पाश्चात्य काव्यशास्त्र/यथार्थवाद
भूमिका
सम्पादनयथार्थवाद और आदर्शवाद दो विरोधी विचारधाराएं हैं। जो वस्तु जैसी है, उसका उसी रूप में वर्णन करना यथार्थवाद है जबकि आदर्श के अनुरूप वस्तु को मनोनुकूल रूप में प्रस्तुत करना आदर्शवाद है। यथार्थवाद का विश्वास है कि हमारे चारों ओर जो यथार्थ जगत है, उसमें परिवर्तन करने या वकृत करके प्रस्तुत करने का हमें कोई अधिकार नहीं है। यथार्थ को देखा-परखा जा सकता है तथा उसका निरपेक्ष अवं तटस्थ अध्ययन किया जा सकता है। बुद्धि द्वारा प्राप्त ज्ञान ही मनुष्य की सभी प्रतिक्रियाओं में सहायक होता है। यथार्थवाद संसार में व्याप्त कलुष और मलिनता पर पर्दा नहीं डालता अपितु उसका यथार्थ चित्रण करता है। वह मानसिक सत्य को यथार्थ नहीं मानता अपितु जगत में व्याप्त कुण्ठा, निराशा, वर्जन, अनास्था का ही यथार्थ चित्रण करने में विश्वास करता है। सन् १८५६ ई. में प्रकाशित उपन्यास ' मैडम बआबैरी ' जो उपन्यासकार फाबेयर की कृति है प्रथम यथार्थवादी उपन्यास माना जाता है।
यथार्थवाद की प्रमुख प्रवृत्तियां
सम्पादनरोमांस का बहिष्कार
सम्पादनस्वच्छन्दतावाद के विरोध में जन्मी यथार्थवाद नें स्वच्छन्दतावाद की मूल प्रवृत्ति रोमांस का बहिष्कार किया। यथार्थवादियों के अनुसार रोमांस कल्पनालोक की एक वस्तु है और यथार्थवादियों के लिए इस सात्विक संसार से अलग सारे संसार मिथ्या है। चूँकि रोमांस का संबंध उसी कल्पनाश्रित लोक से है अर्थात् रोमांस भी मिथ्या है। रोमांस कल्पना द्वारा सौंदर्य, प्रेम और वीरता का अनोखा और अतिरंजनापूर्ण चित्रण करता है पर यहाँ सामाजिक सत्य, पीड़ा कहीं छूट जाती है।
यथातथ्यता
सम्पादनयथार्थवाद के अनुसार, साहित्य तथा कला का उद्देश्य वास्तविक जीवन तथा जगत का अभिलेखन प्रस्तुत करना ही है (जिस प्रकार प्रेमचंद का गोदान)। अद्भुत तथा असाधारण के विपरीत साधारण की प्रतिष्ठा के क्रम में यह यथार्थ के ऐसे जघन्य तथा घृणास्पद रूपों के चित्रण मैं भी नहीं झिझकता जिन्हें अब तक साहित्य तथा कला में वर्ज्य माना जाता था क्योंकि इसके मत में मानव जीवन का उसकी संपूर्णता में चित्रण करना आवश्यक है। उसमें विषय-वस्तु के चयन का - त्याग या ग्रहण का - प्रश्न ही नहीं उठता। इन्होंने पाश्चातय भाव भूमि पर कला जीवन के लिए इस सिद्धांत को दोबारा मजबूती प्रदान की।
निर्वैयक्तिकता
सम्पादनयथार्थवाद के अनुसार, यथातथ्य चित्रण करने के लिए रचनाकार को सत्यनिष्ठ होना चाहिए। इसके लिए उसे निष्पक्ष होकर निर्वैयक्तिक भाव से तथ्यों को ग्रहण तथा प्रस्तुत करना चाहिए। कवि को अपने निजि सुख, दुखों का चित्रण ना करके समाज के पीड़ा का चित्रण करना चाहिए। उसकी रचना ऐसी होनी चाहिए कि वह सबका हित करे। उसके काव्यों में स्व से सर्वभावों का चित्रण प्रस्तुत हो। साथ ही उसकी दृष्टि पक्षपात की भी ना हो नहीं तो अनुभूति वस्तुपरक नहीं रह जाएगी।
विषय-वस्तु तथा विधा
सम्पादनअब तक की चर्चा में यह बात बार-बार आपके सामने आ चुकी है कि समकालीन जीवन, परिवेश, समस्याएँ तथा स्थितियाँ ही यथार्थवाद लेखन की विषय-वस्तु हैं। इस विषय-वस्तु की प्रस्तुति के लिए सबसे सशक्त तथा समर्थ विधा उपन्यास ही हो सकती है क्योंकि इसी विधा में जीवन तथा जगत के वस्तुगत यथार्थ का विस्तृत तथा सूक्ष्म वर्णन संभव है। उदाहरण हम प्रेमचंद के उपन्यासों में देख सकते हैं। साथ ही यथार्थवाद का जन्म उपन्यास विधा के समय के साथ ही हुआ।
कथा-विन्यास तथा शैली
सम्पादनइस धारा के अधिकांश लेखन में कथा के सुंगठन तथा विन्यास पर अधिक बल नहीं दिया गया। यथार्थवाद का मानना है कि मानव जीवन तथा समाज जब निश्चित योजना तथा विन्यास में बँधा नहीं होता तो उसके ईमानदारी अंकन में योजना का निर्वाह किस प्रकार हो सकता है। हाँ, इस धारा में फ्लॉबेयर, चेखव आदि कुछ साहित्यकार अवश्य हुए हैं जिनकी रचनाओं का रूप विधान सुगठित ताथा चुस्त रहा है। रन्य या ललित के स्थान पर इन्होंने सहज-स्वाभाविक शैली और दैनिक व्यवहार की भाषा का प्रयोग किया है। यथार्थवाद लेखन की शैली अधिकतर वर्णनात्मक और विवरणात्मक रही है क्योंकि तथ्यों के सूक्ष्म तथा यथार्थ वर्णन के माध्यम से ही परिवेश की सृष्टि करते हैं और उस परिवेश में व्याप्त गहरे सत्यों को उजागर करते हैं।
लेखन का उद्देश्य
सम्पादनयथार्थवाद लेखन का उद्देश्य पाठकों का मनोरंजन करना नहीं बल्कि समकालीन समाज तथा राजनीति की यथार्थ छवि सामने रखकर उन्हें सोचने के लिए बाध्य करना था। इसलिए इस लेखन में कथानक से अधिक महत्व स्थितियों और चरित्रों का रहा।
रचनाकार की भूमिका
सम्पादनयथार्थवादी रचनाकार फोटोग्राफर मात्र नहीं है जो तथ्यों को ज्यों का त्यों सामने रखता हो बल्कि वह व्याख्याकार भी होता है, जो सत्य को सामने लाता हो। वह अपनी रचना को ऐसे रचता है कि उसके पात्रों के सुख-दुःख को पाठक अपना सुख-दुःख समझता है, यह ख़ूबी मुख्य रूप से उपन्यास में पायी जाती है। इसी कारण यथार्थवादियों के लिए उपन्यास सबसे प्रिय विधा थी।