ॐ
भाषा विज्ञान और हिन्दी भाषा
  1. भाषा का स्वरूप
  2. संसार की भाषाओं का वर्गीकरण
  3. भाषाविज्ञान के अंग
  4. भाषा की विशेषताएँ और प्रवृत्तियाँ
  5. भाषा के विकास-सोपान
  6. भाषा के विभिन्न रूप
  7. भाषा की उत्पत्ति
  8. भाषा की परिवर्तनशीलता और परिवर्तन के कारण
  9. रूप-परिवर्तन के कारण और दिशाएँ
  10. अर्थ-परिवर्तन के कारण और दिशाएँ
  11. ध्वनिविज्ञान और औच्चारणिक ध्वनि का विवेचन
  12. वाक्यविज्ञान और उसके भेद
  13. भाषाविज्ञान के अध्ययन क्षेत्र
  14. पदबंध की अवधारणा और उसके भेद
  15. शब्द और पद में अंतर और हिन्दी शब्द भण्डार के स्रोत
  16. पश्चिमी हिन्दी की बोलियाँ और भाषागत विशेषताएँ
  17. पूर्वी हिन्दी की बोलियाँ और भाषागत विशेषताएँ
  18. हिन्दी, हिन्दी प्रदेश और उसकी उपभाषाएँ
  19. आधुनिक हिन्दी का विकास क्रम
  20. सामान्य भाषा और काव्यभाषा: संबंध और अंतर

पदबंध की अवधारणा

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जब एक से अधिक पद (रूप), एक में बँधकर एक व्याकरणिक इकाई (जैसे: संज्ञा, विशेषण, क्रिया-विशेषण, आदि) का कार्य करें तो उस बँधी इकाई को पदबंध कहते हैं। उदाहरण:

  • वहाँ पेड़ हैं।
  • सौरभ के मकान के चारों ओर पेड़ हैं।

पहले वाक्य में 'वहाँ ' एक क्रिया-विशेषण पद (स्थानवाचक) है, दूसरे वाक्य में, 'सौरभ के मकान के चारों ओर' यहाँ कई पदों की ऐसी इकाई है जो स्थानवाचक क्रिया-विशेषण का कार्य कर रही है, अतः यह क्रिया-विशेषण पद न होकर क्रिया-विशेषण पदबंध है।

पदबंध के भेद

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साधारणतः पदबंध आठ प्रकार के हो सकते हैं:

  1. संज्ञा-पदबंध— जैसे, "इतनी लगन से कला की साधना करने वाला कलाकार अवश्य सफल होगा।"
  2. सर्वनाम-पदबंध— जैसे, "मौत से इतनी बार जूझकर बच जाने वाला मैं भला मर सकता हूँ।"
  3. विशेषण-पदबंध— जैसे, "शरत पूनों के चाँद सा सुन्दर मुख किसको नहीं मोह लेता।"
  4. क्रिया-पदबंध— जैसे, "उसकी बात अब तो मान ली जा सकती है।"
  5. क्रिया-विशेषण-पदबंध— जैसे, "आगामी वर्ष के मध्य तक मेरा काम पूरा हो जाएगा।"
  6. संबंधबोधक-पदबंध— जैसे, "इस मकान से बाहर की ओर कोई बोल रहा है।"
  7. समुच्चयबोधक-पदबंध— "उसे मैं नहीं चाहता, क्योंकि वह झूठ बोलता है।"
  8. विस्मयादिबोधक-पदबंध— "हाय रे किस्मत! यह प्रयास भी नाकाम रहा।"

आजकल 'पद' शब्द के स्थान पर भी 'पदबंध' शब्द का प्रयोग विशेष संदर्भों में हो रहा है।

सन्दर्भ

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  1. भाषा विज्ञान — डॉ. भोलानाथ तिवारी। प्रकाशक: किताब महल, पुर्नमुद्रण: 2017, पृष्ठ: 239, 240