भूस्खलन सम्पादन

भूस्खलन को सामान्य रूप से शैल,मलबा या ढाल से गिरने वाली मिट्टी के बृहत संचलन के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह प्रायः भूकंप, बाढ़ और ज्वालामुखी के साथ घटित होती हैं। लंबे समय तक भारी वर्षा होने से भूस्खलन होता है। यह नदी के प्रवाह को कुछ समय के लिये अवरुद्ध कर देता है। पहाड़ी भू-भागों में भूस्खलन एक मुख्य और व्यापक प्राकृतिक आपदा है जो प्रायः जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुँचाती है,इन क्षेत्रों में यह चिंता का एक मुख्य विषय है।

भारत में भूस्खलन की स्थिति सम्पादन

अनेक अनुभवों,इसकी बारंबारता और भूस्खलन के प्रभावी कारकों,जैसे - भूविज्ञान, भूआकृतिक कारक, ढ़ाल, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण और मानव क्रियाकलापों के आधार पर भारत को विभिन्न भूस्खलन क्षेत्रों में बाँटा गया है। अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र ज़्यादा अस्थिर हिमालय की युवा पर्वत शृंखलाएँ,अंडमान और निकोबार,पश्चिमी घाट और नीलगिरि में अधिक वर्षा वाले क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, भूकंप प्रभावी क्षेत्र और अत्यधिक मानव क्रियाकलापों वाले क्षेत्र, जिसमें सड़क और बाँध निर्माण इत्यादि शामिल हैं, अत्यधिक भूस्खलन सुभेद्यता क्षेत्रों में रखे जाते हैं। अधिक सुभेद्यता क्षेत्र इन क्षेत्रों में भी अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्रों से मिलती-जुलती परिस्थितियाँ होती हैं। लेकिन दोनों में भूस्खलन को नियंत्रण करने वाले कारकों के संयोजन,गहनता और बारंबारता का अंतर है। हिमालय क्षेत्र के सारे राज्य और उत्तर-पूर्वी भाग (असम को छोड़कर) इस क्षेत्र में शामिल हैं। मध्यम और कम सुभेद्यता क्षेत्र

  1. पार हिमालय के कम वृष्टि वाले क्षेत्र लद्दाख और हिमाचल प्रदेश में स्पिती, अरावली पहाड़ियों के कम वर्षा वाले क्षेत्र, पश्चिमी व पूर्वी घाट व दक्कन पठार के वृष्टि छाया क्षेत्र ऐसे इलाके हैं, जहाँ कभी-कभी भूस्खलन होता है।
  2. इसके अलावा झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और केरल में खादानों और भूमि धँसने से भूस्खलन होता रहता है।

अन्य क्षेत्र भारत के अन्य क्षेत्र विशेषकर राजस्थान,हरियाणा,उत्तर प्रदेश,बिहार,पश्चिम बंगाल (दार्जिलिग ज़िले को छोड़कर) असम (कार्बी अनलोंग को छोड़कर) और दक्षिण प्रांतों के तटीय क्षेत्र भूस्खलन युक्त हैं।

भूस्खलनों का परिणाम सम्पादन

  1. भूस्खलनों का प्रभाव अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र में पाया जाता है तथा स्थानीय होता है। परंतु सड़क मार्ग में अवरोध, रेल पटरियों का टूटना और जल वाहिकाओं में चट्टानें गिरने से पैदा हुई रुकावटों के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
  2. इसके कारण हुए नदी मार्ग में बदलाव बाढ़ ला सकती है,और इससे जान माल का नुकसान हो सकता है। इन क्षेत्रों में आवागमन मुश्किल हो जाता है और विकास कार्यों की गति धीमी पड़ जाती है।

निवारण

  • अधिक भूस्खलन संभावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बाँध बनाने जैसे-निर्माण कार्य तथा विकास कार्य पर प्रतिबंध होना चाहिये।
  • इन क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा कम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिये तथा बड़ी विकास परियोजनाओं पर नियंत्रण होना चाहिये।
  • बृहत स्तर पर वनीकरण को बढ़ावा और जल बहाव को कम करने के लिये बाँध का निर्माण। स्थानांतरी कृषि वाले उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिये।

भारत की पहल सम्पादन

  1. भारत को आपदा रोधी बनाने तथा भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम करने के लिये सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 को अपनाया है। सभी स्तरों पर हितधारकों की क्षमता को मज़बूत बनाने की यह एक अहम पहल है।
  2. भूकंप, सुनामी और ज्वालामुखी की तुलना में चक्रवात के आने के समय एवं स्थान की भविष्यवाणी संभव है।आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करके चक्रवात की गहनता, दिशा और परिमाण आदि को मॉनीटर करके इससे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
  3. नुकसान को कम करने के लिये चक्रवात शेल्टर, तटबंध, डाइक, जलाशय निर्माण तथा वायुवेग को कम करने के लिये वनीकरण जैसे कदम उठाए जा सकते हैं, फिर भी भारत, बांग्लादेश, म्याँमार इत्यादि देशों के तटीय क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्या की सुभेद्यता अधिक है, इसीलिये यहाँ जान-माल का नुकसान बढ़ रहा है।

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 इस अधिनियम में आपदा को किसी क्षेत्र में घटित एक महाविपत्ति, दुर्घटना, संकट या गंभीर घटना के रूप में परिभाषित किया गया है, जो प्राकृतिक या मानवकृत कारणों या दुर्घटना या लापरवाही का परिणाम हो और जिससे बड़े स्तर पर जान की क्षति या मानव पीड़ा, पर्यावरण की हानि एवं विनाश हो और जिसकी प्रकृति या परिमाण प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले मानव समुदाय की सहन क्षमता से परे हो।