पाश्चात्य काव्यशास्त्र/स्वच्छंदतावाद
भूमिका
सम्पादनअठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दशक और उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ मे यूरोप में एक नवीन साहित्यिक प्रवृत्ति का उन्मेष हुआ, जिसे स्वच्छन्दतावाद(Romanticism)कहा गया। इस धारा का 1789 ई. में फ्रान्स में होने वाली राज्य क्रांति से गहरा संबंध है। साथ ही 18वीं शताब्दी के अंग्रेजी साहित्य ने ग्रीक साहित्य को अपना आदर्श मानकर स्वयं को शास्त्रीय नियमों में जकड़ दिया था। उस युग के लेखक छन्द, शिल्प, बाह्य अलंकरण के मोह में उलझ गये जिससे काव्य में नैसर्गिक भावोन्मेष दबा रह गया। इसी नव्यशास्त्र और नियमबद्धता के प्रतिक्रिया में स्वच्छन्दतावाद का जन्म हुआ। रूसो इस रोमांटिक विचारधारा का प्रतिनिधि था। उन्होंने मानव-स्वतंत्रता पर बल दिया और कहा--"Man is born bound as he can't escape the prison of his bodily acts and pain but falsely claims himself as a master." फ़्रांसिसी क्रांति का नारा समानता,स्वतंत्रता और बंधुत्व स्वच्छतावादियों का प्रेरणा स्रोत था।
उसी ने "प्रकृति की ओर वापस लौटो(Back to Nature)" का नारा लगाया। स्वातंत्र्य की लालसा, बन्धनों को काट फेंकने के उत्साह और प्रकृति के प्रति अदम्य प्रेम ने साहित्य को प्रभावित किया। भारतीय छायावादी काव्य भी इसी अवधारणा से प्रेरित है। इसकी विशेषताओं को निम्न रूपो मे देखा जा सकता है:-
विद्रोह की प्रवृत्ति
सम्पादनअंग्रेजी स्वच्छन्दतावाद का संबंध फ्रान्सीसी राज्यक्रांति से था, अतः उसमें स्वतंत्रता एंव विद्रोह का भाव होना स्वभाविक था। उसमें भौतिकी के साथ नीति, धर्म, साहित्यक परम्पराओं और शास्त्रीय नियमों के विरुद्ध भी विद्रोह मिलता है। आभिजात्य के स्थान पर सामान्य को अपना वर्ण्य-विषय बनाया।
कृत्रिमता से मुक्ति
सम्पादनप्रकृति की ओर लौटने तथा सरलता के प्रति आग्रह ने कवियों को कृत्रिमता तथा समाजाडम्बर से मुक्त होने की प्रेरणा दी। 'Lyrical Ballads' नामक काव्य संग्रह इन्ही भावों से अनुप्रेरित है। इस विचार ने कविता को आडम्बरों और कृत्रिमता से मुक्ति दिलाई। मध्य तथा निम्न वर्ग के लोगों की बातचीत की भाषा काव्यानंद के लिए उपयोगी मानी गयी क्योंकि वें लोग सामाजिक मिथ्याहंकार से रहित और विचारों को सरल, अकृत्रिम भाषा में व्यक्त करते हैं।
कल्पना की प्रधानता
सम्पादनस्वच्छन्दतावादी कवि कल्पना के मनोरम लोक में विचरण करता है और वह काल्पनिक सौंदर्य सा उपासक है। इस प्रवृति के कारण उन्होंने प्रकृति को सन्देशदात्री और शिक्षिका के रूप में देखा; इसी कल्पना ने उन्हें रहस्यवादी बना दिया। उनका मष्तिष्क सूक्ष्म भावों को अधिक तत्परता के साथ ग्रहण करता है।
जगत से पलायन
सम्पादनस्वच्छन्दतावाद का कवि संसार की संकीर्णताओ से ऊपर उठकर dusre लोक मे विचरण करता है। वह एक कष्ट रहित संसार ki jankari deta है, जैसे युटोपिया।
अद्भुत के प्रति मोह
सम्पादनकल्पना की प्रधानतः के कारण इन कवियों को अद्भुत तत्व से लगाव था। इसी कारण इनको सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तुओ मे ईश्वर की प्रतीति होती है। साथ ही इनको खंडहर, सूखी पत्ती, स्काई-लार्क, वैस्ट विन्ड, श्मशान आदि चीजों में भी सौंदर्य की अनुभूति होती है।
वैयक्तिकता की भावना
सम्पादनस्वच्छन्दतावाद की प्रमुख प्रवृत्ति है व्यक्तिवाद। इसमे कवि अपनी दृष्टि, अपनी भावना और रुचि को प्रधानता देता है। अतः इसके प्रबंध काव्यों मे नायक आत्म केन्द्रित व्यक्ति होता है और गीति काव्य मे कवि अपनी उदासी, निराशा, वेदना, व्यथा का चित्रण करता है। इस कारण इस काव्य मे विवेक के स्थान पर भावुकता, आकांक्षा आदि प्रधान है। कवि के अपने ही भावोन्माद मे लिप्त रहने और व्यक्तिवाद के अतिशय के कारण गेटे ने कहा था:-"Romanticism was diseased."। आगे चल कर इसी अतिशय व्यक्तिवाद के विरोध ने इलियट ने निर्वैयक्तिकता के सिद्धांत का सूत्रपात करते है।
सौंदर्य के प्रति मोह
सम्पादनस्वच्छन्दतावाद में सौन्दर्य-प्रेम और सौन्दर्य के प्रति जिज्ञासा, ये दोनो अनिवार्य तत्व हैं। कल्पना की प्रधानता के कारण यह प्रवृत्ति इन कवियों में अधिक उभर के सामने आयी। शैले संपूर्ण प्रकृति को सौंदर्यमय पाता है। कीट्स ने सेक्यपियर के कथन:-"Every fair from fair some times decline" के विपरित अपने कथन को कहा कि:-"Beautiful things are immortal" अर्थात सौंदर्य अमर है।साथ ही कीट्स ने सौन्दर्य की परिभाषा देते हुए कहा:-"Beauty is truth, truth beauty, that is all ye know on earth and, all ye need to know." उनके काव्य की हर पंक्ति मे सौन्दर्य की गन्ध और स्पर्श है।
प्रकृतिप्रियता
सम्पादनउन्नीसवीं शताब्दी के इन कवियों ने प्रकृति के मुक्त प्रांगण में स्वच्छंद विहार किया। कण-कण मे इश्वर की प्रतीति होने के कारण ही रूसो ने प्रकृति की ओर लौटने का नारा दिया। प्रकृति को उन्होंने सचेतन सत्ता के रूप में देखा। परंतु स्वच्छन्दतावादी कवियों का प्रकृति-वर्णन वैयक्तिक है; क्योंकि वे प्रकृति के उन्हीं अवयवों को चुनते हैं, जो उनकी आत्मानुभूति को स्पष्ट करनेे में सहायक हुए हों।
संगीतात्मकता
सम्पादनस्वच्छन्दतावादी कवियों के काव्य मे सरल भाषा और लयात्मकता के कारण संगीतात्मकता देखने को मिलती हैं।
सहायक ग्रंथ
सम्पादनभारतीय तथा पाश्चात्य काव्यशास्त्र का संक्षिप्त विवेचन, पृष्ठ संख्या २६९ लेखक-डॉ. सत्यदेव चौधरी तथा डॉ. शान्तिस्वरूप गुप्त