"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर
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'''बुंदक हाला परत ज्यों, गंगाघट अपवित्र ।5/4||'''
'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया के तीसरा प्रभाव से लिया गया है
'''प्रसंग :''' इस छंद के माध्यम से केशव ने कविता, स्त्री और मित्र के विषय में कहा है
'''व्याख्या :१.''' कविता, स्त्री तथा मित्र में थोड़ा सा भी दोष हो तो वे इस प्रकार अच्छे नहीं लगते जिस प्रकार मदिरा की एक बूंद पड़ते ही गंगा जल का भरा हुआ पूरा घडा अपवित्र हो जाता है।
'''२.''' कवि कहते हैं कि इन तीनों ( स्त्री, कविता और मित्र) दोषों के रहते हुए शोभा नहीं पाते हैं जैसे एक बूंद मदिरा से गंगाजल से भरा हुआ घड़ा अपवित्र हो जाता है| अंतः थोड़े से दोष से ही ये तीनों निंदा के योग्य माने जाते हैं| अलंकारों एवं गुणों के पक्षपाती केशवदास काव्य, में किसी दोष को क्षमा नहीं करते
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