"हिंदी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल)/स्त्री विमर्श": अवतरणों में अंतर

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==स्त्री विमर्श: आंदोलन==
===वैश्विक स्तर पर नारीवादी आंदोलन===
आंदोलन के रूप में इसकी शुरुआत ब्रिटेन और अमेरिका में हुई। 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के दौरान कई (किस्म) के संघर्ष हुए। उनमें एक संघर्ष स्त्री-पक्ष ने भी किया। उन्होंने धर्मशास्त्र और कानूनों के द्वारा (खुद) को पुरुषों के (मुकाबले) शारीरिक और बौद्धिक धरातल पर कमजोर मानने से (इनकार) कर दिया।
 
1792 ई. में फ्रांसीसी क्रांति के महिला मुक्ति आंदोलन से प्रभावित होकर<Ref>डॉ. हेमंत कुकरेती- हिंदी साहित्य का इतिहास, सतीश बुक डिपो,२०१६, पृ.२३७</ref> 1857 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका में महिलाओं और पुरुषों के समान वेतन को लेकर हड़ताल हुई थी। इसी दिन को बाद में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया गया। इसी के साथ विश्व भर में नारी मुक्ति आंदोलन की (शुरुआत) हो चुकी थी।<Ref> डॉ. मंदाकिनी मीणा एवं डॉ. अनिरुद्ध कुमार 'सुधांशु'- अस्मितामूलक विमर्श और हिंदी साहित्य, श्री नटराज प्रकाशन, २०१६, पृ.३१</ref>
 
1848 ई. में कुछ प्रखर महिलाओं ने (बाकायदा) एक सम्मेलन करके नारी मुक्ति से संबंधित एक वैचारिक घोषणा पत्र जारी किया। इन महिलाओं में ऐलिजाबेथ कैन्डी, स्टैण्टन, लुक्रसिया काफिनमोर प्रमुख हैं। इस सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि स्त्री को सम्पूर्ण और बराबर के कानूनी हक दिए जाए। उन्हें पढ़ने के (मौके), (बराबर) मजदूरी और वोट देने का अधिकार इत्यादि क्रान्तिकारी माँगे पारित की गयी। यह आंदोलन तेजी से सारे यूरोप में फैल गया, लेकिन असली सफलता 1920 में जाकर मिली। जब अमेरिका में स्त्रियों को वोट डालने का अधिकार मिला।
 
1859 ई. में पीटर्सबर्ग में अगला आंदोलन हुआ। 1908 में 'वीमेन्स फ्रीडम लीग' की स्थापना ब्रिटेन में हुई। जापान में इस आंदोलन की शुरुआत 1911 में हुई, 1936 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मैडम क्यूरी सहित तीन महिलाएँ फ्रांस में पहली बार मंत्री बनीं।<Ref>डॉ. मंदाकिनी मीणा एवं डॉ. अनिरुद्ध कुमार 'सुधांशु'- अस्मितामूलक विमर्श और हिंदी साहित्य, श्री नटराज प्रकाशन, २०१६, पृ.३१</ref>