"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर
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'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया के पांचवा प्रभाव से लिया गया है
'''प्रसंग :''' पांचवा प्रभाव के दोहे में केशव काव्य में अलंकारों की महत्वता का वर्णन करते हैं
'''व्याख्या :''' अतः उनकी कविता में विभिन्न अलंकारों का प्रयोग सर्वत्र दिखाई देता है। अलंकारों के बोझ से कविता के भाव दब से गए हैं और पाठक को केवल चमत्कार हाथ लगता है।
जहां अलंकार-योजना प्रति केशव को कठोर आग्रह नहीं है, वहां उनकी कविता अत्यन्त हृदयग्राही और सरस हैं। उपमा-अलंकार का एक उदाहरण देखिए- दशरथ-मरण के उपरांत भरत जब महल में प्रवेश करते हैं तो वे माताओं को वृक्ष विहीन लताओं के समान पाते हैं।
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