लिंग समाज और विद्यालय/सामाजिक संस्थानों की लैंगिक भूमिका

बालक का समाजीकरण करने का प्रमुख अभिकरण

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समाजीकरण प्रक्रिया दिर्घ एवं जटिल है।इस कार्य में अनेक संस्थाओं और समुद्रों का योगदान होता है। सामाजिकता का विकास करने या उसके सामाजिकरण में सहायता देने वाले प्रमुख साधन अथवा तत्व निम्नलिखित हैं-

परिवार- समाजीकरण करने वाली संस्था से परिवार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि बालक परिवार में ही जन्म लेता है। उन्हीं के संपर्क में आता है। कुछ विद्वान परिवार को समाजीकरण का सबसे स्थाई साधन मानते हैं।मां-बाप की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि उनकी संबंध परस्पर सौहार्द पूर्ण है तो बालक का सामाजिकरण उचित ढंग से हो जाता है, यदि उनमें कला होती है तो सामाजिकरण विकृत हो जाता है।

पड़ोस- परिवार के समान पड़ोसी से भी बालक के समाजीकरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है इसी कारण अच्छे लोग किराए के लिए मकान लेते समय इस बात पर काफी ध्यान रखते हैं कि पड़ोसी कैसा है?पड़ोस के बालकों अथवा बड़ों की संगति में बालक बिगड़ भी सकता है और सुधर भी सकता है। वस्तुत पड़ोस एक प्रकार का बड़ा परिवार है। वैसे शहरों की तुलना में गांव में पड़ोस का अधिक प्रभाव होता है। पड़ोस के लोग बालक को प्यार में कई नई बातों का ज्ञान करा देते हैं तथा उसकी प्रशंसा तथा निंदा द्वारा उपदेश समाज सम्मत व्यवहार करने को प्रेरित करते हैं।

विद्यालय -परिवार व पड़ोस के बाद बालक के समाजीकरण में विद्यालय का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। विद्यालय में ही उसे सामाजिक एवं सांस्कृतिक आदर्शों एवं मान्यताओं की शिक्षा प्राप्त होती है। विद्यालयों में बालक पारिवारिक पृष्ठभूमि से आए अन्य बालकों के संपर्क में आता है। जिससे समाजीकरण तीव्र गति से होने लगता है। विद्यालय में बालक को कुछ विशिष्ट नियमों का पालन करना पड़ता है। इससे उसमें धीरे-धीरे आत्म नियंत्रण भी विकसित होने लगता है। विद्यालय में प्राय बालक का कोई ना कोई अध्यापक अवश्य मॉडल होता है जिसके अनुरूप वह अपने आपको ढालना सीखाता है।

समुदाय या समाज- समुदाय या समाज की बालक के समाजीकरण को विभिन्न रूपों में प्रभावित करता है। समान जिन साधनों के माध्यम से बालक के समाजीकरण को प्रभावित करता है उनमें प्रमुख हैं-

संस्कृति- इतिहास जातीय एवं राष्ट्रीय प्रथा।

कला- सहित सामाजिक प्रथाएं और परंपराएं।

जातीय पूर्व धारणाएं- समाज का आर्थिक और राजनीतिक संगठन

मनोरंजन के साधन और वर्ग और सुविधाएं।

जाति- समाजीकरण का एक प्रमुख कारण जाति भी है। प्रत्येक जाति के अपने रीति-रिवाज,आदर्श,परंपराएं और संस्कृतिक उपलब्धियां होती है तथा अपनी जाति की विशेषताओं को स्वाभाविक रूप में ग्रहण कर लेता है। यही कारण है कि प्रत्येक जाति के बालक का समाजीकरण भिन्न होता है।उदाहरण- बालक के समाजीकरण का रूप बालक के समाजीकरण से भिन्न होगा।

धर्म- बालक के समाजीकरण में धर्म का गहरा प्रभाव होता है। ईश्ववरीय भय एवं श्रद्धा के कारण वह नैतिकता तथा अन्य गुणों को ग्रहण करता है।उसमें पवित्रता,न्याय,शांति,सच्चरित्रता,कर्तव्यपरायणता,दया,इमानदारी आदि गुणों का विकास करने में धर्म प्रमुख भूमिका निभाता है। धर्म ग्रंथ, उपदेशक एवं साधु संतों का प्रभाव भी उसके आचरण पर पड़ता है। धर्म ग्रंथ, उपदेशक एवं साधु संतों का प्रभाव भी उसके आचरण पर पड़ता है।