आल्हा एक लोकगाथा है जो कि मध्य भारत के बुंदेलखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के बीच काफी प्रचलित है। आल्हा ऊदल दो भाई थे दोनों ही अपनी वीरता के लिए विख्यात थे। जगनिक द्वारा रचित आल्हा काव्य मे इन दोनों वीरों की वीरता का वर्णन है। सन 1182 के आसपास पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई करते समय उदल वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उदल की वीरगति की खबर सुनकर आल्हा बहुत ज्यादा क्रोधित होते हैं तथा वह भी पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई करने के लिए युद्ध के मैदान में चले जाते हैं तथा मौत बनकर पृथ्वीराज चौहान की सेना के ऊपर टूट पड़ते हैं जो भी उनके सामने आया या उनसे युद्ध करने की कोशिश की उसको उन्होंने मौत के घाट पर दिया यहां तक कि पृथ्वीराज चौहान को भी उन्होंने अपने सामने घुटने टेकने मजबूर कर दिए थे।

इतिहास

आल्हा ऊदल के पिता दासराज जोकि चंदेल राजा परमाल के यंहा सेनापति थे। तथा आल्हा उदल की माता का नाम दिबला था और उनके मामा का नाम था माहिल। आल्हा एक देवी भक्त था जो कि देवी मां को सिद्ध कर चुका अपनी भक्ति द्वारा देवी मां ने आल्हा को काफी सारे वरदान भी दिए थे। आल्हा के बेटे का नाम इंदल था और धर्मपत्नी का नाम का मछला था आल्हा ने अपने शासनकाल के दौरान तकरीबन 52 युद्ध किए थे अपने विरोधियों से आल्हा ऊदल के पिता जसराज की मृत्यु काफी जल्दी हो गई थी जिसके बाद राजा परमाल नहीं आल्हा ऊदल का पालन पोषण किया था राजा परमाल की पत्नी रानी मदीना आल्हा उदल दोनों को अपने पुत्रों के समान प्रेम करती थी राजा परमाल ने आल्हा उदल को शिक्षा दीक्षा में निपुण होने के लिए गुरुकुल भेजा जहां पर आल्हा ऊदल ने अपनी शिक्षा ली तथा अर्थशास्त्र की भी शिक्षा प्राप्त करी आल्हा उदल दोनों की वीरता के किस्से हर जगह सुनने को मिले जिसके बाद राजा परमाल ने आल्हा ऊदल को अपने राज्य का सेनापति घोषित कर दिया। जिससे रानी मदीना के भाई काफी ज्यादा नाराज हो गए हमेशा आल्हा ऊदल के खिलाफ कुछ ना कुछ षड्यंत्र रचा करते थे इसी बीच दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान ने परमाल राजा के राज्यों पर हमला करने का षड्यंत्र किया लेकिन पृथ्वीराज इस बात से वाकिफ थे कि राजा प्रमाण के यहां आल्हा उदल नाम दो वीर सेनापति थे जिनके रहते हुए परमार राजा को हराना था उसके राज्य को हड़पना असंभव लग रहा था पृथ्वीराज बखूबी जानते थे कि आल्हा उदल दोनों को एक साथ नहीं हराया जा सकता था। इसलिए उन्होंने अपनी रणनीति बदल दी पृथ्वीराज चौहान ने आल्हा उदल दोनों को अलग करने का षड्यंत्र रचा उदल लड़ते-लड़ते पृथ्वीराज चौहान के काफी नजदीक पहुंच गए और दोनों में भीषण युद्ध होने लगा इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडा राय ने उदल की पीठ पर वार कर दिया ऊदल वीरगति को प्राप्त हो गए भाई की मृत्यु की खबर सुनकर आधा आग बबूला हो गए और पृथ्वीराज चौहान की सेना पर कहर बनकर टूट पड़े पृथ्वीराज चौहान की सेना में हाहाकार मच गया। पृथ्वीराज चौहान और आल्हा का भीषण युद्ध हुआ जिसने पृथ्वीराज चौहान को पराजय का मुंह देखना पड़ा तभी आल्हा की गुरु गोरखनाथ ने उन्हें पृथ्वीराज चौहान की हत्या करने से रोक दिया यह कहते हुए कि एक वीर योद्धा कभी प्रतिरोध की अग्नि में अपने सामने वाले का वध नहीं करता आल्हा में पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दे दिया लेकिन इस युद्ध में वह अपने भाई उदल को गवा बैठे वह इतने दुखी हो गए इसके बाद वह बैरागी हो गए इन्हीं सब बातों ने आल्हा को अमर कर दिया लोगों के बीच।

मछलाहरण
एक समय की बात है जब मछला ने अपनी सासू मा दिवला से बाग में झूला झूलने को लेकर बहस कर ली और झूला झूलने की जिद पकड़ ली सासु मां के लाख समझाने के बावजूद भी मछला अपनी बात से पीछे नहीं हटी तथा झूला झूलने की जिद ठान ली  दिवला ने समझाया कि जहां पर झूला झूलने क्यों बात कर रही है वहां पर उसके दुश्मनों का बसेरा रहता है।  इस पर मछला ने कहा मैं कोई ऐसी वैसी लड़की नहीं हूं मैं भी एक राजपूत की बेटी हूं मैं भी देखती हूं कौन मुझे आंख उठाकर देखता है मच्छर आने की थाली किसका झूला नौलखा बाग में ही डाला जाए

मछला को नौलखा बाग में छोड़कर फिर उधर चला गया शिकार खेलने उसी समय वहां पर ज्वालासिंह आ पहुंचा जो कि उस जगह का राजा था। पत्थरगढ़ का तथा मछला का हरण करके वहां से लेकर चला गया पत्थरगढ़ इतना सुनने के बाद आल्हा उदल बहुत खुश होते हैं और युद्ध करने के लिए पत्थर गढ़ पहुंच जाते हैं लेकिन पत्थर गढ़ का राजा ज्वाला सिंह जो कि वह भी देवी का भक्त था देवी मां ने आल्हा उदल की सेना को पत्थर का बना दिया इसके बाद आल्हा का पुत्र इंदल जो कि एक 16 साल का युवक था देवी मां के चरणों में उसकी बलि दी गई जिससे देगा प्रसन्न होकर आला उदल की सेना को पुनर्जीवित कर दिया इसके बाद इंदल को भी जीवित कर दिया इसके बाद आल्हा ऊदल पत्थर गढ़ की लाई जीत गए और मछला को वापस महोबा लेके चले आए।