"हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल )/भारतेन्दु हरिश्चंद्र एवं उनका मण्डल: साहित्यिक योगदान": अवतरणों में अंतर

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1868 ई॰ में काशी में अभिनीत शीतला प्रसाद त्रिपाठी कृत 'जानकी मंगल नाटक' आधुनिक इन हिंदी का पहला रंग नाटक कहा जाता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र का इस प्रस्तुति में लक्ष्मण का अभिनय करना प्रसिद्ध है।— "नाटक यदि परंपरा से प्राप्त गधे का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है तो गद्य का आधुनिक काल में विकसित सबसे विशिष्ट माध्यम उपन्यास है। भारतेंदु की दो गद्य रचनाओं को माना जाता है कि वह उपन्यास के रूप में लिखी जाने को थी एक 'पूर्ण प्रकाश चंद्रप्रभा'और दूसरी 'एक कहानी कुछ आप बीती कुछ जगबीती ।"
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने इतिहास में लिखा है "अंग्रेजी ढंग का मौलिक उपन्यास पहले पहल लाला श्रीनिवास दास का 'परीक्षा गुरु' ही निकला था। 'परीक्षा गुरु' का प्रकाशन 1882 में हुआ। श्रद्धा राम फिल्लौरी का 'भाग्यवती' लिखा तो 1877 में गया पर उसका प्रकाशन प्राय: एक दशक बाद हुआ। दोनों उपन्यासों के उद्धरण नीचे दिए गए हैं। नाटकों की भाषा अधिकतर काल, पात्र, परिस्थिति के अनुसार चलती है उपन्यास की भाषा इस तुलना में अधिक समरस होती है।
हिंदी में इस युग के अन्य भाषी लेखक थे 'माधव राव सप्रे (मराठी), लज्जाराम मेहता (गुजराती) तथा अमृतलाल चक्रवर्ती (बांग्ला)। इस युग के प्रतिनिधि निबंधकार बालकृष्ण भट्ट और प्रताप नारायण मिश्र के गद्य से यहां उद्धरण दिए जा रहे हैं—
परीक्षा— "यह तीन अक्षर का शब्द ऐसा भयानक है कि त्रिलोक्य की बुरी बला इसी में भरी है। परमेश्वर ना करें कि इसका सामना किसी को करना पड़े ।
(प्रताप नारायण मिश्र:–परीक्षा)
रुचि:— रुचि ही के जूदे–जूदे प्रकारांतर या उसकी बारीकियां फैशन के नाम से चल पड़े हैं। इस नई सभ्यता के जमाने में जिसकी हद से ज्यादह छानबीन हो रही है।—
(बालकृष्ण भट्ट:– रुचि)
युग का केंद्रीय काव्य रूप नाटक है हिंदी में सैद्धांतिक आलोचना की पहल भारतेंदु के लंबे निबंध नाटक 18 सो 83 से है भारतेंदु के नाटक शीर्षक निबंध के प्रकाशन के 386 में लाला श्रीनिवास दास के नाटक संयोगिता स्वयंवर 885 की समीक्षा बालकृष्ण भट्ट अपने पत्र हिंदी प्रदीप में प्रकाशित की और प्रेमघन ने आनंद कादंबिनी में भारतेंदु मंडल के सक्रिय होते होते समूची आधुनिक गद्य धारा एकबारगी गतिशील होती है