लिंग समाज और विद्यालय/तीन तलाक अधिनियम
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक साथ तीन तलाक- ए- विद्वत को दंडनीय अपराध बनाने के लिए अध्यादेश पेश किया,और इस अध्यादेश को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी अपनी सहमति दे दी है। मुस्लिम महिला(विवाह अधिकार संरक्षण) दिसंबर 2017 में लोकसभा में पारित हो गया था, लेकिन राज्यसभा में यह पारित नहीं हो सका था। सरकार ने तीन तलाक पर एक नया विधेयक 27 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया। इस विधेयक पर बहस हुई और विपक्ष के बहिष्कार के बाद लोकसभा ने पारित कर दिया। इस विधेयक को मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक, 2018 मुस्लिम विमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट ऑन मैरिज) बिल 2018 नाम दिया गया है। इस विधेयक में मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से संरक्षण देने के साथ ऐसे मामलों में दंड का भी प्रावधान किया गया है। राज्यसभा से पारित होने के बाद यह विधेयक मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अध्यादेश 2018 का स्थान लिया।
वर्तमान अध्यादेश के प्रमुख प्रावधान-
१ इस विधेयक ने तालाक के इस रूप के लिए 3 साल की सजा और दंड का प्रावधान किया है। हालांकि, नए कानून में मुकदमे की शुरुआत से पहले आरोपी की जमानत के प्रावधान सहित सुरक्षा उपायों को शामिल किया गया है।
२ इस तरह के तालाक को गैर जमानती अपराध के रूप में जारी रखा गया है।
३ मजिस्ट्रेट को पीड़िता का पक्ष सुनने के बाद सुलह कराने और जमानत देने का अधिकार होगा।
४ पीड़िता, उसके रक्त संबंधी और विवाह से बने उसके संबंधी ही पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं। पति-पत्नी के भी यदि किसी प्रकार का आपसी समझौता होता है तो पीड़िता अपने पति के खिलाफ दायर किया गया मामला वापस ले सकती है।
५ मजिस्ट्रेट को पति-पत्नी के बीच समझौता कराकर शादी बरकरार रखने का अधिकार होगा।
६ एक बार में तीन तलाक की पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट द्वारा तय किए गए मुआवजे की भी हकदार होगी।
७ इस विधेयक की धारा 3 के अनुसार, लिखित या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक विधि से एक साथ तीन तलाक कहना अवैध तथा गैर-कानूनी होगा।