"देशप्रेम की कविताएं/मेरे नगपति मेरे विशाल - रामधारी सिंह दिनकर": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १:
<poem>मेरे नगपति! मेरे विशाल!
साकार, दिव्य, गौरव विराट्,
पौरुष के पुन्जीभूत ज्वाल!
पंक्ति ६७:
रे तपी आज तप का न काल
नवयुग-शंखध्वनि जगा रही
तू जाग, जाग, मेरे विशाल</poem>