भौगोलिक चिंतन/अरब भूगोलवेत्ता
जहाँ एक ओर रोमन काल का अंत यूरोप में अंध युग ले आया वहीं इस दौर में आठवीं सदी से लेकर तेरहवीं सदी के काल में अरब जगत के विद्वानों ने ज्ञान की मशाल जलाए रक्खी और ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान दिया। भूगोल के क्षेत्र में भी अरब वासियों का प्रमुख योगदान रहा।
प्रमुख अरब भूगोलवेत्ता
सम्पादनइब्न हाकल
सम्पादनमुहम्मद अबुल-क़ासिम इब्न-हाक़ल उत्तरी मेसोपोटामिया के निसिबिस में पैदा हुआ और उसने अपने जीवन के तकरीबन 30 वर्ष एशिया और अफ्रीका की यात्राओं में बिताये तथा जो देखा उनका विवरण प्रस्तुत किया।
- इब्न हाकल की पुस्तक का नाम सूरत-अल-अर्ज़ है जिसका शाब्दिक अर्थ है "पृथ्वी का चेहरा"। इसका अंग्रेजी अनुवाद, वाया लैटिन, "रूट्स एंड रील्म्स" (Routes and Realms) के नाम से बाद के समय में हुआ।
- अपनी यात्रा के दौरान एक बार तो वह अफ्रीका के पूर्वी तट के सहारे 20 डिग्री दक्षिण तक पहुँच गया था और वहाँ आबाद बस्तियाँ पायीं जिनके बारे यूनानी विद्वानों को अनुमान (तार्किक) भर था कि विषुवत रेखा के दक्षिण में भी आवास योग्य जगहें हो सकती हैं।
इब्न सीना
सम्पादनइब्न सीना जिसे लैटिन नाम अविसिन्ना के नाम से भी जाना जाता है, फारस का रहने वाला एक बहुविद्याविद (पोलीमैथ) था। उसका मुख्य कार्य चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में है जो उसने "द बुक ऑफ़ हीलिंग" (अंग्रेजी अनुवाद वाला नाम) के रूप में लिखा; यह पहला चिकित्सा विज्ञान का विश्वकोश (एन्साइक्लोपीडिया) था। भूगोल के क्षेत्र में उसके योगदान मुख्यतः खगोलिकी अर्थात गणितीय भूगोल में थे। उसने तत्कालीन खगोलिकी पर एक आक्रामक पुस्तक "रिसला-फ़ी-एब्ताल अखाम अल-नजूम" के नाम से लिखी। अविसिन्ना के नाम पर आज भी कई अस्पताल, कॉलेज और विश्विद्यालय हैं।
अल मसूदी
सम्पादनअल मसूदी (896–956) को "अरबों का हेरोडोटस" कहा जाता है। वह अपने समय का एक महत्वपूर्ण इतिहासकार, भूगोलवेत्ता एवं यात्री थे। बहुविद्याविद थे और प्राकृतिक विज्ञानों और दर्शन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान किये। इनकी मैग्नम ऑपस मानी जाने वाली पुस्तक "मुराज अल-दहाब वा-मैदान-अल-जवाहर" है जिसका अंग्रेजी अनुवाद द मीडोज ऑफ़ गोल्ड एंड माइन्स ऑफ़ जेम्स के नाम से हुआ है। यह पुस्तक कई खण्डों में है और वैश्विक इतिहास को भूगोल से जोड़कर देखने के लिए प्रसिद्ध है। इसे केवल मुराज अल-दहाब के नाम से भी जाना जाता है (शाब्दिक अर्थ: सोने कि खदानें)।
- अल मसूदी ने नदियों के अपरदन करने वाली शक्ति को महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी शक्ति माना; यह भी बताया कि सागरीय लवण नदियों द्वारा बहा कर समुद्र में ले जाए गये हैं।
- इन्होने सिंधु नदी घाटी तक यात्रा की थी और अनुमान लगाया जाता है कि शायद श्रीलंका और चीन भी पहुँचे हों; फारस की खाड़ी के पास अबू ज़ायद अल-सिराफ़ी से भेंट और उनसे चीन के बारे में जानकारी लेने के बारे में प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध होती है।
- मानसून का सटीक वर्णन इनके जलवायु के अध्ययनकर्ता के रूप में स्थापित करता है।
- इनके लेखन में नियतिवादी तत्व स्पष्ट दीखते हैं, इन्होने बताया कि पेड़-पौधे और जानवर अपने पर्यावरण के साथ अनुकूलन (एडाप्टेशन) करते हैं।
अल बरूनी
सम्पादनअबू रेहान मुहम्मद इब्न अहमद अल-बरूनी (973-1050) जिन्हें अल-बरूनी के नाम से जाना जाता है, एक बहुविद्याविद थे। इन्हें "भारतविद्या (इंडोलॉजी) का संस्थापक" और पहला एंथ्रोपोलॉजिस्ट कहा जाता है। गणितीय भूगोल के क्षेत्र में इनके योगदान के लिए इन्हें आधुनिक भूगणित का पिता[नोट १] कहा जाता है। बरूनी मूलतः एक ख्वारिजामी ईरानी थे और प्राकृतिक विज्ञानों तथा कई भाषाओं के ज्ञाता थे। भूगोल के क्षेत्र में इनके योगदान निम्नवत हैं:
- प्रमुख पुस्तकें:
- किताब अल-हिंद
- तारीख़ अल-हिंद (भारत का इतिहास)
- अल-क़ानून अल-मसूदी (बादशाह मसूद के क़ानून)
- अल-तहदीद (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की चर्चा की गयी है)
- रिसाला लि अल-बरूनी (जिसे केवल रिसाला के नाम से भी जाना जाता है)
- तारीख़ अल-खवारिजाम (ख्वारिजाम का इतिहास)
- राशिकत-हिंद (भारत में राशियाँ, ज्योतिष का ग्रंथ)
- अल-बरूनी ने एक नई तकनीक का आविष्कार किया जिससे त्रिकोणमिति की सहायता से पृथ्वी की परिधि (इसका आकार) ज्ञात किया जा सके। इसके लिए इन्होने एक पहाड़ी शिखर से कुछ दूरी पर स्थित जगह पर बनने वाले नतिकोण और पहाड़ी की ज्ञात ऊँचाई के सहारे नापने का प्रयास किया। यह पर्यवेक्षण इन्होने वर्तमान पाकिस्तान में स्थित दो जगहों नंदाना और पिंड दादान खाँ में किया (चित्र देखें)। इस गणना में पृथ्वी की परिधि का मान 3928.77 मील आया जो वर्तमान गणना के मान से 2% अधिक है (उन्हें वायुमंडलीय रिफ्रैक्शन का पता नहीं था)।
- बरूनी महमूद गजनवी के आमंत्रण पर भारत आये थे और ग्यारहवीं सदी के भारत में उनके लिखे विवरण भारत के इतिहास और भूगोल के साथ-साथ विविध पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।
- बरूनी ने अपनी पुस्तक "अल-क़ानून अल-मसूदी" को टालेमी की अल्माजेस्ट की तर्ज पर लिखा है; इसमें गणितीय भूगोल, खगोलिकी और सामान्य भूगोल के तत्व शामिल हैं। सूर्य और चंद्रमा की गतियों, ग्रहण के तिरछेपन और क्रांतिवृत (सूर्य का वार्षिक आभासी परिक्रमा पथ) का विवरण है। चंद्रमा के बारे में उनका दृढ़ मत था कि यह वृत्तीय पथ पर चक्कर नहीं लगाता। वे भू-केन्द्रीय ब्रह्मांड के समर्थक थे।
- रिसाला में दिन और रात की लंबाई का विवरण है और ध्रुवों पर छह महीने के दिन-रात का पुष्टिकरण है
- (वर्तमान में अंग्रेजी में अनूदित) पुस्तक कोडेक्स मैसुडिकस (Codex Masudicus) में बरूनी ने सैद्धांतिक रूप से योरोप और एशिया के बीच एक और स्थलखंड होने की बात कहा (जिन्हें आज हम अमेरिकी महाद्वीपों के रूप में जानते हैं)।
- इनकी एक अन्य महत्वपूर्ण (वर्तमान में अंग्रेजी में अनूदित) पुस्तक "द वेस्टिज ऑफ़ द पास्ट" भी है।
- गुजरात के सोमनाथ के तट पर ज्वार-भाटे का विवरण प्रस्तुत किया और चंद्रमा की कलाओं के साथ उच्च एवं निम्न ज्वार-भाटे का विशद वर्णन किया।
- अफ्रीका के बारे में इनका मानना था कि यह सुदूर दक्षिण तक विस्तृत है। इन्होने चंद्र पर्वत का जिक्र किया है और उसे नील नदी का उद्गम बताया है।
अल-इदरिसी
सम्पादनअबू अब्दुलाह मुहम्मद अल-इदरिसी (1100 – 1165) एक अरब मुस्लिम भूगोलवेत्ता, कार्टोग्राफर और मिस्रविद्याविद थे। इनका जन्म सियूटा में और शिक्षा स्पेन के कार्डोवा विश्वविद्यालय में हुई। कुछ समय के लिए ये सिसली के किंग रोजर द्वितीय के दरबार में पालेर्मो में रहे।
- इदरीसी की दो महत्वपूर्ण पुस्तके हैं:
- इदरिसी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य "नुज़हत अल-मुस्तहक़ फ़ी इख्तिराक़ अल-आफ़ाक़" अथवा "टेबुला रोजरियाना" के नाम से विख्यात मानचित्रावली है। यह एक तरह के अविकसित आयताकार मानचित्र प्रक्षेप पर बना विश्वमानचित्र था और यह अपने समय का सबसे उन्नत मध्यकालीन मानचित्र था।[नोट ४]
मानचित्र के निरूपण एवं इसपर टिप्पणियों और व्याख्याओं के संकलन में कुल लगभग 15 वर्षों का समय लगा था। इस मानचित्र में दक्षिण दिशा को ऊपर की ओर दिखाया गया था।
- आधुनिक समय में क्लार्क यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित जीआईएस सॉफ्टवेयर का नाम इन्ही के नाम पर इदरिसी (IDRISI) रखा गया था।[नोट ५]
इब्न बतूता
सम्पादनअबू अब्दुलाह मुहम्मद इब्न-बतूता (1304 – 1368/1369) मूलतः नीग्रो मूल के थे जिनकी शिक्षा अरबी संस्कृति में हुई। इन्हें इनकी लंबी यात्राओं के लिए जाना जाता है क्योंकि इन्होने लगभग 1 लाख 17 हजार किलोमीटर की दूरी तय की थी; स्पेन के आइबेरियन प्रायद्वीप से लेकर मध्य एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप होते हुये चीन तक की यात्राएँ कीं। भारत में इनका आगमन मुहम्मद बिन तुगलक के ज़माने में हुआ और इन्हें दिल्ली का कोतवाल और चीन में तुगलक का राजदूत भी नियुक्त किया गया।
- इब्न बतूता को "अरब जगत का मार्को पोलो" कहा जाता है (हालाँकि उन्होंने मार्को पोलो की तुलना में कहीं अधिक यात्राएँ कीं)
- इन्होने यह संकेत दिया था कि विषुवत रेखा के आसपास जलवायु उतनी विषम नहीं है।
- इनकी एकमात्र पुस्तक इनकी यात्राओं का विवरण है जिसे रेहला के नाम से जाना जाता है।[नोट ६]
इब्न ख़ाल्दून
सम्पादनइब्न ख़ाल्दून (1332 – 1406) को अंतिम महत्वपूर्ण अरब भूगोलवेत्ता माना जाता है। वैसे भी ये मुख्यतः इतिहासकार, समाजविज्ञानी और दार्शनिक थे।
- इनकी पुस्तक "मुक़द्दीमह" (Muqaddimah) में मानव एवं पर्यावरण के संबंधों का वर्णन किया गया। इनके अनुसार उष्ण जलवायु के निवासी लापरवाह और सुस्त होते हैं, जबकि समशीतोष्ण जलवायु के लोग फुर्तीले और बुद्धिमान होते हैं। साथ ही इनका मानना था कि दक्षिणी गोलार्ध की अपेक्षा उत्तरी गोलार्ध में जनसंख्या की सघनता अधिक है।
- कुछ विद्वान् इन्हें प्रथम पर्यावरणीय निश्चयवादी मानने पर बल देते हैं, क्योंकि इन्होने मानव-पर्यावरण सह-संबंध को वैज्ञानिक आधार पर स्पष्ट करने का प्रयास किया था।
नोट
सम्पादन- ↑ geodasy, अर्थात भूगणित अथवा भू-मापन विज्ञान)
- ↑ The pleasure of him who longs to cross the horizons
- ↑ "The title of Nubian Geography, based upon Sionita and Hezronita's misreading of a passage relating to Nubia and the Nile, is entirely unwarranted and misleading." - 1911 Encyclopaedia Britannica [१]
- ↑ अनुवाद का नाम: The Excursion of One Eager to Penetrate the Horizons
- ↑ अब इसका नाम TerrSet है।
- ↑ इसका अनुवाद A Masterpiece to Those Who Contemplate the Wonders of Cities and the Marvels of Travelling के नाम से है।