भारत में अभियांत्रिकी शिक्षा- उम्मीदें बनाम वास्तविकता

भारत में आईटी शिक्षा- उम्मीद बनाम वास्तविकता

भारत हमारा प्यारा भारतवर्ष ये वो देश हैं जिसने विश्व को 0 का ज्ञान दिया। जिस देश की भूमि ने हमे रामानुजन जैसे महान गणितज्ञ दिए। और आर्यभट और सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर जैसे महान खगोलशास्त्री दिए। उस महान देश में शिक्षा के स्तर के बारे में मैं जब भी सोचता हूँ तो मन में विचार आते हैं क्या इस देश में शिक्षा का स्तर इतना खराब हो सकता हैं? जब-जब भारत का इतिहास देखता हूँ तो आशा कि नई किरण दिखाई देती हैं लेकिन अंत में वास्तविकता से टक्कर हो ही जाती हैं।

विद्यार्थी जब अपना हाईस्कूल की परीक्षा देते हैं तो उनके मन में बहुत से सपने जागृत होते हैं। वह अपने सपनों में ही रहना चाहते हैं क्यूकी वो सपने उन्हे बहुत खुशी देते हैं। वह विश्वविद्यालय में एड्मिशन तक के सपने देख लेते हैं। और रिज़ल्ट आने के बाद उनके इस सपने को और बल मिलने लगता हैं। और अपने भविष्य के लिए तैयारी करने लगते हैं। आज भारत के हर जिले में आपको 5 विश्वविद्यालय मिल जाएंगे और उनमे से एक तो कम से कम अभियांत्रिकी विश्वविद्यालय होगा जहाँ इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम होगा। वैसे तो भारत में 12वी तक सरकारी विद्यालय को छोड़कर सभी विद्यालयो में शिक्षा का स्तर सामान्य हैं। वैसे सरकारी विद्यालय का जितना भी मेरा थोड़ा बहुत अनुभव हैं वो बहुत ही खराब हैं। मैंने स्वयं देखा हैं कि 10वी के विद्यार्थी "He goes market." - वह बाजार जाता हैं। "Sita sings a song." सीता एक गाना गाती हैं। जैसे छोटे वाक्य के अनुवाद करके बहुत खुश होते हैं। दरअसल उनके लिए Tense से ही अग्रेजी शुरू और Tense पर ही खत्म हो जाती हैं। शहरो का तो यह हाल हैं गावों में पता नहीं क्या क्या होता होगा। खैर यह इस पुस्तक का बिषय नहीं हैं। विद्यार्थी 10वी के बाद 11वी में कदम रखता हैं। जब मैंने पहली बार 8वी में इंटरमीडिएट भौतिकी भाग 1 की किताबे देखी थी तो यही सोचा था कि इतना कुछ पढ़ूँगा कैसे और टीचर क्या इतना कुछ पढ़ा पाएगा? इसका उत्तर मुझे स्वयं 11वी में आने के बाद मिला। दरअसल टीचर वह पूरी किताब पढ़ते ही नहीं हैं। वह केवल किताब के पाठ की दो-चार परिभाषा लिखवा देते हैं और इंपोर्टेंट के नाम पर दो-चार व्युत्पत्ति (derivation) लिखवा देते हैं। जहाँ 8वी में यह सोच रहा था कि टीचर क्या इतना कुछ पढ़ा पाएगा? और 11वी में देखा कि टीचर ने तो एक दिन में ही पूरा पाठ खत्म कर दिया। प्रथम बेला में परिभाषा लिखवा दी और दूसरी बेला में व्युत्पत्तिया। भौतिकी विज्ञान की दो बेलाए हमारे विद्यालय में होती थी।