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gai 2405:204:8089:99A7:0:0:D18:68AD ०८:०७, २५ फ़रवरी २०२३ (UTC)उत्तर दें

आनन्द मिश्र की कविताएं

सम्पादन

आनन्द मिश्र की प्रतिनिधि कविताएं


        एक

भारत का सिपाही


हिम्मत हिमालय सा विशाल

कर देता रिपु का छिन्न हाल

हिमशिखरों पर जश्न मनाता जो

दलदल में राह बनाता जो

मरुभूमि में भर दे सब्ज़ रंग

जंगल में रात बिताता जो

सूरज से पहले दिखता हो

बादल में कभी न छिपता जो

वे वहीं खड़े हैं आठ प्रहर ।


सूरज का छिपना अटल सत्य

खग सांझ विसर्जन अटल सत्य

किंतु अरि सम्मुख प्रहरी वहीं अडिग

जो न विचलित होता अरि तोपों से

करता अरि का विध्वंस ढाल

वे हैं, भारत मां के अडिग लाल


वे जगते हैं, हम सोते हैं

अरि सम्मुख जब वे होते हैं

तब मनती ईद , दिवाली है

व्यापार तभी तो चलता है

उनका सदा सम्मान करो

वे भारत के सिपाही हैं

हां ! मैं भारत का सिपाही हूं।।


        दो

प्रात पुष्प


प्रात ही रात व्यतीत हुआ,

मुर्गे जब बांग प्रशस्त किए,

आरंभ हुआ कलरव खग का,

मृग विचरण तब, प्रारंभ किए

धन भीर, गंभीर, ये नव मानव

प्रातः मन मंगल गान चले ।


जब ओस की बूॅंदें छलक पड़े

जस अरवी पात में मोती जड़े

अरुणोदय लाली देख के जब

कोंपल पुष्पों के प्रमुदित हों

प्रिय लट पर ओस की बूॅंदें जब

कंचन हों लाली से दिनकर के,

कवि देख अनोखे मुखड़न को

कविता उमड़े निज अंतर्मन !


झुरमुट बीच से अरुण छटा,

भर दे अंगड़ाई श्वानों में,

दुग्ध पान कर गो शावक,

जब भरे कुलांचे द्वारों पर,

शिशु गोंद में लेके आजी जब

द्वार पलंग पर मलंय उबटन,

गो शावक सूंघ के उबटन को

भर मारि पछाड़ी को दौड़ पड़े !

यह देख छलांग गो शावक का

शिशु कर किलकारी प्रसन्न भए

यह निहार प्रमोद, दादी अधरन की

कवि अंतर्मन नि:शब्द हुए!!


        तीन


गांधी गान



भारत का अभिमान हैं,

गांधी

जन – जन की पहचान है,

गांधी

सत्य अहिंसा नाज़ है,

गांधी

राजा के महाराज थे,

गांधी ।

भारत के रग- रग में बसते

गांवों के सम्मान थे

गांधी

गांधी में बसती थी आंधी,

चलते गांधी, चलती आंधी,

आंधी में, तूफान थे गांधी ।


शिक्षा ही सामर्थ्य है,

गांधी

भारत माॅं के ताज़ है

गांधी

राजनीति के शास्त्र है

गांधी

सत्य अहिंसा शस्त्र है

गांधी

असहयोग मंत्र है

गांधी,

ऐनक अंदर बाज़ थे

गांधी

शक्ति नहीं,

सत्य प्रबल विक्रांत थे,

गांधी ।


फूलों में खुशबू हैं,

गांधी

आत्म में महात्म थे,

गांधी

संत शिरोमणि नाम है

गांधी

लक्ष्य एक पर मत अनेक,

उन सबकी पहचान है

गांधी ।

आजादी के गुनी थे,

गांधी

विजय प्रवाह धुनी थे,

गांधी

स्वतंत्रता संग्राम थे,

गांधी

सत्याग्रह के महारथी,

शांति सूत्र कैलाश थे

गांधी ।


हिंदी, हरिजन मुस्कान है,

गांधी

भारत माॅं की नीव में,

बसती,

भारतीयता की, शान हैं

गांधी

नारी की शक्ति है,

गांधी

मीरा की भक्ति है,

गांधी

विश्व नायक, विचार श्रेष्ठ

आदर्शों के आदर्श,

विमर्शों में विमर्श है

गांधी

विषादों में, हर्ष हैं

गांधी।।


      चार


द्रुतगामी सड़क



सड़क काली हो या भूरी

जहां से भी निकलती है

स्याह कर देती है

इतिहास को

और भर देती है

तसव्वुर के अनन्त रंग।


अभी पाॅंच ही दिन हुए थे

बीमार मग्गू को दफ़न किए

तभी लेखपाल ने अपने लश्कर के साथ

सदा के लिए सोए मग्गू

के सिरहाने की तरफ गाड़ दिए

बड़ा सा खूॅंटा

जहां से होकर अब निकलेगी

द्रुतगामी नई सड़क


थोड़ी ही दूरी पर,

सैंकड़ों वर्ष पुरानी जमीनदोज इंसानी बस्ती

जहां कुछ ही दिन पहले

दफ़न हुए थे मग्गू

जिसे बचाने के लिए,

वीरान में

क़त्ल किया जा रहा था

अकेला बरगद

जो विशाल गोलाकार, छतरी नुमा

तीन पंचायतों की जमीन पर फैला था

अब उसे बांटकर काट डाला

पंचायतों ने


अब वहां पसरा था

कटी हुई डालें

जिससे रिस रहा था दूध

और कलेजा चीड़ती अनगिनत चिड़ियों का क्रंदन

जो ढूंढ रही थी अपने – अपने अंडे एवं बच्चें

जो फूट कर बिखरे थे ज़मीन पर

जिसे नोच रहे थे चींटे एवं चींटियां


ये काली, ऊंची सड़क

आतताइयों की तरह खुद को तैयार करने में

नजाने कितने जीवों और उनकी बस्तियों को रौंद दिया होगा!


आखिर क्या किया था उन्होंने

जो नेस्तनाबूद कर दिया गया उनके घरौंदों को

जो उनका पुश्तैनी था


अब वे सभी किस डाल पर जाएगी

विस्थापित होकर

अब मोर कहां पर बचाएगा

भीगने से

लम्बे पंखों को

उत्तर दिशा से आनेवाले चम्गादड़

अब कहां खाएंगे गोदा

अब कहां जाएंगे चरवाहे

छांव ढूंढने

और कहां जाएंगे उनके बच्चे

जो खेलते थे डालों पर लखनी


यह कोई आम सड़क नहीं

यह एक नई सड़क है

यह वह सड़क है

जिसपर से सरपट

निकल जाएंगे शाह -ए- राह

अपनी राजधानी के लिए


यद्यपि कि,

यह सड़क बनी है

किसानों की पैतृक माटी पर

जो खुश थे मोटा मूल्य पाकर

वे अब, मजदूर हो गए हैं

अब वे कहां जाएंगे ?


अब वे जरूर जाएंगे !

इसी शाह-ए-राह पर चढ़कर

राजधानी की तरफ

मजदूरी का

अपना हक मांगने


और तब आएंगीं

बड़ी-बड़ी कम्पनियां

जो फिर बनाएंगी

कुछ और किसानों को

मजदूर


अब बनेंगी बस्तियां

और बिकेगा

मकान और दुकान

दुकान में बिकेगा

कम्पनियों में बने

दाल, चावल, ब्रेड, जेली, पापड़, शराब और

बहुत कुछ


अब सबकुछ आधुनिक होगा

अब आदमी का सहयोगी आदमी नहीं

कम्पनी होगा !


और अब ख़बरों में क़र्ज़ के बोझ तले दब कर

लटकने वाला

कोई किसान नहीं

मजदूर होगा !

जिसकी अब कोई अपनी जमीन नहीं।।


     पांच


दुम --


दुम बरजोर है इज़्ज़त के आखिरी सरपरस्ती का

जो निभाता है दायित्व दुम हिला करके

दुम में ताकत है सींग, दांत, और पंजों का

जनाब- ए- नाताकत को दुम दबा के निकलना

होगा

गर चाहते हो उठा के चलना दुम तो

हाकिम – ए – दुम को पैरों से मशलना होगा

वे अक्सर दबा लेते हैं दुम उन तमाम लोगों का

जो कांटे की तरह नब्ज़ों में चुभा करते हैं

सम्भल जाओ ऐ दुम छिपा के चलने वालों

नंगे को इस दुनिया में ख़ुदा कहते हैं !

  1. yogi. "hindisahayak". hindi sahayak. yogi. पहुँच तिथि 9 मार्च 2024.
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