दक्खिनी साहित्य
नामकरण
सम्पादनदक्षिण में प्रयुक्त होने वाली हिंदी को दक्खिनी हिंदी कहा गया। इसका मूल आधार दिल्ली के आसपास की 14 वीं सदी की खड़ी बोली है। इसका क्षेत्र बीजापुर,गोलकुंडा,अहमदनगर तथा बरार बंबई एवं मध्य प्रदेश है। इसमें कुछ तत्व पंजाबी, हरियाणवी, ब्रज, अवधी, अरबी तथा फारसी के भी हैं क्योंकि इन क्षेत्रों से भी लोग दक्षिण में गए जिसके माध्यम से यह भाषा काफी कुछ मिश्रित हो गई इस पर बाद में उर्दू का भी प्रभाव पड़ा साथ ही तमिल,तेलुगू एवं कन्नड़ का भी प्रभाव पड़ा जिसे मुख्यतः शब्द समूह के क्षेत्र में स्पष्ट देखा जा सकता है उसे कभी 'हिंदी' कभी 'ज़बाने हिंदुस्तान' और कभी 'दकनी' कहकर पुकारा गया।
दक्षिण या दक्षिणापथ एक विशिष्ट अर्थ का द्योतक है अन्यथा दक्खिनी दक्षिण का एक सापेक्षिक शब्द है जैसे कश्मीर के लिए दिल्ली दक्षिण है परंतु यहां दक्षिण वो भाग है जिसके अंतर्गत नर्मदा से लेकर कन्याकुमारी तक का भू-भाग आ जाता है। मुसलमानों ने इस भू-भाग को 'दक्खिन' नाम से अभिहित किया। "दक्खिनी हिंदी मूलतः हिंदी का ही एक रूप है।" शाब्दिक रूप से दक्खिनी का अर्थ 'दक्खिन'अर्थात दक्षिण की हिंदी होता है किंतु इतना कह देने से ही इस भाषा का ठीक-ठाक बोध नहीं हो पाता इसका पूरा पूरा ज्ञान प्राप्त करने और इसे समझने के लिए विभिन्न विद्वानों के अभिमत जान लेना अपेक्षित होगा-
कुतुबमुश्तरी नामक काव्य में मुल्ला वजही ने अपनी भाषा को दक्खिनी कहा-
'दखन में जूं दखनी मीठी बात का' 'अदा तय किया कोई इस घात का'