"सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/बौद्ध धर्म &जैन धर्म": अवतरणों में अंतर

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प्रारंभिक बौद्ध और जैन साहित्य महाजनपदों की सूची प्रस्तुत करता है जिनके विभिन्न ग्रंथों के नामों में अंतर भी देखने को मिलता है।
पालि ग्रंथों में गाँव के तीन भेद किये गए हैं। अतः कथन (1) सत्य है।
अंगुत्तर निकाय के अनुसार, 16 निम्नलिखित महाजनपद थे:
प्रथम कोटि में सामान्य गाँव है जिनमें विविध वर्णों और जातियों का निवास होता था।द्वितीय कोटि में उपनगरीय गाँव थे जिन्हें शिल्पी-ग्राम कह सकते हैं, अतः कथन (2) असत्य है।
अंग, अश्मक, अवंती, चेदि, गांधार, काशी, कंबोज, कोसल, कुरु, मगध, मल्ल, मत्स्य, पांचाल, शूरसेन, वज्जि और वत्स।
उल्लेखनीय है कि तृतीय कोटि में सीमांत ग्राम आते हैं, जो जंगल से संलग्न देहातों की सीमा पर बसे होते थे।
दीघ निकाय में उपरोक्त सूची में से केवल बारह महाजनपदों का उल्लेख किया गया है। इसमें '''अश्मक, अवंती, गांधार और कंबोज''' का उल्लेख नहीं मिलता है।
बौद्ध निकायों में भारत के पाँच भागों यानी उत्तरापथ (पश्चिमोत्तर भाग) मध्यदेश (केंद्रीय भाग), प्राची (पूर्वी भाग), दक्षिणापथ (दक्षिणी भाग) और अपरांत (पश्चिमी भाग) का उल्लेख मिलता है। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि भारत की भौगोलिक एकता ईसा पूर्व छठी शताब्दी से पहले परिकल्पित की जा चुकी थी।
जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्रकृतांग तथा महान वैयाकरण पाणिनी की अष्टाध्यायी (ई.पू. छठी शताब्दी), बौधायन धर्मसूत्र (ई.पू. सातवीं शताब्दी) में भी जनपदों की सूचियाँ मिलती हैं।
 
:पालि ग्रंथों में गाँव के तीन भेद किये गए हैं। अतः कथन (1) सत्य है।
प्रथम कोटि में सामान्य गाँव है जिनमें विविध वर्णों और जातियों का निवास होता था।द्वितीय कोटि में उपनगरीय गाँव थे जिन्हें शिल्पी-ग्राम कह सकते हैं, अतःउल्लेखनीय कथनहै (2)कि असत्यतृतीय है।कोटि में सीमांत ग्राम आते हैं, जो जंगल से संलग्न देहातों की सीमा पर बसे होते थे।