जनपदीय साहित्य सहायिका/संस्कार गीत
जनपदीय साहित्य की परिभाषा :- जनपदीय साहित्य का अभिप्राय उस साहित्य से है जिसकी रचना लोक करता है। जनपदीय साहित्य उतना ही प्राचीन है जितना कि मानव, इसलिए उसमें जन - जीवन की प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक समय और प्राकृति सभी कुछ समाहित है।
यह जन सामान्य व्यक्ति की एक अपनी विचार और अव्यवयक्ति होती हैं जो मौखिक रूप से गाया जाता हैं या बोला जाता है। इस गीत सुसंगठित नहीं किया जा सकता है। ये बहुत सी भाषा में होती है।
लोकगीत की परिभाषा :-
लोकगीत लोक के गीत है। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता हैं। लोक में प्रचलित लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए मौखिक लिखित गाए गीतों को लोकगीत कहा जा सकता हैं। लोकगीतों के रचनाकार अपने व्यक्तित्व को लोक समर्पित कर देता हैं।
डाॅ वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार :- लोकगीत किसी संस्कृति के मुंह बोलते चित्रण हैै
लोक साहित्य का वर्गीकरण :- 1. लोकगीत 2.लोकनाटय 3.लोकगाथा 4. लोककथा 5. लोकनृत्य 6. लोकसंगीत।
संस्कार गीत :- संस्कारों के अवसर पर समयानुुकूल जो गीत गाए जाते हैं, वे संस्कार गीत कहलाते हैं। जैसे जन्म के समय सोहर, जच्चा, व्याही, मृत्यु के अवसर पर साखी, विवाह के समय, बनडा, बधाई, बरनी, कोरिया, नकटा, गारी, समधन, ज्योनार, देवी आदि।
ये हमारी भारतीय संस्कृति में सोलह प्रकार की होती है मुख्य रूप से।
क) जन्म संस्कार :- जन्म संस्कार मानव जीवन का प्रारंभिक संस्कार है। जब से बच्चा गर्भ में आता है उससे कुछ ही महीनों पश्चात से ही कोई न कोई अनुष्ठान प्रांरभ हो जाता हैं। गर्भाधान के नौ महीने तक की संपूर्ण अवधि जन्म संस्कार के अंतर्गत आते हैं।
ख) मुंडन संस्कार :- कनछेदन संस्कार जन्म के पश्चात के हैं जो आयु के विशेष वर्ष में मुहुर्त निकाल कर किए जाते हैं।
ग) शिक्षारंभ संस्कार :- यह बालक की शिक्षा आरंभ करवाते समय होता था। गणेश पूजा, गुरु पूजा आदि मुख्य था, जो लोक भाषा में पट्टी पूजना कहलाता हैं।
घ) जनेऊ संस्कार :- यज्ञोपवित संस्कार को कहते हैं जो कभी-कभी विद्यारंभ के अवसर पर या 12 वर्ष की अवस्था में स्वतंत्र रुप से या फिर विवाह से पहले किया जाता है।
च) विवाह :- विवाह के पूर्व तथा बाद में होने वाले संस्कार - कन्या पक्ष तथा वरपक्ष दोनों ही ओर अपनी अपनी भांति किये जाते हैं। इन संस्कारों में प्रदेशीय भिन्नता के साथ साथ जातिगत भिन्नताए भी पायी जाती हैं।
छ) मृत्यु संस्कार :- इससे हमारा मतलब यहां केवल उसी गीत से हैं जो वृध्द की मृत्यु के बाद स्त्रीयों द्वारा गाये जाते हैं ये शोकगान हैं।
च) पुत्र जन्म :- बालक के जन्म के पूर्व दो संस्कार होते हैं। गर्भाधान तथा पुंसवन। गर्भाधान सबसे पहला संस्कार है।
###अब संस्कार से संबंधित कुछ गीत निम्न प्रकार से###
1) यहां स्त्री-पुरुष एक दूसरे से बात करते हुए जिनके द्वारा कन्या के प्रति उनकी धारणा जो इस प्रकार हैं -
गूंद ला री मलनियां हार, जच्चा मेंरी कामनियाॅ राजा रानी दो जनें री आपस में बद रहे होड़ जो गोरी तुम धीय जनोगी, महलों से करदूं बाहर जच्चा मेंरी कामनियाॅ जो गोरी तुम पूत जनोगी, सब कुछ ले लो इनाम जच्चा मेंरी
कामनिया।ॅ
इस प्रकार की भावना अन्य गीतों में भी मिलती हैं :-
सास सपूती ने बेटा सिखाया, धमा- चौकड़ी मची जो गोरी तुम धीय जनोगी, तमैं खंच दूं गली।
2) जिनमें जन्म से पूूर्व की होड़ पति पत्नी का परस्पर समझौता सजीव व यथार्थ चित्रण हैं :-
मेरी मालन गूंद लाई हार, जच्चा लचकावनिया धन पुरूष मसलत बारे मेरे राजा जी कोई क्या कुछ हमको काज जो गोरी तुम धीय जनोगी गोरी जी कोई सड़कों पै बिछाऊं खाट कोई सीरे की पिलाऊं पात कोई जेवर लूगां काढ़ जो गोरी तुम पूत जनोगी गोरी जी कमरों में बिछाऊं तेरी खाट बूरों की पिलाऊं तुझे पात पीहर से लूगां बुलाय कोई हरदम ताबेदार कोठे के नीचे उतरी कोई होय पड़े नन्दलाल कोई बच रहे तबल निशान्त, कोई लाओं हमारी होड़ जच्चा लचकावनिया। होड़ उतारुं तेरी सेज पै कोई दूजा जनोगी नन्दलाल, जच्चा लचकावनिया।
3) सरल वधू जो स्वयं अनुभवहीन है, अपनी अनुभवी सास से अपने सपनो के संबंध में बताकर शंका समाधान कराती है :-
सपने मैं जौ का आते हरी हरी दूब लहरे लेय रे सासू सपने का अरथ बताओं सपने में हरी हरी दूब जौ का खेत लहरे ले रहया बहू होगें तुम्हारे नन्दलाल जौ का हरा हरा खेत जो देखिये सासू किस विधि होगें नन्दलाल इसकू बी हमें बताइयें कोठे में सिर बहू, चुल्ह ही में टांग आँखों में पट्टी बांधियें।
इसी प्रकार एक अन्य सपने है :-
सासु सपने में अंबुआ का पेड़ तो झलर झलर करै सनियों मेरी सासु, कंवर जी की अम्मा ए चतर जी की अम्मा री सासु सुपने में अंबुबा का पेड़ तो झलर झलर करे चुपकर बहु मेरी चुपकर, बैरी ना सुने, दुश्मन ना सुनै री बहु ये बड़े भाग हमारे, ललन जी के सोहले कंवर जी की अम्मा, चतर जी की अम्मा।
4) साध पूजते समय गीत गाये जाने की प्रथा :-
गंगाजल जमुना मैंने बोई थी चौलाई री अरी सासू तो बूझे बहू कद की तू न्हाई री अरी पड़वा तो पुत्रों मैं तो दोयज की न्हाई री अरी ससुरा तो बुझेरी बहू क्या कुछ भावै री अरी पहली तो साध मेरा सोरा री पुरावैं जी उच्चे तो नीच्चे मुझे महल चिनावे जी दूजी तो साथ मेरी चेठ पुरावै री ऊंचे तोरी नीचे मुझे परदे चलावै री मथुरा के पेड़े मुझे लावै खिलावैं री तीजी तो साध मेरे देवर पुराने री पांचवी चौथी तो साध मेरा राजा रजावै रि अरी साध री साध मेरी अम्मा भेंजी री।
5) मेंहदी, रोली, चूड़ी, आस- आटे की लम्बी मठड़ी, सिन्दूर आदि शुभ अवसर पर गाया जाता है :-
मेरा मन मांगे ताजी बड़ी, सरस मन मांगे ताजी बड़ी कचेरी बैठन्ते सौहरे हमारे, लौग करूं अब बड़ी मुढ़ले बैठन्ती सास हमारी, लौंग करुं अक बड़ी मेरा मन मांगे ताजी बड़ी खट्टी नौरगिया मन भावै मोरे राजा मिट्टी नौरगिया मन भावै मोरे राजा ।
साध के गीतों मे अन्य खाद्य पदार्थों की अपेक्षा मेवा की अधिक चर्चा होती है
लेखक परिचय
नाम :- इम्तियाज
रोल नंबर :- 18/102
महाविद्यालय पी. जी. डी. ए. वी