जनपदीय साहित्य/सोहर भोजपुरी
कवना बने फूले गुअवा[१] नरियर, कवना बने फूल फूले हो। |
- भावार्थ - इस गीत में एक परिहासपूर्ण प्रसंग का उल्लेख किया गया है। एक स्त्री का पति परदेस से कमाकर, बदले हुए वेश में घर लौटता है। रंगीन वस्त्रों में सजी-धजी अपनी पत्नी को चुक्कड़ में पानी भरता हुआ देखकर आश्चर्यचकित रह जाता है। हालाँकि चुक्कड़ में पानी भरने का कारण उसकी पत्नी की गर्भावस्था है, जिसके दौरान घड़े में पानी भरना उचित नहीं। वह अपनी पत्नी से हँसी-ठिठोली करते हुए उसका परिचय पूछता है। पनघट से स्त्री जब घर लौटती है तो अपनी सास से इस घटना की शिकायत करती है। घटना का सारा हाल सुनकर सास ख़ुशी में उसे तर्जना (क्रोधपूर्वक या बिगड़ते हुए कोई बात कहना) देते हुए आनंदमय भेद (कि वह परिचय पूछने वाला व्यक्ति तुम्हारा पति ही है) का उद्घाटन करती है।[१४]
संदर्भ
सम्पादन- ↑ गुवाक=सुपारी या कसैली।
- ↑ एक प्रकार की लता, जो पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है। इसकी सूखी जड़ और डंठलों को पानी में उबालकर एक प्रकार का बढ़िया लाल या गुलाबी रंग तैयार किया जाता है। वैद्यक (आयुर्वेदिक उपचार पद्धति) में भी इसका व्यवहार होता है।
- ↑ चुक्कड़, पानी पीने के लिए उपयोग किया जाने वाला मिट्टी का छोटा पात्र।
- ↑ किसकी।
- ↑ हो।
- ↑ दुहिता=बेटी।
- ↑ स्त्री।
- ↑ कैसा।
- ↑ है।
- ↑ उनका।
- ↑ बहुत तेज़ बोलनेवाली, अंटसंट बोलनेवाली, गाली बकनेवाली, जिसके ओठ हमेशा चलते रहते हों।
- ↑ झगड़ालू।
- ↑ भोजपुरी संस्कार गीत, (सोहर, गीत संख्या - ४) संपादक - श्री हंस कुमार तिवारी, श्री राधावल्लभ शर्मा, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना, २०११ संस्करण, पृष्ठ ८-९
- ↑ भोजपुरी संस्कार गीत, संपादक - श्री हंस कुमार तिवारी, श्री राधावल्लभ शर्मा, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना, २०११ संस्करण, पृष्ठ ८