मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति/मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति संबंधी चिंताएं
मुद्रास्फीति निश्चय ही चिंता का विषय है, क्योंकि खाद्य पदार्थों की महंगाई अब अन्य क्षेत्रों में फैलती जा रही है। परन्तु थोड़ी मात्रा में मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी होती है, क्योंकि इसका प्रभाव बहु-आयामी होता है और एक प्रकार से अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने में मदद करती है। डॉ. सुब्बाराव ने कहा है कि ”सामान्य स्थिति की बहाली के लिए अनेक प्रकार के छोटे-छोटे कदम उठाना बेहतर होता है ताकि अर्थव्यवस्था को संकटपूर्व की स्थिति की विकास दर से तालमेल बिठाने में दिक्कत न हो।” इन छोटे-छोटे कदमों से बैंकों की ब्याज दरों (उधार देने की) पर तुरंत कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि उनके पास अभी भी पर्याप्त नकदी उपलब्ध है। कर्ज के लिए मांग अब धीरे-धीरे बढ़ने लगी है। डॉ. सुब्बाराव ने कहा कि जुलाई के अंत के पूर्व वे कोई नीतिगत कार्रवाई नहीं करना चाहेंगे। उस समय तिमाही समीक्षा के दौरान स्थिति के अनुसार निर्णय लिया जाएगा। उनका अनुमान था कि वर्ष 2010-11 में मुद्रास्फीति 5.5% के आस-पास रहेगी और इस वित्त वर्ष में विकास दर बढ़कर 8% तक पहुंच जाएगी। उन्होंने कहा कि कर्ज की मांग में उठान के साथ-साथ सरकार के कर्ज लेने के व्यापक कार्यक्रम को देखते हुए सरल नीतिगत स्थिति से बाहर निकलने के लिए सोच-समझ कर धीरे-धीरे कदम बढ़ाने होंगे। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस वर्ष ऋण की मांग में 20% की वृध्दि होगी।
इस उपाय का समर्थन करते हुए वित्तमंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने इसे संतुलित और परिपक्व बताया और कहा कि ऋण पर मामूली सख्ती और इस ‘सौम्य’ नीति से मुद्रास्फीति की बढ़ती प्रवृत्ति में कमी आएगी। उन्होंने रिजर्व बैंक के इस आकलन से असहमति जताई कि मुद्रास्फीति इस वर्ष 5.5% के लगभग रहेगी और कहा कि समीक्षा से पता चलता है कि मुद्रास्फीति में और भी कमी आने के संकेत हैं और यह 4% के आस-पास रहेगी।
रबी की फसल के बाजार में आने के साथ ही खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट आनी शुरू हो चुकी है। वित्तमंत्री ने कहा है कि मुद्रास्फीति अपने चरम तक जा चुकी है और अब इसके नीचे आने का सिलसिला शुरू होने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। मौसम के मोर्चे पर इस वर्ष कुछ अप्रिय घटने की संभावना नहीं दिखाई देती कि खाद्यान्न की कीमतें फिर ऊपर चढ़ सकें। श्री मुखर्जी ने कहा कि ‘अर्थव्यवस्था में आ रहे सुधार और स्थिरता को देखते हुए मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यह ‘सामान्य दौर’ की वापसी की ओर इशारा है। उन्होंने भरोसा दिलाते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है और कर्ज में कसावट लाने से विकास पर कोई असर नहीं पड़ेगा। टिकाऊ वस्तुओं (डयूरेबल गुड्स) के क्षेत्र का विकास विशेष रूप से अप्रभावित रहेगा। वित्त मंत्री ने रिजर्व बैंक के मौद्रिक उपायों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ‘औद्योगिक विकास और ऋण की मांग (उठान) की हमारी समीक्षा से यह संकेत मिलता है कि विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ने की कोई आशंका नहीं है। वास्तव में इन नीतियों से स्थायी विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।’