"सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/बौद्ध धर्म &जैन धर्म": अवतरणों में अंतर

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प्रथम कोटि में सामान्य गाँव है जिनमें विविध वर्णों और जातियों का निवास होता था।द्वितीय कोटि में उपनगरीय गाँव थे जिन्हें शिल्पी-ग्राम कह सकते हैं, अतः कथन (2) असत्य है।
उल्लेखनीय है कि तृतीय कोटि में सीमांत ग्राम आते हैं, जो जंगल से संलग्न देहातों की सीमा पर बसे होते थे।
 
 
राजा किसानों की उपज का छठा हिस्सा कर के रूप में लेता था। इसका निर्धारण और वसूली गाँव के मुखिया की सहायता से राजा के कर्मचारी करते थे।
गणतंत्र में राजस्व पाने का अधिकार गण या गोत्र का प्रत्येक प्रधान का होता था जो राजन् कहलाता था। राजतंत्र में एकमात्र राजा राजस्व पाने का अधिकारी होता था।
 
भारतीय विधि और न्याय-व्यवस्था का उद्भव इसी काल में हुआ। पहले कबायली कानून चलते थे, जिसमें वर्ण-भेद को कोई स्थान नहीं था।
धर्मसूत्रों में हर वर्ण के लिये अपने-अपने कर्त्तव्य तय कर दिये गए और वर्णभेद के आधार पर ही व्यवहार-विधि (सिविल लॉ) और दंडविधि (क्रिमिनल लॉ) तय हुई।
 
पालि ग्रंथों में गाँव के तीन भेद किये गए हैं। अतः कथन (1) सत्य है।