बिहार का परिचय/अशोक
अशोक के अभिलेख
1837 में सबसे पहले जेम्स प्रिंसेप नामक अंग्रेज़ विद्वान ने अशोक के लेखो(ब्राह्मी लिपि) को पढ़ा। सिंहली अनुश्रुतियों - दीपवंश तथा महावंश में देवनाम प्रिय उपाधि अशोक के लिए प्रयुक्त की गयी हैं। 1915 में मास्की से प्राप्त लेख में अशोक का नाम भी पढ़ लिया गया।
अशोक का इतिहास उसके अभिलेखों पर आधारित है; जीवन,आंतरिक और परराष्ट्रीय नीति तथा राज्य के विस्तार की जानकारी मिलती हैं।
अशोक पहला राजा था जिसने अपने अभिलेखों के सहारे सीधे अपनी प्रजा को संबोधित किया।
अशोक के शिलालेख ब्राह्मी, ग्रीक, अरमाइक, और खरोस्ठी भाषा में है। जबकि सभी स्तम्भ लेख प्राकृत भाषा में हैं।
शाहबाजगढ़ी तथा मानसेहरा के शिलालेख की लिपि खरोस्ठी है। तक्षशिला तथा लघमान के अभिलेख अरमाइक लिपि में उत्कीर्ण है। शर ए कुना अभिलेख द्विलिपिक है। यह अरमाइक तथा ग्रीक लिपियों में उत्कीर्ण हैं। सर्वप्रथम 1750 में टील पेंथर नामक विदद्वान ने अशोक की लिपि का पता लगाया।
1837 में जेम्स प्रिंसिप ने अशोक के लेखों को पढ़ने में सफलता हासिल की थी। धौली तथा जौनगढ़ के शिलालेख प्रथक कलिंग लेख कहलाते है।इसमें सभी मनुष्यों को अपनी संतान बताया गया है।
कौशाम्बी तथा प्रयाग के स्तम्भ लेख में अशोक की रानी कारुवाकी के दान का उल्लेख है। इसलिए इसे रानी का लेख ही कहते है (कारुवाकी तीवर की माँ थी)। अभिलेखों में केवल इसी रानी का उल्लेख है।
अशोक के भाबू शिलालेख में धम्म का उल्लेख मिलता है।
अशोक को उसके अभिलखों में देवनाम प्रिय कहकर संबोधित किया गया है। भब्रू अभिलेख में उसे प्रियदर्शी जबकि मास्की में बुद्दशाक्य कहा गया हैं।
अशोक का नाम का उल्लेख मास्की, गुर्जरा, निट्टूर तथा उदगेलम अभिलेख में मिलता हैं। पुराणों में उसे अशोकवर्धन तथा दीपवंश मे उज्जैनी करमोली कहा गया है।
पाँच श्रेणियों के अभिलेख :
1. दीर्घ शिलालेख 2. लघु शिलालेख : अशोक का नाम केवल इसमे लिखा मिला है, कर्नाटक में तीन और मध्य प्रदेश में एक स्थान पर मिला है 3. पृथक शिलालेख 4. दीर्घ स्तंभलेख 5. लघुस्तंभ
अन्य सभी अभिलेखो पर केवल “ देवानांपीय पियदसि ” (देवों का प्यारा) उसकी उपाधि के रूप में मिलता है और अशोक नाम छोड़ दिया गया है
अभिलेख शिलाओं, पत्थर के पालिशदार शीर्षयुक्त स्तंभों, गुहाओं, और मिट्टी के कटोरे पर मिले हैं। <reference> https://www.upschindi.com/2019/03/ashok-buddha.html?m=1 </reference>