पूर्वानुमान सेवाओं में सुधार
- लेखक - डा0 शैलेश नायक
मौसम , जलवायु और सामाजिक हितों से जुड़ी सेवाओं के लिए जोखिमों के पूर्वानुमान के महत्व को स्वीकारते हुए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने पृथ्वी प्रणाली (वायुमंडल, हाइड्रोस्फेयर, क्रायोस्फेयर, जियोस्फेयर और बायोस्फेयर) के प्रति समझ में सुधार की दिशा में एक समन्वित तरीके से अपनी गतिविधियों पर जोर दिया है। विभिन्न घटकों के अध्ययन का उद्देश्य उनके बीच अंतक्रियाओं को बेहतर ढंग से समझना है, जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं और मानवोत्पत्ति संबंधी गतिविधियों द्वारा प्रभावित हो और जिनसे पूर्वानुमान सेवाओं में सुधार हो। पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन एक मिशन के रूप में काम करता है , जहां पिछले एक वर्ष के दौरान महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं
मौसम की भविष्यवाणी और सेवाएं
सम्पादनसांख्यिकी मौसम भविष्यवाणी के प्रारूपों के इस्तेमाल से लघुकालिक (तीन दिनों तक) और मध्यकालिक (पाँच से सात दिनों तक) पूर्वानुमान किया जाता है। वर्ष के दौरान टी 382 एल 64 प्रारूप पर आधारित एक नई और अत्यधिक स्पष्ट जीएफएस (भूमंडल पूर्वानुमान प्रणाली) और विकिरण मापन सहित इसके सहायक आंकड़ा मापन प्रणाली का काम शुरू हो गया है। इसके बल पर 35 किलोमीटर दूरी तक की विश्लेषण प्रणाली में सुधार हुआ। इसके अलावा कटिबंधीय दबावों, बिजली और गरज के साथ आंधी जैसी मौसम प्रणालियों के पुर्वानुमान के लिए एक मेसो-स्केल मॉडल (27 किलोमीटर) डब्ल्यू आरएफ मॉडल पूर्वानुमान प्रणाली तैयार की गई। गंभीरतापूर्वक मौसम के विशेष अध्ययन के लिए बहुत स्पष्ट विश्लेषण पर आधारित डब्ल्यू आरएफ प्रणाली स्थापित की गई है। इसकी शुद्धता लगभग 70-75 प्रतिशत है। एक प्रायोगिक आधार पर 4 डी वीएआर के इस्तेमाल से एक वैश्विक प्रारूप मापन प्रणाली स्थापित की जा रही है। इसके आधारभूत पूर्वानुमान मानकों में वर्षा, वायु की गति, वायु की दिशा,आर्द्रता और तापमान शामिल हैं। इस वर्ष पूर्वानुमान प्रणालियों को आपस में जोड़कर एक महत्वपूर्ण प्रणाली तैयार करना एक बड़ी उपलब्धि रही है। इसके अंतर्गत विभिन्न उपकरणों और पर्यवेक्षण प्रणालियों को आपस में जोड़कर एक सेंट्रल डाटा प्रोसेसिंग प्रणाली के साथ जोड़ दिया गया। इसके बल पर देशभर में सभी पूर्वानुमान कर्मियों को सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित एक अत्याधुनिक पूर्वानुमान प्रणाली उपलब्ध हुई। इसमें सभी पर्यवेक्षणों को एक साथ जोड़ना और समुचित विश्लेषण के बाद लोगों के लिए मौसम पूर्वानुमान प्रसारित करना शामिल है। भूस्खलन , मौलिक पूर्वानुमान , प्रबलता आदिऐसे मानक हैं जिनके आधार पर 24 से 36 घंटे पूर्व चक्रवात के बारे में अनुमान जारी किया जाता है।
कृषि आधारित मौसम विज्ञान सेवाएं
सम्पादनदेश की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, इसलिए मौसम आधारित कृषि से जुड़े सुझाव काफी महत्वपूर्ण हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए कृषि आधारित मौसम विज्ञान की 130 क्षेत्रीय इकाइयों के लिए 35 किलोमीटर एमएमई प्रणाली के आधार पर नियमित रूप से वर्षा , अधिकतम और न्यूनतम तापमान, बादल वाले कुल्क्षेत्र , भूतल पर आपेक्षिक आर्द्रता और वायु का लघुकालिक पूर्वानुमान जारी किया जाता है। इसके माध्यम से फसल बोने, उर्वरकों, कीटनाशकों, सिंचाई करने और फसल कटाई के लिए उपयुक्त समय पर जानकारी दी जाती है। किसानों के वास्ते 575 से भी अधिक जिलों के लिए सप्ताह में दो बार बुलेटिन जारी किए जाते हैं। राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे बुलेटिन के बल पर नीति संबंधी निर्णय भी लिए जाते हैं। ऐसे सुझाव पत्र पत्रिकाओं, इलेक्ट्रानिक मीडिया और बहुभाषा वेब पोर्टलों के माध्यम से प्रचारित किए जाते हैं। मोबाइल फोन के माध्यम से स्थान आधारित सेवाओं का विकास होना काफी सफल रहा है, फिलहाल 12 लाख किसानों ने इस सेवा की मांग की है।
विमानन सेवाएं धुंध पूर्वानुमान
सम्पादनजाड़े के दिनों में धुंध से विमानन सेवाएं काफी प्रभावित होती हैं। कुहासे की तीव्रता और अवधि की निगरानी , उसका अनुमान और प्रसार काफी महत्वपूर्ण है। सभी हवाई पट्टियों के बारे में हवाई पट्टी दृश्यता रिकार्डरों के माध्यम से दृश्यता संबंधी स्थितियों के बारे में जानकारी मिलती है। मौसम विज्ञान (9 से 30 घंटे के पूर्वानुमान ) प्रत्येक 30 मिनट पर रिपोर्ट आती है। कुहासे के बारे में अगले 6 घंटे के लिए और 12 घंटे के परिदृश्य के बारे में जानकारी दी जाती है। अगले दो घंटे के लिए पूर्वानुमानों के लक्षण प्राप्त करने की जानकारी वेबसाइटों , एसएमएस , आईवीआरएस, फोन, फैक्स आदि के माध्यम से भी उपलब्ध कराई जाती है। वर्ष 2009-10 के दिसम्बर और जनवरी माहों के लिए पुर्वानुमान की शुद्धता छूट है क्रमश: 94 प्रतिशत और 86 प्रतिशत रही, जो वर्ष 2008-09 के दिसम्बर और जनवरी माहों की क्रमश: 74 प्रतिशत और 58 प्रतिशत शुद्धता की तुलना में काफी अधिक है।
पर्यावरण आधारित सेवा इलाहाबाद , जोधपुर, कोडइकनाल, मिनीकॉय, मोहनबाड़ी, नागपुर, पोर्ट ब्लेयर, पुणे श्रीनगर और विशाखापट्टनम में वायु प्रदूषण निगरानी केन्द्रों का एक नेटवर्क स्थापित किया गया है। यहां से वर्षा जल के नमूने लेकर उनका रासायनिक विश्लेषण किया जाता है और वायुमंडल के घटकों में दीर्घकालिक बदलावों का रिकार्ड तैयार करने के लिए वायुमंडलीय गंदलेपन का मापन किया जाता है। थर्मल पावर केन्द्रों , उद्योगों और खनन गतिविधियों से उत्पन्न वायु प्रदूषण के संभावित कुप्रभावों के मूल्यांकन से संबंधित विशेष सेवाएं भी प्रदान की जाती हैं विभिन्न्जलवायु और भौगोलिक स्थितियों में बहुविध स्रोतों का वायु की गुणवत्ता पर पड़ने वाले प्रभावों के लिए वायुमंडलीय विस्तार प्रणाली विकसित की गई है और इनका इस्तेमाल उद्योगों के लिए स्थानों का चयन करने तथा वायु प्रदूषण नियंत्रण संबंधी रणनीतियों को लागू करने में किया जाता है। एडब्ल्यूएस, डीडब्ल्यूआर आयोग और अन्य पर्यवेक्षण प्रणालियों के माध्यम से राष्ट्रमंडल खेल 2010 के लिए मौसम और वायु गुणवत्ता पूर्वानुमान का काम पूरा किया गया है।
मछुआरों को चेतावनी लगभग 70 लाख लोग भारत के समुद्रतटीय क्षेत्रों में रहते हैं। भारत का समुद्रतट लगभग 7500 किलोमीटर लंबा है। मछली पकड़ना इन लोगों की आजीविका का साधन है। मछली उत्पादन का केवल 15 प्रतिशत भाग जलाशयों द्वारा हो पाता है। मछलियों का पता लगाना और उसे पकड़ना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि मछलियों का समूह समुद्रतट से दूर स्थान बदलता रहता है और उसे ढूंढने में अधिक समय , धन तथा प्रयास की जरूरत होती है। मछलियों की अधिकता वाले संभावित क्षेत्रों के बारे में समय पर पूर्वानुमान प्राप्त हो जाने से मछलियों की खेाज में लगने वाले समय और प्रयासों में कमी लाने में मदद मिलती है, जो मछुआरा समुदाय के सामाजिक-आर्थिक हित के अनुकूल है। मछलियों को समुद्री जल के तापमान, लवणता, रंग, दृश्यता, जल में ऑक्सीजन की मात्रा आदि के रूप में जहां अनुकूल स्थितियां प्रतीत होती हैं, वे अपने आसपास के पर्यावरण के उस जलीय भाग की ओर शीघ्र ही चली जाती हैं। उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर समुद्रतल के तापमान के बारे में आसानी से पता चलता है, जो पर्यावरण का एक मानक संकेतक है। समुद्री हिस्से में उनके लिए खाने की चीजों की उपलब्धता पर भी उनका आगमन, पर्याप्तता और प्रवास निर्भर करता है। क्लोरोफिल-ए एक ऐसा संकेतक है जो मछलियों के लिए आहार की उपलब्धता का सूचक है। ये पूर्वानुमान नियमित रूप से एक सप्ताह में तीन बार जारी किए जाते हैं और महासागरीय स्थितियों के पूर्वानुमान के साथ तीन दिनों की अवधि के लिए मान्य हैं। ये चेतावनियां नौ स्थानीय भाषाओं और अंग्रेजी में वेब ई-मेल, फैक्स, रेडियो और टेलीविजन के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले बोर्डों और इनफॉर्मेशन किओस्कों के माध्यम से दी जाती हैं। एक अनुमान के अनुसार लगभग 40,000 मछुआरे इन चेतावनियों से लाभान्वित होते हैं। इसके बल पर काफी ईंधन और समय (60-70 प्रतिशत) की बचत होती है और वे प्रभावकारी तरीके से मछली पकड़ पाते हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि इस दिशा में सफलता की दर 80 प्रतिशत के आसपास है।
महासागरीय स्थिति का पूर्वानुमान
सम्पादनसांख्यिक प्रारूपों के इस्तेमाल से हिन्द महासागर के लिए यथासमय पूर्वानुमान तैयार करने का प्रयास प्रारंभिक चरण में है। फरवरी 2010 में शुरू की गई हिन्द महासागर पूर्वानुमान प्रणाली (इंडोफोस) में महासागरीय लहरों की ऊँचाई, लहर की दिशा, समुद्री सतह का तापमान, सतह की धारायें, मिश्रित तल की गहराई और 20 डिग्री सेल्सियस समताप की गहराई के बारे में अगले पाँच दिनों के लिए छ: घंटे के अंतराल पर पूर्वानुमान जारी करना शामिल है। इंडोफेस के लाभार्थियों में पारंपरिक और प्रणालीबद्ध मछुआरे, समुद्री बोर्ड, भारतीय नौसेना, तटरक्षक नौवहन कंपनियां और पेट्रोलियम उद्योग, ऊर्जा उद्योग तथा शैक्षिक संस्थान शामिल हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और पुडुचेरी के लिए लहरों के पूर्वानुमान हेतु स्थान विशेष पर आधारित प्रारूप स्थापित किए गए हैं और बंदरगाह प्राधिकरणों द्वारा इनका व्यापक इस्तेमाल किया जाता है।
खनन प्रौद्योगिकी
सम्पादनभारत महासागरीय खनिज संसाधनों के देाहन के प्रति इच्छुक रहा है। इसके लिए तीन उपकरणों- तत्काल मृदा जांच उपकरण, दूर से संचालन-योग्य वाहन (आरओवी) और गहरे समुद्र में रेंगनेवाली प्रणाली विकसित करने की जरूरत होती है। समुद्र के नीचे मिट्टी के गुणों की जांच के लिए उपकरण और आरओवी का 5300 मीटर की गहराई में अप्रैल 2010 में सफल परीक्षण किया गया। इस उपकरण के लिए पूरा-का-पूरा हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर तथा नियंत्रण प्रणाली अपने देश में ही विकसित की गई। तट के पास नेाड्यूल इकट्ठा करने वाले क्रॉलर का भी 450 मीटर की गहराई में परीक्षण किया गया है। समुद्र में 3000 मीटर की गहराई तक 100 मीटर क्रोड़ संग्रह की क्षमता वाली एक कोरिंग प्रणाली विकसित की गई है। इन्हें दर्शाए जाने की प्रक्रिया चल रही है। गैस हाइड्रेट के दोहन के लिए प्रौद्योगिकी विकास के एक हिस्से के रूप में यह उपकरण विकसित किया जा रहा है।
हैचरी प्रौद्योगिकी
सम्पादनवाणिज्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रजातियों के लिए हैचरी प्रौद्योगिकी का विकास करना मछुआरों को एक वैकल्पिक रोजगार प्रदान करने के लिए एक प्रमुख क्षेत्र है। अंडमान स्थित हैचरी में काला मोती तैयार किया जाता है। समुद्री सजावटी मछलियों का उत्पादन करने के लिए प्रौद्योगिकी विकसित करने का काम पूरा किया गया है और क्लॉन मछलियों की आठ प्रजातियों और दमसेल मछलियों की दस प्रजातियों का इसके लिए चयन किया गया है। गैस्ट्रोपॉडों को चार प्रजातियों के उत्पादन, लार्वा विकास और मछलियों के बच्चों को सामूहिक तौर पर पालन करने की तकनीक को मजबूत किया गया है। यह प्रौद्योगिकी स्थानीय मछुआरों को उपलब्ध करायी गई है।
जलवायु में बदलाव और परिवर्तन इस कार्यक्रम के माध्यम से स्वास्थ्य, कृषि और जल जैसे क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभाव सहित जलवायु परिवर्तन से संबंधित अनेक वैज्ञानिक समस्याओं का हल किया जाता है। भारतीय क्ष्ेात्र के लिए विशेष रूप से संबंधित और वैश्विक प्रभाव वाले जलवायु परिवर्तन के लक्षित वैज्ञानिक पहलुओं की खोज करने और उनके मूल्यांकन के प्रयास के क्रम में जलवायु प्रारूप और गतिविज्ञान, भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रीय पहलुओं की जानकारी के लिए उपकरणों और जलवायु संबंधी रिकार्डों का इस्तेमाल, जलवायु संबंधी लघुकालिक और दीर्घकालिक निदान और पूर्वानुमान आदि कुछ ऐसे प्रमुख कार्यक्रम हैं, जिन पर काम शुरू किया गया है।
ध्रुवीय विज्ञान
सम्पादननवम्बर 2010 में आठ-सदस्यों वाले एक दल ने दक्षिणी ध्रुव तक पहले वैज्ञानिक अभियान में सफलता प्राप्त की। इस दल ने अभियान के दौरान कुल 4680 मिलोमीटर की दूरी तय की। इस दौरान वैज्ञानिकों ने बर्फ के नीचे ढ़की चट्टानों के अध्ययन के लिए विशेष राडार का इस्तेमाल किया। बर्फ के रासायनिक गुणों के अध्ययन के लिए बर्फ के क्रोड़ संग्रह किए तथा ग्लेशियरों में भूस्खलन की घटनाओं का अध्ययन किया।