शहजादा अपने सफर पर आगे बढ़ने लगा। वह क रैगिस्तान में पहुँचा। दोपहर का समय था। पूरा प्रदेश धूप से लाल हो चुका था। पेड़ के पत्ते पूरी तरह से मुरझा गए थे। गरम हवाओं ने पुरे शरीर को झुलसा दिया था। शहजादा पसीने से लथपथ हो गया था। उसका सिर घूमने लगा था। कुछ ही क्षण में शहजादा एक बड़े पेड़ के नीचे आ खड़ा हुआ। उस रेगिस्तान में वह अकेला पेड़ खड़ा था।

उस पेड़ की छाँव बहुत दूर तक फैली थी। उसपर मीठे फल भी लगे हुए थे। शहजादे को जोरों की भूख लगी थी। उसने पेड़ के नीचे पंछियों के खाए बहुत से नीचे पड़े फलों को खाने का फैसला किया। क्योकि पंछियों के खाए फल जहरीले नहीं होते हैं। शहजादे ने अपनी भूक मिटाने के लिए फल को खाना शुरू कर दिया। धुप के कारण थके होने से शहजादा पेट भरते ही वहीं पेड़ के नीचे आराम करने के लिए सो गया। थोड़ी ही देर में शहजादे को कुछ आवाज सुनाई दी। उसने चौंकते हुए उठकर देखा तो एक विचित्र चमत्कारिक दृश्य दिखाई पड़ा। एक विशाल अजगर अपना मुह खोले बैठा था और सिर्फ अपने सांस लेने भर से ही दूर तक खड़े प्राणियों को अपने जबड़े के अन्दर खींच ले रहा था। वे सबी प्राणी उसका भक्ष बनते जा रहे थे। वह भयानक अजगर धीरे-धीरे शहजादे की तरफ सरकते हुए मुह फैलाये बढ़ने लगा। कुछ ही देर में शहजादा भी अजगर के मुँह में खीचा जाने लगा और तेजी के साथ उस अजगर के मुह की और उड़ने लगा। अब शहजादे को पूरा यकीन हो गया की वह सीधे उस अजगर के पेट में खाना बनने जायेगा। तभी शहजादे को एक युक्ति सूझी। उसने उसी तेजी के साथ अजगर के मुह में जाते ही अपनी तलवार निकाली और बिलकुल सीधे उसके मुह के अन्दर रख दी जिससे वह भयानक अजगर अपना मुँह न बंद कर सके। अगर वह मुह बंद करने की कोशिश करे तो उस तेज तलवार से उसके मुँह में जख्म हो जाये। उसकी चाल सफल हो गयी ।अजगर ने जब मुह बंद करने की कोशिश की तो तलवार उसके मुह में पूरी तरह से फँस गयी और वह चिल्लाने लगा और जमीन पर नीचे चक्कर खाने लगा। शहजादे ने उसी समय अपने कमर से खंजर निकाला और उस अजगर पर वार करने लगा। थोड़ी ही देर में अजगर खून से लथपथ होकर वहीं ढेर हो गया। उसकी हलचल पूरी तरह बंद हो गयी। शहजादे ने उस मरे हुए अजगर के टुकडे टुकडे कर के उस पेड़ के ऊपर के शाम्रुग के बच्चो को खाने को दे दिया। इसके बाद शहजादा थक कर पुनः उसी पेड़ के नीचे सो गया।

थोड़ी देर बाद आसमान में पूरी तरह से काले बादल छा गए। सब जगह अँधेरा हो गया। जोर से हवा चलने लगी और अगले ही पल वहाँ पर एक शहामृग का जोड़ा उतरा। आसपास पड़ा हुआ खून और मांस के टुकड़े तथा पास में ही सोये हुए शहजादे को देखकर उन शाह्म्रुग को शक हुआ कि इस व्यक्ति ने उनके बच्चों को मार डाला है। नर शाह्म्रुग ने अपनी मादा शाहामृग से कहा की यह जो दुष्ट आदमी सोया है उसी ने हमारे बच्चो को खाया हो गा। मैं अब उसको मारे बिना नहीं रहूँगा। ऐसा कहकर वह अपने नुकीली चोंच से उस आदमी को मारने आगे बढ़ा। परन्तु उसे रोकते हुए मादा शहामृग बोली ।रुको तुरंत एसा मत सोचो। पहले हम अपने बच्चो को देख लेते हैं। नर शहामृग को यह बात सही लगी और दोनो ही अपने घोंसले की तरफ निकल पड़े। घोंसले के पास पहुचकर उन्होंने देखा की उनके बच्चे मांस खाके शांति से सो रहे थे। पास में ही मांस के कुछ टुकड़े गिरे पड़े थे।

मादा शहामृग ने बच्चो को जगाया और सारा हाल पूछा। बच्चों ने बताया की किस तरह से शहजादे ने भयानक अजगर को मार गिराया। वह अजगर ख़त्म हो गया यह सुनकर वह जोर-जोर से चिल्लाते हुए नाचने लगे। उनकी उन आवाजो की वजह से शहजादा नींद से जाग उठा और अपनी आखे मलते हुए उनकी तरफ देखने लगा।

वह शहामृग शहजादे से बोला ‘हे शूर योद्धा’ तुमने उस दृष्ट अजगर को ख़त्म करके हमपर बहुत बड़ा एहसान किया है, वह दुष्ट हमेशा हमारे बच्चो को खा जाता था और हमें नुकसान पहुचता रहता था। पहले तो हमें तुम्हे देखकर अविश्वास हुआ था। उसके लिए हम क्षमा माँगते है।


‘अरे बापरे’ इन पंछियों की आवाज मुझे कैसे समज आ रही है? यह तो जैसे किसी कहानी में होता है। ऐसा मेरे साथ हो रहा है। शहजादा यह सोचकर आश्चर्यचकित हो गया और खुद से ही बोलता रहा। शहामृग ने उसके इस सवाल की पहेली का जवाब देते हुए कहा, हे शहजादे इस पेड़ के फल जो कोई खाता है उसे सभी जानवरों और पंछियों की आवाज समझने देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।

इसीलिए तुम हम सबकी भाषा समज पा रहे हो। यह कोई सपना नही है। लेकिन हे परोपकारी इंसान तुम हो कौन? और यहाँ क्या कर रहे हो? इतने दूर तुम किस लिए आये हो? क्या हम तुम्हारी कोई मदत कर सकते हैं? तुम्हे मदत करते हुए हमें बेहद ख़ुशी होगी।

शहजादे ने पूरी दास्तान उन्हें बताई। उसपर शहामृग ने कहा, हे शहजादे यहाँ से थोड़े ही दूर एकसाथ मिले हुए साथ महासागर फैले हूये है। उन महासागर के उस पार ही वह वाफाक शहर है। मै तुम्हे अपने पैरो से बांधकर उस शहर में छोड़ सकता हूँ लेकिन इस सफ़र को बहुत दिन लगेंगे। इसीलिए खाने के लिए तुम खूब सारे फल साथ ले लो।

उस रात को शहजादे ने वहीं रुककर आराम किया। सुबह होते ही उसने ढेर सारे फल इकट्ठे किये और दोनों वाफाक शहर के सफर पर निकल पड़े। शहजादे ने खुद को अच्छी तरह से खुद को शहामृग के पैर से बांध लिया। उस प्रचंड शहामृग ने आकाश में उड़ान भरी और तेजी के साथ आसमान में जा पहुचा।

आसमान में उनका सफ़र काफी दिनों तक चलता रहा। नीचे महासागरो में नीला पानी भरा हुआ था। शहजादे के मन में भी अब थोड़ी घबराहट होने लगी थी की यदि गलती से शहामृग के पैर से वह छूट जाए तो सीधे समंदर के अन्दर समा जाएगा। लेकिन सौभाग्य से एसा कुछ नही हुआ। बहुत दिन के बाद आखिर वह सफलता के साथ महासागरो के पार किनारे पर आ ही गए।

किनारे पर आकर शहजादे ने खुद को शहामृग के पैरो से अलग किया। शहामृग ने उसे पंख का एक टुकड़ा देते हुए कहा, ‘ यह टुकड़ा अग्नि के साथ जलाते ही मैं फिर से तुम्हारे सामने आ जाऊंगा। इसे तुम अपने पास रखो।

शहजादे ने उस पंख के तुकड़े को लेते हुए शहामृग का शुक्रिया अदा किया और कहा आपके यह एहसान मैं कैसे चुकाऊँ? अगर आप नही होते तो मुझे नही लगता की मैं इन सात समन्दरो को पार करके वाफाक शहर तक पहुच पाता। इतना कहकर शहजादे ने उसे अलविदा कहा। शहामृग के वहा से जाते ही शहजादे ने अपना रुख वाफाक शहर की तरफ किया। उसने देखा आसमान को चूमने वाली बड़ी-बड़ी इमारतो से बना वह शहर जैसे उसके सामर्थ्य को चेतावनी दे रहा था। गुल ने सनोबर के साथ क्या किया इस सवाल का जवाब आखिर उसी शहर में जो छुपा हुआ था।