जनपदीय साहित्य सहायिका/सोहर
सोहर= पुत्र जन्म के अवसर पर गाए जाने वाले गीतों को सोहर हैं। किसी किसी गीत में इस शब्द का भी प्रयोग किया जाता है जैसे: बजेला आनंद बधाई, महल उठे सोहर हो। सोहर गीत "सोहिलो" अथवा मंगल शब्द से भी प्रसिद्ध है तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में भगवान श्री राम के जन्म अवसर पर सोहर गीत ही गवाया है, जैसे "गवाही" मंगल मंजुल बानी, सुनि कलरव कलकंठ लजानी।"। सोहर की उत्पत्ति "शोभन" से ज्ञात होती है। शोभन शब्द सोभिलो ,सोहिलो सोहर के रूप में परिवर्तित होता हुआ इस रूप मै आया है। भोजपुरी में 'सोहल' का अर्थ अच्छा लगना या सुहाना है जो संस्कृति के शोभन का रूप है। पुत्र जन्म के अवसर पर जो मंगल गीत गाए जाते हैं वह सोहल छंद में होते हैं। इस सोहर छंद मैं निबंध होने के कारण ही इन गीतों का नाम सोहर पड़ गया गीतों मै संतान के जन्म, उससे संबंधित कहानियों और उत्सवों के सुंदर वर्णन मिलते हैं राम जन्म और कृष्ण जन्म की सुंदर कथाएं भी सोहरो में है। भगवान श्री राम के जन्म दिवस रामनवमीं और भगवान श्री कृष्ण के जन्म दिवस जन्माष्टमी के अवसर पर भी सोहर गीत गाने की परंपरा है। इसकी लोकप्रियता भी उतनी ही है जितनी की अन्य लोक गीतों की यह भी पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के माध्यम से आगे बढ़ रहा है। अन्य लोकगीतों की ही तरह इसकी कोई एक भाषा नहीं है बल्कि यह हर राज्य की अपनी भाषा में गाया जाने वाला लोकगीत है यह किसी एक वर्ग विशेष के द्वारा नहीं बल्कि समाज के सभी वर्गों के लोगों के द्वारा गाया जाने वाला लोकगीत हैl इसी के माध्यम से संतान को अपने परिजनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और इसी के माध्यम से परिजन अपने मन की खुशी और उल्लास को प्रकट करते हैं यह विभिन्न प्रकार के हो सकते है जैसे= जन्मे राम हुए री आनंद में। 1 राजा दशरथ ने हाथी बांटे राजा दशरथ ने हाथी बांटे। रहा हाथी एक रहा हाथी एक राजा की हतसाल मै, जन्मे राम हुए री आनन्द में। 2 का लेबू नंदनी लाल के बधाई, का लबू नंदनी लाल के बधाई रुपैया ले लो नंदनी लाल के बधाई, रुपैया ले लो नंदनी लाल के बधाई।। 3 हमरे हुए नंदलाल के ननदी लेलो बधाई, हमरे हुए नंदलाल रे ननदी लेलो बधाई। {संदर्भ} (नाम= गीता बी .ए .प्रोग्राम पी .जी. डि .ए. वी. कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय ) (सहायक सामग्री 1 जनपदीय साहित्य पुस्तक ( डॉक्टर अनिरुद्ध कुमार सुधांशु) 2 अपने विचार 3 गूगल विकिपीडिया 4 यूट्यूब)
२
सम्पादनसोहर घर में सन्तान होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत है। इसको संतान के जन्म और उससे संबंधित अवसरों जैसे सतमासा, इत्यादि अवसरों पर गाया जाता है। इन गीतों में संतान के जन्म, उससे सम्बन्धित कहानियों और उत्सवों के सुन्दर वर्णन मिलते हैं। राम जन्म और कृष्ण जन्म की सुंदर कथाएँ भी सोहरों में हैं। राम के जन्मदिन रामनवमी और कृष्ण के जन्मदिन कृष्णाष्टमी के अवसर पर भी भजन के साथ सोहर गाने की परम्परा है।
एक सोहर छापक पेड़ छिउलिया त पतवन धनवन हो तेहि तर ठाढ़ हिरिनिया त मन अति अनमन हो।। चरतहिं चरत हरिनवा त हरिनी से पूछेले हो हरिनी ! की तौर चरहा झुरान कि पानी बिनु मुरझेलु हो।। नाहीं मोर चरहा झुरान ना पानी बिनु मुरझींले हो हरिना ! आजु राजा के छठिहार तोहे मारि डरिहें हो।। मचियहिं बइठल कोसिला रानी, हरिनी अरज करे हो रानी ! मसुआ त सींझेला रसोइया खलरिया हमें दिहितू नू हो।। पेड़वा से टाँगबो खलरिया त मनवा समुझाइबि हो रानी ! हिरी-फिरी देखबि खलरिया जनुक हरिना जियतहिं हो जाहु हरिनी घर अपना, खलरिया ना देइब हो हरिनी ! खलरी के खँजड़ी मढ़ाइबि राम मोरा खेलिहेनू हो।। जब-जब बाजेला खँजड़िया सबद सुनि अहँकेली हो हरिनी ठाढि ढेकुलिया के नीचे हरिन के बिजूरेली हो।। नीचे छत्तीसगढ़ का एक सधौरी गीत में पति-पत्नी से कह रहा है कि पत्नी दूध, मधु, और पीपर पी ले। पत्नी पीना नहीं चाहती है क्योंकि पीपर कड़वा है। पति पत्नी से कहता है सोने का कटोरे में दूध, मधु और पीपर पी लो- इसके बाद पति कहता है नहीं तो वह दूसरा विवाह कर लेगा -
महला मां ठाढि बलमजी अपन रनिया मनावत हो रानी पीलो मधु-पीपर, होरिल बर दूध आहै हो। कइसे के पियऊँ करुरायवर अउ झर कायर हो कपूर बरन मोर दाँत पीपर कइसे पियब हो मधु पीपर नइ पीबे त कर लेहूं दूसर बिहाव पीपर के झार पहर भर मधु के दुइ पहर हो सउती के झार जनम भर सेजरी बंटोतिन हो कंचन कटोरा उठावब पीलडूं मधु पीपर हो - अन्त में पत्नी पीपर पी लेती है क्योंकि वह सोचती है कि पति अगर दूसरी शादी कर लेगा, तो सौतन को पूरी जिन्दगी झेलना पड़ेगा। इससे बेहतर है पीपर की झार जो सिर्फ पहर भर रहेगी।