जनपदीय साहित्य सहायिका/मौखिक साहित्य और समाज
मौखिक साहित्य और समाज
उन समाज में साहित्य का मानक रूप या शेली है जिनमे लिखित भाषा नही है। सक्सर समजो मे इनका उपयोग विशेष रूप से परम्परा और लोककहाथाओ की सैलियाओ के पृसारण मै किया जाता है। किसी भी मामले मे यह पुरे पीढ़ियों मे मंहु के दवारा प्रेषित होता है. यह मानव संचार की पहली और सबसे विस्थारित विदा है, और इसमे मिथक,लोक कथाएँ, किंवदित्यं गीत और अन्य शामिल है। हालांकि, लोकपरिया कहानी के रूप से जटिल समजो मे मोजूद है, जिनमे अभी तक एक लेखन जरूरी मौखिक परम्परा को परबावित् करती है.
वास्तव मे, यहां तक कि साहित्य शब्द भी इस परम्परा का नामकरण करने मे चुनोती देता है। यह शब्द लैटिन लिटा से लिया गया है,और यह अनिवार्य रूप से लिखित या वर्णमाला की अवधारणा को संधारभित् करता है इसलिए, अन्य संप्रदायों का सुज्झव् दिया गया है। दुसरो के बीच, यह मांकिरक्ति मौखिक रूपों या मौखिक शैलियों का नाम प्राप्त करता है.
हालाँकि, मौखिक साहित्य शब्द का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। समान्य तौर पर, इस गतिशील और अत्यधिक विविद् मौखिक और सर्वन वातावरणवातावरण ने ज्ञान,कला और विचार के विकास, भंडार और संचार के उद्देश् को पुरा किया है,
सूची
१ उत्पत्ति और इतिहास
.पुरातनता . लेखन के लिए संक्रमं
२ लक्षण
. यादगार बनाने के लिए विशिष्ट संरचनान्ये . निष्पादन के दोरान परिवर्तन . संस्करणो के बीच की अवधि . विस्यागत वर्गीकरण विविद्
मौखिक साहित्य और समाज के बीच संबन्द
साहित्य और समाज का संबंध अत्यंत घनिष्ठ है। साहित्य न तो समाज को समजे बिना कुछ शिख सकता है, न ही कोई सीख दे सकता है दूसरी और, यह भी सत्य है कि कोई भी समाज होता है। मानव की कलपनाशीलता साहित्य के रूप मे प्रकट होती रहती है।
प्रत्येक रचनाकार कुल मिलकर समाज-विशेष की ही देन होता है और समाज-विशेष की भाषा, संस्कृति, परम्पराऍ इतिहास आदि उसकी अभिवयक्ति मे दिखाई देता है इसलिए जिस साहित्य का अपने समाज से जितना आदान प्रदान होगा साहित्य उतना ही जीवंत, संवेदांसिल्,एवं पेरभावसिल होगा
साहित्य का समाज पर परभाव
साहित्य मानवीय समाज के सुख-दुःख, आशा- निराशा का चित्रण प्रस्तुत करता है। साहित्य की इन्ही कथाओ के कारण इसे समाज का दरपं कहा गया है।
जिस काल की पेरिसिस्तियाँ जैसी होंगी उसका साहित्य भी वेसा ही होगा। साहित्य सामाजिक प्रकेरिया आर्थिक, राजनेतिक और अन्य परिस्थितयाँ से प्रभावित होता है तथा उन्हे प्रभावित भी करता है। साहित्य समाज की विवेक्साक्ति को जगता है एवं जनमानस को बड़ाने की दिशा और प्रकाश देता है
समाज के उत्थानउत्थान मे साहित्य का योगदान
जीवन मे साहित्य की उपयोगिता अनिवार्य है। साहित्य मानव जीवन को वाणी देने के साथ-साथ समाज का पथ-प्रदर्शक भी करता है। साहित्य मानव जीवन के अतीत का ज्ञान देता है, वर्तामां का चित्रण करता है,और भविस्य निर्माण की प्रेरणा भी देता है। साहित्यक रचना का मेहतव् स्थायी होता है। वाल्मीकि, कालिदास। सेक्सपीयर आदि की साहित्यक किरीतिया से आज भी मानव जीवन प्रेरणा ले रहा है।
विभिन्न अभिव्यक्तियाँ:-
हम अपने मन के अनुभव का वाणी शब्द दवारा व्यक्त करते है जब लेखक या कवि अपने अनुभव को दुसरो तक पहुचना चाहता है। तब सताब्दिक अभिवयक्ति का प्रयोग करता है। सुंदर शब्दो मै अभिव्यक्त की गई मनोवृती ही साहित्य बन जाती है। इसी अभिवयक्ति दवारा कवि लोगों को अपनी और आसानी से आकृषित कर लेता है। यही उसकी सफलता का रहस्य है। साहित्य, संसार के पर्ति हमारी मानसिक विचारों भावों और संकल्प की सताब्दिक अभिव्यक्त ही है। वह जब हमारे हित भी करता है तो वह और भी प्रसनिये हों जाता है।