जनपदीय साहित्य सहायिका/बिदेसिया भिखारी ठाकुर कृत लोकनाट्य
यह गांव का युवक जो देखने में आकर्षक तथा कद काठी में भी भली-भांति अच्छा है। यह मजदूरी का कार्य करता हैं, साल के कुछ ही दिनों कार्य मिलता और बाकी समय बेरोजगार रहता हैं। उसकी शादी एक बहुत ही सुंदर युक्ति से हो जाती हैं। शादी के कुछ दिनों बाद वह युवक अपनी प्यारी पत्नी का गवना करा कर अपने घर ले आता हैं। दोनों में बहुत ही प्रेम था वह अपनी पत्नी को प्यार और स्नेह से प्यारी सुंदरी के नाम से संबोधित करता हैं। दोनों एक आदर्श पति पत्नी की तरह रहा करते थे। बस शादी के कुछ दिन तो बहुत ही प्रसन्नता से रहे उनके कुछ दिन बहुत ही सुख चैन से बीते परंतु बेरोजगारी और बिगड़ती आर्थिक स्थिति के कारण युवक मन ही मन बहुत ही दुखी होता हैं। उसे अपनी आर्थिक स्थिति की चिंता होने लगती हैं। वहीं दूसरी ओर गांव के तथा आसपास के युवक तथा आधी उम्र के लोग कार्य के अभाव के कारण कार्य ढूंढने तथा धन अर्जित करने हेतु देश के अलग-अलग हिस्सों में जा रहे थे। कुछ कोलकाता जा रहे थे, कुछ आसाम जा रहे थे, कुछ राजस्थान जा रहे थे। यह प्रचलन हर बार का है जो लोग अलग राज्यों में धन अर्जित करने जाते हैं वह धन जमा कर कुछ दिनों में लौट आया करते थे। यह देखकर की मेरे गांव के सभी लोग धन अर्जित करने हेतु कहीं ना कहीं जा रहे हैं।तो वह भी सोचता है कि उसे भी कहीं जाना चाहिए धन कमाने हेतु युवक कोलकाता जाने के बारे में सोचता हैं। युवक इस विषय के बारे में अपनी पत्नी प्यारी सुंदरी को बताता हैं। वह बोलता है कि वह कोलकाता धन कमाने जाना चाहता हैं। परंतु यह सुनकर प्यारी सुंदरी विचलित हो जाती है वह इस प्रस्ताव का विरोध करती हैं। तथा पूर्ण रूप से मना कर देती हैं। वह बोलती है कि मैं आपको कहीं नहीं जाने दूंगी हम यहीं पर कुछ ना कुछ कार्य ढूंढ लेंगें। परंतु युवक जाने का ज़िद करता है फिर भी प्यारी सुंदरी मना कर देती हैं। युवक सोचता है वह कोलकाता जाकर धन कमाए तथा वापस आकर अपनी प्यारी सुंदरी के साथ सुख में जीवन व्यतीत करें परंतु प्यारी सुंदरी के मना करने के बाद वह सोच में पड़ जाता है कि वह कैसे जाए क्योंकि प्यारी सुंदरी ने पूर्ण रूप से मना कर दिया था फिर भी व कोलकाता जाने की ज़िद ना छोड़ते हुए वह प्यारी सुंदरी को बिना बताए कोलकाता जाने का मन बना लेता हैं। एक दिन वह बहाना बनाकर चुपचाप कोलकाता के लिए निकल जाता हैं।
युवक कोलकाता पहुंच जाता है वहां जाकर वह विदेशी बन जाता है कोलकाता में वह अपने लिए कार्य भी ढूंढ लेता है वह दिन भर पूरी जी लगाकर काम करता है वह कड़ी मेहनत करता है और धन कमाता हैं। कोलकाता में अचानक युवक का परिचय एक अनजान युक्ति से होता है वह दोनों ही एक दूसरे के लिए अनजान थे वहीं युवक भी अधिक धन कमाने लगता है युक्ति भी उसके करीब आती जाती है दोनों बहुत ही कम समय में निकट आ जाते हैं तथा दोनों साथ में ही रहने लगते हैं
लोगों की नजरों में मानो दोनों गिर से जाते हैं समाज उस युक्ति को (रखैल) समझने लगता है बिदेसिया दिन भर कड़ी मेहनत कर धन कमाता तथा शाम को उस महिला के साथ ही अपना पूरा समय व्यतीत करता है दोनों अपना जीवन बहुत ही सुखमय तरीके से व्यतीत करते हैं बिदेसिया मानो अपनी पत्नी प्यारी सुंदरी को भूल ही चुका होता हैं।।
गांव में बिदेसिया की पत्नी प्यारी सिंदरी को जब यह आभास होता है कि उसका पति बिना उसकी सहमति के उसे अकेला छोड़कर कलकत्ता कमाने चला गया है तो मानो उसके सिर पर जैसे की पत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा हो।
वह दिन रात अपने पति की यादों को याद कर करके रोती रहती है वह अपने पति के वियोग में तरह तरह के विलाप करती रहती है। वह कभी अपने पति की यादों को याद कर उदास हो जाती है तथा कभी यह सोच कर परेशान होती है कि उसका पति कलकत्ता में कैसे रह रहा होगा। प्यारी सुंदरी को यह एकाकीपन बहुत ही विचलित करता है परंतु फिर भी उसे दृढ़ विश्वास है कि उसका पति एक ना एक दिन अवश्य लौट आएगा।। परंतु वह हर रोज ऐसे ही विलाप करती और अपने पति को याद करती रहती थी हर रोज अपने को मनाती है कि कभी ना कभी उसका पति लौट आएगा एक दिन वह जब अपने पति को याद कर करके विलाप कर रही थी तब अचानक से एक दिन एक आधी उम्र का बटोही उसके घर के तरफ से जा रहा था तो उस बटोही को देखकर वह बटोही को आवाज देकर बुलाती है वह प्यारी सुंदरी की आवाज सुनता तो है पर उसके पास जाने में संकोच करता है फिर भी वह सोचता है कि जाकर उस स्त्री की बात सुननी चाहिए।।
करिया ना गोर बाटे, लामा४ नाही हउवन नाटे५, मझिला६ जवान साम७ सुंदर बटोहिया। घुठी८ प ले धोती कोर, निकया९ सुगा के ठोर, सिर पर टोपी, छाती चाकर१० बटोहिया। पिया के सकल के तूँ मन में नकल लिखऽ, हुलिया के पुलिया११ बनाइ लऽ बटोहिया। आवेला आसाढ़ मास, लागेला अधिक आस, बरखा१२ में पिया घरे रहितन बटोहिया। पिया अइतन बुनियाँ१३ में, राखि लिहतन दुनियाँ में, अखड़ेला१४ अधिका सवनावाँ बटोहिया। आई जब मास भादो, सभे खेली दही-कादो१५, कृस्न के जनम बीती असहीं बटोहिया। आसिन महीनवाँ के, कड़ा घाम१६ दिनवाँ के, लूकवा१७ समानवाँ बुझाला हो बटोहिया।। कातिक के मासवा में, पियऊ का फाँसवा में, हाड़ में से रसवा चुअत बा बटोहिया। अगहन-पूस मासे, दुख कहीं केकरा से? बनवाँ सरिस बा भवनवाँ बटोहिया। मास आई बाघवा१८ लागी माघवा, त हाड़वा में जाड़वा समाई हो बटोहिया। पलंग बा सूनवाँ, का कइलीं अयगुनवाँ से, भारी ह महिनवाँ फगुनवाँ बटोहिया। अबीर के घोरि-घोरि, सब लोग खेली होरी रँगवा से भँगवा१९ परल हो बटोहिया। कोइलि के मीठी बोली, लागेला करेजे गोली, पिया बिनु भावे ना चइतवा बटोहिया। चढ़ी बइसाख जब, लगन पहुँची तब, जेठवा दबाई हमें हेठवा२० बटोहिया। मंगल करी कलोल, घरे-घरे बाजी ढोल, कहत ' भिखारी' खोजऽ पिया के बटोहिया।
जब बटोही प्यारी सुंदरी के पास जाता है तो वह पूछती है की बटोही कहां जा रहे हो तो बटोही बताता है कि वह कलकत्ता धन कमाने जा रहा है यह सुनकर की वह बटोही भी कलकत्ता ही जा रहा है तो वह अपना दुख बटोही को बताती हैं। वो कहती है कि उसके पति भी कलकत्ता धन कमाने गए हैं परंतु अभी तक कोई खोज खबर नहीं आई। बटोही को अपने पति के बारे में पूरा विवरण देती है वह बताती है कि उसके पति का रंग ना गोरा है ना काला, वह ना लंबा है ना नाटा, वह सुंदर जवान है उसने धोती और टोपी पहना है वह प्यारी सुंदरी यह सारी बातें बटोही को बताती हैं। वह बटोही को बताते हुए बहुत विलाप करती है और बारहमासा गीत गाती है जिसमें वह वो कहती है जब सावन का महीना आता है तो उसे यह महीना बहुत ही तकलीफ देता है वह आगे कहती है कि जब भादो का महीना आता है तब सब दही हांडी का उत्सव मनाते हैं उसका पति भी साथ होता तो वह भी साथ में मिलकर मनाते।
वह ऐसे ही पूरे 12 माह का उदाहरण देते हुए अपना दुख बटोही को बताती हैं। बटोही उसके कष्ट एवं दुख को सुनने और समझने के बाद उसके पति को खोज कर वापस भेजने का आश्वासन देता हैं।
जब बटोही कलकत्ता पहुंच जाता है वह कुछ दिन घूमने फिरने के पश्चात एक दिन ऐसे ही घूम रहा होता है तो उसकी दृष्टि वैसे ही युवक पर पढ़ती है जैसे प्यारी सुंदरी ने बताया था वह युवक बिल्कुल प्यारी सुंदरी के पति से मेल खा रहा था जैसा विवरण प्यारी सुंदरी ने अपने पति का दिया था।। जब बटोही उसके के पास जाता है और उससे उसका नाम और पता पूछता है जब वह युवक खुद को बिदेसिया बताता हैं। तो बटोही उसकी पत्नी के विषय में सब कुछ बताता है उसकी पत्नी की दशा का वर्णन करता हैं।
अपनी पत्नी के दशा के विषय में जाने के बाद वह घर गांव वापस लौटने की बात सोचने लगता है कलकत्ता में पत्नी के रूप में रखी गई महिला (रखैल) बिदेसी की इस बात का पता चलता है कि वह अपने घर (गांव)लौटने के बारे में सोच रहा है तो वह उसका विरोध करती हैं पर बटोही के समझाने के बाद वह समझ चुका होता है कि वह कितना गलत कर रहा है प्यारी सुंदरी के साथ वह अपनी पत्नी को बहुत कष्ट दे रहा है और वह घर जाने के लिए निकल जाता हैं।
जब बिदेसिया अपने घर जा रहा होता है तो रास्ते में मकान मालिक एवं साहूकार अपना बकाया वसूलने के लिए गुंडों को भेजते हैं गुंडे बिदेसिया का सारा सामान व कपड़े छीन लेते हैं पर फिर भी वह उसी दुरावस्था में घर लौटता हैं। इसी बीच गांव में एक मनचला युवक जो की प्यारी सुंदरी को भाभी कहकर बुलाता था उसने प्यारी सुंदरी को कई तरह के प्रलोभन दिए जब उसके इन प्रलोभन मैं नहीं फंसी तो उसने प्यारी सुंदरी के साथ दुर्व्यवहार करने का प्रयत्न किया परंतु पड़ोसन के आ जाने के कारण वह प्यारी सुंदरी के साथ कुछ गलत नहीं कर पाता है और प्यारी सुंदरी का सतीत्व बच जाता है और देवर बना मनचला युवक भाग जाता हैं। उसी समय दुरावस्था की स्थिति में बिदेसिया अपने घर लौटता है वह दरवाजे पर खड़ा होकर बहुत खटखटाता है परंतु प्यारी सुंदरी दरवाजा नहीं खोलती है क्योंकि वह पहली घटना से डरी हुई होती है परंतु बिदेसिया बहुत बार आवाज देता है आवाज सुनने और पहचानने के बाद प्यारी सुंदरी दरवाजा खोलती हैं। अपने पति को देखकर वह बहुत प्रसन्न होती है वहीं दूसरी ओर वह उसकी दशा देखकर बहुत ही चकित होती है और बाद में दोनों का समाचार पूछने का क्रम चलता हैं।। वहीं कलकत्ता रहने वाली उसकी रखैल बटोही से उसका पता पूछती है और विदेशी के घर जाने के लिए वह अपने दोनों बच्चों के साथ अपने पूरे गहने एवं कपड़ों के साथ घर से निकल जाती है परंतु रास्ते में चोर डकैत सारे गहने और कपड़े लूट लेते हैं फिर भी वह बिदेसी के घर के लिए रास्ता पूछते पूछते वह उसके घर पहुंचती हैं।
बिदेसी जब उनको देखता है तो बहुत ही आश्चर्यचकित होता है प्यारी सुंदर भी स्तंभ हो जाती है उसे बहुत कष्ट भी होता है परंतु जब वह महिला (रखैल) प्यारी सुंदरी से साथ रहने का अनुनय विनय करती है तो प्यारी सुंदरी सोच में पड़ जाती है परंतु फिर बाद में वह सोचती है की बच्चे भी तो मेरे पति के ही बच्चे हैं। जो कि मेरे भी बच्चे हुए यह सब सोचकर वह साथ रहने के लिए मान जाती है और सब मिलजुल कर खुशी-खुशी रहने लगते हैंं।।