मध्य आय वर्ग के लिए वित्तीय शिक्षा

हर परिवार के लिए वित्तीय नियोजन बहुत आवश्यक है। वित्तीय नियोजन केवल बचत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक उद्देश्य के साथ एक निवेश है। यह बचत करने और भावी आय को खर्च करने की एक योजना है। इसका बजट ध्यानपूर्वक तैयार करना चाहिए। वित्तीय नियोजन आपके धन का उचित प्रबंधन कर आपके जीवन के लक्ष्यों को हासिल करने की एक प्रक्रिया है। जीवन के लक्ष्यों में एक मकान खरीदना, बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए बचत या सेवानिवृत्ति के लिए योजना आदि को शामिल किया जा सकता है।

आज आप लोगों को अपनी हैसियत से अधिक सुविधाओं के साथ जीवन जीते देखते हैं। उनके पास क्रेडिट कार्ड है, वे जोखिम भरा निवेश करते हैं और ऐसी चीजें करते हैं जो गैर जिम्मेदाराना है और वित्तीय नियोजन के सिद्धांतों के खिलाफ है। नए और अक्सर जटिल वित्तीय उत्पादों का प्रसार अधिक वित्तीय विशेशज्ञता की मांग करते हैं। साथ ही अस्त-व्यस्त स्थितियां और बदलते कर कानून पर्याप्त वित्तीय नियोजन की जरूरत बढा देते हैं। इसलिए हम सभी के लिए वित्तीय नियोजन और वित्तीय उत्पादों को समझना अपरिहार्य हो गया है।

वित्तीय नियोजन के अंतर्गत अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक दोनों ही तरह की बचतें आती हैं। बचत का एक हिस्सा कुछ निश्चित संपत्तियों में निवेश किया जाता है। परिसंपत्ति के रूप में कई तरह के निवेश विकल्प उपलब्ध हैं मसलन बैंक जमा, सरकारी बचत योजनाएं, शेयर, म्यूचुअल फंड, बीमा, जिंस, बांड, डिबेंचर, कंपनी सावधि जमा आदि। वित्तीय नियोजन खुद ब बखुद होने वाली कोई चीज नहीं है, बल्कि इसमें ध्यान देने और अनुशासन की जरूरत पडती है। यह छह चरण की प्रक्रिया है जिससे आपको एक व्यापक तस्वीर देखने में मदद मिलती है और वह तस्वीर यह है कि आप कहां हैं और वित्तीय तौर पर आप कहां होना चाहते हैं।

वित्तीय नियोजन की प्रक्रिया
  1. अपनी वर्तमान आर्थिक अवस्था का निश्चय कीजिए,
  2. अपना आर्थिक लक्ष्य निर्धारित कीजिए,
  3. इसके कार्यान्यवन के विभिन्न विकल्पों पर विचार कीजिए,
  4. विकल्पों का मूल्यांकन कीजिए,
  5. अपना वित्तीय कार्ययोजना बनाइये और इसका क्रियान्वयन कीजिए,
  6. कार्ययोजना की समीक्षा कीजिए, आवश्यक हो तो परिवर्तन भी कीजिए,

बचत एवं निवेश की बुनियादी बातें

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आपके माता पिता सही कहते हैं रुपये और पैसे पेड पर नहीं उगते, बल्कि वास्तव में पैसे से पैसा बनता है। पैसे में एक अनोखी क्षमता है और वह है और पैसा बनाने की। अच्छी बात यह है कि इसके लिए बहुत पैसे की जरूरत नहीं होती।

बचत और निवेश

बचत वह धन है जिसे लोग छोटी अवधि के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जमा करते हैं। एक बचत खाता में आपका धन काफी सुरक्षित है और आमतौर पर इसपर काफी छोटी मात्रा में ब्याज मिलता है। जरूरत पडने पर आपके लिए इसे पाना भी आसान है।

निवेश का मतलब है कि आप दीर्घकालीन लक्ष्यों के लिए अपना धन अलग रख रहे हैं। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जो धन आप निवेश करते हैं वह बढेगा। वास्तविकता में आने वाले समय में मूल्य में उतार-चढ़ाव निवेशकों के लिए सामान्य बात होती है। लेकिन लंबी अवधि में निवेशक बचत खाता की तुलना में ज्यादा कमाई कर सकता है।

वित्तीय लक्ष्य के लिए बचत और निवेश इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं?

आपके वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने में बचत और निवेश की महत्ता इस संदर्भ में ज्यादा होती है कि वह आपकी खर्च करने की प्रवृत्ति को कम करती है। लेकिन इसका अच्छा तर्क यह है कि आप अपने पैसों को खर्च करके दरअसल अपने पैसों की बचत करते हैं। कोई भी ब्याज या निवेश लाभ आपको आपके वित्तीय लक्ष्य के नजदीक ले जाता है। और इसके लिए आपको कुछ करना नहीं पड़ा।

जल्दी बचत करना शुरू करें तो जब आपको इसकी जरूरत पडेगी आप तैयार होंगे, चाहे आप एक मकान के लिए बचत कर रहे हों, बच्चे की शिक्षा के लिए या फिर अपनी सेवानिवृत्ति के लिए। अगर आप 20 साल की उम्र से बचत करना शुरू कर देते हैं तो यह एक बेहतर शुरूआत होगी। अगर आप बचत करना शुरू नहीं करते तो बाकी जिंदगी चीजों के पीछे भागते गुजार देंगे। युवाओं के पास एक खास चीज है जो उम्रदराज लोगों पास नहीं है और वह है समय। जब वे इस अवधारणा को समझ जाते हैं और समय का अपने पक्ष में उपयोग करते हैं तो उनके पास अपने सपनों को साकार करने और अपने वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने का बेहतर मौका होता है।

निवेश में टालमटोल की कीमत

टालमटोल की कीमत क्या आप जानते हैं कि अधिक पैसा कमाने के लिए अधिक समय निवेश करना होता है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी सही है। निवेश के लिए इंतजार कर आप अवसर लागत का भुगतान कर रहे हैं। यह कहना आसान है कि बचत शुरू करने और अभी निवेश के लिए आपके पास पर्याप्त धन नहीं है। जब तक मेरे पास और पैसा नहीं आ जाता, मैं इंतजार करना पसंद करूंगा। लेकिन यह निर्णय आप पर उससे अधिक भारी पडता है जितना आप सोचते हैं क्योंकि कार्यों को संयोजित करने की ताकत दोनों तरह से काम करती है। यह इसलिए भी आप पर भारी पडती है क्योंकि इंतजार करने का मतलब है महज एक छोटी मात्रा में धन पर चक्रवृद्धि ब्याज कमाने का अवसर गंवाना।

आप स्वयं से निम्नलिखित प्रश्न पूछें-

क्या आप अभी जितना खर्च करते हैं उससे 10 प्रतिशत कम खर्च करते हुए मौज के साथ जीवन जी सकते हैं और उस बचाए गए पैसे को अपने भविष्य के लिए अलग रख सकते हैं। अगर आप भावी लक्ष्यों के लिए अपनी आय का 10 प्रतिशत बचा सकते हैं तो आपके क्या लक्ष्य होंगे। अपने जीवन में आप क्या हासिल करना चाहते हैं इसके लिए भाग्य से अधिक भी किसी चीज की जरूरत होती है।

लोगों को यह जानने की जरूरत है कि ‘पहले खुद त्याग कर’ बचत को प्राथमिकता बनाकर वे भविष्य में क्या चाहते हैं इसका महज सपना देखने से अधिक कर सकते हैं। चाहे किसी की आमदनी कम हो ज्यादा, इसका कुछ हिस्सा निवेश के लिए अलग रखने के लिए आत्म अनुशासन की जरूरत पडती है। कुछ ऐसी चीजें जिसे आप अपने पास चाहते हैं, अनुशासित रहते हुए उनकी खरीदारी टालकर और बचत एवं निवेश कर आप दीर्घकालीन लाभ का आनंद उठा सकते हैं।

सेवानिवृति के लिए योजना बनाना

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बजट बनाना

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आपके वित्तीय नियोजना में सबसे पहला कदम बजट बनाना है। आय की आवाजाही पर नजर रखने, योजना बनाने और इस पर नियंत्रण रखने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया बजट कहलाती है। इसमें आय के सभी स्रोतों की पहचान करना और सभी चालू एवं भावी खर्चों को ध्यान में रखते हुए वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने का प्रयास करना है। बजट बनाने वाले व्यक्ति का प्राथमिक लक्ष्य खर्च के लिए धन आबंटित करने के बाद बचत सुनिश्चित करना है।

बजट बनाने के लाभ
  • विभिन्न स्तरों पर फिजूलखर्ची को रोकने के लिए यह नियंत्रण रखने और संतुलन बनाता है।
  • कोष के लिए गैर अपेक्षित जरूरत को ध्यान में रखता है।
  • अनुशासित रहने में मदद करता है।
  • एक व्यक्ति को सेवानिवृत्ति उपरांत जीवन स्तर बनाए रखने में मदद करता है।
बजट नियोजन के लिए कदम

पहला कदम - अपनी आय की गणना करें : पे-चेक और किसी निवेश से ब्याज सहित इसमें सभी स्रोतों से आय को शामिल किया जाना चाहिए।

दूसरा कदम -आवश्यक चीजों के लिए अपने खर्च तय करें: अपने आवश्यक खर्चों की सूची बनाएं जिसमें किराया, राशन, कपडे, टेलीफोन एवं बिजली के बिल, ईंधन एवं वाहन का रखरखाव जैसे खर्चों को शामिल किया जा सकता है। प्रत्येक मद पर खर्च होने वाली रकम की गणना करें।

तीसरा कदम . ब्याज भुगतान समेत अपने कुल ऋणों को नोट करें।

चौथ कदम - अनावश्यक चीजों के लिए अपने खर्च तय करें: अनावश्यक चीजों की सूची में छुट्टी पर सैर, उपहार एवं रेस्तरां में खाने के खर्चों को शामिल किया जा सकता है। प्रत्येक मद पर खर्च होने वाली रकम की गणना करें।

पांचवां कदम - अपनी बचत की गणना करें: इसे पहले कदम से दूसरे, तीसरे और चौथे कदम को घटाकर निकाला जा सकता है। इस बात का एहसास रहे कि जीवन में गैर अपेक्षित चीजें आती रहती हैं जिससे आपको अपना बजट प्लान तोडना पड सकता है। हालांकि किल्लत दूर करने के लिए कर्ज लेने से परहेज करें और जहां तक संभव हो सके अपने बजट पर टिके रहें।

निवेश पर महंगाई का असर

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जब आप अपने निवेश की योजना बना रहे हों तो अपने निवेश पर महंगाई के असर को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है। आसान शब्दों में समझें तो महंगाई कीमतों में बढोतरी है। बीतते समय के साथ वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत बढती है जिससे रुपये का मूल्य घटता जाता है क्योंकि उतने रुपये में आप उतनी चीजें नहीं खरीद पाते जितना पिछले महीने या पिछले साल खरीद सकते थे।ण् कैसे महंगाई आपके निवेश संबंधी निर्णय को प्रभावित कर सकती है?पांच साल पहले वडा पाव दो रुपये में मिलता था लेकिन अब यह 7 रुपये में मिलता है। वडा पाव की कीमत उसकी मात्रा बढ गई या उसकी गुणवत्ता बेहतर होने के चलते नहीं बढी, बल्कि वडा पाव बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री महंगी होने से इसकी कीमत बढी है।

मुद्रास्फीति निवेशकों को बहुत डराती है क्योंकि यह आपके निवेश का मूल्य खा जाती है। उदाहरण के तौर पर अगर आप 1,000 रुपये एक साल के लिए सावधि जमा में निवेश करते हैं जिस पर आपको सालाना 5 प्रतिशत ब्याज मिलता है तो आप एक साल में 1,050 रुपये पाने के लिए अभी 1,000 रुपये दे रहे हैं। अगर इस एक साल के दौरान मुद्रास्फीति की दर 6 प्रतिशत रहती है तो आपका खर्च जो पिछले साल 1,000 रुपये थी साल के अंत में बढकर 1,060 रुपये पहुंच जाएगी। इस तरह से आप एक साल तक अपना धन निवेश करके रखने के बाद भी पिछले साल के मुकाबले बुरी स्थिति में हैं क्योंकि निवेश पर आपको मिला रिटर्न मुद्रास्फीति की दर से कम रहा।

मुद्रास्फीति के दुश्प्रभावों से बचने के लिए एक निवेश कौन कौन से कदम उठा सकता है?

अपने ऐसे ‘रिटर्न की वास्तविक दर’ निकालने की कोषिश करें जिसे मुद्रास्फीति के प्रभावों को आंकने के बाद आप हासिल करने की उम्मीद कर सकते हैं। मुद्रास्फीति की वर्तमान दर को ध्यान में रखने के अलावा यह भी महत्वपूर्ण है कि विशेषज्ञ मुद्रास्फीति कितनी रहने का अनुमान जता रहे हैं। भविष्य में मुद्रास्फीति का रूख कैसा होगा, इस आधार पर वर्तमान निवेश के मूल्य एवं भावी निवेश के आकर्शण में बदलाव देखने को मिलता है। यह भी याद रखें कि नियत आय वाले निवेश, मुद्रास्फीति के प्रभावों से मुकाबला करने में बहुत कारगर नहीं होते। अगर आप एक नियत ब्याज दर में कैद हैं और मुद्रास्फीति बढती है, तो आपकी आमदनी उतनी नहीं बढेगी और इस तरह से आपको नकारात्मक रिटर्न मिलेगा।

जोखिम और रिटर्न

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जोखिम और निवेश का चोली दामन का साथ है। जोखिम को इस तरह से परिभाशित किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति अपना पूरा धन या उसका हिस्सा निवेश में गंवाने को तैयार है। इसमें अच्छी बात यह है कि जोखिम भरा निवेश अधिक रिटर्न का रिवार्ड दिलाता है जिससे पूरी प्रक्रिया सार्थक बन जाती है।

जोखिम के बारे में ध्यान रखने लायक मूल बात यह है कि रिटर्न की संभावना बढने के साथ जोखिम बढता है। लाजिमी है कि जोखिम जितना अधिक होगा, रिटर्न मिलने की संभावना भी उतनी अधिक होगी। (इन शब्दों को न भूलें - संभावना फायदेमंद होती है। रिटर्न की कोई गारंटी नहीं)

‘बिना जोखिम’ वाले उत्पादों जैसे बचत खाता और सरकारी बांड में भी मुद्रास्फीति दर के मुकाबले कम आय का जोखिम है। अगर मुद्रास्फीति की दर के मुकाबले रिटर्न कम है तो निवेश वास्तव में निरर्थक हो गया है क्योंकि आपकी आय विभिन्न तरीकों से निवेश के जरिए जितनी बढनी चाहिए, उतनी नहीं बढ रही है।

आप निवेश में बने रहें, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने जोखिम का प्रबंधन करने के लिए आवश्यक उपाय करें। एक बार आप किसी खास संपत्ति में निवेश करते हैं तो अपने निवेश पर नजर रखें और किसी मुसीबत से बचने के लिए बाजार में घट रही विभिन्न घटनाओं के बारे में दुरूस्त जानकारी रखें। जब असामान्य रिटर्न की पेशकश की जा रही हो तो ऐसे निवेश में निहित संभावित जोखिम का पता लगाएं।

चक्रवृद्धि की शक्ति

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वित्तीय नियोजन के समय सुरक्षित एवं निश्चित तौर पर धन सृजन के लिए चक्रवृद्धि की जादूई ताकत सबसे महत्वपूर्ण औजार है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक समय कहा था- ‘ब्रह्मांड में सबसे शक्तिशाली बल चक्रवृद्धि ब्याज है।’ चक्रवृद्धि एक सरल अवधारणा है जो यादगार रिटर्न की पेशकश करता है। अगर आप अपना धन एक निश्चित रिटर्न के लिए निवेश करते हैं और रिटर्न मिलने पर फिर इस आय को पुनरू निवेश करते हैं तो आने वाले समय में यह तेजी से बढेगा। साधारण ब्याज के साथ आप केवल मूलधन पर ब्याज कमाते हैं, जबकि चक्रवृद्धि में आप मूल और ब्याज पर ब्याज कमाते हैं।

आइए देखते हैं कि 9 प्रतिशत रिटर्न की पेशकश करने वाली 12,000 रुपये की वार्षिक निवेश स्कीम पर चक्रवृद्धि की शक्ति किस तरह से काम करती है। यह स्कीम 30 वर्ष के लिए है जिसमें 3.6 लाख रुपये मूलधन 17.83 लाख रुपये हो जाता है। चक्रवृद्धि का रिवार्ड निवेश को अनुशाशित करता है और लंबी अवधि में उत्कृश्ट साबित होता है। उपरोक्त उदाहरण में पहले 20 वर्ष महज 6.69 लाख रुपये का लाभ होता है, जबकि अंतिम 10 वर्ष में इसमें चक्रवृद्धि की शक्ति नजर आती है और धन तेजी से बढने लगता है। जितना अधिक लंबे समय तक आप अपने पैसे को हाथ नहीं लगाते उतनी तेजी से यह बढता है। मसलन, उक्त निवेश में 40 साल बने रहने पर आपको 44.20 लाख रुपये मिलेगा।

इस प्रकार, चक्रवृद्धि एक चमत्कारी औजार है जिससे आप भारी मात्रा में धन एकत्र करने के लिए लंबे समय के लिए छोटे निवेश कर सकते हैं। अगर आप काफी पहले निवेश करना शुरू कर दें और इस धन को हाथ न लगाएं तो यह निवेश सबसे अच्छा काम करेगा। अभी निवेश शुरू करने के लिए वास्तव में चक्रवृद्धि आपके लिए एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण कारण है। इसमें लगा हर दिन का पैसा यह सुनिश्चित करता है कि आपका पैसा आपके लिए काम कर रहा है, जिससे वित्तीय तौर पर सुरक्षित एवं स्थायी भविष्य सुनिश्चित हो रहा है।

उदाहरण - चक्रवृद्धि की शक्ति

संतोश और सुनील दोस्त हैं सालाना 10 प्रतिशत ब्याज दर पर एक लाख रुपये निवेश करना चाहते हैं। लेकिन संतोश को 10 प्रतिशत की दर से चक्रवृद्धि ब्याज मिलेगा, जबकि सुनील को उसके निवेश पर 10 प्रतिशत की दर से साधारण ब्याज मिलेगा। अब चक्रवृद्धि की ताकत कमाल देखे-

वर्ष  चक्रवृद्धि 10% की दर पर  सामान्य ब्याज दर 10%   
1  1,10,000.00           1,10,000.00  
2  1,21,000.00           1,20,000.00  
3  1,33,100.00           1,30,000.00  
4  1,46,410.00           1,40,000.00  
5  1,61,051.00            1,50,000.00  
20  6,72,750.00          3,00,000.00  
25  10,83,470.59          3,50,000.00  
30  17,44,940.23          4,00,000.00

1. एक साल बाद दोनों को समान रकम मिलेगी मसलन 1,10,000

2. पांच साल बाद संतोश को 1,61,051 रुपये मिलेगा, जबकि सुनील को 1,50,000 रुपये मिलेगा

3. 30 साल बाद संतोश को 17,44,940 रुपये मिलेगा और सुनील को 4,00,000 रुपये मिलेगा।

30 साल में 13.4 लाख रुपये का अंतर

72 का नियम

अब आप चक्रवृद्धि की अवधारणा का अर्थ है जान चुके हैं कि इसमें पैसे से पैसा बनता है तब भी जब आप सो रहे होते हैं। यह कितना शक्तिशाली हो सकता है इसे आप दूसरे तरीके से भी जान सकते हैं। यह तरीका 72 का नियम कहलाता है। गणितज्ञ कहते हैं कि आपको अपना धन दोगुना करने में कितना समय लगेगा, यह जानने के लिए आप 72 को ब्याज दर से भाग दें। मान लें कि आपके दादा दादी जन्म दिन के लिए आपको 200 रुपये देते हैं और आप इसे निवेश करने की योजना बनाते हैं। अगर आप इसे एक ऐसे खाते में जमा करते हैं जहां सालाना 6 प्रतिशत की दर से ब्याज मिलता है तो इसे बढकर 400 रुपये होने में कितना समय लगेगा।

72 / 6% ब्याज = 12 वर्ष

इसलिए 12 वर्ष में आपका धन दोगुना होकर 400 रुपये हो जाएगा। लेकिन अगर आपके पिता एक ऐसे खाते के बारे में आपको बताते हैं जहां सालाना 9 प्रतिशत ब्याज मिलता है तो क्या होगा।

72 / 9% ब्याज = 8 वर्ष

अब केवल आठ वर्ष में ही आपके पास 400 रुपये होंगे। थोडा अधिक ब्याज लेकर आप धन दोगुना होने में लगने वाला समय चार साल घटा लेते हैं। और इसके लिए कोई अतिरिक्त धन भी नहीं लगाना पडता।

लेकिन अगर आठ वर्ष भी इंतजार के लिए बहुत लंबा समय लगता है और आप चार साल में इसे दोगुना करना चाहते हैं तो 72 का नियम आपको वह ब्याज दर भी बात सकता है जिसके जरिए आप चार साल में धन दोगुना कर सकते हैं।

72 / 4 वर्ष = 18% ब्याज

अब आप देख सकते हैं कि ब्याज दर में एक छोटा अंतर धन में कितनी तेजी के साथ बढोतरी कर सकता है आपको आने वाले समय में अधिक धन दिलाता है।

बीतते समय के साथ पैसों की कीमत

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समय बीतने पर आपको एहसास होगा कि 10 साल पहले आप 10 रुपये में पेटभर एक समय का भोजन कर सकते थे, लेकिन आज आपको इतने पैसे में थोडी बहुत सब्जियां ही मिल पाती हैं। इसका मतलब कि पांच साल बाद हजार रुपये के नोट का मूल्य आज की तुलना में कम होगा। भले ही नोट वही है, आने वाले समय के मुकाबले आज आप उससे बहुत कुछ कर सकते हैं क्योंकि मुद्रास्फीति की वजह से 1,000 रुपये का मूल्य घट जाएगा।

निवेश के विकल्पों का सही चुनाव

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सर्वोत्तम निवेश विकल्प व्यक्तिगत परिस्थितियों एवं सामान्य बाजार स्थितियों पर निर्भर करेगा। यह जरूरी नहीं है कि एक व्यक्ति के उद्देश्य के लिए एक निवेश दूसरे व्यक्ति की जरूरत पूरी करे। सही निवेश तीन चीजों का एक संतुलन है। ये चीजें हैंरू तरलता, सुरक्षा और रिटर्न।

इसमें ऐसे निवेश शामिल हैं जिन्हें जरूरत पडने पर नकदी में बदला जा सकता है। आपात स्थितियों से निपटने के लिए कुछ तरल निवेश की जरूरत पडती है।

सुरक्षा

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यह निवेश के जोखिम कारक के बारे में है। सबसे बुरी स्थिति वह है जब निवेश किया गया पूरा धन डूब जाए।

रिटर्न

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निवेश से हुई आमदनी एक ऐसा कारक है जिस पर विचार किया जाता है। सुरक्षित निवेश स्थिर या नियमित रिटर्न की पेशकश करता है लेकिन यह रिटर्न कम होता है, जबकि जोखिम भरा निवेश अधिक रिटर्न की पेशकश करता है या इस पर बिल्कुल भी रिटर्न नहीं मिलता। बाजार में छोटी अवधि और लंबी अवधि के कई वित्तीय निवेश विकल्प मौजूद हैं जिनमें से कुछ आगे बताए जा रहे हैं।

संपत्ति के आबंटन की सही रणनीति

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संपत्ति के प्रत्येक वर्ग में खुद के जोखिम और रिटर्न हैं। शेयर में निवेश जोखिम भरा माना जाता है क्योंकि इसमें लगायी गई पूरी पूंजी डूब सकती है, जबकि सरकारी बांड जोखिमरहित माने जाते हैं और आप यह भरोसा कर सकते हैं कि सरकार ब्याज भुगतान करने से नहीं चूकेगी। ऐसे में संपत्ति आबंटन यानी कितना पैसा कहां लगाएं यह महत्वपूर्ण हो जाता है। संपत्ति आबंटन संपत्तियों के विभिन्न वर्ग में धन निवेश करने की एक तकनीकी है जिसे आप अपनी आय की इच्छा और जोखिम उठाने की क्षमता के मुताबिक निवेश के लिए अपनाते हैं।

संपत्ति आबंटन में तीन महत्वपूर्ण चीजों को शामिल किया जाता है-

  • आपकी समय सीमा
  • जोखिम उठाने की क्षमता
  • आपकी व्यक्तिगत परिस्थितियां

उम्र, जीवनशैली और परिवार के लिए प्रतिबद्धता के आधार पर आपका वित्तीय लक्ष्य अलग हो सकता है। विभिन्न संपत्तियों में धन लगाते समय यह देखना महत्वपूर्ण है कि विविधकरण से लाभ उठाने के लिए विभिन्न संपत्तियों में धन लगाएं। आमतौर पर एक उम्र आधारित संपत्ति आबंटन में निवेशक की उम्र के आधार पर शेयरों में धन लगाया जाता है। इस माडल के इस्तेमाल का तर्क यह है कि ‘जैसे जैसे निवेशक की उम्र बढती है उसका पोर्टफोलियो रूढीवादी होना चाहिए।‘

हालांकि यह महज एक व्यवहारिक नियम है और एक निवेश अपनी क्षमता के बेहतर ढंग से आंक सकता है।

स्वयं की तस्वीर उतारना

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वास्तव में आप खुद को वित्तीय रूप में कहां पाते हैं, यह जानने के लिए वित्तीय ब्यौरा तैयार करना सबसे बेहतर तरीकों में से एक हो सकता है। संपत्तियों एवं देनदारियों का एक विस्तृत एवं संपूर्ण लेखाजोखा वित्तीय ब्यौरे का एक प्रमुख घटक है।

लक्ष्यों की पहचान करना

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वित्तीय नियोजन में सबसे महत्वपूर्ण कदम यह समझना और पहचानना है कि आप क्या हासिल करना चाहते हैं। पैसा आपकी इच्छाओं को पूरा करने में महज एक टूल का काम करता है। यह समझकर कि वास्तव में आप क्या चाहते हैं, लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आपको कितने धन की जरूरत है, इसकी योजना बनाना आपके लिए बहुत आसान हो जाता है।

संपत्तियों की पहचान करना

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एक बार जब आपके लक्ष्यों की पहचान हो जाती है तो यह आकलन करने की बारी आती है कि लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कौन सी संपत्तियां उपलब्ध हैं। इन संपत्तियों को उनकी तरलता और दीर्घकालीन मूल्य की स्थिरता के मुताबिक वर्गों में बांटने में जरूरत पडती है। संपत्तियों की पहचान करने और उनका वर्गीकरण करने के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि वे कब और कितनी नकदी पैदा करते हैं। आप अपनी सभी संपत्तियों की एक सूची बनाएं जिसमें अपने मकान, शेयरों, म्यूचुअल फंडों और सावधि जमाओं में निवेश, बचत खाते में पडे धन आदि को शामिल करें।

देनदारियों की पहचान करें

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देनदारियों की पहचान उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उपलब्ध संपत्तियों की पहचान करना। आदर्श स्थिति में संपत्तियां देनदारियों से अधिक होनी चाहिए। अन्यथा देनदारियों को निपटाने और आय अर्जित करने व निवेश उद्देश्यों के लिए कुछ संपत्तियां अपने पास रखने के लिए संपत्तियों में निवेश की योजना की जरूरत पडती है।

भविष्य में आय की संभावना

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भावी आय का अनुमान लगाते समय आपको कुछ धारणा बनाने की जरूरत पडती है। कुछ धारणाएं निम्नलिखित हो सकती हैं।

अगर आप वेतनभोगी कर्मचारी हैं तो यह पूर्वानुमान लगाना सुरक्षित है कि आपकी वेतन आय सेवानिवृत्ति तक सालाना 8 प्रतिशत की दर से बढेगी।

ऋण प्रतिभूतियों पर रिटर्न की दर सालाना 7 प्रतिशत और शेयर सूचकांक पर रिटर्न की दर सालाना 12 प्रतिशत मानी जा सकती है। उपरोक्त कथन केवल सांकेतिक रिटर्न हैं। वास्तविक रिटर्न बाजार परिस्थितियों के मुताबिक भिन्न हो सकते हैं।

भविष्य में खर्च की संभावना

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यहां फिर आपको धारणा बनाने की जरूरत पडती है मसलन लंबी अवधि में सालाना 5 प्रतिशत की मुद्रास्फीति की दर घरेलू और व्यक्तिगत रहन सहन के खर्च (मनोरंजन, शिक्षा, शादी ब्याह आदि पर खर्च) सालाना 8 प्रतिशत दर से बढते हैं (मुद्रास्फीति की दर से 3 प्रतिशत अधिक)

योजना बनाना

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संपत्तियों से नकदी की आवक और देनदारियों के लिए नकदी के भुगतान के बीच तालमेल बिठाना वित्तीय नियोजन का मर्म है। वित्तीय नियोजन में लक्ष्य को देनदारियां माना जाता है क्योंकि आमतौर पर इसे हासिल करने के लिए धन खर्च करने की जरूरत पडती है। यह एक बहुआयामी दृश्टिकोण है।

उदाहरण

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मान लें कि आपका लक्ष्य अपने बच्चे की उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त धन बचाना है।

पहला कदम - यह तय करें कि कितने वर्ष बाद आपके बच्चे को उच्च शिक्षा की जरूरत पडेगी।

दूसरा कदम - आज शिक्षा पर आ रहे खर्च का निर्धारण करें। इसकी गणना में आमतौर पर एक प्रोफेशनल कोर्स के लिए मौजूदा खर्च को मुद्रास्फीति की अनुमानित वार्षिक दर से गुणा कर शामिल कर सकते हैं।

तीसरा कदम - मान लें कि एक प्रोफेशनल खर्च पर आज 1,00,000 रुपये का खर्च आता है तो 5 प्रतिशत मुद्रास्फीति की दर के साथ 12 वर्ष बाद यह खर्च 1,79,585 रुपये हो जाएगा।

चौथा कदम - अगला कदम भविष्य में खर्च की जाने वाली रकम का वर्तमान मूल्य निकालना है। यह करने के लिए आप धन के भावी मूल्य को लें और इसे अपने रिटर्न की अनुमानित दर से भाग दें। मान लें कि 1,00,000 रुपये का भावी मूल्य 1,79,585 रुपये के बराबर है। 12 वर्ष के लिए 8 प्रतिशत की अनुमानित वार्षिक दर के साथ उस भावी मूल्य का वर्तमान मूल्य है 1,79,585/1.0812 जो 71,315 रुपये के बराबर है। इसलिए आपको आज 71,315 रुपये एक ऐसी संपत्ति में लगाने की जरूरत है जहां आपको सालाना औसतन 8 प्रतिशत रिटर्न मिले ताकि आप 12 साल में अपने बच्चे की शिक्षा का खर्च उठा सकें।

पांचवा कदम - भविष्य में होने वाले अनुमानित प्रत्येक खर्च के लिए आपको वर्तमान में हो रहे खर्च की गणना करने और एक ऐसी संपत्ति का पता लगाने लगाने की जरूरत है जिसका इस्तेमाल भविष्य में खर्चों की पूर्ति के लिए किया जा सकता है। यह प्रक्रिया आपके सभी भावी लक्ष्यों के लिए दोहराने की जरूरत है। अपने भावी खर्चों की गणना करें और इसके लिए आज भी बचत करना शुरू करें ताकि आप उन सभी खर्चों को पूरा करने की स्थिति में हों।

बचत एवं निवेश से जुड़े उत्पाद

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बैंक जमाएं सुरक्षित निवेश हैं क्योंकि अधिकतम 1,00,000 रुपये तक तक की बैंक जमाएं भारतीय जमा बीमा एवं क्रेडिट गारंटी स्कीम के तहत बीमित हैं। बैंकों का नियमन भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है। बैंक ग्राहकों की जरूरत के आधार पर विभिन्न किस्म की जमाओं की पेशकश करते हैं। बैंक जमाओं को इसलिए भी अधिक तरजीह दी जाती है क्योंकि उनमें तरलता एवं सुरक्षा निहित होती है, भले ही उन पर रिटर्न अपेक्षाकृत थोडा कम होता है। सावधि जमा की रसीद के आधार पर जमा राशि का 75 से 90 प्रतिशत तक ऋण प्राप्त करना संभव है।

जमाओं के प्रकार एवं उनकी प्रमुख विशेशताएं-

बचत बैंक खाता

  • प्राय पहला बैंकिंग उत्पाद जिसका लोग इस्तेमाल करते हैं
  • कम ब्याज दर मिलता है, हालांकि अत्यधिक तरल है
  • ग्राहकों के बीच बचत की आदत डालने के लिए उपयुक्त

बैंक सावधि जमा (बैंक एफडी)

  • इसमें एक निर्धारित ब्याज दर पर तय अवधि के लिए (30 दिन से कम नहीं) बैंक में धन जमा किया जाता है।
  • बैंक एफडी के लिए आदर्श निवेश अवधि 6 से 12 महीने है क्योंकि आमतौर पर छह महीने से कम अवधि की सावधि जमा पर ब्याज दर कम होती है।
  • इसमें समय सीमा अहमियत रखती है क्योंकि मियाद पूरी होने से पहले धन निकासी पर पेनाल्टी लगती है।

आवर्ती जमा खाता

  • कुछ निश्चित रकम महीने के अंतराल पर एक पूर्व निर्धारित अवधि के लिए जमा की जाती है।
  • इसमें बचत बैंक खाते की तुलना में अधिक ब्याज मिलता है।
  • हर महीने एक निश्चित रकम बचाने में मदद मिलती है।

विशेष बैंक सावधि जमा योजना

  • यह कर बचाने वाली स्कीम है जो बैंकों में उपलब्ध है।
  • इसमें आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कर से राहत उपलब्ध है।
  • एक अधिसूचित बैंक में पांच वर्ष की सावधि जमा अनिवार्य है।

सरकारी योजनाएँ

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कर बचाने वाली स्कीमें

भारत सरकार ने आयकर बचत स्कीमें पेश की हैं जिनमें निम्न शामिलहैं:

  • राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी)
  • लोक भविष्यनिधि (पीपीएफ)
  • डाक घर योजना (पीओएस)

इनके अलावा, म्यूचुअल फंडों द्वारा पेश इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) और वित्तीय संस्थानों एवं बैंकों द्वारा जारी ढांचागत बांड भी कर लाभ की पेशकश करते हैं।

इनमें निवेश से हुई आय करमुक्त है और इन स्कीमों में निवेश करयोग्य आय से एक निश्चित सीमा तक कटौती योग्य है।

राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र (एनएससी)

  • लोकप्रिय आयकर बचत स्कीम जो पूरे साल उपलब्ध है।
  • ब्याज दर 8 प्रतिशत।
  • न्यूनतम निवेश 100 रुपये, जबकि अधिकतम कोई सीमा नहीं।
  • परिपक्वता अवधि छह वर्ष हस्तांतरण संभव
  • इस स्कीम के आधार पर ऋण लेने का प्रावधान।

लोक भविष्य निधि (पीपीएफ)

  • वार्षिक ब्याज दर 8 प्रतिशत
  • न्यूनतम निवेश सीमा 500 रुपये
  • अधिकम निवेश सीमा 70,000 रुपये
  • परिपक्वता अवधि 15 वर्ष खाता खोलने की तिथि से तीसरे वित्त वर्ष में पहला ऋण लिया जा सकता है या पहले वित्त वर्ष के अंत में राशि का 25 प्रतिशत ऋण लिया जा सकता है। ऋण अधिकतम 36 किस्तों में लौटाया जा सकता है।
  • सातवें साल से एक व्यक्ति हर साल रकम निकाल सकता है बशर्ते यह शेष राशि के 50 प्रतिशत से अधिक न हो।

डाक घर योजना (पीओएस)

  • यह आयकर बचाने वाली सबसे बेहतर स्कीमों में से एक है।
  • यह पूरे साल उपलब्ध है।
  • डाक घर योजनाएं निवेश के प्रकार एवं परिपक्वता अवधि पर निर्भर करती हैं जिन्हें निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है।
  • मासिक जमा बचत जमा सावधि जमा आवर्ती जमा इक्विटी लिंक्ड बचत योजनाएं (ईएलएलएस)
  • यह एक विविधीकृत इक्विटी फंड का मिरर इमेज है जो धारा 80सी के कर लाभ के साथ उपलब्ध है।
  • लाक इन पीरियड तीन साल लाभांश भी करमुक्त इन इकाइयों की बिक्री पर दीर्घकालीन पूंजीगत लाभ पर कर छूट ली जा सकती है
  • इस पर कोई पूंजीगत लाभ कर नहीं लगेगा।
  • न्यूनतम निवेश 500 रुपये और इसके गुणक में मसलन 1000, 1500 आदि। निवेशक सिस्टेमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (सिप) का विकल्प अपना सकते हैं।

ढांचागत बांड या इंफ्रास्ट्रक्चर बांड

  • लाक इन पीरियड तीन साल
  • 20,000 रुपये तक के निवेश पर धारा 88 के तहत कर लाभ
  • परिपक्वता अवधि पूरी होने से पहले विमोचन से कर छूट का लाभ प्रभावी नहीं रह जाता।

किसान विकास पत्र (केवीपी)

  • इस स्कीम में निवेश किया गया धन 8 साल और 7 महीने में दोगुना हो जाता है।
  • न्यूनतम निवेश की सीमा 100 रुपये, जबकि अधिकतम कोई सीमा नहीं।
  • यह स्कीम साल भर उपलब्ध रहती है।
  • इस स्कीम के तहत निवेश पर वर्तमान में कोई कर लाभ उपलब्ध नहीं।
  • निवेशकों को आयकर के नवीनतम प्रावधान और संबंधित स्रोतों से अन्य प्रावधान देखने की सलाह दी जाती है।

बांड एक ऋण है जिसे जारी करने वाला व्यक्ति लेता है और इस प्रतिभूति को खरीदने वाला व्यक्ति देता है और इस पर ब्याज प्राप्त करता है। बांडों को कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और यहां तक कि सरकार द्वारा जारी किया जा सकता है। इसे खरीदने वाला व्यक्ति जारीकर्ता से ब्याज लेता है। परिपक्वता की तिथि पर खरीदार द्वारा बांड का अधिमूल्य प्राप्त किया जाता है जो पूर्व निर्धारित होता है।

बांड के प्रकार

कर बचाने वाले बांड

कर बचाने वाले बांड कर बचत करने वाले बांड निवेश की एक निश्चित राशि तक कर छूट की पेशकश करते हैं जो सरकार द्वारा अधिसूचित स्कीम पर निर्भर है। मसलन

  • आयकर अधिनियम 1961 की धारा 88 के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर बांड।
  • आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 54ईसी के तहत नाबार्ड एनएचएआई
  • आरईसी बांड।
  • आरबीआई कर राहत बांड

नियमित आय वाले बांड

रेगुलर इनकम बांड एक नियमित, पूर्व निर्धारित अंतराल में आय का एक स्थायी स्रोत उपलब्ध कराते हैं इनमें निम्न बांड शामिल हैं -

  • डबल योर मनी बांड
  • स्टेप अप इंटरेस्ट बांड
  • रिटायरमेंट बांड
  • इनकैश बांड
  • एजुकेशन बांड
  • मनी मल्टीप्लायर बांड
  • डीप डिस्काउंट बांड

प्रमुख विशेशताएँ

  • क्रिसिल, इक्रा, केयर, फिच जैसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा रेटिंग दी जाती ळें
  • एक बांड पर लाभ उसकी क्रेडिट रेटिंग के अनुपात में भिन्न हो सकता है।
  • नियमित आय के लिए सुविधाजनक।
  • बांड की किस्म के आधार पर अर्द्धवार्षिक, तिमाही या मासिक ब्याज मिलता है। बांड प्राथमिक एवं शेयर बाजार दोनों जगह उपलब्ध हैं। बाजार मूल्य परिपक्वता पर लाभ, मौजूदा ब्याज दरों और जारीकर्ता को दी गई रेटिंग पर निर्भर करता है। व्यक्ति बांड को बैंक में गिरवी रखकर ऋण ले सकते हैं। न्यूनतम निवेश 5,000 रुपये से 10,000 रुपये के दायरे में किया जा सकता है। अवधि आमतौर पर पांच और सात साल के बीच होती है। इसे डीमैट रूप में रखा जा सकता है।

डिबेंचर

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प्रमुख विशेशताएँ

  • तय ब्याज दर वाली ऋण प्रतिभूतियां डिबेंचर कहलाते हैं जिसमें परिपक्वता अवधि अलग अलग होती है बिल्कुल बांड की तरह, लेकिन इसे कंपनियों द्वारा जारी किया जाता है।
  • इसे निजी नियोजन के तहत जारी किया जा सकता है या अभिदान (सब्सक्रिप्शन) के लिए इसकी पेशकश की जा सकती है।
  • इसे शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराया जा सकता है और नहीं भी।
  • अगर इसे बाजार में सूचीबद्ध कराया जाता हैं तो सेबी द्वारा मान्यता प्राप्त क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा सूचीबद्धता से पहले इसे रेटिंग दी जानी चाहिए।
  • परिपक्वता अवधि आमतौर पर 3 से 10 वर्ष के बीच होती है।

डिबेंचर के प्रकार बाजार में कई तरह के डिबेंचर हैं जिनकी पेशकश कंपनियों द्वारा की जाती है। ये निम्न हैं

  • गैर परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी) - कुल राशि का भुगतान जारीकर्ता द्वारा किया जाता है।
  • आंशिक परिवर्तनीय डिबेंचर (पीसीडी) - कुछ हिस्सा भुनाया जाता है और कुछ हिस्सा इक्विटी शेयरों में परिवर्तित कर दिया जाता है। यह विकल्प के साथ या बिना विकल्प के निवेशकों को जारी किया जाता है।
  • पूर्ण परिवर्तनीय डिबेंचर (एफसीडी) - संपूर्ण मूल्य इक्विटी में परिवर्तित कर दिया जाता है। डिबेंचर जारी किए जाते समय परिवर्तन मूल्य का उल्लेख होता है।

कंपनी सावधि जमा

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प्रमुख विशेशताएँ

  • एक कंपनी द्वारा सावधि जमा की पेशकश की जाती है।
  • यह एक बैंक की सावधि जमा के समान है।
  • छोटे निवेशकों से उधार लेने के लिए कंपनियों द्वारा इसका इस्तेमाल किया जाता है।
  • निवेश की अवधि का चयन ध्यानपूर्वक किया जाना चाहिए क्योंकि ज्यादातर एफडी परिपक्व होने से पहले भुनाए नहीं जा सकते।
  • बैंक जमा जितना सुरक्षित नहीं।
  • कंपनी जमाएं ‘असुरक्षित’ होती हैं।
  • बैंक एफडी के मुकाबले अधिक रिटर्न की पेशकश की जाती है क्योंकि इनमें अधिक जोखिम होता है।
  • रेटिंग इनकी सुरक्षा के बारे में गाइड हो सकता है।

म्यूचुअल फंड

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म्यूचुअल फंड कई निवेशकों से धन इकट्ठा कर उसे शेयरों, बांडों, अल्पावधि मुद्रा बाजार की प्रतिभूतियों, अन्य प्रतिभूतियों या संपत्तियों या इनके मिले जुले रूप में निवेश करता है। म्यूचुअल फंड की इस सम्मिलित हिस्सेदारी को पोर्टफोलियो के तौर पर जाना जाता है। प्रत्येक यूनिट म्यूचुअल फंड की इस सम्मिलित हिस्सेदारी और इससे होने वाली आय में एक निवेशक के आनुपातिक स्वामित्व का प्रतिनिधित्व करता है।

म्यूचुअल फंडों की प्रमुख विशेशताएँ

  • पेशेवर प्रबंधन - धन का निवेश कोष प्रबंधकों द्वारा किया जाता है।
  • विविधीकरण- विविधीकरण निवेश की एक रणनीति है जिसे ‘एक ही जगह अपना सारा धन न लगाएं’ वाक्य से समझा जा सकता है। अलग अलग शेयरों या बांडों को खरीदने के बजाय म्यूचुअल फंड में हिस्सेदारी लेकर जोखिम कम किया जा सकता है।
  • पैमाने की अर्थव्यवस्था - चूंकि एक म्यूचुअल फंड एक बार में बडी मात्रा में प्रतिभूतियों की खरीद फरोख्त करते हैं, इससे सौदे की लागत कम रहती है, जबकि एक व्यक्ति को अधिक लागत देनी पडती है।
  • तरलता - व्यक्तिगत शेयरों की तरह म्यूचुअल फंड यूनिटों को बाजार में बेचकर धन प्राप्त किया जा सकता है।
  • सरलता - एक म्यूचुअल फंड यूनिट खरीदना आसान है। कई बैंकों ने अपने म्यूचुअल फंडों को प्रायोजित कर रखा है और न्यूनतम निवेश की मात्रा छोटी है। निवेशकों को म्यूचुअल फंडों में निवेश से पहले उपरोक्त विशेशताओं की ध्यानपूर्वक समीक्षा करनी चाहिए।

म्यूचुअल फंड के प्रकार

प्रत्येक फंड का पूर्व निधार्रित निवेश उद्देश्य होता है जो फंड की संपत्तियों, निवेश के क्षेत्रों और निवेश की रणनीति के मुताबिक पोर्टफोलियो बनाता है। मौलिक आधार पर तीन प्रकार के म्यूचुअल फंड हैं-

  • इक्विटी फंड (शेयर)
  • फिक्स्ड इनकम फंड (बांड)
  • मनी मार्केट फंड

सभी म्यूचुअल फंड इन तीन संपत्ति वर्गों के रूपांतरण हैं। उदहारण के तौर पर जहां तेजी से बढ रही कंपनियों में निवेश करने वाले इक्विटी फंड ग्रोथ फंड के तौर पर जाने जाते हैं, एक ही क्षेत्र की कंपनियों में निवेश करने वाले इक्विटी फंड स्पेशियलिटी फंड के तौर पर जाने जाते हैं।

म्यूचुअल फंडों को ओपेन एंडेड या क्लोज एंडेड के तौर पर वर्गीकृत किया जा सकता है जो फंड की परिपक्वता तिथि पर निर्भर होते हैं।

ओपेन एंडेड फंड

  • ओपेन एंडेड फंड की परिपक्वता तिथि नहीं होती।
  • निवेशक परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी, म्यूचुअल फंड कार्यालयों या उनके निवेशक सेवा केंद्र या स्टॉक एक्सचेंज से एक ओपेन एंडेड फंड की यूनिटें खरीद सकते हैं और उन्हें बेच सकते हैं।
  • एक म्यूचुअल फंड में जिस मूल्य पर खरीद एवं विमोचन सौदे होते हैं फंड की शुद्ध परिसंपत्ति मूल्य (एनएवी) पर आधारित होते हैं।

क्लोज एंडेड फंड

  • क्लोज एंड फंड एक विशेष अवधि के लिए होते हैं।
  • विशेष परिपक्वता तिथि पर सभी यूनिटों को भुनाया जाता है और स्कीम खत्म हो जाती है।
  • तरलता उपलब्ध कराने के लिए यूनिटों को एक स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कराया जाता है।
  • निवेशक शेयर बाजार में चल रही कीमत पर आपस में यूनिटों की खरीद फरोख्त करते हैं।

मनी मार्केट फंड

  • अत्यधिक अल्पावधि की नियत आय वाली प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं।
  • रिटर्न बहुत अधिक हो यह आवश्यक नहीं, लेकिन मूलधन सुरक्षित रहता है। * ये बचत खाता के मुकाबले बेहतर रिटर्न की पेशकश करते हैं, लेकिन सावधि जमा की तुलना में रिटर्न कम होता है। हालांकि तरलता से कोई समझौता नहीं किया जाता।

बांड/इनकम फंड

  • इसका उद्देश्य स्थिर आधार पर चालू आय उपलब्ध कराना है।
  • प्रमुख तौर पर सरकारी और कॉरपोरेट बांड में निवेश करता है।
  • यद्यपि सम्मिलित कोष बढ सकता है, इन फंडों का प्राथमिक उद्देश्य निवेशकों को नकदी का स्थिर प्रवाह उपलब्ध कराना है।

बैलेंस्ड फंड

  • इसका उद्देश्य सुरक्षा, आय और पूंजी में वृद्धि का एक संतुलित मिश्रण उपलब्ध कराना है।
  • इसकी तय आय और शेयरों दोनों में निवेश की रणनीति है।

इक्विटी फंड

  • शेयरों में निवेश करता है।
  • म्यूचुअल फंडों के सबसे बडे वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है।
  • निवेश का उद्देश्य कुछ आय के साथ लंबी अवधि में पूंजी बढाना है विभिन्न किस्म के निवेश उद्देश्यों की वजह से अलग अलग प्रकार के इक्विटी फंड हैं।

विदेश/अंतरराष्ट्रीय फंड

  • एक अंतरराष्ट्रीय फंड (या विदेशी फंड) अपने देश से बाहर कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं।

सेक्टर फंड

इनका लक्ष्य अर्थव्यवस्था के विशेष क्षेत्र पर होता है मसलन वित्तीय, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य आदि।

इंडेक्स फंड

  • इस तरह के म्यूचुअल फंड एक व्यापक बाजार सूचकांक के प्रदर्शन को दोहराते हैं जैसे सेंसेक्स या निफ्टी।
  • एक इंडेक्स फंड महज बाजार के रिटर्न को दोहराते हैं और कम शुल्क के रूप में निवेशकों को लाभ देते हैं।

इक्विटी

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साधारण या तरजीही शेयर खरीदकर एक कंपनी में स्वामित्व हित रखना। एक शेयर बाजार कंपनी के शेयरों का कारोबार करने के लिए एक सार्वजनिक बाजार है जहां सम्मत मूल्य पर स्टॉक एक्सचेंज में प्रतिभूतियों की खरीद फरोख्त होती है। ये शेयर सूचीबद्ध होते हैं और स्टॉक एक्सचेंज में इनका कारोबार होता है। एक्सचेंज शेयरों की खरीद फरोख्त की सुविधा मुहैया कराते हैं। भारत में प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) हैं। एक स्टॉक एक्सचेंज का उद्देश्य खरीदार और विक्रेता के बीच प्रतिभूतियों की ट्रेडिंग की सुविधा उपलब्ध कराना है। शेयरों में निवेश अधिक जोखिम भरा है और निश्चित तौर पर यह अन्य निवेश की तुलना में अधिक समय की मांग करता है।

दो तरह से शेयरों में निवेश किया जा सकता है-

  • प्राथमिक बाजार के जरिए (सार्वजनिक निर्गम के तहत पेश शेयरों के लिए आवेदन कर)।
  • शेयर बाजार के जरिए (स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध शेयरों को खरीद कर) सबसे पहले बाजार को समझने के बाद यह जानना महत्वपूर्ण है कि कैसे एक कंपनी, एक शेयर को सही मूल्य पर चुनें। थोडा अनुसंधान कार्य, कुछ विविधीकरण और उचित निगरानी से यह सुनिश्चित होगा कि निवेशक को बेहतर रिटर्न मिले।

वित्तीय नियोजन का पिरामिड

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निवेश विकल्प चुनने में जोखिमध्रिवार्ड भरे सौदों पर ध्यान देकर यह देखना कि आपके कौन से निवेश सही हैं, जरूरी है क्योंकि ज्यादातर लोगों की अपनी जोखिम उठाने की क्षमता के बारे में अलग अलग विचार होते हैं। कुछ लोग रूढीवादी होते हैं और अपना पैसा सुरक्षित जगह रखना चाहते हैं जैसे बचत खाता। अन्य लोग अधिक आक्रामक होते हैं और शेयर बाजार जैसे अधिक जोखिम वाले स्थान में निवेश के इच्छुक होते हैं। अंततरू आपको यह निर्णय करना है कि कीमतों में उतार चढाव वाले निवेश के साथ आप कितना आराम महसूस करेंगे। बेशक जोखिम लेने के लिए रिवार्ड निवेश पर आपका रिटर्न है। यह रिवार्ड ब्याज या लाभांश (जिसे आप एक शेयरधारक के तौर पर लाभ के हिस्से के रूप में प्राप्त करते हैं) के रूप में लिया जा सकता है। रिटर्न शेयर की कीमतें बढने से पूंजीगत लाभ के रूप में भी आ सकता है। अगर एक निवेशक एक शेयर खरीदता है और बाद में उसे अधिक कीमत पर बेचता है तो शेयर के खरीद और बिक्री मूल्य के बीच अंतर पूंजीगत लाभ कहलाता है। इसलिए अगर आप वर्ष 2000 में एक शेयर 10 रुपये में खरीदते हैं और 2005 में इसे 25 रुपये में बेच देते हैं तो आपका लाभ या पूंजीगत लाभ 15 रुपये प्रति शेयर है। अगर एक निवेशक खरीद मूल्य से कम पर शेयर बेचता है तो खरीद मूल्य और बिक्री मूल्य के बीच का अंतर पूंजीगत हानि कहलाती है। रिटर्न के बारे में बात करते समय लोग आमतौर पर निवेश के रिटर्न की दर या ब्याज दर का हवाला देते हैं जो एक निवेश पर वार्षिक प्रतिशत रिटर्न है। संक्षेप में यह आपको बताता है कि कितनी तेजी से आपका पैसा बढता है।

पोंजी स्कीम

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पोंजी स्कीम पोंजी स्कीम एक फर्जी निवेश परिचालन है जो निवेशकों को कम जोखिम पर अधिक रिटर्न का झांसा देता है। इस स्कीम के तहत पुराने निवेशकों के लिए उन्हीं के पैसे या बाद के निवेशकों के पैसे से रिटर्न पैदा किया जाता है। पोंजी स्कीम चलाने वाले लोग विज्ञापन में जो रिटर्न देने का दावा करते हैं, उसका भुगतान करने और स्कीम को चलाते रहने के लिए उन्हें निवेशकों से सतत धन लेने की जरूरत पडती है और लगातार नए निवेशक बनाने होते हैं। अगर पोंजी स्कीम चलाने वाले व्यक्ति को निवेशकों को किए जाने वाले भुगतान से कम आय होती है तो यह स्कीम ढहना निश्चित है। आमतौर पर पोंजी स्कीम के ढहने से पहले ही कानूनी प्राधिकरणों द्वारा इसे रोक दिया जाता है क्योंकि एक पोंजी स्कीम संदिग्ध होती है या प्रवर्तक गैर पंजीकृत प्रतिभूतियों को बेच रहा होता है। इस स्कीम में बडी संख्या में निवेशकों के शामिल होने से इस स्कीम पर कानूनी अधिकारियों की नजर पडने की संभावना बढ जाती है।

कैसे पता लगाएं कि अमुक स्कीम पोंजी स्कीम है

पोंजी स्कीम के तहत प्रायः ऐसे रिटर्न की पेशकश की जाती है जिसकी गारंटी अन्य निवेश स्कीमें नहीं दे सकतीं। कम समय में असामान्य रूप से अधिक या लगातार रिटर्न मिलने की गारंटी देकर नए निवेशकों को लुभाया जाता है। अन्य शब्दों में यह इतना अच्छा लगता है कि इस पर विश्वास नहीं होता।

पोंजी स्कीम अंततरू उजागर हो जाती है जैसा कि

  • अधिक निवेशक इसमें शामिल हो जाते हैं, अधिकारियों की नजर में इसके आने की संभावना बढ जाती है।
  • प्रवर्तक सभी शेष निवेश रकम लेकर चंपत हो जाएगा।
  • जैसे ही निवेश घटता है, प्रवर्तक को वादे के मुताबिक रिटर्न के भुगतान में दिक्कतें आनी शुरू हो जाती है और स्कीम अपने ही बोझ के तले ढह जाएगी।
  • अर्थव्यवस्था में गिरावट जैसे बाहरी बाजार ताकतें कई निवेशकों को निवेश में भरोसा घटने के चलते नहीं, बल्कि बाजार की आधारभूत स्थितियों के चलते अपना पूरा धन या उसका कुछ हिस्सा निकालने को विवश करती हैं।

डिपजिटरी सिस्टम

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शेयरों में निवेश के लिए ‘डीमैटेरियलाइजेशन ऑफ शेयर्स’ का अर्थ समझना आवश्यक है क्योंकि लगभग सभी शेयर अब ‘‘डीमैट’’ रूप में हैं। पहले कागज में शेयर प्रमाण पत्र जारी किए जाते थे जिन्हें अब इलेक्ट्रॉनिक रूप में परिवर्तित किया जाता है। इसके लिए डिपॉजिटरी सिस्टम को समझना आवश्यक है। एक डिपॉजिटरी एक ऐसा संगठन है जो निवेशकों के अनुरोध पर एक पंजीकृत डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के जरिए निवेशकों की प्रतिभूतियों (जैसे शेयर, डिबेंचर, बांड, सरकारी प्रतिभूतियां, म्यूचुअल फंड आदि) को इलेक्ट्रॉनिक रूप में अपने पास रखता है। यह प्रतिभूतियों के लेनदेन से जुडी सेवाएं भी उपलब्ध कराता है। इसकी तुलना एक बैंक से की जा सकती है जो जमाकर्ताओं के लिए कोष अपने पास रखता है। वर्तमान में दो डिपॉजिटरी- नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (एनएसडीएल) और सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज (इंडिया) लिमिटेड (सीडीएसएल) हैं जो सेबी में पंजीकृत हैं।

एक डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (डीपी) डिपॉजिटरी का एक एजेंट है जिसके जरिए वह निवेशकों को डिपॉजिटरी सेवाएं उपलब्ध कराता है। सार्वजनिक वित्तीय संस्थान, अधिसूचित वाणिज्यिक बैंक, भारत में परिचालन कर रहे विदेशी बैंक, राज्य वित्त निगम, कस्टोडियन, शेयर ब्रोकर, क्लियरिंग कॉरपोरेशनध्क्लियरिंग हाउस, नबीएफसी और एक इश्यू का रजिस्ट्रार या सेबी के नियमों को पूरा करने वाला शेयर ट्रांसफर एजेंट डीपी के तौर पर पंजीकृत हो सकता है। बैंकिंग सेवाएं एक शाखा के जरिए ली जा सकती है, जबकि डिपॉजिटरी सेवाएं एक डीपी के जरिए ली जा सकती हैं। स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार करने या पब्लिक इश्यू के लिए आवेदन के लिए अब हर निवेशक के लिए एक बेनीफेशियल ओनर (बीओ) खाता खुलाना अनिवार्य है। इसलिए नीचे सूचीबद्ध सुविधाओं को देखते हुए एक बेनीफिशियल ओनर खाता खुलवाने की सलाह दी जाती है।

हालांकि, छोटे निवेशकों (न्यूनतम 500 शेयर रखने वाले, चाहे उनका मूल्य जो भी हो) को भौतिक रूप में शेयरों की ट्रेडिंग की सुविधा के लिए स्टॉक एक्सचेंज एक अतिरिक्त ट्रेडिंग विंडों उपलब्ध कराते हैं। ये ट्रेडिंग विंडों छोटे निवेशकों को भौतिक रूप में शेयर बेचने के लिए एक बार सुविधा देते हैं जिसका डीमैट लिस्ट में होना अनिवार्य है। इन शेयरों को खरीदने वाले व्यक्ति को उन्हें आगे बेचने के लिए ऐसे शेयरों को डीमैट रूप में तब्दील कराना होता है।

डिपॉजिटरी सेवाओं से होने वाले लाभों में नीचे दिए गए लाभ शामिल हैं-

  • प्रतिभूतियां रखने का एक सुरक्षित एवं सुविधाजनक तरीका
  • प्रतिभूतियों को तत्काल हस्तांतरण प्रतिभूतियों के हस्तांतरण पर कोई स्टांप शुल्क नहीं
  • भौतिक रूप में प्रमाण पत्रों से जुडे जोखिम से बचाव - जैसे डिलीवरी में चूक, नकली प्रतिभूतियां, विलंब, चोरी आदि।
  • प्रतिभूतियों के हस्तांतरण में शामिल कागजी कार्रवाई में कमी सौदा लागत में कमी
  • बडी संख्या में शेयरों को लेकर कोई समस्या नहीं
  • एक शेयर की भी बिक्री की जा सकती है।
  • नामांकन सुविधा डीपी के पास दर्ज पते का ब्यौरा उन सभी कंपनियों के पास होता है जिनकी प्रतिभूतियों में निवेशक का पैसा लगा होता है। पता बदलने पर कंपनियों को अलग से सूचित करने या उनसे पत्र व्यवहार करने की जरूरत नहीं होती।
  • प्रतिभूतियों का हस्तांतरण डीपी द्वारा किया जाता है जिससे कंपनियों से पत्राचार करने की जरूरत नहीं होती। बोनस मिलने, शेयरों के विघटन, एकीकरण, विलय आदि की स्थिति में डीमैट खाते में स्वतरू यह शामिल हो जाता है।
  • इक्विटी एवं ऋण प्रतिभूतियों में निवेश एक ही खाते में रखना।

याद रखने योग्य बातें

  • पार्टिसिपेंट के दायरे में छोटे शेयर निवेशकों से लेकर बडे फंड ट्रेडर शामिल हैं जो कहीं भी स्थित हो सकते हैं।
  • कंपनियों के लिए धन जुटाने के सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक है।
  • इससे आम निवेशक कारोबार में हिस्सा ले सकते हैं या कंपनियां अपने विस्तार के लिए शेयर बेचकर अतिरिक्त पूंजी जुटा सकती हैं।
  • शेयर बाजार को अक्सर देश की आर्थिक ताकत एवं विकास का प्राथमिक संकेत माना जाता है।
  • बैंक जमाओं या बांडों के उलट शेयरों की कीमतों में उतार चढाव आता है।
  • शेयर में निवेश के कारणों की समय समय पर समीक्षा की जानी चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि वे अब भी वैध हैं।
  • कभी कभी बाजार आर्थिक या वित्तीय खबरों से अकारण प्रभावित होते नजर आते हैं, जबकि उन खबरों का शेयरों के मूल्य पर कोई खास असर पडने की संभावना नहीं होती।
  • अल्प अवधि में शेयर एवं अन्य प्रतिभूतियां बाजार में तेजी से घटित घटनाक्रमों से गिरती या चढती हैं जिससे शेयर बाजार के व्यवहार के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल होता है।

निवेश के तत्व ज्ञान

  • प्रत्येक निवेश के जोखिम को आकलन करें
  • परिवार की अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक जरूरतों की स्पश्टता रखें
  • * जरूरतों के आधार पर निवेश संबंधी निर्णय करें
  • * ऐसी किसी भी स्कीम में निवेश न करें जो आपकी समझ से परे है।
  • किसी की बात पर विश्वास कर निवेश न करें, दस्तावेज की मदद लें।
  • प्रत्येक आय की कर संबंधी जटिलताओं को ध्यान में रखें।
  • बाजार के नुस्खों एवं अफवाहों पर आंख मूंदकर विश्वास न करें।
  • अप्राकृतिक तौर पर अधिक या कम दिखने वाली किसी भी चीज में फंसाने वाली बात छिपी होगी।
  • ऐसी कोई भी स्कीम न लें जहां हित की रक्षा के साथ ही मूलधन डूबने का खतरा हो।
  • उत्पाद को अच्छी तरह से समझने के बाद ज्ञान के साथ निवेशक।

सुरक्षा से जुड़े उत्पाद

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बीमा पालिसियां

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बीमा, जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है भविष्य में नुकसान से बचाव के लिए एक बीमा है। हालांकि, जहां जीवन बीमा आम है, अन्य स्कीमें भी बाजार में मौजूद हैं जो नियमित आय के साथ ही अन्य किस्म के नुकसान को कवर प्रदान करती हैं।

जीवन बीमा

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जीवन बीमा एक ऐसा अनुबंध है जिसमें बीमित व्यक्ति या उसके द्वारा नामित व्यक्ति को कोई घटना घटित होने पर एकमुश्त राशि का भुगतान किया जाता है। मृत्यु की दशा में यह आपके परिवार की वित्तीय रूप से रक्षा करने के लिए एक बढिया तरीका है।

मियादी जीवन बीमा

  • भारत में लोकप्रिय हो रहा है
  • बीमित व्यक्ति की मृत्यु की दशा में नामित लाभार्थी को एकमुश्त राशि भुगतान की जाती है।
  • पॉलिसियां आमतौर पर 5, 10, 15, 20 या 30 वर्ष के लिए होती हैं।
  • अन्य बीमा पॉलिसियों की तुलना में प्रीमियम कम होता है इसमें कोई नकदी मूल्य नहीं होता

एंडोमेंट पॉलिसियां

  • नियम समय पर प्रीमियम का भुगतान किया जाता है और बीमित व्यक्ति की मृत्यु होने पर या पालिसी की अवधि खत्म होने पर जो भी पहले हो, एकमुश्त राशि का भुगतान कर दिया जाता है।

एन्युटी/पेंशन पॉलिसियां/फंड

  • कोई जीवन बीमा कवर नहीं मिलता, लेकिन जीवनभर के लिए या बीमित व्यक्ति की मृत्यु या पॉलिसी की अवधि खत्म होने जो भी पहले हो, आय की एक गारंटी दी जाती है।
  • सेवानिवृत्ति के बाद आय होती रहे, इसलिए इसे लिया जाता है।
  • प्रीमियम का भुगतान एकमुश्त या निश्चित वर्षों में किस्तों में किया जाता है।
  • बीमित व्यक्ति एक निश्चित अवधि से आगे समय समय पर एकमुश्त राशि प्राप्त करता है।
  • यह भुगतान महीने, छह महीने या साल में प्राप्त किया जा सकता है।
  • मृत्यु की दशा में इसमें नामित व्यक्ति को शेष अवधि में भुगतान मिलने की पेशकश की जाती है।

यूनिट लिंक्ड बीमा पालिसी (यूलिप)

  • यूलिप एक जीवन बीमा पॉलिसी है जो जोखिम का कवर और निवेश दोनों उपलब्ध कराती है।
  • पूंजी बाजार में उतार चढाव का यूलिप के निष्पादन पर सीधा असर होता है।
  • निवेश का जोखिम आमतौर पर निवेशक पर होता है।
  • ज्यादातर बीमा कंपनियां एक व्यक्ति के निवेश उद्देश्य, जोखिम उठाने की क्षमता और समय सीमा की सुविधा के मुताबिक कोषों की एक व्यापक रेंज की पेशकश करती हैं।
  • विभिन्न कोषों में विभिन्न स्तर के जोखिम होते हैं।
  • रिटर्न की संभावना भी अलग अलग कोषों पर निर्भर करती है।
  • विभिन्न बीमा कंपनियों द्वारा पेश यूलिप में अलग अलग शुल्क ढांचे होते हैं।
  • व्यापक रूप में विभिन्न शुल्कों में प्रीमियम आबंटन शुल्क, मृत्यु दर शुल्क, काश प्रबंधन शुल्क, पॉलिसी/प्रशासनिक शुल्क और एक कोष से दूसरे कोष में जाने का शुल्क शामिल होता है।

न्यू पेंशन स्कीम, 2009

  • निश्चित अंशदान स्कीम है जो 18 और 55 वर्ष की आयु के किसी भी भारतीय नागरिक के लिए खुली है।
  • एक व्यक्ति अपनी सेवानिवृत्ति तक इसमें एक निश्चित राशि निवेश करता है।
  • सेवानिवृत्ति पर वह चाहे तो संचित राशि निकाल सकता है या नियमित आय के लिए बीमा कंपनी से तत्काल एक एन्युटी खरीद सकता है या दोनों कर सकता है।
  • एक तात्कालिक एन्युटी खरीदने के लिए न्यूनतम 40 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल करने की जरूरत पडती है।
  • संचित राशि का अधिकतम 60 प्रतिशत निकाला जा सकता है।
  • एक तात्कालिक एन्युटी की खरीद से बीमा कंपनी से एक नियमित भुगतान का आश्वासन मिलता है।
  • यह भुगतान मासिक, तिमाही, छमाही या सालाना हो सकता है।
  • प्रति अंशदान के तौर पर न्यूनतम 500 रुपये निवेश की जरूरत पडती है और प्रति वर्ष न्यूनतम चार अंशदान आवश्यक है।
  • इसके लिए प्रतिवर्ष प्रति वर्ष न्यूनतम 6,000 रुपये निवेश करना आवश्यक है।
  • निवेश की जाने वाली राशि के लिए और अंशदान की संख्या के मामले में कोई अधिकतम सीमा नहीं है।
  • जो धन आप न्यू पेंशन स्कीम में निवेश करते हैं, उसका प्रबंधन पेशेवर प्रबंधकों द्वारा किया जाता है।
  • अगर आप अपने कोष प्रबंधक के निष्पादन से संतुष्ट नहीं हैं तो दूसरा कोष प्रबंधक चुन सकते हैं।
  • यह एक गैर निकासी वाला खाता है और जब तक आप 60 वर्ष के नहीं हो जाते, निवेश राशि जमा होती रहती है।
  • मृत्यु या गंभीर बीमारी की दशा में या फिर जब आप पहला मकान बना रहे हों या खरीद रहे हों, तभी धन निकासी की अनुमति है।
  • आयकर अधिनियम की धारा 80 सीसीडी के तहत एनपीएस में 1 लाख रुपये तक के निवेश के लिए कर कटौती का दावा किया जा सकता है।
  • याद रहें कि एक लाख रुपये की यह सीमा धारा 80सी के तहत उपलब्ध एक लाख रुपये की सीमा से उपर नहीं है।
  • साथ ही इसमें रिटर्न की कोई गारंटी नहीं है जैसा कि पीपीएफ के मामले में उपलब्ध है।
  • रिटर्न इस बात पर निर्भर करता है कि जो कोष प्रबंधक आपने चुना है, उसका निष्पादन कैसा है।

स्वास्थ्य बीमा

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स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियां विभिन्न बीमारियों से आपको कवर प्रदान करती हैं और जब भी आपको इलाज की जरूरत पडे वित्तीय रूप से सुरक्षित बने रहने की गारंटी देती हैं। ये आपकी मानसिक शांति की रक्षा करती हैं और इलाज खर्च के बारे में आपकी सभी चिंताएं दूर करती हैं जिससे आप अन्य महत्वपूर्ण चीजों पर अपना ध्यान केंद्रित करें। भारत में कई स्वास्थ्य बीमा या मेडिकल बीमा योजनाएं मौजूद हैं जिन्हें जोखिम कवर के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है।

व्यापक स्वास्थ्य बीमा कवरेज: ये पॉलिसियां आपको अस्पताल में भर्ती होने पर संपूर्ण हेल्थकेयर कवरेज उपलब्ध कराती हैं। इसके साथ ही ये एक स्वास्थ्य कोष का सृजन करती हैं ताकि अन्य स्वास्थ्य संबंधी खर्चे पूरे किए जा सकें।

हॉस्पिटलाइजेशन प्लान: ये स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियां आपके खर्चों के लिए तब बीमा कवर उपलब्ध कराती हैं जब आपको अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पडे। इस वर्ग में पॉलिसियों में भुगतान के अलग अलग ढांचे होते हैं और विभिन्न खर्चों के लिए सीमाएं होती हैं। अस्पताल में भर्ती होने पर इलाज खर्च का भुगतान कर उसे बाद में बीमा कंपनी से लिया जा सकता है। ऐसी पॉलिसियों का लक्ष्य बार बार अस्पताल जाने वाले लोगों के इलाज खर्चों के प्रति कवर प्रदान करना है।

गंभीर बीमारियों के लिए पॉलिसियां: ये हेल्थ इंश्योरेंस प्लान आपको दिल का दौरा, अंग प्रत्यारोपड, घात या किडनी खराब होने जैसी गंभीर बीमारियों के प्रति कवर प्रदान करते हैं। इन पॉलिसियों का लक्ष्य उन लोगों को कवर प्रदान करना है जो कभी कभार अस्पताल जाते हैं, लेकिन उन्हें महंगे इलाज की जरूरत पड सकती है।

विशेष परिस्थिति में कवरेज: इस तरह के प्लान में मधुमेह या कैंसर के चलते पैदा होने वाली जटिलताओं के प्रति स्वास्थ्य बीमा की पेशकश की जाती है। इनमें रोग प्रबंधन कार्यक्रम जैसी विशेशताएं शामिल हो सकती हैं।

उधारी से जुडे उत्पाद

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आज के इस दौर में ठाठ बाठ से रहने के लिए कर्ज एक आम चीज हो गई है। बहुत से लोग पर्सनल लोन, कार लोन, मार्गेज लोन या दूसरे तरह के लोन के लिए आवेदन करते हैं। ऐसा लगता है कि हर चीज के लिए लोन उपलब्ध है। अक्सर जरूरत से अधिक ऋण लेने पर वित्तीय संकट शुरू हो जाता है।

बाजार में विभिन्न किस्म के लोन उपलब्ध हैं

पर्सनल लोन

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पर्सनल लोन आमतौर पर तब लिए जाते हैं जब एक व्यक्ति को आकस्मिक जरूरतों को पूरा करना होता है जो उसके तात्कालिक वित्तीय संसाधन से परे होता है। महज अतिरिक्त धन के लिए या विलासिता की वस्तुएं खरीदने के लिए पर्सनल लोन लेकर लोग अक्सर वित्तीय संकट में फंस जाते हैं और उनके लिए मासिक किस्त का भुगतान करना मुश्किल हो जाता है।

प्रमुख विशेशताएँ

  • सालाना 14 से 18 प्रतिशत की उंची ब्याज दर और उंचे शुल्क के साथ ही उंची मासिक किस्म के लिए तैयार रहें।
  • आवेदन की प्रक्रिया काफी समय बर्बादी वाला हो सकता है।
  • लोन मंजूर होने और मिलने में कई सप्ताह का समय लग सकता है जो आपकी तात्कालिक जरूरत के लिए अव्यवहारिक है।
  • ब्याज दर और पर्सनल लोन की मियाद में भारी अंतर हो सकता है। इसलिए सावधानीपूर्वक तुलना करना बुद्धिमानी होगी जिससे आपको यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि आपको आकस्मिक जरूरत के लिए अनावश्यक भुगतान न करना पडे।
  • पर्सनल लोन लेने से पहले समय निकालें और होमवर्क जरूर करें।
  • आकस्मिक जरूरतें नहीं होने पर यह लोन लेने की सलाह नहीं दी जा सकती।

हाउसिंग लोन (आवास ऋण)

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होम लोन एक ऐसा लोन है जिसे आप अपना घर गिरवी रखकर लेते हैं। अगर आप पहला मकान खरीद रहे हैं तो इस लोन के नफा नुकसान के बारे में समझना महत्वपूर्ण है। अर्थव्यवस्था के मुताबिक कई तरह के बदलाव आते हैं और बाजार में क्या चल रहा है, यह आपके होम लोन पर लागू होने वाली चीजों को निर्धारित करता है।

प्रमुख विशेशताएं

  • बैंक प्रापर्टी के मूल्य का 75 से 80 प्रतिशत तक लोन देते हैं
  • हाल ही में बैंकों ने छोटी अवधि के लिए लुभावनी ब्याज दरों की पेशकश शुरू की है।
  • कुछ समय बाद ब्याज दर में उछाल आता है, इसलिए दस्तावेज को ध्यान पूर्वक पढकर इसे अपनाएं।
  • ज्यादातर होम लोन में तीन साल या इससे अधिक का लॉक इन पीरियड होते हैं।
  • समय पूर्व भुगतान पर भारी पेनाल्टी ली जाती है।
  • छिपे हुए शुल्कों में समीक्षा शुल्क और लोन से जुडे अन्य शुल्क शामिल होते हैं।
  • अगर आप मकान बेचना चाहें तो लोन का तत्काल भुगतान करना होगा।

रिवर्स मॉर्गेज

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रिवर्स मॉर्गेज का संपूर्ण विचार रेगुलर मॉर्गेज प्रक्रिया के बिल्कुल उलट है जहां एक व्यक्ति गिरवी रखी संपत्ति छुडाने के लिए बैंक को ऋण का पुनर्भुगतान करता है। यह अवधारणा खासकर पश्चिमी देशों में लोकप्रिय है।

प्रमुख विशेशताएं

  • रिवर्स मॉर्गेज विशेशकर उन वरिश्ठ नागरिकों के लिए है जो एक मकान के मालिक हैं लेकिन उनके पास नियमित आय का स्रोत नहीं है। वे अपनी संपत्ति एक बैंक या हाउसिंग फाइनेंस कंपनी के पास गिरवी रख सकते हैं और बैंक या हाउसिंग फाइनेंस कंपनी उन्हें एक नियमित भुगतान करती है।
  • इसमें अच्छी बात यह है कि व्यक्ति अपनी संपत्ति गिरवी रखने के बावजूद उसमें जीवन भर रह सकता है और नियमित आय प्राप्त करता है। इस तरह से संपत्ति अपने मालिक को भुगतान करती है।
  • जिस तरह से यह काम करता है, उसमें व्यक्ति द्वारा मकान छोडने या उसकी मृत्यु होने के बाद बैंक के पास मकान बेचने और ऋण की वसूली करने का अधिकार होगा। वह अतिरिक्त राशि व्यक्ति के कानूनी वारिस को सौंप देता है। भारत में रिवर्स मॉर्गेज के लिए आरबीआई द्वारा तैयार दिशानिर्देशों में निम्न शामिल हैं
  • साठ साल से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति इसके लिए पात्र है।
  • अधिकतम ऋण रिहाइशी संपत्ति के मूल्य का 60 प्रतिशत तक हो सकता है।
  • अधिकतम अवधि 15 वर्ष ऋण लेने वाला व्यक्ति अपनी इच्छानुसार मासिक, तिमाही, सालाना या एकमुश्त भुगतान प्राप्ति का विकल्प चुन सकता है।
  • संपत्ति का पुनर्मूल्यांकन बैंक या हाउसिंग फाइनेंस कंपनी द्वारा हर पांच साल में किया जाता है।
  • रिवर्स मॉर्गेज के जरिए प्राप्त राशि ऋण समझी जाती है न कि आय।
  • रिवर्स मॉर्गेज की दरें फिक्स्ड या फ्लोटिंग हो सकती हैं और ये दरें ऋण लिए गए व्यक्ति द्वारा चुनी गई ब्याज दर प्रणाली के आधार पर बाजार की परिस्थितियों मुताबिक घट बढ सकती हैं।

प्रतिभूतियों के बदले ऋण

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शेयरों के बदले ऋण लेने का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत जरूरतों का ख्याल रखने के अलावा निवेश का संरक्षण करना है। लोग आपात स्थिति से निपटने और बिना शेयर बेचे नकदी हासिल करने के लिए भी इस तरह का ऋण ले लेते हैं। निवेशकों को सलाह दी जाती है कि वे प्रतिभूतियों के बदले ऋण तभी लें जब उन्हें एक समय बाद कुछ निश्चित आय होने की उम्मीद हो और बीच में कुछ धन की जरूरत हो।

प्रमुख विशेशताएँ

  • आरबीआई बैंकों को डीमैट शेयरों के मूल्य का 75 प्रतिशत तक और भौतिक रूप में मौजूद शेयरों के मूल्य का 50 प्रतिशत तक ऋण देने की अनुमति देता है। हालांकि, बैंक एक दायरे में किस हद तक ऋण देना है, इस संबंध में खुद की सीमा तय कर सकते हैं और करते हैं।
  • बैंकों के पास प्रतिभूतियों की एक मंजूरीशुदा सूची होती है जिसके मुताबिक वे प्रतिभूतियों के बदले ऋण देते हैं। यह सूची एक बैंक से दूसरे बैंक में भिन्न हो सकती है। समय समय पर इस सूची में संशोधन भी किया जाता है।
  • म्यूचुअल फंड यूनिटों के बदले ऋण यूनिटों की एनएवी पर आधारित होते हैं। आपको कितना ऋण मिलेगा यह प्रतिभूति के मूल्यांकन, लागू मार्जिन, सेवा और ऋण पुनर्भुगतान की आपकी समर्थता एवं अन्य स्थितियों पर निर्भर करेगा। इसमें ब्याज दरें 14 से 18 प्रतिशत के दायरे में होती हैं। शुल्क विभिन्न बैंकों में अलग अलग होते हैं और आमतौर पर इसमें एक से डेढ प्रतिशत प्रोसेसिंग शुल्क एवं प्रपत्र संबंधी शुल्क शामिल होते हैं। केवल पूर्ण चुकता शेयर स्वीकार किए जाते हैं इस स्कीम के तहत कंपनियों, नाबालिग, फर्मों, हिंदू अविभाजित परिवार और अनिवासी भारतीयों के नाम पर जारी शेयरों के बदल ऋण नहीं मिलता।

कृपया प्रत्येक ऋण के लिए नवीनतम दिशानिर्देश/प्रावधान देखें।

क्रेडिट कार्ड ऋण

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जब पर्सनल लोन सहित ऋण के सभी अन्य विकल्प खत्म हो जाते हैं तो लोग आमतौर पर क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल कर ऋण ले लेते हैं। क्रेडिट कार्ड ऋण असुरक्षित है, इसलिए इस पर बहुत अधिक दर पर ब्याज लिया जाता है। एक क्रेडिट कार्ड आपको तब भी खर्च करने का अधिकार देता है जब आपके पास बिल्कुल पैसा नहीं होता। बहुत से युवा लोग इसका इस्तेमाल कर फिजूल की चीजें खरीद लेते हैं। क्रेडिट कार्ड ऋण से दूर ही रहें। क्रेडिट कार्ड ऋण को लेकर बहुत से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पडता है। मामूली चीजों के लिए भारी कीमत चुकानी पडती है और आप लंबे समय के लिए ऋण के बोझ से दब जाते हैं। स्थायी रूप से जितना अधिक हो सके ऋण का पुनर्भुगतान करने की कोषिश करें और राहत महसूस करें।

प्रमुख विशेशताए

  • अन्य क्रेडिट सुविधाओं की तुलना में क्रेडिट कार्ड पर ब्याज दरें संभवतरू सबसे अधिक होती हैं। ब्याज दरें 18 से 36 प्रतिशत के दायरे में होती हैं।
  • ब्याज और पेनाल्टी के माध्यम से ऋण बढता रहता है। अगर आप ब्याज मुक्त अवधि खत्म होने से पहले बकाया शेष राशि का भुगतान नहीं कर रहे हैं तो आप सबसे अधिक ब्याज दर पर भुगतान कर रहे होंगे। इससे क्रेडिट कार्ड का ऋण घटाना आपके लिए मुश्किल हो सकता है।
  • चूंकि ज्यादातर क्रेडिट कार्ड की सीमा कम होती है, कुछ लोग इस तथ्य को नजरअंदाज कर देते हैं कि महीने दर महीने के आधार पर ब्याज का भुगतान अपेक्षाकृत छोटा होता है। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है क्योंकि जो ब्याज आप देते हैं वह बहुत तेजी से आपके वास्तविक ऋण के मूल्य को भी पार कर सकता है।
  • कई कार्ड रखने को लेकर बहुत सावधानी बरतें और साथ ही क्रेडिट कार्ड कंपनियों द्वारा जब आपकी क्रेडिट सीमा बढाने की पेशकश की जाए तो और भी सावधान रहें।

अत्यधिक ऋण से बचने के उपाय

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ऋण की सीमा तय करें

यह तय करें कि ऋण का कितना बोझ आप उठा सकते हैं। फिर यह सुनिश्चित करें कि आपका कुल ऋण इस सीमा से कम हो।

आप यह सीमा भी तय कर सकते हैं कि हर महीने होने वाली आमदनी में से कितनी रकम आप इस ऋण पर खर्च करना चाहेंगे। आप अपनी ऋण सीमा न लांघें यह सुनिश्चित करने में इस तरह की सीमा काफी उपयोगी हो सकती है।

ऋण के लिए सावधानीपूर्वक जांच परख करें

  • अगर आपको वाकई एक ऋण की जरूरत है तो अच्छी तरह से छानबीन करें। यह बात हमेशा समझें कि ऋण के लिए ब्याज के तौर पर आप कितना भुगतान करेंगे और सबसे कम ब्याज दर और सबसे वाजिब ऋण की पेशकश करने वाले बैंक की तलाश करें। इससे यह सुनिश्चित होगा कि आप ब्याज दरों पर जरूरत से अधिक खर्च नहीं कर रहे होंगे।
  • यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप अब भी सबसे बेहतर ब्याज दर पर भुगतान कर रहें हैं और क्या इससे बेहतर ऋण का सौदा संभव है, साल में एक बार पडताल करें।

लाभ के झांसे में न आए

  • एक बार आप यह जता देते हैं कि आप कुछ और ऋण लेने में सक्षम हैं, कई कंपनियां आपको और ऋण देने की इच्छुक होंगी। कंपनियों को क्रेडिट कार्ड की पेशकश करना शुरू कर सकती हैं और आपके बैंक अतिरिक्त ऋण वाले उत्पादों की पेशकश कर सकते हैं।
  • यद्यपि कई नए ऋण लेने के लिए आपका मन डोल सकता है, आपको इससे सावधान रहने की जरूरत है। आप तभी ऋण या क्रेडिट सेवा लें जब आपको वास्तव में इसकी जरूरत हो।

अपने बिलों के स्वतः भुगतान वाली प्रणाली अपनाएँ

कई बैंक और नियोक्ता आपको अपने वेतन से कुछ पैसा स्वतरू कटने वाली प्रणाली अपनाने की सुविधा देते हैं। आपके बिल का सही समय पर भुगतान हो जाए यह सुनिश्चित करने के लिए यह एक बेहतर रास्ता हो सकता है। साथ ही चूंकि आपको यह पैसा देखने को भी नहीं मिलेगा, इसलिए आपको हाथ से पैसा निकलने का अफसोस भी नहीं होगा।

वित्तीय शिक्षा के लाभ

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वित्तीय शिक्षा पर आवश्यक जोर दो क्षेत्रों से दी जाती है पहला व्यक्तिगत धन में कमी आना है। आज युवा लोग अपनी हैसियत से अधिक जीवन जीवने पर उतारू हैं जिसके लिए वे क्रेडिट कार्ड लेते हैं और जोखिम भरा निवेश करते हैं। दूसरा नया एवं प्रायरू जटिल वित्तीय उत्पादों का प्रसार जिसमें उपभोक्ताओं से अधिक वित्तीय दक्षता की उम्मीद की जाती है। संकटग्रस्त बाजार की स्थितियां और कर कानूनों में बदलाव बेहतर वित्तीय शिक्षा की जरूरत बढा देते हैं। यहां तक कि सरकारी कर्मचारी भी पूर्व की स्कीमों से अब निर्धारित अंशदान व्यवस्था की ओर रूख कर रहे हैं जिसमें सेवानिवृत्ति पर लाभ परिभाशित है। इसलिए सेवानिवृत्ति की योजना बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।

वित्तीय शिक्षा के कुछ लाभ हैं:

  • इससे एक सुरक्षित वित्तीय भविष्य बनाने में मदद मिलती है। वित्तीय ज्ञान की कमी दीर्घकालीन लक्ष्यों के लिए व्यक्ति या परिवार की बचत क्षमता प्रभावित कर सकती है जिससे उन्हें वित्तीय संकट में नाजुक स्थिति से गुजरना पड सकता है। वित्तीय आपात स्थितियों के लिए तैयार करती है।
  • वित्तीय नियोजन में आपात स्थिति के लिए कोष शामिल कर आप अनहोनी का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं।
  • वित्तीय रूप से जागरूक लोग ऐसे वित्तीय उत्पादों को खरीदने से परहेज करते हैं जो उनकी समझ से परे है और इस तरह से वे मार्केटिंग के झांसे में नहीं आते।
  • उपलब्धि का एहसास कराती है। वित्तीय शिक्षा लोगों को अपने लक्ष्य के नजदीक पहुंचाने में कारगर है।
  • यह व्यक्ति को अधिक जिम्मेदार बनाती है जिससे उसका धन के प्रति अनुशासित नजरिया होता है। लोगों को फिजूलखर्ची से बचाने में मदद करती है और उनमें बचत एवं निवेश की आदत डालती है।
  • इससे लोग बैंकों एवं अन्य संस्थानों द्वारा अपने उत्पादों की बिक्री के लिए अपनाए जा रहे सवालिया तरीकों के प्रति अधिक जागरूक होते हैं।
  • यह एहसास दिलाती है कि आप अपने परिवार के लिए एक अच्छा उदाहरण पेश कर रहे हैं। धन प्रबंधन कौशल आपके जीवन के दूसरे पहलुओं को लाभ पहुंचा सकता है।

निवेशक संरक्षण एवं शिकायत निपटन प्रणाली

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निवेशक की सुरक्षा

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  • प्रतिभूति बाजार में निवेशकों के हितों की रक्षा करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की स्थापना की गई।
  • सेबी निवेशकों के हित में या प्रतिभूति बाजार के समुचित विकास के लिए प्रतिभूति बाजार से जुडे सभी मध्यस्थों एवं अन्य लोगों को निर्देश जारी कर सकता है।
  • सेबी ने निवेशक संरक्षण के लिए अपनी गतिविधियों में मजबूती लाने के उद्देश्य से सेबी (निवेशक संरक्षण एवं शिक्षा कोष) नियमन, 2009 को अधिसूचित किया है।
  • इस कोष का उपयोग निम्न उद्देश्यों के लिए किया जाएगा। निवेशकों को ध्यान में रखकर शैक्षणिक गतिविधियों का संचालन, जिनमें सेमिनार, प्रशिक्षण, अनुसंधान एवं प्रकाशन शामिल हैं।
  • निवेशकों को लक्षित कर प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए जागरूकता कार्यक्रमों का संचालन।
  • सेबी द्वारा मान्य निवेशक संघों की शिक्षा एवं जागरूकता संबंधी गतिविधियों के संचालन में वित्तीय सहयोग।
  • सूचीबद्ध या सूचीबद्ध होने के लिए प्रस्तावित शेयरों में निवेशकों के हितों में कानूनी कार्रवाई करने के लिए निवेशक संघों की मदद करना।
  • डिफाल्टर सदस्यों के खिलाफ निवेशकों के दावों का निपटान करने के लिए सेबी ने एक निवेशक संरक्षण कोष का गठन किया है।
  • सेबी सदस्यों एवं निवेशकों और सदस्यों के आपसी विवाद निपटाने में मध्यस्था प्रक्रिया में भी मदद करता है।

निवेशक शिकायत निपटान प्रणाली

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  • सेबी और स्टाक एक्सचेंजों ने प्रतिभूति बाजार से जुडी निवेशक की शिकायतों का तेजी से निपटान करने के लिए निवेशक शिकायत निपटान प्रकोष्ठ गठित किया है।
  • सेबी ने सभी स्टाक एक्सचेंजों, पंजीकृत ब्रोकरों, सब ब्रोकरों, डिपॉजिटरियों और सूचीबद्ध कंपनियों को शिकायत निपटारा प्रभागध्अनुपालन अधिकारी के एक विशेष ईमेल आईडी के लिए प्रावधान करने का निर्देश दिया है जिससे निवेशकों की शिकायतें दर्ज हो सकें।
  • सेबी ने शेयर बाजार से निवेशक को होने वाली शिकायत का निपटान करने के लिए एक विशेष प्रणाली स्थापित की है।
  • सेबी मुंबई में अपने मुख्यालय और नई दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता और अहमदाबाद स्थित अपने क्षेत्रीय कार्यालयों में सभी कार्यदिवसों पर निवेशकों की शिकायतें सुनता है।
  • निवेशक अधिकारियों से मिल सकते हैं और अपनी शिकायत के संबंध में दिशानिर्देश ले सकते हैं।
  • निवेशक निश्चित कार्यदिवसों पर सेबी के उच्च अधिकारियों से भी मुलाकात कर सकते हैं।
    • निवेशक सेबी के पास अपनी शिकायतें investorcomplaints@sebi.gov.in पर भेज सकते हैं!
    • निवेशक किसी भी सहायता के लिए asksebi@sebi.gov.in संपर्क कर सकते हैं।