भाषा साहित्य और संस्कृति/तू दयालु, दीन हौं

तू दयालु, दीन हौं , तू दानि , हौं भिखारी।
हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप-पुंज-हारी।1।

नाथ तू अनाथको, अनाथ कौन मोसो
मो समान आरत नहिं, आरतिहर तोसो।2।

ब्रह्म तू ,हौं जीव, तू है ठाकुर, हौं चेरो।
तात -मात, गुर -सखा, तू सब बिधि हितू मेरो।3।

तोहिं मोहिं नाते अनेक, मानियै जो भावै।
ज्यों त्यों तुलसी कृपालु! चरन-सरन पावै।4।

और काहि माँगिये, को माँगिबो निबारै।
अभिमतदातार कौन, दुख-दरिद्र दारै।1।

धरमधाम राम काम- कोटि- रूप से रूरो।
साहब सब बिधि सुजान, दान -खडग -सूरो।2।

सुसमय दिन द्वै निसान सबके द्वार बाजै।
कुसमय दसरथ के! दानि तैं गरीब निवाजै।3।

सेवा बिनु गुनबिहीन दीनता सुनाये।
जे जे तैं निहाल किये फूले फिरत पाये।4।

तुलसिदास जाचक-रूचि जानि दान दीजै।
रामचंद्र चंद्र तू , चकोर मोहिं कीजै।5।