगरी से लौटकर जरूर आपसे विवाह करूँगा। मुझे मंजूर है आनंद से जमिलाबानु ने शहजादे से कहा। शहजादे ने अपने उंगलियों से अंगूठी निकालकर जमिलाबानु के सुन्दर उंगलियों में पहनाते हुए उसे विवाह करने का वचन दिया। एक दिन जमिलाबानु के साथ गुजारने के बाद शहजादा जाने के लिए तैयार होने लगा, तभी जमीला ने उसे एक तीर कमान और धनुष दिया। तीरों से भरे तरकसे के अलावा उसने एक तेज तलवार और उससे भी तेज खंजर भी शहजादे को दिया। वह बोली यह सभी जादू के शस्त्र है और इनके विशेष गुण है। यह धनुष और कमान हजरत सालेह पैगम्बर रस्लम इनका है और यह तलवार अकबर सुलेमान की है। यह सामने रखते ही धूल और मिट्ठी का तूफान उठेगा, बड़े-बड़े पहाड़ भी इसके सामने ढेर हो जायेंगे।
यह खंजर तैमुसी खंजर है, यह जिसके पास होगा उसके शरीर को इतनी ताकत मिलेगी की किसी भी वार को वह सहन कर सकता है। किसी भी शस्त्र का उसपर कोई असर नही होगा।
चलो मै अब आपको वाफाक नगर का रास्ता बताती हूँ। यहाँ से पश्चिम की तरफ बहुत दूर चलने के बाद एक बड़ा मैदान आएगा। वहापर ८० फीट का एक बहुत बड़ा बाग़ रहता है वह सभी बाघों का राजा है। आप उससे न घबराते हुए कुछ जानवरों का शिकार करके उस बाघ को खिलाइए और उसकी थोड़ी सेवा करिए जिससे वह आपसे खुश हो जाएगा। वह आपके सफ़र में आपके साथ रहेगा और आपकी रक्षा करेगा। तब आपको डरने की कोई आवश्यकता नही होगी। आगे जाने के बाद दो रास्ते मिलेंगे। उसके बाएं तरफ के रास्ते से आप जाना। बहुत दूर चलने के बाद ‘खुमाशा’ नाम का बेहद बड़ा पत्थर का किला आपको दिखाई देगा।
वह पत्थर का किला तरमताक बादशाह का है। उसके पास दो लाख से भी ज्यादा दानव हैं। लेकिन आपके पास दिए हुए इन शस्त्रों की वजह से वह आपसे मित्रता करेगा।
वहाँ से आगे चलकर आप शाहमृग के प्रदेश में दाखिल होंगे। इसके आगे का सफ़र आपको उन्ही की मदत से करना होगा। क्योकि बीच में बहुत बड़ा समंदर फैला हुआ है। यह पार करने के बाद ही आप वाफाक शहर पहुँच सकते हैं। इतना कहकर वह चुप हो गयी। शहजादे ने कहा हे सुंदरी जमीलाबानु आपसे मुलाकात करने के बाद अब मुझे पूरा यकीन है की मैं जल्द अपने सफ़र को पूरा करूँगा। आपकी बताई सारी बातें मैंने ध्यान से सुनी है। अब मैं आगे के सफ़र पर निकलता हूँ। आप मुझे जाने की आज्ञा दें।
बहुत दूर तक जमीला भी शहजादे के साथ-साथ आयी। तब शहजादे ने कहा हे सुंदरी अभी आप वापस लौट जाइए। आप चिंता मत करिए। मैं सही-सलामत वापस आ जाऊंगा और आपसे शादी भी करूँगा।
इतना कहकर शहजादे ने जमिलाबानु को अलविदा कहा और वाफाक नगरी की तरफ आगे निकल पड़ा।