"हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल )/भारतेन्दु हरिश्चंद्र एवं उनका मण्डल: साहित्यिक योगदान": अवतरणों में अंतर

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रुचि:— रुचि ही के जूदे–जूदे प्रकारांतर या उसकी बारीकियां फैशन के नाम से चल पड़े हैं। इस नई सभ्यता के जमाने में जिसकी हद से ज्यादह छानबीन हो रही है।—
(बालकृष्ण भट्ट:– रुचि)
भारतेंदु युग का केंद्रीय काव्य रूप नाटक है हिंदी में सैद्धांतिक आलोचना की पहल भारतेंदु केकृत लंबे निबंध 'नाटक 18 सो 83'(1883) से हैहै। भारतेंदु के 'नाटक' शीर्षक निबंध के प्रकाशन के 386तीन वर्ष बाद 1886 में लाला श्रीनिवास दास के नाटक 'संयोगिता स्वयंवर 885'(1885) की समीक्षा बालकृष्ण भट्ट अपने पत्र 'हिंदी प्रदीप' में प्रकाशित की और प्रेमघन ने आनंद कादंबिनी'आनंदकादंबिनी' में भारतेंदु मंडल के सक्रिय होते होते समूची आधुनिक गद्य धारा एकबारगी गतिशील होतीहो उठती है