पाश्चात्य काव्यशास्त्र/आधुनिकता
भूमिका
सम्पादनआधुनिकता को सही अर्थों में परिभाषित कर पाना एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि आधुनिकता की अवधारणा किसी एक तत्व पर आश्रित नहीं है। आधुनिकता जीवन की प्रगतिशील अवधारणा है, एक दृष्टिकोण है, एक बोध प्रक्रिया है, एक संस्कार प्रवाह है। आधुनिकता को रूढ़ि से अनवरत विद्रोह करना पड़ता है, क्योंकि लवह परम्परा का विकास है।
अंग्रेजी में 'आधुनिकता' का पर्यायवाची शब्द मॉडर्न है जो नवयुगीन, वर्तमान से संबद्ध रीति-रिवाज और व्यक्ति के अर्थ में प्रयुक्त होता है। वस्तुतः 'आधुनिकता' केवल 'नवीनता' के अर्थ को व्यक्त नहीं करती, अपितु इसमें देशकाल की जीवंतता के साथ विवेकयुक्त वैज्ञानिक दृष्टि भी जुड़ी हुई है।
आधुनिकता एक सतत प्रक्रिया है जिसमें निरन्तरता का गुण विद्यामान है। वैज्ञानिक सोच से जुड़े इस सोच ने पुरातन मुल्यों को तर्क की कसौटी पर कसना सिखाया है। कुछ विद्वानों ने आधुनिकता को संस्कृति विकास की प्रेरक माना है। भारत में आधुनिकता की शुरुआत समकालीन घुटन, टूटन, अकेलापन, निराशा, अस्तित्व चेतना आदि रूपो मे दिखता है।
आधुनिकता के मूल तत्व
सम्पादननवीन भावों से ओत प्रोत आधुनिकता के मूल तत्व निम्न है:-
वैज्ञानिक चेतना
सम्पादनआधुनिकता की दृष्टि मूलतः बौद्धिक है। बुद्धि का संबंध विज्ञान से माना गया है, इसी इस युग में वैज्ञानिक चेतना का उदय हुआ तथा समाज को उसी आधार पर विकसित करने की भावना जगी।
तटस्थ बुद्धिवाद
सम्पादनबुद्धि की प्रधानता के कारण इस युग नें भावहीन, निरपेक्ष बुद्धि का विकास हुआ। इसके कारण ही प्राचीन रूढ़ि, मान्यताओ और आडम्बरों के खिलाफ स्वर बुलंद होना शुरू हुए।
प्रश्नाकुल मानसिकता
सम्पादनबुद्धि के प्रधानता के कारण इस युग में प्रश्नाकुल मानसिकता बनी। जिसके तहत लोगों किसी भी आडम्बर भरी बातों पर विचार और मनन करने की क्षमता दिखाने लगे। हर बंधी-बंधाई व्यवस्था, मर्यादा या धारणा को तोड़ना शुरू हुआ।
युगबोध एवं समसामयिकता
सम्पादनयुगबोध एवं समसामयिकता को आधुनिकता से अनिवार्यतः सम्बद्ध किया जाता है, क्योकि आधुनिकता वस्तुतः समसामयिकता मूल्यों का प्रतिफलन है। युगबोध भी आधुनिकता का प्रमुख लक्षण है, क्योंकि युग से हट कर कोई भी व्यक्ति आधुनिक होने का दावा नहीं कर सकता।
अस्तित्व चेतना
सम्पादनअपने अस्तित्व के प्रति सजग चेतना आधुनिकता का एक लक्षणा है। जो व्यक्ति स्वयं के दुःख, कष्ट को व्यक्त करने के लिए तत्पर रहता है। उसमें अहम की भावना आ जाती है।
संत्रास एवं अलगाव
सम्पादनअहम की चेतना और शहरीपन के कारण व्यक्ति-व्यक्ति के बीच दूरियों का जन्म होना स्वभाविक है। व्यक्ति इतना आत्मकेन्द्रित हो गया कि किसी अन्य की पीड़ा से उसे कुछ नही लेना।
मूल्य संकट एवं मूल्य संक्रमण
सम्पादनस्वतंत्रता के उपरांत मूल्यों का विघटन तेजी से हुआ। आधुनिकता का भावबोध हमें पुराने मूल्यों का त्याग करने एवं नवीन मूल्यों के ओर अग्रसित करने के लिए प्रेरित करती है।
संदर्भ
सम्पादनहिन्दी आलोचना की पारिभाषिक शब्दावली-डॉ अमरनाथ