भाषाविज्ञान/भाषा और बोली का अंतरसंबंध, भाषा की परिवर्तनशीलता
भाषा और बोली में कोई तात्विक अंतर नहीं है। सूक्ष्म दृष्टि से हम कह सकते हैं कि भाषाओं के अंतर्गत बोलियां अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों में बोली जाती है। बोलिए जब किन्ही कारणों से प्रमुखता प्राप्त कर लेती है तब वह भाषा का रूप धारण कर लेती है।[१] बोली से भाषा बनने में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि कारण होतें हैं। राजनीतिक केंद्र दिल्ली के आसपास बोली जाने वाली खड़ीबोली बोली से ऊपर उठकर भाषा बन गई। इसलिए प्रमुख भाषाविद् एल. एच. ग्रे के अनुसार 'बोलियों और भाषाओं में विभाजक रेखा खींचना असंभव है।'[२]
लेकिन फिर भी बोली और भाषा में अंतर किया गया है-
१)भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है और बोली का सीमित अर्थात भाषा का व्यवहार अधिक दूर तक होता है और बोली का उसकी अपेक्षा कम दूर तक। एक भाषा के अंदर अनेक बोलियां हो सकती है लेकिन एक बोली के अंदर अनेक भाषा नहीं हो सकते।
२)एक भाषा के विभिन्न बोलियां बोलने वाले परस्पर एक दूसरे को समझ लेते हैं किंतु विभिन्न भाषाएं बोलने वाले दूसरे को समझ नहीं सकते अर्थात भाषाओं की विभिन्न बोलियों में बोधगम्यता होती है। जैसे खड़ी बोली में 'जाता हूं' बोलने वाला ब्रजभाषा का 'जात हौ' आसानी से समझ लेगा। लेकिन अंग्रेजी का 'आई गो' नहीं समझ सकेगा। इसलिए खड़ी बोली और ब्रज भाषा हिंदी की बोलियां है और हिंदी और अंग्रेजी दो अलग-अलग भाषाएं हैं।
३) भाषा का प्रयोग शिक्षा, शासन, साहित्य रचना आदि के लिए होते हैं किंतु बोली का दैनिक व्यवहार के लिए। लेकिन इसका अपवाद भी मिलता है, प्रतिभाशाली लोग कभी-कभी बोलियों मैं भी उत्कृष्ट रचनाएं उपस्थित कर देते हैं। उदाहरण के लिए, मैथिली में रचे विद्यापति के पद या अवधी भाषा में रचित तुलसीदास का 'रामचरितमानस'। दोनों रचनाएं बोलियों की होकर भी किसी साहित्यिक या परिनिष्ठित भाषा के रचनाओं के समकक्ष रखी जा सकती है।[३]
बोली का भाषा बनने का सबसे प्रमुख साधन है लोगों के पारस्परिक संपर्क। जब संपर्क की दूरी बढ़ती है तो मूल्यों का भेद भी बढ़ता है और संपर्क बढ़ने पर बोलियों की दक्षता में कमी आती है और भाषा का विस्तार होता है।
निम्नलिखित तत्व संपर्क में सहायक है-
१) प्राकृतिक कारण-
पहले जंगल, नदी, वन आदि के द्वारा और आवागमन की सुविधा न रहने के कारण संपर्क में बाधा पहुंचती थी। जिसके कारण बोलियों का विस्तार नहीं होता था। आधुनिक काल में पहले की अपेक्षा प्राय: प्राकृतिक अवरोधों को हटाया जा रहा है जिससे बोलियों का विस्तार होकर वह भाषा का रूप ग्रहण कर रही है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आज की तुलना में पहले बोलियों का भेद अधिक था।
सन्दर्भ
सम्पादन- ↑ विकिपीडिया पर पढ़ें
- ↑ foundations of language by L.H. grey, p.26
- ↑ भाषा विज्ञान की भूमिका, भोलानाथ तिवारी, p.57, ISBN 978-81-7119-743-9