परिचय .


1-नाम :- राजीव डोगरा 2-साहित्यिक उपनाम:-विमल (जो साहित्य संगम संस्थान न्यू दिल्ली द्वारा मुझे दिया गया है) 3- विश्व रिकॉर्ड:- Vajra World Records(World's Greatest Anthology Book),India'S world's Records IWR Foundation ( बुलंदी साहित्य समिति द्वारा करवाया गया वर्ल्ड रिकॉर्ड वर्चुअल कवि सम्मेलन में),फॉरेवर स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड एवं हॉप इंटरनेशनल वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक में दर्ज पुस्तक 'हिंदी साहित्य के आधुनिक साहित्यकार एवं उनकी रचनाएं' में प्रकाशित मेरी कविताए,नाइजीरिया की नॉटेबल बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्डस संस्था ने ग्लोबल ह्यूमैनिटेरियन और सोशल रिकॉर्ड। 4-माता-पिता का नाम :-सरोज कुमारी और हंसराज 5-स्थायीपता :- कांगड़ा,हिमाचल प्रदेश 6-फोन नं/व्हाट्सएप/ ईमेल :-9876777233,7009313259 rajivdogra1@gmail.com 7-शिक्षा :-MA.BE.d,UGC/NET(Hindi),CTET,HP LT TET,PSTET 8- Honorary Doctorate

Abide university USA,Doctorate world wide Human Rights Ministry,गुड समैरिटन थियोलॉजिकल सेमिनरी नाइजीरिया TECHM INTL INC यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका से संबद्ध,प्रिक्सटन चर्च एंड यूनिवर्सिटी मियामी फ्लोरिडा,Global Nation Open University Philippines,अलसा यूनिवर्सिटी ऑफ बेनिन (नाइजीरिया),हार्वेस्ट मिशन इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी (अमेरिका),वैश्विक मंत्रालय और शिष्यत्व संस्थान युगांडा। 9.Honorary Professorship अमेरिका की हार्वेस्ट मिशन इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से दी प्रोफेसर इन एजुकेशन 10-व्यवसाय :- हिंदी अध्यापक TGT hindi (हिमाचल शिक्षा विभाग) 11. एकल काव्य संग्रह:- अनकहे जज़्बात 12.प्रकाशित पुस्तकों की संख्या :-22(साझा काव्य संग्रह} 13. पहला हिमाचली लेखक:- जो अमेरिका से प्रकाशित हम हिंदुस्तानी,कनाडा से प्रकाशित हिंदी अब्रॉड, इंग्लैंड से प्रकाशित जगतवाणी और बांग्लादेश के प्रकाशित समाचार पत्र द डेली ग्लोबल नेशनल समाचार पत्रों में जिसकी कविताएं प्रकाशित हुई। 14.सम्मानों की संख्या :-300 से ऊपर 15.रचना की विधा :- कविता और लेख 16. पहली कविता:- बेड़ी का दर्द 17. पहली कहानी:-जिंदा इंसानियत 18. पहला लेख:-कृष्ण जन्माष्टमी 19.पता:-गांव जनयानकड़ तहसील और जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश पिन कोड -176038 20.100 से ऊपर विभिन्न राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित कविताएं 21.100 से ऊपर विभिन्न राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट्स में प्रकाशित

राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं लेख प्रकाशित होते रहते हैं। अमेरिका न्यूजीलैंड कनाडा इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया इत्यादि देशों में भी मेरी कविताएं प्रकाशित होती है। साथ ही मेरी छात्राओं की भी।

लेख कैसे बनाएँ

सम्पादन

यदि आप को लगता है कि आप जो लेख बनाना चाहते हैं वह विकिपीडिया में रहने लायक है और आपके पास उस लेख को बनाने के लिए पर्याप्त सन्दर्भ है तो आप उसे निम्न तरीके से बना सकते हैं।

  1. सबसे पहले अपने लेख को विकिपीडिया में खोजें।
  2. यदि वह लेख नहीं मिला तो हो सकता है कि वह कोई और नाम से हो।
  3. यदि नहीं है तो खोज में लाल रंग में लेख का नाम रहेगा, तो उसमें क्लिक करें / खोलें।
  4. अब आप उसमें लेख की जानकारी लिखें।
  5. अनुभाग के लिए == अनुभाग == का उपयोग करें भिक्षा राम वेदवेदाङ्गाचार्य

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भिक्षा राम वेदवेदाङ्गाचार्य जी का जन्म ईस्वी सन् 1887 में हरियाणा के ऐतिहासिक शहर कुरुक्षेत्र के निकटवर्ती गांव बारणा में श्री जगन्नाथ पाराशर ज्योतिषी के घर में हुआ। इनके पिताजी के पास कुछ बीघा जमीन और पालतू दूधारू पशुओं के साथ साथ कुछ वैदिक वाङ्मय भी था। पिता जगन्नाथ जी के देहावसान के समय भिक्षा राम वेदवेदाङ्गाचार्य जी की आयु बहुत कम थी। इसलिए इनकी माता जी ने ही खेती और पशुपालन का कार्य सम्भाल कर इन्हें पढ़ाने के लिए काशी में भेजना चाहा। परन्तु अकेली मां को भिक्षा राम छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे। इस कारण ही इन्होंने घर और आसपास रहकर संस्कृत के ग्रन्थों को पढ़ने का प्रयास किया। भिक्षा राम जी ने पड़ोसी गांव हथीरा के ब्राह्मण आचार्य जी से सामान्य कर्मकाण्ड और प्राथमिक व्याकरण की पढ़ाई की। धीरे धीरे अपनी प्रतिभा और कड़ी मेहनत के फलस्वरूप वैदिक वाङ्मय में पारंगत होने के मार्ग खुल गये। भिक्षा राम जी ने किसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त न कर के स्वयं ही पढ़ाई की और अपनी ज्ञानपूर्ण रचनाओं को अनेक स्थानों पर होने वाली गोष्ठियों और सम्मेलनों जाकर परिचय करवाया। अपने समय में होने वाले विद्वानों के शास्त्रार्थों में भाग लेते हुए स्वयं को पूरे भारत में ख्यातिलब्ध विद्वान के रूप स्थापित किया । तत्कालीन चतुराम्नाय अर्थात शंकराचार्य के चारों मठों के पीठासीन आचार्यों से वेदवेदांगाचार्य के रूप प्रमाण पत्र प्राप्त किए। भिक्षा राम वेदवेदाङ्गाचार्य जी ने देशभर में कई पाठशालाओं के संचालन और दिशानिर्देशन का कार्य किया। अपने समय के संवत्सरों में पंचांग निर्माण के साथ साथ संस्कृत साहित्य में भी योग दान किया। इनकी रचनाओं में गद्य और पद्य दोनों ही प्रकार की पाण्डुलिपियां प्राप्त होती हैं। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्रीकृष्ण शर्मा ने और डॉ अरुणा शर्मा ने इनकी रचनाओं को अपने अनुसंधान के कार्य में रखा। शब्द ज्योत्स्ना नामक व्याकरण ग्रन्थ को पहली बार श्री गौरीशंकर जी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में ही प्रकाशित करवाया। 1985 में श्री रामेश्वरदत्त शर्मा जी ने श्रीकृष्ण शर्मा को इस पांडुलिपि पर कार्य सौंपा। बाद में सुरेन्द्र कुमार और वेद कुमारी घई ने शोध कार्य किए। भिक्षा राम वेदवेदाङ्गाचार्य जी के जीवन और रचनाओं पर अरुण पाराशर बारणा ने शोधपरक कार्य करके बारणा राम भिक्षा राम नाम से पुस्तक तैयार की। भिक्षा राम जी के पुत्र श्री श्रीकृष्ण ने अपनी वैद्य की पढ़ाई अपने ही पिता से प्राप्त की थी। भिक्षा राम वेदवेदाङ्गाचार्य जी के चारों पौत्रों विष्णु दत्त, अंजनी कुमार, हीरालाल और, लाली को अपनी विरासत के रूप में अपनी प्रसिद्ध रचना संसार को सौंपा। 1975 में अपनी जीवन यात्रा पूरी की।