छायावादोत्तर हिंदी कविता/भेड़िया-2 और 3
- भेड़िया-2
भेडिया गुर्राता है
तुम मशाल जलाओ।
उसमें और तुममें
यही बुनियादी फर्क है
भेडिया मशाल नहीं जला सकता।
अब तुम मशाल उठा
भेडिये के करीब जाओ
भेडिया भागेगा।
करोड़ों हाथों में मशाल लेकर
एक-एक झाडी की ओर बढो
सब भेडिये भागेंगे।
फ़िर उन्हें जंगल के बाहर निकल
बर्फ में छोड़ दो
भूखे भेडिये आपस में गुर्रायेंगे
एक-दूसरे को चीथ खायेंगे।
भेडिये मर चुके होंगे
और तुम?
- भेड़िया-3
भेड़िए फिर आएँगे।
अचानक
तुममें से ही कोई एक दिन
भेड़िया बन जाएगा
उसका वंश बढ़ने लगेगा।
भेड़िए का आना ज़रूरी है
तुम्हें ख़ुद को पहचानने के लिए
निर्भय होने का सुख जानने के लिए
मशाल उठाना सीखने के लिए।
इतिहास के जंगल में
हर बार भेड़िया माँद से निकाला जाएगा।
आदमी साहस से, एक होकर,
मशाल लिए खड़ा होगा।
इतिहास ज़िंदा रहेगा
और तुम भी
और भेड़िया?