कृष्ण काव्य में माधुर्य भक्ति के कवि/चतुर्भुजदास की माधुर्य भक्ति
चतुर्भुजदास के आराध्य नन्दनन्दन श्रीकृष्ण हैं। रूप, गुण और प्रेम सभी दृष्टियों से ये भक्त का मनोरंजन करने वाले हैं। इनकी रमणीयता भी विचित्र है ,नित्यप्रति उसे देखिये तो उसमें नित्य नवीनता दिखाई देगी:
- माई री आज और काल्ह और,
- दिन प्रति और,देखिये रसिक गिरिराजबरन।
- दिन प्रति नई छवि बरणै सो कौन कवि,
- नित ही श्रृंगार बागे बरत बरन।।
- शोभासिन्धु श्याम अंग छवि के उठत तरंग,
- लाजत कौटिक अनंग विश्व को मनहरन।
- चतुर्भुज प्रभु श्री गिरधारी को स्वरुप,
- सुधा पान कीजिये जीजिए रहिये सदा ही सरन।।
प्रेम के क्षेत्र में भक्तों के लिए आदर्श गोपियाँ भी श्रीकृष्ण की रूप माधुरी से मुग्ध हैं। उसकी सुन्दर छवि को देखकर गोपियों का तन मन सभी कुछ पराया हो जाता है वे सदा श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती हैं। इसी से उनके मन का संताप दूर होता है। श्रीकृष्ण से वे लोक- लाज ,कुल के नियम एवं बन्धन सब तोड़कर मिलना चाती हैं :
- तब ते और न कछु सुहाय।
- सुन्दर श्याम जबहिं ते देखे खरिक दुहावत गाय।।
- आवति हुति चली मारग सखि, हौं अपने सति भाय।
- मदन गोपाल देखि कै इकटक रही ठगी मुरझाय।।
- बिखरी लोक लाज यह काजर बंधु अरु भाय।
- दास चतुर्भुज प्रभु गिरिवरधर तन मन लियो चुराय।।
गोपियों के मन को वश में करने में कृष्ण की रूप माधुरी के साथ- साथ उनके गुण तथा मुरली माधुरी का भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है। उनकी मुरली माधुरी का भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है। मुरली माधुरी तो चेतन-अचेतन सभी को अपनी तान से मुग्ध कर देती है। अतः बन में जाती हुई गोपी के कान में पहुँचकर सप्त-स्वर बंधान युक्त मुरली की ध्वनि यदि अपना प्रभाव डालती हो तो आश्चर्य क्या :
- बेनु धरयो कर गोविन्द गुन निधान।
- जाति हुति बन काज सखिन संग ठगी धुनि सुनि कान।।
- मोहन सहस कल खग मृग पसु बहु बिधि सप्तक सुर बंधान।
- चतुर्भुजदास प्रभु गिरिधर तन मन चोरि लियो करि मधुर गान।।