"भारतीय काव्यशास्त्र/काव्य प्रयोजन": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति ५५:
==विश्वनाथ==
मम्मट के पश्चात काव्य के प्रयोजन पर विचार में नवीनता का अभाव मिलता है। बाद के आचार्यों ने केवल मम्मट के ही विचारों को व्याख्यायित किया है। विश्वनाथ ने काव्य के प्रयोजन के तहत चतुर्वर्ग की प्राप्ति को महत्व दिया है। इनके अनुसार शास्त्र का भी यही प्रयोजन है किन्तु शास्त्र का अनुशीलन कष्टसाध्य है और सबको सुलभ नहीं है। काव्य के अध्ययन से जनसामान्य को भी चतुर्वर्ग की प्राप्ति संभव है।
"चतुर्वर्गफलप्राप्तिः सुखादल्पधियामपि।" - (साहित्यदर्पण, १/२) कहना न होगा कि विश्वनाथ की चतुर्वर्ग की प्राप्ति के उद्देश्य से काव्य सृजन की बात मम्मट के कांता सम्मित उपदेश का ही विस्तार है।है।आचार्य विश्वनाथ जी ने अपनी पुस्तक साहित्यदर्पण मे मम्मट जी के विचारो का खंडन किया है.
 
==निष्कर्ष==