नवग्रह

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भारतीय ज्योतिष मान्यता में ग्रहों की संख्या 6 मानी गयी है, जैसा निम्र श्लोक में वर्णित है-

सूय्र्यचन्द्रो मंगलश्च बुधश्चापि बृहस्पति:। शुक्र: शनेश्चरो राहु: केतुश्चेति नव ग्रहा:।।

अर्थात् सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु ये नव ग्रह हैं।इनमें प्रथम 7 तो पिण्डीय ग्रह हैं और अन्तिम दो राहु और केतु पिण्ड नहीं हैं बल्कि छाया ग्रह हैं।

यज्ञ द्वारा ग्रह शान्ति के उपाय में हर ग्रह के लिए अलग अलग विशिष्ट वनस्पति की समिधा (हवन प्रकाष्ठ) प्रयोग की जाती है, जैसा निम्र श्लोक में वर्णित है- अर्क: पलाश: खदिरश्चापामार्गोऽथ पिप्पल:। औडम्बर: शमी दूव्र्वा कुशश्च समिध: क्रमात्।।

- गरुण पुराण के अनुसार अर्थात अर्क (मदार), पलाश, खदिर (खैर), अपामार्ग (लटजीरा), पीपल, ओड़म्बर (गूलर), शमी, दूब और कुश क्रमश: (नवग्रहों की) समिधायें हैं।

नक्षत्र एवं ग्रह के अनुसार 27 प्रकार के पौधे

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इनमें

  • अश्विनी नक्षत्र का कुचला,
  • भरणी-आँवला,
  • कृत्तिका-उदुंबर/गूलर,
  • रोहिणी-जामुन,
  • मृगशिरा-खैर,
  • आर्द्रा-कृष्णागुरु,
  • पुनर्वसु-बाँस,
  • पुष्य-पीपर,
  • अश्लेषा-चंपा,
  • मघा-बड़वट,
  • पूर्वा फाल्गुनी-पलाश,
  • उत्तरा फाल्गुनी-कनेर,
  • हस्त-चमेली,
  • चित्रा-बेल,
  • स्वाति-कांहा/कोह,
  • विशाखा-कैथ,
  • अनुराधा-मौलसरी,
  • ज्येष्ठा-शाल्मली/सेवर,
  • मूल-साल/सखुआ,
  • पूर्वाषाढ़ा-वैंत,
  • उत्तराषाढ़ा-कटहल,
  • श्रवण-आंकड़ा,
  • धनिष्ठा-समी/सफेद कीकर,
  • शतभिषा-कदंब,
  • पूर्वभाद्रपदा-आम,
  • उत्तराभाद्रपदा-नीम और
  • रेवती-महुआ