"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर
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'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया के कविता से संकलित किया गया है
'''प्रसंग :''' इस कविता में दशरथ सुत राजा रामचंद्र का गुणगान किया गया है| कवि प्रशस्ति के रूप में राम की कीर्ति का बखान करता है
'''व्याख्या :''' 'केशवदास कहते है कि-हे राजा दशरथ के पुत्र श्री रामचन्द्र सुनो। आपका सुयश सारे ससार के गार का कारण है, क्योकि राजाओ ने अपने छात्र, उसी से निर्मित किये है और श्री गणेशजी ने अपना दाँत भी उसी से बनाया है। पृथ्वी ने अपना सुन्दर वस्त्र ( सागर ) ब्रह्मा ने अपना आसन ' पुडरीक ) कामदेव ने अपना धनुष, इन्द्र ने अपना घोडा (उच्च श्रवा । नारायण ने अपना बिछौना शेषनाग, श्री लक्ष्मी जी ने अपनी नाक का मोती, श्री शकर जी ने अपना तिलक (चन्द्रमा) और पार्वती जी ने उसे अपना हार बनाया है।
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