भाषा शिक्षण/शिक्षण
शिक्षण
सम्पादनशिक्षण जिसे बच्चा अपने जन्म लेने के बाद किसी न किसी रूप में ग्रहण करना शुरू कर देता है।
बोलना चलना व ओर अन्य गतिविधियां समाज में रहकर बच्चा सीखता ही है साथ में वह शिक्षा भी ग्रहण करना शुरू कर देता है। यह शिक्षा उससे अक्षरों के ज्ञान के साथ साथ उससे उसके व्यक्तित्व का विकास भी करवाती है। बच्चा शैशवास्था से लेकर पूरे जीवन दो प्रकार की भाषा सीखता है। पहली ओपचारिक भाषा ओर दूसरी ऑनोपचारिक भाषा । ओपचारिक भाषा वह भाषा होती हैं जिससे व्यक्ति स्कूल कॉलजों में पड़ता है। जिससे पड़ने से उससे डिग्री मिलता है। ओर ऑनोपचरिक भाषा वे भाषा होती है जिससे व्यक्ति अपनी रोज की जिंदगी में सीखता है। जिससे वह अपने कार्य में या अन्य रोज की अपनी गतिविधियों में प्रयोग करता है।
अंग्रेजी में शिक्षण को टीचिंग कहते है जिसका अर्थ है किसी को ज्ञान देना। आम भाषा में बोले तो कुछ सीखना शिक्षण कहलाता है।
किसी भी भाषा का शिक्षण लेना सरल कार्य नही ना ही अधिक कठोर है। किसी भी भाषा को सीखना या फिर उसका शिक्षण लेने के लिए हमे उसके नियम को जानना बहुत जरूरी है बिना उसके हमे भाषा शिक्षण में मुश्किलें आयेगी। भाषा का ज्ञान लेने के बाद हम उससे व्यवहारिक रूप में उसका प्रयोग कर सके। ऐसा तभी सम्भव है जब भाषा कोशाल के चारो प्रकार को समझ सके। - बोलना (भाषण), सुनना (श्रवण), पढ़ना (वाचन) और लिखना (लेखन)।
शिक्षण के सिद्धांत
सम्पादन१) सरल से जटिल की और इसका पहला बिंदु है। अर्थात जब अध्यापक अपने बच्चो को शिक्षा देते है तो वह सरल से जटिल की और जाता है। वह अध्यायों को विभिन्न चरणो में बत्त्ता है उसके बाद उसे शिक्षा देता है जिसे शिक्षण जटिल न होकर सरल होता है।
२)क्रिया द्वारा सिखना यह इसके सिद्धांतो में से एक ओर सिद्धांत है इसमें बालक को खेल के दौरान उससे शिक्षण दिया जाता है। इससे उससे शिक्षा लेने में बहुत सरलता हो जाती है और बालक शीघ्रता से समझ जाता व शिक्षा ग्रहण कर लेता है।
हिंदी भाषा शिक्षण की चुनौतियां
सम्पादन१) हिंदी भाषा व साहित्य के प्रति रुचि में अभाव आज का इंसान हिंदी भाषा ओर साहित्य में रुचि नहीं रखता है क्योंकि उससे लगता है कि आज कम्पनियों में जॉब के लिए अंग्रेजी भाषा होती है इसलिए वह हिंदी भाषा साहित्य का अध्ययन नहीं करता जिसके कारण इसकी रुचि कम हो रही है।
२) स्थानीयता ओर मानकता : कई विद्यार्थी पड़ने के लिए दूसरे जगहों से आते है जिसके कारण उनकी भाषा अलग अलग होती है अपनी जगह के अनुसार जिसके कारण उनके लिए हिंदी सीखना चुनौती से भरा होता है।
३) व्याकरण की जटिलता भी हिंदी सखने में मुश्किलें लती है। क्योंकि इसमें मात्राय आदि व्याकरण होती है जिसके कारण हिंदी भाषा का शिक्षण करना बालक के लिए मुश्किलें खड़ी कर देता है।